मां – आनन्द कुमार मित्तल
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नारी अपने सभी रूपों में सम्माननीय है,पूजनीय है।मां का रूप उसका सर्वत्र प्रशंसनीय है,मेरे शब्दों मे मां क्या है : कृपया सुनिए :
मां तेरी ममता के आगे जगतपिता नतमस्तक है,
ममत्व नहीं देवत्व समाया तेरा उर धरती का संरक्षक हैं,।
प्रभु ने निर्मित किया मां का दिल भाव भर दिए वहां अनेक,
दया -क्षमा ममता की मूरत बलिहारी मां के गुण प्रत्येक,
निर्मित कर जब प्रभु ने मां को जांचा और परखा होगा,
आश्चर्य चकित हो उसके मुख से मां प्रणाम निकला होगा।
मां तुम हो साहस की देवी रहती तुम मे शक्ति अपार,
तुम हो वीरांगना लक्ष्मीबाई तुम हो साहस की भण्डार।
क्यों विस्मृत सी रहती हो तुम,क्यों सहती हो अत्याचार,
खड्ग उठा लो अब निज कर मे करो दुष्टजन का संहार।
मातृशक्ति का वरदान प्राप्त कर बनी हो तुम पूज्या नारी,
तेरी ममता के वितान मे समाया है संसार नारी ।
तेरा स्नेह है अक्षुण्ण अनायास मिलता सबको,
तेरी दया-क्षमा से खुश हो प्रभू आशीष देते तुझको।
तू तरणि है भवसागर की सुखद अनुभूति सुरक्षा की,
तेरे पावन हृदय कमल से बहती रसधार निस्पृहता की
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़