June 3, 2023

99. ‘ग्रामसेविका’ उपन्यास में अभिव्यक्त ग्रामीण नारी जीवन-अनीषा.एन

By Gina Journal

Page No.: 702-706

‘ग्रामसेविका’ उपन्यास में अभिव्यक्त ग्रामीण नारी जीवन

अनीषा.एन

 

अमरकांत उन प्रतिबद्ध लेखक में थे जो अपने समय की यथार्थ को दूसरों तक सरल रूप से पहुंचाते थे।चाहे वह किसी भी विषय से जुड़े हो।अमरकांत द्वारा लिखित ग्रामसेविका उपन्यास ऐसा एक उपन्यास है जो ग्रामीण सभ्यता को सामने रखकर एक नारी का संघर्ष गाथा को अभिव्यक्त करती है।गावों के जीवन पर आधारित इस उपन्यास पर  गांव वालों की मूलभूत समस्याओं को आगे रखने की साथ नारियों के प्रति होने वाला समस्याओं का भी पेश करने की कोशिश किया है।

                                          इस उपन्यास में बीस वर्ष की दमयंती नामक नायिका ने ग्रामसेविका  के पद पाकर विशुनपुर गाँव पहुंचती है।वह स्त्रियों और बच्चों के लिए स्कूल चालू करना चाहती थी।जब सरकारी नौकरी पाकर विशुनपुर गाँव में पहुंचा तो दमयंती में बहुत खुशी था की उसके कारण गांव में कुछ बदलाव ला सकते है।लेकिन अंधविश्वास,भूत प्रेत , टोना टोका से भरे लोग ने उसको बुरी नज़र से देखने लगा था।विशुनपुर  गांव में पहले कुछ दिन दमयंती अपने भाई विनय के साथ प्रधान के घर में रहा तो औरतों का व्यंग्य बाण से वह ऊब गया था।उसके आने से सारे गांव में विशेष रूप से औरतों में खुसुर फुसुर होने लगी थी।उसकी चलन,बोलने की लहजा,लोग उसे आवारा कहते थे।इसमें कहने की बात यह है की स्त्रियों के खिलाफ़ स्त्रियां ही लड़ रहा है।मुख्य रूप से इस उपन्यास में चार नारी पाते देखने को मिलते है।एक दमयंती ग्रामसेविका,दूसरा जमुना किसून राम का पत्नी जो उच्च जाति के है लेकिन पढ़ ना चाहता है,तीसरा कनिया जांगी की बेटी वह पढ़कर दमयंती की तरह बनना चाहती है,चौथा रधिया मिसिराइन जो स्वयं को शक्ति मानकर लोगों को अंधविश्वास में फसाता है।

                               दमयंती ने स्त्रियों और बच्चों के लिए स्कूल चाहती है तो सबने उसको माना कर देती है।लेकिन जमुना ने दमयंती का साथ रहता है और अपनी सास रमैनी सकुवाईं से डर लगते तो भी अपना बेटा हरिया को शिक्षा प्रदान करने की कोशिश भी करती है।आगे बढ़कर ग्राम लक्ष्मी पद भी जमुना अच्छी से निभाती है।लेकिन उसकी सास का यह मानना था की यह सब उन लोगों का धर्म का विरोध है।अंधविश्वास से भरे विशुनपुर गाँव दमयंती के आने से बहुत अधिक बदलाव आ जाता है।राधिया मिसिराईन की नज़र में दमयंती के प्रति क्रोध,घृणा और शत्रुता के प्रति और कुछ भी नहीं है।उसने बहुत अपमान भी किया था इस तरह दुर्व्यवहार सिर्फ उसी ने ही किया था।

                                            स्कूल में आने की प्रचार के लिए वह घर घर घूमते है लेकिन औरतों उसे देखते ही बताते है की “ हां हां किसको लिए आ रहा है पापी”।दमयंती की जाती पूछती है ठाकुर कहने से उसकी परिवार पर गालियां देते है।औरतों को स्कूल भेजना गांववालों ने सख्त खिलाफ है।अजीब अजीब विश्वास से गुज़रता लोग कोई कहता है पढ़ने लिखने से गरीबी आती है। पढ़ने से उल्टा सीधा होजाएगा और वह घर से भाग जाएगा। बड़ी जातियों के लोग अपनी जवान बेटियों और बहुओं को बाहर नहीं भेज सकते थे।बड़े घर की बहु पढ़ने गए तो कल दूसरे घर की भी चली जाएगी। गगांव प्रधान को यह एक चुनौती मालूम हुई।इसलिए वह दमयंती को धमकी भी थीं दी कि गांव छोड़कर वापस चली जाओ।गांव में उनकी कटु अनुभव हुआ तो भी गांव की औरतों की सेवा करने का मौका देश के लिए कुछ करने की बराबर है यह मानकर वह आगे बढ़ा था।

                                       अंत में  वह सफल हो जाता है। जब स्कूल को अच्छी तरह चलाना और हैजे जैसे महामारी से गांव को मुक्त करना  इन सबसे गांव वालों को दमयंती के प्रति विश्वास बढ़ता गया । ग्रामसेविका उपन्यास सिर्फ दमयंती की कहानी ही नही बल्कि पूरे ग्रामीण नारी की कहानी भी है।नारी जो शहर में जीए या गांव में दोनों वर्ग अपनी संस्कृति के अनुसार बहुत कुछ सहना पड़ रहा है।उपन्यास में सामाजिक समस्या के साथ वैयक्तिक समस्या को भी दर्शाया है।एक व्यक्ति को प्रेम करके उसके लिए अपनी मन और शरीर देते है कई सारी लड़कियां ऐसा ही है।प्यार में खोकर खुद को नष्ट कर देते है।उपन्यास के कथा नायिका के साथ भी ऐसा ही हुआ था।जब अतुल नामक उसका प्रेमी अच्छी रिश्ता आया तो एक पत्र भेजकर उसको छोड़ दिया।दमयंती को अतुल के साथ रिश्ता रखते कुछ नहीं मिला है।सिर्फ धोका ही मिला है।इस कारण से ही हरचरण के साथ रिश्ता रखने में वे पीछे पड जाता है।विशुनपुर गाँव में कई प्रकार की समस्याएं होते है।लेकिन वह सिर्फ एक गांव का ही बाते नहीं है।भारत का हर एक गांव का हालत विशुनपुर जैसा ही है।अशिक्षा और कुरीतियों ने लोगों के मन में कई प्रकार की समस्याएं बनाता है ।

                  प्रस्तुत उपन्यास में नायिका दमयंती कहती है की “लड़कियां पढ़ लिखकर ही कुछ हासिल कर पाती है।दमयंती की चिंता भी ऐसा ही था इसलिए ही वह विशुनपुर जैसे गांव में ग्रामसेवका की पद में नियुक्त हुए है।अमरकांत जी के इस उपन्यास पढ़ते वक्त दिल में खुशी की बात यह हुआ था की ग्रामसेविका के पद में एक नारी को रखते हुए नारी शक्ति को ग्राम में फैलाया है।यह तो बड़ा प्रशंसा का बात है।साहित्य समाज का दर्पण है।विभिन्न समस्याएं इसके द्वारा बदलाव लेकर आ सकता है।आज दुनिया में स्त्री कई समस्याओं का सामना कर रहा है।इन सबसे मुक्त होने में शिक्षा ही महत्वपूर्ण हिस्सा बन पाता है।लेकिन विशुनपुर गाँव को तो देखिए वहां सभी औरतों यह मानता है कि स्त्रियों को पढ़कर कुछ नहीं होता।जब किसी बहु पढ़ने के लिए तैयार हो जाता तो उसको गालियां देती है।किसूनराम की पत्नी जमुना ऐसा एक पात्र है। अपनी पति और सांस  से डर कर वह पहले अपनी बेटे को भी स्कूल नहीं भेज पाते थे।अंत में उसकी जिद्द ने उसकी इच्छा पूरी कर देती है।वह अपनी बेटे को पढ़ाने के साथ खुद को भी आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश में अडिग रहता है।उसकी कर्तव्य पर दमयंती बहुत खुश हो जाती है।इसलिए जमुना को ग्रामलक्ष्मी पद भी देती है।अपनी बहु का काबिलियत पर रमैनी मिसिराइन्न बहुत प्रसन्न हो जाता है।लेकिन वह बाहर दिखाता नहीं।क्योंकि गांव में ऐसा बहु को पढ़ने और सामाजिक सेवा करने के लिए बाहर भेजना अच्छी कुल  में रहने वाली लड़कियों के लिए सही नहीं थे।नारी सिर्फ ससुराल में काम करने के लिए रखे गए एक साधन मात्र है गांव में।नारियों को अपनी शक्ति दिखाने की अवसर मिल जाए तो कोई भी उसे रोक नहीं सकती।दमयंती भी ऐसा ही है अपनी मन और शरीर को लेकर कई व्यंग्य बाण गांव वालों ने छोड़ दिया था वह सबको नज़र अंदाज करके देश की सेवा हमारा सेवा ऐसा एक नारे को वह हमेशा साथ पकड़कर रखते थे।

                                         विशुनपुर और रामगढ़ जैसे दो गांव में हैजा आया तो अशिक्षित स्त्रियां यह मान लिया था की मक्खी मैय्या क्रोध आया है। राधिय a मिसिराइन्न मक्खी मैय्या बनकर यह प्रचार किया था की ग्रामसेविका और उसकी स्कूल के कारण यह गरीबी और महामारी आया है।इसलिए वह हैजा के लिए टीका लगाने में भी लोगों को पीछे हटाते थे।दमयंती,जमुना,कनिया जैसे शक्तिशाली स्त्रियां मिलकर पूरे गांव का कूड़ा साफ़ कर देते है।उससे मक्खी आना कम  हो जाते है।लोगों पर टीका लगाने के लिए प्रेरित भी करती है।राधिया को हैजा पड़ जाता है तो उसे समझ में आ जाती है की कोई पूजा पाट से तबियत नहीं ठीक होने वाला है।अंत में वह भी दमयंती से मदद मांगता है।इसलिए सभी औरतों का

दिल दमयंती जीत जाता है।सिर्फ ग्राम सेवक ही नहीं ग्राम सेविका भी समाज के लिए बहुत कुछ करने में लायक है।

                                  संसार में नारी ही ऐसा एक शक्ति है जो अपने को विभिन्न रूप में धारण करते हुए उसने सफलता प्राप्त करती है।दमयंती भी ऐसा ही है।विनय की वह एक अच्छी बहन,हरचरण के लिए प्रेमी,लाखन के लिए माँ,जमुना के लिए बहन और अच्छी दोस्त,ग्राम के लिए ग्राम सेविका ऐसा कई रुपों पर वह सफलता प्राप्त करती है।अमरकांत जी के ग्रामसेविका उपन्यास ऐसा एक उपन्यास है जो जीवन के कई पहलुओं पर नज़र डालने में सहायता करती है।चाहे वह वैयक्तिक तल पर हो या मानसिक तल पर।आज गांव और शहर की औरतों का जीवन पर तुलना करना अत्यधिक महत्वपूर्ण मालूम पड़ रहा है।शहर में 50 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियों ने शिक्षा प्राप्त करके अपनी समस्याओं पर स्वयं लड़ रहा है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में कई योजनाएं बनाता है तो भी उसको अपनाने में लोग पीछे जा रहा है।इसलिए देखे तो ग्रामीण नारी जीवन आज भी पहले की तरह ही है।कितना भी तकनीकी  का आविर्भाव होते तो भी लोग अपनी अंधविश्वास और रीति रिवाज़ों पर फसकर इन सबका उपयोग नहीं कर रहा है।ग्रामीण जीवन में ग्रामीण नारियों को अपनी जिंदगी और अधिक आगे की सफल बनाना अत्यधिक आवश्यक महसूस हो रहा है ।महात्मा गाँधी बताया था कि “भारत की आत्मा गांव में है “ उसी प्रकार उस आत्मा को शक्तिशाली बनाना नारी की हाथ में ही है। ग्रामसेविका नामक उपन्यास ने ग्रामीण नारी को अपनी देश के प्रति जो कुछ भी कर्तव्य है उस पर नज़र डालने की संदेश दिया है।दमयंती,जमुना,कनिया जैसे नारी पत्रों को द्वारा अमरकांत जी ने अपनी उपन्यास को सफलता पाया है।यह अत्यधिक मनोरंचक और प्रासंगिक उपन्यास है।

 

अनीषा.एन

शोधार्थी

गवर्मेंट आर्ट्स एंड साइंस

कालेज,कालिका,केरला

संदर्भ ग्रंथ

.ग्रामसेविकाअमरकांत- राजकमल प्रकाशन

.हिंदी उपन्यास का इतिहास- गोपाल राय