सागर: साझा परिवार – डॉ. आरती ‘लोकेश’
सागर: साझा परिवार
मैं हूँ एक साझा परिवार!
रचना मेरी सागर अपार।
साथ जोड़ के ऐसे रखता,
रसभरे दाने मध्य अनार।
मैं हूँ एक … …
जो जाता है जाने देता,
लौट के आए आने देता।
टकरा लौटी लहरों को फिर,
चूम सहलाता बारंबार।
मैं हूँ एक … …
रत्न निधि सहेज के रखता,
मेहनत करने वाले को देता।
बैठ किनारे देखने वाले,
पा जाते मोती एकाध बार।
मैं हूँ एक … …
अथाह मेरी गहराई में,
समा जाते हैं अगणित जीव।
पालन-पोषण का दायित्व,
निभाता चलता बिन पुकार।
मैं हूँ एक … …
बड़ा तन तो विशाल है मन,
नदियाँ आतीं यहीं समातीं।
जगह उन्हें भी उर में देता,
नमन है श्रद्धा उनका प्यार।
मैं हूँ एक … …
ले मेरी कोमलता का सहारा,
चला के नैया मुझे चीरते।
उनको भी मैं पार लगाता,
भले चुभती रहे पतवार।
मैं हूँ एक … …
अविभक्त मेरा संसार है,
मेरे साम्राज्य न तिरस्कार।
अलग कहीं जो घर बसाए,
बरसूँ बदरा से बन जलधार।
मैं हूँ एक … …
-डॉ. आरती ‘लोकेश’
दुबई, यू.ए.ई.