June 3, 2023

98. पीटर पॉल एक्का के कहानियों में आदिवासी स्त्रियों का जीवन संघर्ष-पूजा पॉल

By Gina Journal

Page No.:693-701

पीटर पॉल एक्का के कहानियों में आदिवासी स्त्रियों का जीवन-संघर्ष

 ‘परती जमीन’ कहानी-संग्रह के विशेष संदर्भ में

पूजा पॉल

 

शोध सारांश

आदिवासी साहित्य में कहानी को सबसे प्रसिद्ध एवं लोक प्रचलित विधा माना जाता है I कथा लेखन की विधा में आदिवासी साहित्यकार पीटर पॉल एक्का का नाम बहुत चर्चित है I उनके द्वारा रचित परती जमीन कहानी-संग्रह में आदिवासी स्त्रियों की जीवन-संघर्ष के मुद्दों पर नजर केन्द्रित किया है I कहानी के माध्यम से आदिवासी समाज में स्त्री जीवन के विविध पहलुओं से परिचित हो जाते है I मुख्य रूप से स्त्री जीवन की बाहरी-आंतरिक समस्याओं, विडंबनाओं, मनोभावना, शोषित-पीड़ित, कर्तव्यों का पालन करती स्त्रियाँ, अन्याय का विरोध एवं सचेतन आदिवासी स्त्रियों का चित्रण परती जमीन कहानी-संग्रह में मिलता है I

बीज शब्द :- कहानी, आदिवासी, स्त्री, पीटर पॉल एक्का, जीवन-संघर्ष, शोषित, समाज, समस्या इत्यादि I

झारखंड के प्रसिद्ध लेखक पीटर पॉल एक्का आदिवासी समुदाय से है I आदिवासी होने के नाते उन्होंने आदिवासी जीवन पर केन्द्रित कहानियों का  अधिक लेखन किया है I उनकी परती जमीन कहानी-संग्रह में कुल २१ कहानियाँ है I कहानियों के नाम इस प्रकार है – परती जमीन, मरीना, प्रायश्चित, खाली जगह, गाँव-घर के लोग, यही सच है, खोये हुए लोग, तीसरे मोड़ पर, राजकुमारों के देश में, अनछुई परछाइयाँ, जंगल के फूल, बड़ी नदी छोटी नदी, तुम्हीं कहो कहाँ जायें, सायरन, डाक बंगला, बड़ी दीदी, रोजी, अंतहीन गलियाँ, एक सड़क कच्ची सी, वाच टावर और फायरिंग रेंज I “पीटर पॉल -एक्का अपनी कहानियों के माध्यम से दिकुओं द्वारा आदिवासियों के शोषण के विभिन्न रूपों को सामने लाते हैं तथा साथ ही आदिवासी मन की परतें भी खोलते दिखाई देते हैं”[i]

पीटर पॉल एक्का ने अपनी कहानियों में आदिवासी स्त्री को केंद्र में रखा है I आदिवासी स्त्रियों के बाहरी-आंतरिक समस्याओं को कहानी के माध्यम से पाठकों के अंतरमन को झंकृत किया है I उन्होंने अपने कहानियों में स्त्रियों के विविध रूपों का खुलकर तटस्थ चित्रण किया है I कहानियों में – कोई स्त्री अपने अधिकार की मांग, निजी अस्मिता, स्वतंत्रता, आत्मनिर्भर बनने के पथ पर चलकर पुरे परिवार का बोझ अकेले ढोने की क्षमता रखती है I कोई स्त्री यौन-शोषण का शिकार हो जाती है एवं कुचल कर मार डालने की दर्दनाक घटनाओं का उल्लेख मिलता है I कोई स्त्री अपने साथ हो रहे अन्याय का खुलकर विरोध करती हुई समाज में सचेतनता और सजगता समाज में फैलाती है I मजदूरी करते स्त्रियों के जीवन-संघर्ष, आदिवासी स्त्रियों की आंतरिक मनोदशाओं का सूक्ष्म ढंग से रेखांकित किया है I

‘रोजी’ कहानी बाल मजदूरी करती रोजी की संघर्षमय जीवन का मार्मिक चित्रण किया है I ट्रेन में जंगली फल बेचकर अपना घर संभालती है I “जंगल के फल-फूल ही जीवन के सहारे बन गये थे I हर मौसम में कुछ-न-कुछ फल लगते थे I जंगल जाना, फल चुनना, फिर चार-छः स्टेशनों के बीच बेचकर पैसे पाना – इन्हीं छोटे-बड़े कामों में रोजी की जिंदगी सनी थी”[ii] ट्रेन की टी.टी.आई. रोजी को परमनेंट टिकट देने के बदले उसकी कोमल सी शरीर को नोचना चाहता है I रोजी आर्थिक समस्या के दबाव में आकर अपनी रूह को मार डालना उसे स्वीकार नहीं था I रोजी अपनी स्वाभिमान की रक्षा करती हुई जीवन में आते-जाते मुश्किलों का सामना करती है I साथ ही रोजी ने किताब पढ़ने की इच्छा को बरकरार रखा I मजदूरी से मिले पैसे से थोड़ा सा पैसा निकालकर अपना मन पसंद किताब खरीदती है I

‘बड़ी दीदी’ आदिवासी स्त्री केन्द्रित कहानी है I इस कहानी में शहर की एक अनछुई घिनौना कर्मकांड पर कहानीकार ने पाठकों का ध्यान केन्द्रित किया है I शहर में मजदूरी करने आए आदिवासी स्त्रियों से मजदूरी कराने के साथ-साथ यौन-शोषण किया जाता है I शारिरीक शोषण का शुरुआत घर का मालिक करते है I इसके बाद घर के बाहर के एक कमरे में रात भर देह व्यापार का धंदा चलाते है I पीड़ित स्त्री की शरीर को छन्नी करने के बाद निचुड़े हुए निम्बू की तरह फेंक दिया जाता है I अंत में आदिवासी स्त्रियाँ घर लौट जाने का साहस भी जुटा नहीं पाती और अपने साथ हुए हादसे को जीवन भर स्मरण कर मृतप्राय समान जीती है I

बड़ी दीदी अपनी आप बीती दर्दनाक घटनाओं का जिक्र,  पहली बार शहर में मजदूरी करने आयी सरोज के सामने असली सच का खुलासा करती हुई कहती है कि “मंगायी गयी गरीब लड़की बस केवल आया, नौकरानी ही नहीं होती है I उसका तन-मन, बदन सब बिका हुआ होता है I मालिक जो चाहे, जहाँ चाहे, जैसे चाहे उसका वैसा इस्तेमाल कर सकता है I छोटी बहन की तरह हो इसलिए समझा रही हूँ, सब कुछ बता दे रही हूँ I एक बार जो तन-मन गंदा हुआ तो यह सिलसिला चलता ही जाएगा I यह व्यापार तो तब तक नहीं रुकेगा जब तक हर लड़की खुद के लिए निर्णय न ले ले I फिर लाख चाहकर भी तुम आजाद हो नहीं पाओगी I मैं तो बर्बाद हो गयी, नहीं चाहती हूँ तुम भी मेरी तरह बर्बाद हो जाओगी ! ऊपर से इस तरह सजे-संवरे खुशहाल दीखते तन के अन्दर का बदन कैसा है वह देखोगी तो घिन करने लगोगी”[iii] बड़ी दीदी के साथ हुए अतीत की दर्दनाक घटना की कहानी से सीख लेते हुए सरोज ने अपने घर का रास्ता लिया I

डाक बंगला कहानी में फोरेस्ट गार्ड मनोहर तिरकी ने नौकरी में तरक्की जल्द बढ़ाने के लिए आदिवासी स्त्रियों को बड़े बाबू के पास भेंट चढ़ा देते है I भोग-विलास में लिप्त बड़े बाबू संतुष्ट होकर फारेस्ट गार्ड की मांग पूरी कर देते है I फारेस्ट गार्ड और बड़े बाबू के लेन-देन के बीच आदिवासी स्त्रियाँ पिसती रह जाती है I “प्रकति-प्रांगण में रातें बहुत अच्छी कटती थी I मनोहर साब बड़े बाबू की कमजोरी अच्छी तरह जानते थे I वैसे जुगाड़ कर पाना कोई हँसी खेल न था I पर बड़े बाबू जब भी आये, जंगल में बने उस डाक बंगले में, किसी-न-किसी काम के बहाने गाँव से दिन के काम में आयी, भोली-भाली, मासूम, अल्हड़, श्यामवर्ण, बालाओं में से दो-एक चुन छाँट कर रात में रोक ली जाती थी I दो-एक बार थोड़ा शोर मचा था I दिखाने के दरोगा साहब आये थे I वनवासी जानते थे, उससे कुछ होने को नहीं है I वह तो बस खानापूरी का सवाल था, दो-एक बार तो मुश्किल से दरोगा के दरिंदों से दामन छुड़ाया गया था I मजदूरी का सवाल था I मजूरी करते तन-मन गंदा हो जाये तो-पहाड़ी बालाएँ बहुत सोचकर भी उससे आगे जा नहीं पाती थी”[iv] आदिवासी स्त्रियाँ विरोध करने लगेंगी तो मजदूरी से हटा दिया जाएगा और बीना मजदूरी के बेरोजगारी की समस्या का सामना करना परेगा I भूखे पेट जिन्दा रहना असंभव है Iइन विडंबनापूर्ण परिस्तिथि के चलते शोषित स्त्रियाँ मौन धारण कर लेती है I

‘एक सड़क कच्ची-सी’ कहानी में मधुमती नामक स्त्री पात्र को केंद्र में रखा है I परिवार की बिगरती हुई परिस्थिति के चलते मधुमती की पढ़ाई-लिखाई की इच्छा अधूरी रह जाती है I अपने परिवार की भरण-पोषण करने के लिए पास वाले गाँव में मजदूरी करती है I घर चलाने के पैसे जब कम परने लगे तो मधुमती शहर में मजदूरी करने के लिए निकल परी I घर से निकलते ही संघर्षपूर्ण जीवन का आरम्भ हो गया I

परती जमीन कहानी में एतवारी का यौन-शोषण इंजीनियर भजन सिंह करते है I एतवारी के मंगेतर चैतु को बीती घटना पता चलते ही हाथ में धनुष-तीर लिए इंजीनियर को ललकारने लगा I भजन सिंह ने चैतु और एतवारी को तुरंत मजदूरी से निकाल दिया I कोई भी पीड़ित आदिवासी इंजीनियर का अगर  विरोध करने जाए तो काम से निकाल फैंकते है I गाववालों को एतवारी और चैतु के साथ हुए अन्याय का सच्चाई पता होकर भी इंजीनियर का खुलकर विरोध नहीं कर पाते I चैतु और एतवारी की तरह अगर काम से निकाल फैंक दे तो गाववालों को भी बेरोजगारी की समस्या सामने खड़ी हुई मिलेगी I परिस्थिति की विवशता के चलते गाववालों ने अपना मुख बंध रखने में ही समझदारी समझी I इस प्रकार गाँव में स्त्रियों का शोषण करना चलता ही रहता है I “चैतु और एतवारी की जगह खाली थी, उन्हें हमेशा के लिए काम से छुट्टी दे दी गयी थी I पता चला बड़े बाबू ने पैसों से गाँव के बड़े-बूढ़ों का मुँह बंद कर दिया था”[v]

राजकुमारों के देश में कहानी में मंगलू काका जड़ी-बूटी बेचने के लिए माघ मेले में गये थे I दो दिन में अच्छी कमाई हो जाए तो अपनी बेटी चंदा के लिए एक नयी साड़ी, दर्पण, फीते, चूड़ियाँ, बिंदी इत्यादि जरुरी सामान लाकर अपनी लाडली बेटी के हाथों धर देंगे I घर में अकेली चंदा को पाकर पूरन पंडित, पटेल साव और दरोगा बाबू तीनों ने मिलकर उसका सामूहिक बलात्कार किया I “मंगलू काका के मेला जाने पर उस रात-पूरन पंडित, पटेल साव, दरोगा बाबू – एक साथ उस छोटी, मासूम, पवित्र, बेफिक्र झोपड़ी तक चले आये थे I जंगली जानवर और भी वहशी हो गये थे, और गाँव वाले जानते हुए भी नहीं देखने-सुनने का बहाना कर कहे थे I छोटी-सी दुनिया लुट गयी थी आने में बहुत देर हो गयी थी”[vi] चन्दा और उसके परिवार की तरह न जाने कितनी आदिवासी स्त्रियों का इस तरह से बलात्कार होती रहती है और उनलोगों को न्याय नहीं मिल पाता I

सायरन कहानी में मजदुर सरजू कारखाने में काम करते समय दाहिना पैर पर लोहे का खम्बा गिर जाने के कारण हमेशा के लिए पंगु हो जाता है I घर चलाने की पुरी जिम्मेदारी उसकी पत्नी बसंती पर आ गयी I मुंशी से हाथ-जोड़कर बहुत मिन्नते करने पर बसंती को कारखाने में खनिज ढोने का काम मिला I सरजू को चौकीदारी की नौकरी पर लगा दिया I एक दिन बसंती अपने पति के लिए खाना लेकर इंतजार कर रही थी I अकेली बसंती को देखते ही मुंशी झपट्टा मारने लगते है I एहसान के पीछे का मतलब बसंती ने उसी क्षण महसूस कर लिया I बसंती ने बहुत जोड़ से चिल्लाना शुरू कर दिया तो आस-पास के लोग आने लगे और बसंती मुंशी दरिन्दे के हाथों से बच निकली I बसंती की तरह ही न जाने कितनी मजदूरी करती महिलाओं को ऐसे भयानक परिस्थिति का सामना करना परता है I

जंगल के फूल कहानी की मुख्य पात्र पारो के साथ-साथ अन्य स्त्रियों की भी संघर्षपूर्ण जीवन की झांकी देखने को मिलती है I होश सँभालते ही पारो की माँ ने चाय बगान में मजदूरी करने जाने के लिए हाथ में टोकरी थमा दी I पारो के जिज्ञासु बाल मन में एक प्रश्न जगी कि उन्हें ‘बेकार लोग’ क्यों कहा जाता है ? पारो की माँ ने जवाब दिया कि “ ‘बेकार लोग’ नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे I जो न घर में न बाहर कोई अच्छा काम कर सके, जिसे लोग जब चाहें, जैसी भी काम में लगा दें, उन्हें ‘बेकार लोग’ नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे”[vii] आदिवासियों के जीवन में यहीं सबसे बड़ी विडम्बना है कि पूरी जिन्दगी शोषकों का गुलामी करने में ही बीत जाती है I उनलोगों के जीवन की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक कमजोरी है I पैसे कमाने के दवाब में आकर आदिवासियों को शोषकों के हाथों का कठपुतली बनकर रहना परता है I

दिन भर मजदूरी कर चाय की पत्तियाँ जमा देने गयी पारो को अकेली पाकर ठेकेदार मनसुख ने बलात्कार किया I उस दिन पारो घर आकर खुब रोने लगी और मन ही मन उसे अहसास हुआ कि “वह क्या करे, कहाँ जाये I हर ओर तो गिद्ध और चील ही मंडराते हैं I ऐसा क्यों होता है I वह गरीब न होती, पैसे होते, पत्तियाँ तोड़ना न होता – तो कौन ऐसी मनमानी कर पाता I घर के मर्द कौन – सी रक्षा कर देते हैं I वे मुए मर्द तो न जगह देखते हैं न समय, न आदमी पहचानते हैं न दुनिया की रीत – जब चाहे, जहाँ चाहे मजदूरी के लिए जवान औरतों को भेज देते हैं”[viii] कहानी में अड़हुल नामक स्त्री का पति मजदूरी करने के लिए मैनेजर के घर भेंज देते है I कुछ दिनों बाद उसके पति के मन में संदेह का कीड़ा जन्म लेता है I अड़हुल को मार पीटकर अपने मैके भेंज देता है I इस प्रकार आदिवासी स्त्रियाँ घर के बाहर और अन्दर दोनों जगह उसका दोहरा शोषण किया जाता है I

कहानी में एक और स्त्री पात्र बिन्नो के पति बंधन दारु की नशे में मग्न रहता है I बिन्नो दिन भर चाय के बगान में मजदूरी कर पुरे घर को संभालती है I शाम होते ही अपने पति को सहारा देकर घर ले आती है और बंधन दारु पीकर उसकी पिटाई करता है I स्त्री सारे अपमान को हंसकर सह लेती है I  “बिन्नो के चीखने-चिल्लाने रोने की दर्दभरी आवाज पूरी बस्ती में जहरीले धुएँ-सा फैल रही है I बंधन ने आज फिर बिन्नो को घर में पीटा होगा I अक्सरहाँ होता यही है I बिन्नो दिनभर चाय की पत्तियाँ तोड़ती है I शाम को घर आकर पहला काम वह बंधन को दारु की दूकान से खींच लाने का करती है I आज भी वह कैसे बाहों का सहारा देकर उसे ले गयी है I और घर पहुँच कर बंधन कैसा जानवर हो जाता है I बेरहमी से पीटता है I गंदी-से-गंदी गालियाँ मुँह से फूटती है I बिन्नो हमेशा चुप रहती है, पिटती रहती है, रोती तड़पती है, सुबकती है, भाग्य को रोती है I ये मुए मर्द घर में अपनी जवानी दिखाते हैं I बाहों का जोर अपनी जोरू पर आजमाते हैं I निर्लज्ज, बेशरम, कहीं के – उस वक्त उनकी जवानी, मर्दानगी जाने कहाँ चली जाती है – जब ठेकेदार, मुंशी, जमींदार उनसे जानवरों के मानिंद काम लेते हैं, गाली सुनाते हैं, जलील करते हैं, आँखों के सामने बहु-बेटियों, बहनों की आँचल उतार लेते हैं I कहाँ जाती है तब उनकी मर्दानगी I तब तो वे गूंगे हो जायेंगे I ये मुए मर्द, मर्द कहलाते हैं”[ix] कहानीकार ने स्पष्ट ढंग से पुरुषसत्तात्मक समाज में आदिवासी स्त्रियों की दर्दनाक स्थिती पर प्रकाश डाला है I

पारो की शादी सत्रह साल की उम्र में ही हो जाती है I उसका पति परशू आरे के मिल में काम करता है I कुछ समय बाद परशू दोस्तों के संगत में दारु में ही मस्त रहने लगा I पारो का बचपन चाय के बगान में पत्ते तोड़ते हुए बीता और अब शादी के बाद भी उसे फिर वहीं मजदूरी करके पेट पालने कि नौबत खड़ी हो गयी I गाँव के ठेकेदार, मुंशी लोगों के गिद्द नजर से बचने के लिए और सड़हुल के पति जैसा उसके पारो को भी संदेह करने की बीमारी लगने से पहले पारो ने घर में ही दारु बेचने का काम शुरू कर दिया I जैसे भी हो पैसा कमाना था और यह सबसे सुरक्षित और लाभकारी व्यवसाय लगा तो पारो ने नया व्यापार शुरू कर दिया I

गाँव के सारे मर्द दारू के नशे में लिप्त हो गये I मेहनत की सारी कमाई दारू में ही लुटा देते I गाँव की स्त्रियाँ पारो को ही गाली देते और नशे में अपने पति द्वारा किए गये शोषण को निर्दोष करार दे देते I दारु बेचकर पारो का घर और आर्थिक समस्या से पीछा छुट तो गया था परन्तु गाँव में दारु का प्रभाव महामारी जैसा प्रकोप धारण करने लगा I पारो को यह महसूस हुआ कि सबकी भलाई में ही अपनी भलाई है I दारु का व्यापार बंध करके पारो फिर से बगान में पत्तियाँ तोड़ने का काम फिर से शुरू कर दिया I

पीटर पॉल एक्का के अन्यान्य कहानियों में भी आदिवासी स्त्री पात्र के जीवन सम्बंधित समस्याओं को उठाया गया है I उपर्युक्त कहानियों में आदिवासी स्त्रियों को केंद्र में रखकर कहानियाँ लिखी गयी I अतः इन्ही कहानियों का संक्षिप्त में विश्लेषण किया गया है I

निष्कर्ष

“ ‘क्षितिज के तलाश में’ को छोड़कर आपके सभी उपन्यास व कहानियाँ आजादी के पहले और बाद में आदिवासी समाज में जो परिस्थितियाँ रही हैं, उसी की सशक्त अभिव्यक्ति हैं”[x] पीटर पॉल एक्का के परती जमीन कहानी-संग्रह में आदिवासी स्त्रियों के ज्वलंत समस्याओं को उभारा है I मूल रूप से कहानियों में आदिवासी स्त्रियों का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक शोषण की मात्रा अधिक देखने को मिलती है I घर के बाहर और अन्दर दोनों जगह स्त्रियों का कमोवेश शोषण होता हुआ दिखाया गया है I घर से बाहर मजदूरी करने के लिए निकले तो मुंशी, ठेकेदार, इंजीनियर, जमींदार, पंडित, दरोगा, फारेस्ट गार्ड, बड़े बाबू, टी.टी.आई, घर का मालिक इत्यादि I घर के अन्दर पति का अत्याचार सहन करती है I पीटर पॉल एक्का के कहानियों में अधिकत्तर मजदूरी करती स्त्रियों के संघर्षरत जीवन की समस्याओं का खुलासा किया है I

पीटर पॉल एक्का के कहानियों के स्त्री पात्र बहुत साहसी भी मिलते है और कुछ स्वयं के साथ हो रहे अन्याय को झेलती हुई भी दिखाया गया है I धोके से आदिवासी स्त्रियों को देह व्यापार के दलदल में झोंककर धूर्त पुरुष अत्याधिक धन अर्जित करने का साधन बना लेते है और किन्हीं आदिवासी लड़कियाँ बेरोजगारी के बोझ तले दबकर देह व्यापार का रास्ता चुनने के लिए विवश है I कहानीकार के कहानियों की स्त्रियाँ अपने आप को कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं करती I भोग-विलास और अर्थ कमाने का साधन मात्र बनकर रह गयी I पीटर पॉल एक्का के परती जमीन कहानी-संग्रह बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है I

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

[i] गंगा सहाय मीणा, आदिवासी चिंतन की भूमिका पुस्तक, अनन्य प्रकाशन, दिल्ली, 2019, पृष्ठ संख्या 73                                    

[ii] पीटर पॉल एक्का, परती जमीन,सत्य भारती प्रकाशन, झारखंड, पृष्ठ संख्या 121

[iii] वहीं, पृष्ठ संख्या 114

[iv] वहीं, पृष्ठ संख्या 104

[v] वहीं, पृष्ठ संख्या 7

[vi] वहीं, पृष्ठ संख्या 65

[vii] वहीं, पृष्ठ संख्या 77

[viii] वहीं, पृष्ठ संख्या 78

[ix] वहीं, पृष्ठ संख्या 75,76

[x] आनंद कुमार पटेल, आदिवासी संवेदना और पीटर पॉल एक्का के उपन्यास, सत्य भारती प्रकाशन, झारखंड, 2020, पृष्ठ संख्या 74

 

 

 

पूजा पॉल

पी.एच.डी शोधार्थी

हिंदी विभाग

राजीव गांधी विश्वविद्यालय,

अरुणाचल प्रदेश