108. विपिन बिहारी की कहानीयों में दलित जीवन का यथार्थ- सुबिता. के.एस
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विपिन बिहारी की कहानीयों में दलित जीवन का यथार्थ
आज का साहित्य ऐसा मोड पर पहुंच गया है जहाँ विमर्श अधिक है। लगभग १९६० के आसपास सबसे पहले मराठी में दलित साहित्य का जन्म हुआ और जल्द ही दलित साहित्य अपनी पहचान बना ली। दलित आंदोलन के दौरान दलित जातियों से आए अनेक साहित्यकार इस क्षेत्र को आगे बढ़ाया दलित कहानी ने शोषण से विरूद्ध एवं अपनी अधिकारों के प्रति सचेत की भवना अभिव्यक्त किया है। हिंदी दलित कहानियों में विभिन्न प्रकार के संदर्भ को अभिव्यक्त कर रहे है साथ ही साहित्यकारों ने भी नए संदर्भों को प्रस्तुत किया है। दलित साहित्यकारों में विपिन बिहारी दलित चेतना का कथाकार है। उन्होंने झारखंड के देहाती परिवेश में रहकर साहित्यिक सृजन की शुरूआती की है। और उनकी दो सौ कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी है। अपना मकान,आधे पर अंत, चील,पुनर्वास,बोझ मुक्त आदि उनके अब तक प्रकाशित कहानी संग्रह है। उनकी कहानियों में दलित जीवन की यर्थाथ चित्र गुणात्मक दष्टि से प्रस्तुत करते हैं।
विपिन बिहारी के कहानी ‘दौड़’ में मुख्य पात्र कन्हाई राम दलित होने के कारण स्कूल में आयोजित खेल-कूद प्रतियोगिता में भाग लेने पर झेलने वाले अपमान को प्रस्तुत करता है। कन्हाई राम सिर्फ एक लड़का था जो पिछडे वर्ग के होते हुए भी खेल प्रतियोगिता में भाग लिया। कई प्रकार के अपमान सहकर भी वह प्रतियोगिता में भाग ली लेकिन हार गया। बच्चों ने उसके जाति के नाम पर उनको मानसिक रूप में दुख पहुंचाया लेकिन उन्होंने कहा “जब हम हिस्सा ही न लेंगे तो हार-जीत का सवाल कहाँ उठता है।“१ प्रतियोगिता के वक्त जब वह गिर पड़ा किसी ने भी मदद करने के लिए हाथ नहीं दिया। खेल प्रतियोगिता में न केवल दौड़ था इसके अलावा खो-खो और कबड्ड़ी भी था लेकिन उन्होंने भाग नहीं लिया उनके अनुसार “खो-खो और कबड्ड़ी एक सामूहिक खेल है इसमें किसने क्या किया इसका आकलन करना मुश्किल है। खो-खो , कबड्ड़ी में जीत हार का निर्धारण सामूहिक होता है।“२ जब दलित अपने अधिकारों के लिए सामूहिक रूप में प्रयत्न किया हो तो इसका आकलन करना मुश्किल होगा लेकिन जब हम एक व्यक्ति अपना पूरा ताकत के साथ उस समूह को आगे बढ़ाया तो वह दूसरों को एक तरह की प्रेरणा है कथम आगे रखने के लिए। आगस्त१५ मे दूसरी बार प्रतियोगिता का आयोजन हुआ उसने भाग लिया और जीत उन्हीं का था। इस समय उस पर पूरा ताकत एवं आत्मविश्वास था सबको हराने केलिए। जब वह अपने दोस्तों के अपमान से उसने मानसिक रूप में टूटा तो वह कभी भी खेल एवं जिन्दगी में जीत नहीं हो पाती लेकिन वह हारने वालो से नहीं था। अपने दौड़ के माध्यम से यह साबित कर दिया है कि अवर्ण, सवर्ण से कम नहीं है। उन्होंने अपने दौड़ के द्वारा यह दिखाया कि दोनों समान है।दोनों वर्ग में कोई भेदभाव नहीं है।
‘मैं पढूंगी’ कहानी में दलित स्त्री पर होने वाला अत्याचार को प्रस्तुत किया है। समाज दलित होने के कारण उन लोगों को शिक्षा से दूर रखते हैं। इस कहानी में मोहर बाबू अपनी बेटी द्वारा उनका सपना पूरा करने के लिए बेटी को शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर भेजा। मन में कई प्रकार की शंकाएं जाग उठी फिर भी बेटी की खुशी के लिए ऐसा फैसला लिया। साधारण तौर पर सवर्ण भी बहुत कम ही अपने बच्चों को शिक्षा के लिए दूर भेजते हैं। लेकिन यहाँ दलित अपनी बच्ची को दूर भेजना यह भगल रहने वालो को बेचैनी पैदा की है। और जिस जगह मोहर बाबू की बेटी का एड्मिशन करवाया वहाँ के लोगों की मानसिकता भी ऐसा था “दलित होकर इतनी दूर से आई हो पढने के लिए तुम्हारे मॉ-बाप को इतनी हिम्मत कहॉ से हुई इतनी दूर तुम्हें भेजने की।“३ कॉलेज में पहले कुछ दिनों तक उनकी जिन्दगी अच्छी थी बाद में जब उनकी जात के बारें में फैलने लगे तब से लेकर उसको एक अलग नज़र से बच्चों ने देखना शुरू किया है। उसकी जाति के वजह से वह कई अपमान झेलना पड़ा। कॉलेज के लडकों ने उसकी जाति पता चलने के बाद उस पर अत्याचार किया। और उसका हालत ऐसा बनाया कि वह वापस इस कॉलेज में पैर न रखें। परिवार भी उसकी हालत देखकर कॉलेज छोडने के लिए जबरदस्ती की लेकिन गुड़िया कहा कि “मैंने अपनी पढ़ाई छोड दी तो ये लोग जीत ही जाएगे। ये लोग ऐसा ही चाहते हैं। लेकिन मैं उन्हें जीतने नहीं दूंगा। कितनी बदतमीजियां वे मेरे साथ करते हैं, देखती हँ मैं।“४ इस कहानी में गुड़िया ने सब कुछ सहने के बाद भी वह अपनी पढ़ाई छोडने के लिए तैयार नहीं था। वह दलित के अलावा एक स्त्री भी है फिर भी वह हार नहीं मानी। किसी भी परिस्थिति में लडने का ताकत उसमें दिखाई पड़ती है। वह किसी प्रकार का शोषण सहने के लिए नहीं बल्कि उन लोगों से लड़कर अपना अधिकार पाने के लिए, शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह फिर से अपना कदम आगे रखा।
‘तराश’ कहानी में दलितों को कला की ओर अग्रसर न करने का समस्या को प्रस्तुत करते हैं। “दलितों में अभी तक न कोई नामी संगीतकार हुआ, न चित्रकार, न वैज्ञानिक।“५ समाज दलितों को न केवल शिक्षा से दूर रखा बल्कि वह कला से भी वंचित है। इस कहानी का मुख्य पात्र देवेश को एक चित्रकार बनने का बहुत इच्छा था लेकिन स्कूल और परिवार उसको प्रोत्साहन नहीं दिया। स्कूल के कुछ अध्यापकों ने देवेश के कला को दबाने की कोशिश करते हैं क्योंकि अन्य लोगों के रासते में एक दलित लड़का बाधा बनकर खडे रहना दूसरों के लिए शरमाने का बात है, इसलिए जब वह प्रतियोगिता में भाग लिया तब देवेश के चित्र सुन्दर होते हुए भी अध्यापकों ने पुरस्कार उसको न देकर एक सवर्ण लडके को दे दिया। उन्होंने कहा कि “ मेरा चित्र अच्छा था लेकिन मेरा जात अच्छा नही है।“६ देवेश में चित्रकार बनने का शोक सिर्फ उसका मामा ही पहचान लिया था। उनके अनुसार “हीरे की कीमत उसकी तराश पर निर्भर करती है।“७ देवेश की इच्छा को समझकर परिवार उसको आर्ट कॉलेज में भेजा। लेकिन वहाँ भी अपनी जात के कारण कला नहीं सीख पाया। देवेश बड़ा होने के बाद वह चित्रकारी का दुकान खोला और बहुत पैसा कमा लिया। उसका जिन्दगी सुख शान्ती से गुज़र रही थी। बाद में बरदाश्त की ओर चल पड़ा। एक सवर्ण लडकी रूपाली के साथ प्रम हुआ। जात के कारण रूपाली को यह रिश्ता छोडने के लिए मजबूर हुआ लेकिन दोनों एक दूसरे को नहीं छोडा। दोनों ने घर से भागकर शादी कर लिया। यह शादी देवेश की ज़िन्दगी का सबसे बड़ी खलती थी। देवेश और उसके परिवार के साथ उन लोगों ने बहुत शोषण कर दिया और रूपाली को ले गया। देवेश पूर्ण रूप से टूटा,अपनी जात की वजह से उसका प्यार एवं कला दोनो हाथ से फिसल गया। तब उसका मामा उसको असत्मविश्वास दिया “भाजे जब सिर ऊखल में दिए हो तो मरा जैसा चेहरा क्यों बनाए हुए हो उस समय बात नहीं मानी, बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था,और अब मैदान मत छोडो अपना रोजगार जमाओ और लड़ते रहो, तभी बहादूरी है।“८ देवेश का एकमात्र संपत्ति यह कला था, यह कला को आधे रास्ते पर छोडने के लिए नहीं इसको एक नए अध्याय के रूप में खोलकर जिन्दगी को आगे की ओर ले जाने के लिए देवेश के माध्यम से यह कहानी हमें प्रेरणा दे रही हैI
विपिन बिहारी की कहानियों में न केवल दलित जीवन की यर्थाथता है उसमें गुणवत्ता भी भरपूर है। दलित शब्द एक दोष नहीं अपनी पहचान है यह पहचान ही अपना अस्तित्व है। यह पहचान के माध्यम से अपने अधिकारों के लिए लड़ना है। उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से दलित जीवन की विभिन्न आयामों को अंकन किया है। सवर्ण वर्ग के मानसिकता के फलस्वरूप दलितों पर होनेवाला भयावह शोषण का चित्रण साफ दिखाई पड़ती है। उनके कहानियों का मूल स्रोत अम्बेडकर का नारा है। इसी कारण उनके रचनाओं में विद्रोह की भूमिका एवं अधिकारों केलिए संघर्ष का चित्रण हुआ है। यह संघर्ष करने वाले हर पात्र को अलग-अलग मोड पर उन्होंने प्रस्तुत की है। ‘दौड़’ कहानी में कन्हाई राम को जात के कारण प्रतियोगिता से दूर रखा लेकिन जात अपना पहचान मानकर आगे बढ़ने की ओर प्रेरणा देती है।‘ मैं पढ़ूंगी’ कहानी में एक स्त्री को केन्द्र बनाकर उसकी विविध पहलुओं को प्रस्तुत करके स्त्रियों को शोषण भरी श्रृगलाओं को तोडकर रंगीन जिन्दगी की ओर बढ़ने के लिए प्रेरणा देती है।‘तराश’ कहानी वास्तव में देवेश का चित्रकार बनने की कला सीखने का तराश नहीं हुआ अपितु उसका अस्तित्व और पहचान के लिए तराश हुआ है। कुल मिलाकर उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से शिक्षा से दूर रखने का समस्या,जीवन जीने से वंचित प्रतिरोध ,व्यक्ति के रूप में मान्यता मिलने से वंचित,स्त्री पर होने वाला अत्याचार , भय से मुक्ति आदि विभिन्न प्रकार के समस्याओं को पाठकों के सामने पर्दाफाश करता है। बिहारी जी अपने जीवनानुभव से गुजरे हुए कथाकार का हिस्सा हैI वह अपने जिए हुए सत्य को कहानी में प्रस्तुत अवश्य करता हैI शोषण के श्रृगलाओं को तोड़कर आज़ादी और समानता के साथ जीने एवं पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए उनकी कहानियाँ प्रेरणादायक है।
सहायक ग्रंथ सूची
- सं. डॉ इन्दुमति सिंह, सं.डॉ ज्योति किरण, समकालीन हिंदी कहानी और २१वीं सदी की चुनौतियाँ।
- विपिन बिहारी, बोझ मुक्त, पृष्ठ 14
- वहीं, पृष्ठ 16
- वहीं, पृष्ठ 102
- वहीं, पृष्ठ 104
- वहीं, पृष्ठ 120
- वहीं, पृष्ठ 125
- वहीं, पृष्ठ 126
- वहीं, पृष्ठ 137
सुबिता. के.एस
श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय कावड़ी