Category: परिवार अंक

May 16, 2023

परिवार रूपी वृक्ष – अनिल कुमार

परिवार रूपी वृक्ष परिवार…, वृक्ष की तरह होता है; जिसकी जड़े, प्रेम का अमृत पीकर, घर के आंगन को मजबूती से पकड़े रखती है। जिसका तना…, पिता-सा तनकर, सर्दी, गर्मी, बरसात में, रिश्तों की शाखाओं को प्यार से संभाले रखता है। जिसकी शाखाएँ…, ममतामय बाहें फैलाये, कोमल फूल-पत्तों को, अपना बच्चा समझकर, डालों का लचीला झूला, झूलाती रहती है। इस वृक्ष की शाखाएँ, जितनी फैलती […]

May 16, 2023

अकेलापन से साथियों की तलाश – स्मिता शंकर

अकेलापन से साथियों की तलाश” एक बार की बात है, एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी जो अपने एकल होने के कारण बहुत उदास रहती थी। वह हमेशा अकेली रहती थी और गांव के लोग उसे भी नहीं मिलते थे। वह जंगल में चली जाती और उसके पास जानवरों के दोस्त थे जिनसे वह बातें किया करती थी। एक दिन, बुढ़िया को एक कुत्ता […]

May 16, 2023

भगवान् रूपी ‘ मेरी मां’ – नीतू बाला

*भगवान् रूपी ‘ मेरी मां’* मैंने भी एक भगवान् देखा है, अपने ही घर में वो इंसान देखा है। चलता- फिरता,जीता-जागता, सबके लिए बनाते पकवान् देखा है। उसे कहते छाया की मूरत हैं वो भगवान् रूपी सूरत है। उसे दर्द तकलीफ में जलते देखा हैं अपनों के लिए तड़पते देखा है। वो करती सबसे प्यार है, उससे जन्मा सारा संसार है। रातों को ठिठुरते देखा […]

May 16, 2023

पापा भाग्य विधाता – स्वरचित चंद्रमणि चौबे

मेरी रचना परिवार पापा भाग्य विधाता भाग्य विधाता,जनक कहलाता अपने परिश्रम से घर में खुशी लाता कभी धरती तो कभी आसमान कहलाता आन बान शान से पहचाना जाता परिवार से पापा का गहरा नाता। पापा के लिए कोई शब्द नहीं कोई मोल कहा चुकाया है माता के आंचल में छुपा पिता का एहसास होता परिवार से पापा का गहरा नाता। हर मुसीबत से बचाकर आगे […]

May 16, 2023

ऊंचा रखूंगा सर मेरे परिवार का-सीताराम पवार

ऊंचा रखूंगा सर मेरे परिवार का झूठ सच नेकी बदी मान अपमान जो होता है परिवार के लिए होता है, **** झुकाए ना झुकेगा इस नामुराद दुनिया में कभी सर मेरे परिवार का | है आसमा से भी बहुत ऊंचा ये भरी कायनात में सर मेरे परिवार का | क्यारियां है एकता की बेपनाह मोहब्बत से खिला खिला है यह बागवा, ना छू सकेगी कभी […]

May 16, 2023

किताब वासर – डॉ.शशि भूषण शर्मा छपरा, बिहार

किताब-वासर किताबों की दुनिया, बेशक ख़ामोश होती है, मगर बहुत कुछ, चुपचाप कह जाती हैं। अपनाकर आप ही, ये खुद चुप रह जाती हैं। होती चमन में हरियाली, इन्हीं के कारण, अपने होने का एहसास, भर कर जाती हैं। किताबों से प्रेम किया जिसने, उम्र भर की सोहरत कर जाती हैं। खामोश रहकर भी, ये बहुत कुछ कह जाती हैं। जरूरत है इसकी आज, उल्फत […]