24. विद्यालयों में प्रचलित लैंगिक असमानताओं की रूपरेखा का अध्ययन – अनिल कुमार
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विद्यालयों में प्रचलित लैंगिक असमानताओं की रूपरेखा का अध्ययन
अनिल कुमार
शोध सार
किसी भी समाज को अगर प्रगति के पथ पर अग्रसर होना है तो उसके लिए सर्वप्रथम समाज के शिक्षित होने की आवश्यकता है । शिक्षा की सीमा का निर्माण इस प्रकार होना चाहिए जिसमें सभी को शिक्षा से जुड़े समान अधिकार प्राप्त हो सके। परंतु आज भी 21वीं सदी में हमारे शिक्षा क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की असमानताएं मौजूद है जिनके कारणवश समाज का कोई विशेष वर्ग किसी न किसी रूप से अभाव में रह जाता है। असमानताएं समाज में विभिन्न रूप से देखी जा सकती है, जिनमें से एक प्रकार है लैंगिक असमानता। विद्यालय के स्तर पर लैंगिक असमानताएं मौजूद है और इनको बहुत सहज रूप से देखा जा सकता हैं। यह शोध पत्र एक प्रयास है विद्यालय के स्तर पर प्रचलित लैंगिक असमानताओं को सामने लाने का एवं किस प्रकार विद्यालय के वातावरण, शिक्षक एवं पाठ्यक्रम के द्वारा विभिन्न लिंगो को असमान रूप से देखा जाता है । साथ ही साथ, यह शोध पत्र शिक्षकों से यह जानने का प्रयास करता है कि किस प्रकार से लैंगिक असमानताओं को विद्यालय से खत्म किया जा सकता है।
प्रस्तावना
लैंगिक असमानताएं दुनिया के हर हिस्से में विभिन्न रूपों में मौजूद है। इसे सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत संबंधों में देखा जा सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी लैंगिक असमानताएं कायम है, जो कि छात्रों से लेकर संगठन के शीर्ष पायदान तक व्याप्त है। शिक्षा के पूर्व-प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक इसकी मौजूदगी के प्रमाण पाए जाते हैं। पाठ्यचर्या के विभिन्न बिंदु जैसे कि शैक्षिक प्रक्रिया एवं गतिविधियां, शिक्षण सामग्री इत्यादि में लैंगिक असमानताएं शामिल हैं। शिक्षकों को लिंग के आधार पर असमानताएं झेलनी पड़ती है। विद्यालय में ऐसे अनेक कारक होते हैं जो कि लैंगिक असमानताओं को बढ़ावा देते हैं।
कुछ अध्ययन यह दावा भी करते हैं कि राष्ट्रों के विकास के साथ-साथ शैक्षिक उपलब्धियों में लैंगिक असमानताएँ कम होने लगती हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि शैक्षिक समानता का परिणाम लैंगिक समानता में होता है। लैंगिक असमानताएँ फिर भी वातावरण में अपना स्थान बनाए रहती हैं।126 देशों के 50 वर्षों के महिला एवं पुरुषों की स्कूली शिक्षा के आंकड़ों का उपयोग करके शिक्षा के बारे में चार व्यापक तथ्य विकसित किए गए हैं जिसमें सम्मिलित है, महिलाओं के लिए शिक्षा बोर्ड भर में सुधार होने की बात, अभी भी अधिकांश राष्ट्रों में महिलाओं को पुरुषों से पीछे रखना, कई देशों में पुरुषों और महिलाओं के बीच शिक्षा के अंतर का बढ़ना एवं शिक्षा में महत्वपूर्ण लैंगिक अंतर उन राष्ट्रों में जारी रहना। शिक्षा को समान बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि पुरुषों और महिलाओं की कार्यबल तक समान पहुंच हो (इवांस एवं अन्य 2020)। महिलाएं एवं पुरुषों के साथ-साथ तीसरे लिंग के लोगों को भी शिक्षा में शामिल किया जाए तथा उनके लिए प्रयास किए जाएं जिससे वह शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान देकर देश की प्रगति में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।
स्कूलों और विश्वविद्यालयों में तीसरे लिंग के लोगों को शामिल करना एक मुश्किल कार्य है क्योंकि हमारे समाज में लोगों का नजरिया एवं सोच अभी भी पूर्ण रूप से इन लोगों को अपनाने में संकोच करती है। ट्रांसजेंडर लोगों को 2004 तक शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था क्योंकि किसी ने कभी भी उन्हें समाज में एकीकृत करने पर विचार नहीं किया था। शिक्षा की कमी या अपर्याप्त शिक्षा के कारण ट्रांसजेंडर आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा सरकारी या निजी व्यवसायों तक नहीं पहुंच सकता, ऐसे कई मुद्दे हैं जो रोजगार और सामाजिक आर्थिक स्थिति में असमानताओं में योगदान करते हैं (मित्रा, 2017)। हालांकि तीसरे लिंग के लोगों ने कुछ क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या अत्याधिक कम है। लैंगिक असमानता को संबोधित करने से केवल महिलाओं को ही नहीं, सभी को लाभ होता है। इसलिए पूरे समाज को एकजुट होकर कार्य करना चाहिए। लैंगिक समानता से न केवल महिलाओं को लाभ होता है, बल्कि इससे बच्चों को भी लाभ होता है- क्योंकि महिलाएं पुरुषों की तुलना में बाल कल्याण पर अधिक जोर देती हैं। लैंगिक समानताओं को बढ़ावा देने के लिए शैक्षिक नीतियों के स्तर पर परिवर्तन लाने की आवश्यकता है (शांग, 2022)। शैक्षिक नीतियों के परिवर्तन के साथ-साथ सामाजिक एवं निजी स्तर पर परिवर्तन लाने की जरूरत है। प्रचलित लैंगिक असमानताओं के पीछे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तत्व हैं (किलारी एवं अन्य 2020)।
लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए लोगों को महिला अधिकारों और समाज में उनके योगदान एवं मूल्य के बारे में जागरूक करके उनकी मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें स्वतंत्रता प्रदान करने से उनके अंदर निडरता एवं स्वाभिमान का विकास सुनिश्चित करना चाहिए। महिलाओं को जीवन चलाने के लिए एवं अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए आर्थिक रूप से मजबूत किया जाना चाहिए (वानी, 2018)।महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों एवं अन्य लिंग के लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करने के साथ-साथ समाज में हर स्तर पर अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है। ऐसा करने से कुछ हद तक हम लैंगिक समानता को स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
वर्तमान अध्ययन में उन स्कूल संबंधी कारकों को जानने का प्रयास किया गया है जो कि लैंगिक असमानताओं को बढ़ाने में सक्रिय है। इसके साथ साथ यह जानने की भी कोशिश की गई है कि कैसे इन कारकों के प्रसारण को रोका जा सकता है और लैंगिक समानता को स्थापित करने में किस प्रकार सफलता प्राप्त की जा सकती है।
शोध प्रश्न
क्या विद्यालय स्तर पर लैंगिक असमानता मौजूद है? यदि हाँ, तो विद्यालय, शिक्षक और पाठ्यक्रम संबंधी कारक कैसे लैंगिक असमानता को स्थायी बना रहे हैं?
शोध के उद्देश्य
1. लैंगिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाले विद्यालय संबंधित कारकों का अध्ययन करना।
2. लैंगिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाले शिक्षक संबंधित कारकों का अध्ययन करना।
3. लैंगिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाले पाठ्यचर्या संबंधित कारकों का अध्ययन करना।
4. लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए उपाय सुझाना।
प्रतिदर्श
वर्तमान अध्ययन में, 20 शिक्षकों को प्रतिदर्श के रूप में लिया गया था, जिनमें से 10 शिक्षक उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र के निजी विद्यालयो में पढ़ा रहे थे और 10 शिक्षक उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र के सरकारी विद्यालयो में पढ़ा रहे थे।
उपकरण और तकनीक
लैंगिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाले विद्यालय, शिक्षक और पाठ्यचर्या संबंधी कारकों का अध्ययन करने के लिए विद्यालय के शिक्षकों का साक्षात्कार करने के लिए शोधकर्ता द्वारा साक्षात्कार अनुसूची तैयार की गई थी। इनके साथ ही, यह उपकरण लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए शिक्षकों से सुझाव प्राप्त करने का प्रयास भी करता है।
अध्ययन की प्रक्रिया
शोधकर्ता ने समस्या को सामने रखा और उपलब्ध शोधों का अध्ययन किया। इसके बाद साक्षात्कार अनुसूची तैयार कर शिक्षकों का साक्षात्कार लिया गया। शिक्षकों से प्राप्त उत्तरों एवं अनुभवों को एकत्रित कर उनका विश्लेषण करने के बाद उसमें से विषय बनाए गए। विषयों के अंतर्गत ही विभिन्न कारकों का विस्तार किया गया।
प्रमुख निष्कर्ष
विद्यालय, शिक्षक और पाठ्यचर्या के संदर्भ में मौजूद लैंगिक असमानताएं
शिक्षकों से बात करने के बाद इस बात की पुष्टि की गई कि विद्यालय, शिक्षक एवं पाठ्यचर्या से जुड़े बहुत सारे ऐसे कारक हैं जो लैंगिक असमानताओं को बढ़ावा दे रहे हैं। यह कारक विभिन्न रूप से शिक्षा जगत में विद्यमान है। इनके प्रारूप को समझकर इन्हें विभिन्न विषयों के अंतर्गत बांटने का प्रयास निम्नलिखित रुप से किया गया है:
रंग निर्धारित करने का आधार: लिंग
जब लड़कों की बात आती है तो उन्हें ज्यादातर नीला रंग दिया जाता है, वहीं जब लड़कियों की बात आती है तो गुलाबी रंग वरीयता के रूप में दिखाई देता है। यह रंग वर्गीकरण वर्दी के मामले में या किसी विशेष वस्तु जैसे बैच, रिबन, चार्ट, शीट आदि के लिए किसी विशेष रंग को निर्दिष्ट करने के मामले में देखा जा सकता है। इस रंग निर्धारण प्रक्रिया ने छात्रों के दिमाग को रोजमर्रा की जिंदगी में अनुकूलित किया है कि रंग के लिए उनकी वरीयता उसी के द्वारा नियंत्रित होती है। यदि कोई छात्र पुस्तक या अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर कहीं भी इंद्रधनुष प्रदर्शित करता है, तो उस छात्र को एलजीबीटीक्यूए होने के लिए दूसरे द्वारा धमकाया जाता है। यदि कोई लड़का गुलाबी, मेहरून जैसे रंगों को अपनी पसंद में रखता है तो उनको अन्य छात्रों द्वारा हास्य पात्र बनाया जाता है।
कक्षा कक्ष में बैठने की व्यवस्था
कक्षाओं में यह देखा जा सकता है कि बैठने की व्यवस्था अक्सर ऐसी शैली में नियोजित की जाती है जो लड़कियों और लड़कों को अलग करती है। शिक्षक लड़कों और लड़कियों को अलग-अलग पंक्तियों में बैठने के लिए कहते हैं। बैठने के लिए कुछ नियम हैं, लड़के और लड़कियों को एक साथ बैठने की अनुमति नहीं है, और अगर वे एक साथ बैठते हैं, तो शिक्षक उन्हें अपमानित करते हैं एवं डांटते हैं। कभी-कभी उन्हें दंडित भी किया जाता है। तीसरे लिंग का स्कूल में प्रतिनिधित्व लगभग ना के बराबर है, ऐसे में उनकी बैठने की योजना पर बात करने की गुंजाइश ही नहीं है।
स्कूल के प्रकार
जब स्कूल में मिश्रित प्रकार के नहीं एक लिंग के छात्र होते हैं, तो छात्र अन्य लिंगों की चिंताओं और मुद्दों को समझने की स्थिति में नहीं होते हैं। वे केवल उस विशेष लिंग की के साथ का आनंद लेकर आराम की स्थिति में रहना पसंद करते हैं। यदि विशेष रूप से लड़कों के लिए विद्यालय है, तो लड़कों के लिए अन्य लिंगों के प्रति जागरूकता और व्यवहार प्रबंधन करना मुश्किल होगा। यदि विद्यालय सिर्फ लड़कियों का है तो ऐसी परिस्थिति में आगे चलकर जब वह उच्च शिक्षा के लिए मिश्रित संस्थानों में पढ़ने जाती हैं उस समय उन्हें लड़कों का होना असहज कर देता है।
स्कूल सभा के लिए छात्रों की व्यवस्था
सामान्यतः यह देखा जा सकता है कि सभा के लिए मैदान में प्रत्येक कक्षा के लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग पंक्ति बनाते है। यह अलगाव झिझक के विकास का कारण बनता है और उन्हें स्थान का उपयोग करने या अन्य लिंग के लोगों के साथ स्थान साझा करने में असमर्थ बनाता है। समान और भिन्न लिंग के अन्य लोगों के साथ उन्हें असहज और असुरक्षित महसूस कराए बिना स्थान का उपयोग करना भी एक कला है। अलग-अलग पंक्तियाँ लिंग को विभाजित करती हैं और उन्हें असंवेदनशील बनाती हैं।
लिंग के आधार पर गतिविधियों का विभाजन
स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए गतिविधियों में स्पष्ट सीमांकन है। भारी वस्तुओं को उठाने जैसे कार्य के मामले में विशेष रूप से लड़कों की शारीरिक सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। वहीं जब नाजुक कार्य की बात आती है तो लड़कियों को अवसर दिया जाता है। जब सांस्कृतिक प्रदर्शन की बात आती है, तो लड़कियों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों पर नृत्य करने की पेशकश की जाती है, लेकिन साथ ही जब कोई लड़का ऐसा करता है, तो उसका मजाक बनाया जाता है। लड़कियां किसी भी तरह के गाने पर नृत्य कर सकती हैं लेकिन लड़के ऐसा दुस्साहस नहीं कर सकते। लड़कियां सौंदर्य उत्पादों का उपयोग कर सकती हैं, लेकिन लड़कों से ऐसा करने की उम्मीद नहीं की जाती है। हालाँकि, चीजें थोड़ी बदलनी शुरू हो गई हैं लेकिन इसमें बहुत समय लगेगा।
पूर्व-कल्पित धारणाओं के कारण किसी विशेष लिंग का पक्ष लेना
अधिकांश समय यह देखा गया है कि शिक्षक पहले से सोची गई धारणाओं या गलत धारणाओं के आधार पर छात्रों का पक्ष लेते हैं या उन्हें डांटते हैं। इस संबंध में उदाहरण साझा किए गए हैं जैसे अगर कुछ टूट गया है तो लड़के अपराधी हैं, अगर लड़का और लड़की दोनों किसी रिश्ते में शामिल हैं तो लड़कों को अक्सर दोषी ठहराया जाता है। शिक्षक आमतौर पर कुछ अन्य व्यवहारों के आधार पर छात्रों पर ठप्पा लगाते हैं, ऐसा करना पूर्ण रूप से गलत है।
शिक्षण-अधिगम के दौरान शिक्षकों द्वारा प्रदान किए गए उदाहरण
शिक्षक के उदाहरणों में विभिन्न क्षेत्रों के पुरुषों का महिमामंडन देखा जा सकता है। महिलाओं का योगदान भी उदाहरण में दिया जाता है लेकिन इसकी संख्या अत्याधिक कम होती है। उदाहरणों में महिलाओं के महिमामंडन करने की आवश्यकता है क्योंकि महिलाएं संख्या में कम नहीं हैं, समस्या उन्हें स्वीकार न करने की है। किताबों में देखा गया है कि “कुएं से पानी लाने का काम औरतें ही करती हैं, ऐसा क्यों? पुरुष ही कमाई का जरिया क्यों?” इन संदर्भों को बदलने की आवश्यकता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारे अन्य लिंग के लोगों को भी समाज में स्वीकृति प्राप्त हो तो आवश्यकता है उन लोगों के लिए सर्वप्रथम शिक्षा का उपलब्ध होना एवं उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है उदाहरण देकर महिला एवं पुरुष वर्ग को अन्य लोगों के प्रति संवेदनशील करना।
प्रवेश नीति
प्रत्येक लिंग के बच्चे को प्रवेश दिया जाना आवश्यक है। शिक्षा प्राप्त करना हर बच्चे का अधिकार है, फिर स्कूलों ने तीसरे लिंग को क्यों छोड़ दिया? सभी लिंगों को समायोजित करना ही कल्याणकारी होगा। विद्यालयों एवं शैक्षणिक संस्थानों में अन्य लिंग के बच्चों के लिए भी दाखिले सुनिश्चित करे जाएं एवं ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाए के यह बच्चे भी अपने आपको सुरक्षित एवं समाज का अभिन्न अंग समझ सके।
समान अवसर और प्रावधान
विभिन्न लिंगों के लिए अवसर का समान प्रावधान सुनिश्चित करें। उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, किसी भी भेदभावपूर्ण व्यवहार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हर किसी में कोई न कोई प्रतिभा होती है, उसे निखारने वाले शिक्षक ही होते हैं।अगर समाज में बदलाव की लहर आ सकती है तो उसको लाने वाला सर्वप्रथम शिक्षक ही हो सकता है। प्रावधान इस प्रकार हो जिसमें सबके लिए शिक्षा प्राप्त करने का सहज विकल्प मौजूद हो एवं हर किसी के लिए यह अवसर पूर्ण रूप से खुला हुआ हो। किसी प्रकार की बाधा का सामना किसी को ना करना पड़े।
लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए उपाय
विद्यालयों को सभी लिंगो के लिए एक सुरक्षित स्थान बनाना चाहिए। यह मनोवैज्ञानिक धारणाओं के साथ-साथ संबंधित भौतिक पहलुओं को बदलकर किया जा सकता है। विद्यालयों को लिंग की परवाह किए बिना सभी के लिए शिक्षा के महत्व के बारे में समाज में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। समाज में जागरूकता कार्यक्रम या संपर्क कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं ताकि विभिन्न लिंगों से संबंधित मुद्दों को समझा जा सके। रोलप्ले, नाटक, वाद-विवाद, फिल्म स्क्रीनिंग, कला पूरे विचार को प्रसारित करने के लिए वाहन के रूप में काम कर सकते हैं। सभी लिंगों के लिए शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश की प्रक्रिया को सहज बनाने की जरूरत है। तीसरे लिंग और लड़कियों को स्कूलों में उसी स्तर से दाखिला लेने की जरूरत है जिस तरह से लड़कों को स्कूलों में दाखिल कराया जा रहा है। विद्यालयों में अन्य लिंगो के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है ताकि उन्हें समाज के शैतानों द्वारा शोषित होने से रोका जा सके। सभी लिंगो की सभी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अधोसंरचना और भौतिक व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है। ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए कि कोई भी घटक किसी को शिक्षा छोड़ने का कारण बन जाए। शौचालय एक ऐसा उदाहरण हो सकता है जहां लड़कियों और लड़कों के लिए अलग-अलग शौचालय की आवश्यकता होती है और जिसकी देखभाल भी विद्यालय द्वारा की जाती है, इसी तरह अन्य लिंगों के लिए विद्यालयों में शौचालय रखा जाए जो उन्हें इस दुविधा में पड़ने से रोकता है कि उन्हें कौन से शौचालय का प्रयोग करना चाहिए। सह-शिक्षा प्रकार के विद्यालयों की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो अन्य लिंग से संबंधित मुद्दों को सम्मान देने में मदद करता है और उन्हें अन्य लिंगों के प्रति भी संवेदनशील बनाता है। बैठने की व्यवस्था इस तरह से की जानी चाहिए कि विभिन्न लिंग के छात्र एक साथ बैठ सकें, ताकि वे एक सौहार्दपूर्ण और स्वस्थ संबंध विकसित कर सकें। सभी को समान अवसर दिया जाना और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना, चाहे वे कैसा भी प्रदर्शन कर रहे हों, कम से कम उन्हें प्रोत्साहित करें।
लिंग के आधार पर कार्य या गतिविधियों को विभाजित करने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें अपनी रुचि के आधार पर निर्णय लेने दें। किसी भी तरह के लैंगिक पक्षपातपूर्ण शिक्षाशास्त्र को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए, इसे तत्काल आधार पर कम किया जाना चाहिए। संदर्भ और शब्दावली हमेशा लिंग तटस्थ होते हैं। शिक्षक को स्वयं लैंगिक समानताओं को अपने व्यवहार में बढ़ावा देना चाहिए, जिससे छात्र सीख सकें एवं अपने व्यवहार में प्रयोग में लाने में सक्षम हो। लिंग कार्य आवंटन के आधार पर पुरुष और महिला शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में असमानता को रोकने की जरूरत है। लैंगिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा, और इसे विभिन्न बिंदुओं पर अन्य विषयों के साथ एकीकृत किया जा सकता है। शिक्षण सामग्री में लैंगिक निष्पक्ष सचित्र प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया जाएगा। लैंगिक भूमिकाओं की गलत व्याख्या से बचना चाहिए। छिपे हुए पाठ्यक्रम को लैंगिक संवेदनशीलता को पूरा करना चाहिए और उन मुद्दों को सामने लाना चाहिए जिन्हें शब्दों में नहीं बताया गया है। शिक्षक लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं। शिक्षक परिवर्तन निर्माता के रूप में कार्य कर सकता है क्योंकि शिक्षक वह है जो स्कूल, समाज, छात्रों, अभिभावकों और अन्य संगठनों से जुड़ा होता है। शिक्षक लैंगिक असमानताओं को दूर करने का सबसे महत्वपूर्ण आधार हो सकता है
निष्कर्ष
इस अध्ययन के माध्यम से यह ज्ञात होता है कि विद्यालयों के स्तर पर लैंगिक असमानताएं विभिन्न रूप से मौजूद है। लैंगिक असमानताओं को खत्म करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है, जिसके लिए सर्वप्रथम मानसिकता का बदलना एवं प्रत्येक लिंग के लिए संवेदनशीलता उत्पन्न करना अत्याधिक जरूरी है। विद्यालयों का संबंध एवं प्रभाव सीधा-सीधा समाज से जुड़ा होता है। समाज में प्रचलित भेदभाव विद्यालयों को भी प्रभावित करता है। अतः सामाजिक स्तर पर लैंगिक समानता स्थापित करनी चाहिए।
संदर्भ
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शोधार्थी का पता:
अनिल कुमार, पीएचडी शोधार्थी
शैक्षिक अध्ययन विभाग
शिक्षा संकाय
जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली