पिता – वेद प्रकाश दिवाकर
पिता
हे पिता परमेश्वर मेरे ,
तुम ही मेरे मान हो ।
नमन सदा चरणों में तेरे ,
तुम ही मेरे पहचान हो ।।
बसे हुए हो रग – रग मेरे ,
बनकर लहू समान हो ।
नहीं कोई तुमसे बढ़कर,
मेरे लिए भगवान हो ।।
गुण – दोष का भेद कराया ,
सद्गुणों की तुम खान हो ।
जीवन पथ पर बढ़ना सिखाया ,
मेरे जीवन अभिमान हो ।।
जीवन की कड़ी धूप में तुम ही,
सर्द शीतल बयार हो ।
मिट जाए तपस अंतश की ,
ऐसी मृदुल बहार हो ।।
डगमग हुए कदम जब मेरे
आस बने आधार तुम हो ।
संकट में हरपल साथ रहे ,
ऐसे पालनहार हो ।।
बच्चों के खुशियों के खातिर ,
त्यागे निज अरमान को ।
श्रम के आग में खुद तप कर ,
दिए हमें सम्मान को ।।
शिकन नहीं मुख पर कभी ,
तुम खुशियों की सुल्तान हो ।
नाते – रिश्ते घर आंगन का ,
हरदम रखते ध्यान हो ।।
डटे रहते कर्तव्य पथ पर ,
चाहे कितनी तूफान हो ।
आँच ना आए घर आंगन पर,
हम सबका अभिमान हो ।।
जीवन के मेरे कारक तुम ही ,
खुशियों की मेरे जहान हो ।
तुमसे ही मेरे भूत भविष्य ,
तुम ही मेरे पहचान हो ।।
हे पिता परमेश्वर मेरे ……
वेद प्रकाश दिवाकर
पासीद, सक्ती
छत्तीसगढ़