AUTHOR GUIDELINES

रचनाकारों के लिये आवश्यक अनुदेश /निर्देश
आदरणीय लेखक गण संगम पत्रिका प्रिंट/ ऑनलाइन (समय और देश विदेश के विद्वानों की माग पर) गीना शोध संगम साहित्य शिक्षा संस्कृति शोध को समर्पित है। जर्नल में हिंदी के साथ साथ भारतीय अन्य भाषा के साथ साथ अंग्रेजी भाषा की लगभग सभी विधाओं के लेख प्रकाशित किए जाते हैं। रचनाएँ एवं शोधपत्र प्रेषित करते समय कृपया निम्न अनुदेशों को ध्यानपूर्वक पढ़ लें और स्मरण रखें –

 

संगम शोध पत्रिका में शोध आलेख का प्रकाशन अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप किया जाता है। आप अपना शोध आलेख निम्न प्रारूप में ही लिखें।

1.शोध आलेख विषय

2. विभाग का नाम, संस्थान का नाम अथवा पता, ईमेल एवं मोबाइल नंबर

3. शोध सारांश जो 200 शब्दों से अधिक न हो

4. बीज शब्द

5. भूमिका
6. निष्कर्ष

7. संदर्भ में लेखक का नाम, प्रकाशन वर्ष, पुस्तक का नाम, प्रकाशन का नाम, प्रकाशन का स्थान अवश्य लिखें। (उपरोक्त फोर्मेट एपीए के अनुसार है)

शोध आलेख के फोर्मेट को देखने के लिए (Research Paper Format) डाउनलोड करें।

ध्यान रखें कि रचनाएँ पूर्णत: मौलिक हो। पूर्व प्रकाशित रचना यदि अज्ञानतावश प्रकाशित हो जाती है तो उसका पूर्ण उत्तर दायित्व आपका अर्थात शोधार्थी /प्राध्यापक/ साहित्यकार एवं रचनाकार का होगा ।

शोध-पत्र 2000 – 5500 शब्दों से अधिक न हो तथा 150 शब्दों का सारांश भी प्रेषित करें। शोध-पत्र ए – 4 साइज़ के कागज पर कंप्यूटर से एक ओर मुद्रित केवल यूनिकोड अथवा मंगल में ही हों। किसी अन्य फोन्ट अथवा अथवा स्केन कर भेजी गयी रचना/शोध पेपर किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं की जायेगी। उसके लिए अलग से कोई प्रतिउत्तर भी नहीं दिया जायेगा।

यदि रचना कापीराईट का उल्लंघन करती है अथवा किसी अन्य रचना या पूर्व प्रकाशित रचना का कोई अंश बिना प्रकाशक एवं एवं लेखक की पूर्वानुमति के प्रकाशित हो जाता है तो उसका पूर्ण उत्तरदायित्व लेखक एवं रचनाकार अर्थात आपका का होगा। पत्रिका का संपादक/संपादक मंडल परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इसके लियें उत्तरदायी नही होगा।

कृपया रचना/शोध पेपर भेजने के पहले/पूर्व यह सुनिश्चित कर लें कि उसमे व्याकरण एवं मात्राओं की गलतियाँ किसी भी स्थिति न हों।

आलेख/पेपर केवल यूनिकोड अथवा मंगल फॉण्ट साइज़ 14 में ही रचनाएँ प्रेषित में करें अन्य किसी फॉण्ट में रचनाएँ स्वीकार नही की जायेंगी। आप अपने शोध आलेख/पेपर वर्ड फाइल और पीडीएफ दोनो में मेल करे ताकि मिलान करने में आसानी रहे।

शोध आलेखों में सन्दर्भ ग्रन्थ सूची का उल्लेख अवश्य करें।

शोध पत्रों की स्वीकृति एवं अस्वीकृति का अंतिम निर्णय पीर रिव्यू विशेषज्ञ की टिप्पणियों (Peer Review Expert comments) के उपरान्त संपादक मंडल की अनुशन्सा पर ही लिया जाएगा है। इस संबन्ध में अन्तिम अधिकार प्रधान सम्पादक और प्रकाशन संस्थान का है जो सभी रचनाकारों/शोधार्थियों/प्राध्यापको को मान्य होगा।

विषय विशेषज्ञ द्वारा किसी शोध पत्र में संशोधन की अनुशंसा किए जाने पर उसे लेखक के पास दोबरा भेजकर एक निश्चित समय सीमा में संशोधन का अनुरोध किया जाएगा। लेखक द्वारा संशोधित शोध पत्र को मूल्यांकन के लिए पुन: विशेषज्ञ के पास संस्तुति के लिए भेजा जाएगा। शोध पत्रों एवं रचनाओं में परिवर्तन करने का अधिकार जर्नल के सम्पादक मंडल के पास होगा, संपादक मंडल रचनाओं को परिवर्तित रूप में भी प्रकाशित कर सकता है।

शोध-पत्र जब प्रकाशन योग्य पाया जाता है तो उसे प्रिंट/ऑनलाइन छापने के लिए संस्थान द्वारा निर्धारित सहयोग शुल्क लिया जाता है। इसके अभाव में शोध आलेख संस्थान छापे या छापे यह संस्थान का निर्णय अंतिम और मान्य होगा ।

शोध पत्र के प्रकाशन हेतु संपादक के नाम पत्र होना चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से शोध पत्र के सम्बन्ध में “मौलिक एवं अप्रकाशित” शब्द लिखा होना चाहिए और इसे अन्यत्र न भेजे जाने की पुष्टि हो। शोध पत्र की सामग्री कहीं से चोरी की गयी (plagiarism) नहीं होनी चाहिए इस सम्बन्ध में वेबसाइट पर उपलब्ध “मौलिकता का प्रमाण-पत्र” (Certification of Originality) डाउनलोड करें एवं उसे आलेख के साथ प्रेषित करें।

शोध पत्र में सारणी एवं चित्रों का प्रयोग लेख में सावधानी पूर्व करे या बीच में न करते हुए अंत में सन्दर्भ या संलग्नक के रूप में करें।

शोध पत्र प्रत्येक माह की 13 तारीख तक ई-मेल द्वारा निम्न ई-मेल आई डी grngobwn@gmail.com पर भेजा जा सकता है। ईमेल के अतिरिक्त किसी अन्य माध्यम से भेजी गयी रचना किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं होगी।

शोध-पत्र प्रकाशित होने की उपरान्त में लेखक ( जिसने सहयोग राशि जमा की है) को प्रिंट कॉपी पजीकृत डाक से उसके दिए पते पर भेजी जाती है तथा कोई लेखक अथवा जर्नल की बेवसाइट www.ginajournal.com पर पी डी एफ रूप अपलोड की जाती है जिसे आप कभी कही भी डाउनलोड कर सकते हैं । प्रकाशित अंक नि:शुल्क भेजने का कोई प्रावधान नहीं है।