May 16, 2023

‘माँ’ – डॉ रेनू सिंह

By Gina Journal

‘माँ’

संसार की अद्भुत तस्वीर है माँ
जन – जन के लिए प्यार की मूरत है माँ
कोई नहीं समझे इसकी सहन – शक्ति को
प्यार की वह अद्भुत सूरत है माँ।

दिन भर सबकी चिंता में रहती
खुद गीले में बच्चे को सूखे में सुलाती
सोते कभी नहीं जगाती रूठने पर रोज
मनाती
रोज लोरी सुनाती रात बैठे – बैठे बिताती
ऐसी जग से निराली है माँ।

सब संबंधो को निभाती
भटकते हुए को राह दिखाती
कभी खुद ही दीपक बन जाती
मन में खुशी की लो जगाती
ऐसा जग में करिश्मा करती है माँ।

एक एक आहट को पहचानती
जीवन में ज्योति प्रज्जवलित करती
सब मुश्किलों से बचाती
अब तक सब कुछ आई है देती
इतिहास साक्षी है भगवान का दूसरा अवतार है माँ।

संसार की नदी में चलना सिखाती
कभी खुद पतवार बन जाती
मल्लाह का फर्ज निभाती
असंख्य बाधाओं से बचाती
उद्यम में हम कही हो लीन
कभी श्रोत स्वामिनी बन जाती
ऐसी विचित्रता का प्रतीक है माँ।

अंतर की एक एक बात को जानती
आकांक्षाएं दिल में जगाती
दर्द की एक – एक गहराई को पहचानती
निष्कपट मृदु व्यवहार करती
लेने की कभी ख्वाहिश न रखती
दुनिया में पहला स्पर्श देती है माँ।

विश्व में जब कुटिलता और त्रास मिले
प्रतिध्वनि और कलरव सुनाई न दे
जिन्दगी जब रेगिस्तान बन जाये
हारों मत हौसला मत छोड़ो
ऐसे मोको पर हमेशा साथ रहती हैं मांँ।

जिन्दगी के कुछ नियम बना लो
अभिलाषाएं दिल में जगा लो
खंडित प्रतिमानों को विक्रांत बना लो
शशि को अपना आदर्श बना लो
घृणा हृदय से हटा लो
यही तो सब रोज सिखाती है माँ।

संसार की अद्भुत तस्वीर है माँ
जन जन के लिए प्यार की मूरत है माँ ।

डॉ रेनू सिंह
देहरादून (उत्तराखंड)