May 16, 2023

जीवनयात्रा – डॉ कंचन जैन

By Gina Journal

जीवनयात्रा

कुछ वक्त का ही फेर था,
सुबह और शाम में ।
वरना मिले तो, दोनों ही अकेले ही थे ।
दिन शुरू सुबह से,और शाम को ढल गया।
कुछ वक्त का ही फेर था ।
न मिलने का वक्त तुम पर था, न उसने दिया ,
तुम्हें ।
भागता रहा ताउम्र ,
न जाने किस आजमाइश में ,
आज थक कर, जब बैठा शून्य पर ।
तो याद आती है , जीवनयात्रा ।
शायद एक पल जी लेता, तूझे एतबार से।
कुछ एहसास से ।
तो पूरी हो जाती ये, जीवनयात्रा ।
बीत गया कुछ अनमोल सा , फिर वापस किससे मांगू।
अब ……..।
जब किस्सा बन गई है, ये जीवनयात्रा ।
कुछ पल बैठ कर फुर्सत से , खुद से मिलूंगा ।
तू मेरी है , ये खुद से कहूंगा ।
ऐ जीवनयात्रा । ऐ जीवनयात्रा ।

डॉ कंचन जैन “स्वर्णा”
अंतरराष्ट्रीय कला एवं साहित्य सम्मान- 2023 प्राप्त
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश