May 4, 2023

3.भाषा आधारित शिक्षा पद्धति और एन.ई.पी.2020 – डॉ.परमानन्द त्रिपाठी

By Gina Journal

Page No.: 22-29 

“भाषा आधारित शिक्षा पद्धति और एन.ई.पी.2020” – डॉ.परमानन्द त्रिपाठी

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य 21वीं सदी की जरूरतों के अनुरूप स्कूलों की शिक्षा को अधिक समग्र व लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवंत समाज और ज्ञान की वैश्विक महाशक्ति में बदलना, प्रत्येक में निहित अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाना है। यह नीती  भारतीय ज्ञान परंपरा, सभ्यता एवं संस्कृत की आकांक्षाओं एवं आशा के अनुरूप सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परंपरा के आलोक में लायी गई है। चुकि इस नीति में भारतीय भाषाओं पर आधारित शिक्षा पद्धति को विशेष महत्व प्रदान की गई है, इसलिए यह पूर्व की सभी शिक्षा नीतियों से अलग एवं विशेष महत्व रहती है, क्योंकि इससे बहुभाषिकता और शिक्षण के कार्य में भाषा की शक्ति को प्रोत्साहन मिलेगा |

प्राचीन काल से ही भारत ज्ञान की वैश्विक महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। प्राचीन भारतीय ज्ञान-परंपरा एवं दर्शन में ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को सदैव सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना जाता था। ज्ञान के पर्याय हैं- प्रतीति, बोध, प्रवीणता, चेतना, विवेक आदि। भारतीय वांग्मय के अनुसार- “सा विद्या या विमुक्तये” अर्थात जो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें वही विद्या या ज्ञान है। वेद, भारतीय ज्ञान-परंपरा के प्रारंभिक स्रोत हैं | वेदों में मानव कल्याण हेतु मार्ग खोजे गए हैं तथा इनमें प्रकृति, दुःख एवं समस्याओं से बचने के लिए प्रकृति की शक्तियों की उपासना, मनुष्य के अच्छे आचरण या व्यवहार को चिंतन का मुख्य विषय माना गया है। भारतीय ज्ञान-परंपरा यह मानती है कि- ज्ञान ही समस्त दुखो से मुक्ति का मार्ग है, जिससे कि व्यक्ति दुःख के सभी कारणों से निवृत हो सकता है | इस प्रकार प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य पूर्ण आत्मज्ञान और मुक्ति का मार्ग होता था। प्राचीन शिक्षण केंद्रों जैसे- तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी, विक्रमशिला, मिथिला, पुष्पागिरी. सोमपुरी आदि विश्वविद्यालयों ने देश ही नहीं अपितु पूरे संसार में शिक्षण एवं शोध के उच्च कीर्तिमान स्थापित करते हुए ज्ञान रूपी प्रकाश की ज्योति जलाई थी | भास्कराचार्य, आर्यभट्ट, चरक, सुश्रुत, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, चाणक्य, चक्रपाणि दत्ता, पाणिनि, माधव, पतंजलि, गौतम, पिंगला, नागार्जुन, शंकरदेव, गार्गी, मैत्रेयी, तिरुवल्लुवर आदि विद्वानों ने प्राचीन काल में भाषा आधारित शिक्षण व्यवस्था के माध्यम से वैश्विक स्तर पर ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- गणित, खगोल विज्ञान, धातु विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, संस्कृत साहित्य, सिविल इंजीनियरिंग, भवन निर्माण, नौकायन, दिशा ज्ञान, योग, ललित कला, शतरंज, आदि के विकास में प्रमाणिक रूप से मौलिक योगदान किया था।

प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा का स्तर काफी उच्च रहा है और अपनी शिक्षा की गुणवत्ता के कारण ही यह विश्व गुरु के पद पर आसींन रहा है | यहां की साक्षरता दर ब्रिटिश शासन काल से पहले 95% से अधिक थी किंतु 2 फरवरी 1935 को लार्ड मैकाले ने भारत की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की जो सिफारिश की उसने यहां की शिक्षा व्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया। लार्ड मैकाले की सोच थी कि पश्चिमी संस्कृति भारत की संस्कृति के से बेहतर व समृद्ध है, इसलिए भारतीय संस्कृति की जगह पर अंग्रेजी भाषा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए | इसी सोच के साथ 1835 में लार्ड मैकाले की सिफारिश के आधार पर अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1835 लागू हुआ | इस अधिनियम के माध्यम से भारतीयों को भारतीय भाषा की न्यूनता और अंग्रेजी की महानता के बोध से ग्रसित कराया गया। यह न्यूनता का बोध इसलिए करवाया गया कि हम भारतीय अपने पारंपरिक भाषा जैसे- संस्कृति और इससे संबंधित अन्य भाषाएं जैसे पाली व प्राकृतिक में लिखी गई पांडुलिपि अथवा हिंदुस्तानी भाषा, उर्दू भाषा से संबंधित ज्ञान आदि से विमुख हो जाएं तथा ऐसी भाषा को अपनाएं जिसमें भारत का ज्ञान और विचार संपदा न हो। फलत: धीरे-धीरे भारत के लोग अपने ज्ञान, भाषा कौशल और संक्षेपण से विमुख होकर बौद्धिक एवं मानसिक रूप से गुलामी के शिकार हो गए क्योंकि अंग्रेजी भारतीय भाषा तो थी नहीं, इसलिए भारतीय अंग्रेजी में अपनी बात को व्यक्त नहीं कर सकते थे और ना ही इसमें भारत के ज्ञान का भंडार ही था। फलत: 1872 तक भारत की साक्षरता दर गिरकर 3.2% हो गई।

जिस राष्ट्र की अपनी मातृभाषा उन्नत होती है वह विकास के पथ पर सदैव आगे बढ़ता रहता है। इस बात को भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी अपनी रचना में स्पष्ट किया है-

“निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति के मूल |

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटय न हिय के शूल ||

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।

एक अवसर पर बोलते हुए गांधी जी ने कहा था कि- विदेशी भाषाओं ने बच्चों पर एक तरह से तांत्रिक भार डाला है और वह रट्टू तोते बन गए हैं | उनका यह भी मानना था कि जितनी अच्छी तरह से व्यक्ति स्वयं को अपनी मातृभाषा में व्यक्त कर सकता है वह किसी अन्य भाषा में अभिव्यक्त नहीं कर सकता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी एक अवसर पर ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा था कि- स्वयं की भाषा से ही किसी व्यक्ति अथवा राष्ट्र का संपूर्ण विकास हो सकता है | इसलिए परदेसी वस्तु और परदेसी भाषा पर भरोसा मत करो। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने एक अवसर पर अपनी बात रखते हुए यह कहा था कि- मेरी गणित और विज्ञान की शिक्षा अपनी मातृभाषा में हुई थी इसीलिए मैं एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक बन पाने में सफल हो सका हूँ । गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने तो यहां तक कहा था कि- यदि विज्ञान को जन-सुलभ बनाना है तो मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा देनी चाहिए | भारत के महानतम वैज्ञानिक, जगदीश चंद्र बोस, श्रीनिवास रामानुजम, मेघनाथ साहा, जानकी अम्माल, सत्येंद्रनाथ बोस, चंद्रशेखर वेंकटरमन, डॉ अब्दुल कलाम, आदि ख्याति अपनी मातृभाषा में शिक्षा के कारण ही प्राप्त की थी। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए और भारतीय भाषा की गौरव एवं समृद्धता को ध्यान में रखते हुए देश की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देने पर बल दिया गया है। वर्तमान समय में विश्व में भारत की पहचान का प्रमुख माध्यम यहां की भाषा में लिखित वेद, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, योगसूत्र, रामायण, महाभारत, गीता, नाट्यशास्त्र आदि मौलिक साहित्य ही हैं।

किसी भी समाज व राष्ट्र की समृद्धि और विकास में वहां की शिक्षा व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान होता है | प्रभावी शिक्षा के लिए प्रभावी व लोक-रंजक भाषा की आवश्यकता होती है। महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक द हिंद स्वराज में यह लिखा है कि- बच्चों के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही आवश्यक है जितना शारीरिक विकास के लिए मां का दूध | बालक पहला पाठ अपनी मां से ही पड़ता है इसके लिए उसके मानसिक विकास के लिए उसके ऊपर मातृभाषा के अतिरिक्त कोई दूसरी भाषा लादना मैं मातृभूमि के प्रति अपराध समझता हूं। शिक्षा के माध्यम अर्थात भाषा के बिंदु पर वैश्विक स्तर पर अनेक अनुसंधान किए गए और लगभग सभी अनुसंधानो के निष्कर्ष के रूप में यह बताया गया कि- मातृभाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए | मातृभाषा में दी गई शिक्षा सबसे प्रभावी होती है क्योंकि बालक को माता के गर्भ से ही मातृभाषा के संस्कार प्राप्त होते हैं | परिवार ही एक बच्चे की प्राथमिक पाठशाला होती है तथा माँ उस बच्चे की प्रथम शिक्षिका होती है | मां तथा परिवार के अन्य सदस्य बच्चे को जो भी सिखाते हैं वह उसे आसानी से सीख जाता है क्योंकि उनके द्वारा मातृभाषा में ही बच्चों को सिखाया जाता है | जब बच्चा स्कूल में प्रवेश करता है तो उसे मातृभाषा में जो कुछ भी सिखाया जाता है उसे वह आसानी से ग्रहण कर लेता है किंतु जब मातृभाषा के अतिरिक्त किसी दूसरी भाषा में शिक्षा दी जाती है तो बच्चे को सीखने में कठिनाई होती है। प्रायः हम देखते हैं कि जब बच्चो को मातृभाषा में शिक्षा नहीं दी जाती है तो अभिभावक भी बच्चों को सही तरीके से नहीं सिखा पाता है क्योंकि अभिभावक भी दूसरी भाषा में पूर्णतया प्रवीण नहीं होता है। स्थानीय भाषा में शिक्षण कार्य कराने में शिक्षकों को भी सहूलियत होती है और छात्र भी आसानी से अधिगम कर लेते हैं। शिक्षकों को छात्रों से अपनी मातृभाषा में साहचर्य स्थापित करने और संप्रेषण करने में आसानी होती है, यह प्रभावी शिक्षण के लिए यह आवश्यक भी है | किंतु जब शिक्षण का माध्यम मातृभाषा के अतिरिक्त कोई अन्य भाषा होती है तो प्रभावी संप्रेषण तथा साहचर्य स्थापित नहीं हो पाता है जिससे शिक्षक और छात्र दोनों को कठिनाई होती है और अधिगम भी उचित रूप में नहीं हो पाता है। मातृभाषा में पढ़ने से बच्चों के आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है और वह बिना किसी दबाव या संकोच के अपनी बात रखने में समर्थ हो पाता है। अनेक वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह सिद्ध भी हो चुका है कि- यदि विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करता है तथा अपनी मातृभाषा को सही ढंग से सीख लेता है तो अन्य भाषाओं में भी वह आसानी से पारंगत हो सकता है। मातृभाषा मात्र एक भाषा नहीं है बल्कि उसके तार बालक के मन-मस्तिष्क और हृदय से जुड़े होते हैं | उसके तार बालक की सभ्यता और संस्कृति की जड़ों से जुड़ी होती हैं। मातृभाषा में शिक्षा देने से बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी कमी आएगी तथा वह उच्च शिक्षा में भी उत्तरोत्तर विकास कर सकेंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य 21वीं सदी की जरूरतों के अनुकूल स्कूलों की शिक्षा को अधिक समग्र व लचीला बनाते हुए भारत को ज्ञान आधारित समाज और ज्ञान की वैश्विक शक्ति में बदलना, प्रत्येक में निहित क्षमताओं को सामने लाना है। इसके लिए राष्ट्रिय शिक्षा नीति में किये गए विभिन्न प्रावधानों में से एक प्रावधान यह किया गया है कि बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय भाषा में ही दी जाएगी | यह प्रावधान इस सिद्धांत पर आधारित है कि बच्चों के मस्तिष्क के उचित विकास एवं शारीरिक वृद्धि हेतु आरंभिक 6 वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि बच्चों के मस्तिष्क का 85% विकास 6 वर्ष की अवस्था तक हो जाता है | ऐसे में प्रारंभिक वर्षों में मातृभाषा आधारित शिक्षा देने से बच्चे की आधारभूत शिक्षा मजबूत होगी, साथ ही मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चे का लगाव विद्यालय के प्रति बढ़ेगा | एक विद्यार्थी के मन व मस्तिष्क पर मातृभाषा से अधिक कोई भी भाषा प्रभावकारी नहीं हो सकती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मातृभाषा में प्रेरणादायक एवं रुचिकर बाल साहित्य तथा सभी स्तर पर स्कूल और स्थानीय पुस्तकालय में पुस्तक उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है | इससे मातृभाषा और पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा | इसके लिए प्रयास किया गया है कि कम से कम पांचवी कक्षा तक संभव हो तो आठवीं कक्षा तक या उसके ऊपर की कक्षा तक में मातृभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाया जाए | मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा नीति मे बड़ी संख्या में मातृभाषा की शिक्षा देने में समर्थ शिक्षकों की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है।

यदि हम विश्व के विकसित देशों का अवलोकन करें तो यह पाएंगे कि- अपनी मातृभाषा, संस्कृति और परंपरा में शिक्षित होने में, वहां की शैक्षिक सामाजिक और तकनीकी की प्रगति में, मातृभाषा का विशेष योगदान रहा है | विश्व के अधिकांश देश जो विकसित हैं उनके विकास में उनकी मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान है | अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जापान, आदि देशों के विकास में वहाँ के मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान है | इन देशों ने अपना सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी, वैज्ञानिक एवं अन्य समसामयिक ज्ञान का विस्तार मातृभाषा में ही किया है | अमेरिका, ब्रिटेन. रूस, चीन, जापान और इजरायल तो ऐसे अनुकरणीय उदाहरण हैं जिन्होंने मातृभाषा के माध्यम से विकास कर वैश्विक शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित किया है।

भारत में 15 अगस्त 1945 के बाद काफी परिवर्तन हुए हैं किंतु अभी भी शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजीयत को बदल पाने में हम सफल नहीं हो पायें हैं | राजनीतिक रूप से तो हमारा भारत स्वतंत्र हो गया है परंतु उस बौद्धिक ज्ञान की स्वतंत्रता की तरफ हम अब तक नहीं बढ़ पाए हैं जिसके कारण भारत विश्व गुरु कहलाता था | भारत भाषाओं के क्षेत्र में विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है | यहां की भाषाएं विश्व में सबसे समृद्ध, सबसे वैज्ञानिक, सबसे आकर्षक और सबसे अधिक अभिव्यंजक भाषाओ में  मानी जाती है | यहां प्राचीन और आधुनिक साहित्य के विशाल भंडार है, जिसकी बराबरी विश्व की कोई भी भाषा नहीं कर सकती है | संस्कृति भारतीय संविधान की आठवीं सूची में वर्णित एक महत्वपूर्ण आधुनिक भाषा है जिसका शास्त्रीय साहित्य बहुत विशाल एवं समृद्ध है, इसमें गणित, दर्शन, व्याकरण, संगीत, राजनीति, चिकित्सा विज्ञान, कविता, कहानी के अद्भुत खजाने हैं। किंतु दुर्भाग्य है कि लगातार उपेक्षा के कारण हमारी बहुत सी भाषाएं लुप्त हो गई हैं | यूनेस्को एटलस के ऑनलाइन चैप्टर के अनुसार- भारत की 197 भाषाएं ऐसी हैं जो असुरक्षित, लुप्तप्राय या विलुप्त हो गई है | 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 121 भाषाएं ऐसी हैं जिनको भारत की अधिकारिक भाषा कहा जा सकता है जिसे 10000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है | परंतु कुछ भाषाएं अत्यधिक खतरे में है | बहुत सी भाषाएं तो इसलिए विलुप्त हो रही हैं क्योंकि उनको प्रयोग करने वालों की संख्या में लगातार कमी आ रही है | भाषा हमारी बौद्धिक संपदा एवं वैभव का प्रतीक है।

समावेशी शिक्षा के विकास, भारत की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने, भारत की विविधता को संरक्षित करने, सभी को शिक्षा, शिक्षा के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास तथा योग्य एवं राष्ट्रभक्त नागरिकों के निर्माण के लिए मातृभाषा आधारित शिक्षा अत्यंत आवश्यक है | राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा के शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिए जाने का प्रावधान है | इस नीति में यह भी प्रावधान किया गया है कि मातृभाषा के श्रेष्ठतम शिक्षकों का निर्माण किया जाए | मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए यह भी प्रयास किया गया है कि विभिन्न संस्थानों में भाषा केंद्र खोले जाएंगे | यह दुर्भाग्य है कि अधिकतर भारतीय लोग पश्चिम के प्रभाव में मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य भाषा में शिक्षा को अत्यंत महत्वपूर्ण मान रहे हैं | परंतु हम सभी को मातृभाषा आधारित शिक्षा की गंभीरता एवं आवश्यकता को समझना होगा। इसके सफल क्रियान्वयन को तलाशना होगा | चुनौतियों को पहचान कर उसे दूर करने का प्रयास करना होगा | इसके लिए अध्यापकों को नये सिरे से तैयार करना होगा, तभी भारतीय भाषा आधारित शिक्षा पद्धति को बढ़ावा दिया जा सकता है ।

संदर्भ ग्रंथ सूची:-

  • गोयनका कमल किशोर, गांधी का भाषा चिंतन: हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं, राजभाषा भारती, भारत सरकार, गृह मंत्रालय और राजभाषा विभाग| वर्ष- 41, संयाक्तांक 157, जुलाई 2018 और दिसंबर 2019 पृष्ठ संख्या- 18
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय. भारत सरकार पृष्ठ संख्या-7,
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार पृष्ठ 8-9
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार पृष्ठ संख्या- 4
  • शर्मा हेमंत (1989) भारतेंदु समग्र, वाराणसी, प्रचारक ग्रंथावली परियोजना-1 हिंदी प्रचारक संस्थान, पृष्ठ संख्या- 228,
  • बच्चन सिंह (2020), हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास, दिल्ली, राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, संख्या- 296
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पृष्ठ संख्या- 21
  • वही पृष्ठ- 21
  • भारत की 197 भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर, 10 भाषाओं के बच्चे सिर्फ 100 जानकार आज तक
  • भारत में मातृभाषा के तौर पर बोली जाती हैं 19500 से अधिक भाषाएं अमर उजाला 20 सितंबर 2022

डॉ.परमानन्द त्रिपाठी

विभागाध्यक्ष शिक्षक शिक्षा विभाग

एल.एन.डी.कॉलेज ,मोतिहारी,बिहार