May 9, 2023

29.समकालिन कहानियों में नारी विमर्श – डॉ.- प्रा. भिमराव माने

By Gina Journal

           समकालिन कहानियों में नारी विमर्श

डॉ.- प्रा. भिमराव माने

नारी सशक्तीकरण के इस दौर में भारतीय नारीविषयक दृष्टी को प्रासंगिकता अव पुरी दुनिया में प्रसिद्ध होती दिखाई देती है। भारतीय ग्रंथ में लिखा है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंत रमते तत्र देवता’ जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता का वास होता है। नारी की जननी माता पूजनीय माना गया है। सी के रूप में आदर्श बन गयी है। नारी कही आदर्श सहचरणी के रूप में स्थान है। नारी भगवान की हो अदभुत कृति नहीं है, वरन मानवों को भी अदभूत सृष्टी है। मनुष्य निरंतर अपने अंतर्मन से नारी को सौंदर्य की विभूति से विभूषित करता है।

नारी त्याग, बलिदान, सेवा, समर्पण तथा वात्सल्य की मूर्ति है। “प्रकृति ने पुरुषों को अपेक्षा स्त्रियों को विशेष भावप्रवण एवं संवदनशील बनाया है। जहाँ पुरषों के लिये बुद्धिपरक विचार धारा सहज गुण है, यहाँ नारियों के मानस में अध्या, विश्वास संवेदना सहानुभूति आदि कोमलभाव अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में प्रकृतिस्थ रहते है। यही कारण है कि महिलाओंद्वारा प्रणित साहित्य में हृदय को स्पर्श करने की क्षमता अथवा मामिकता का विशेष समावेश रहता है। यह तथ्य पा तथा गद्य दोनो प्रकार साहित्य के लिए समान रूप से सत्य है।” मनुष्य के जीवन की प्रगति नारी के कारण ही हो रही है। नारी अपनी ममता तथा अपनी भावनाओं को दूसरों को समर्पित करती है नारी विमर्श हिंदी साहित्य में चर्चा का विषय बना हुआ है। जिसपर मनोवैज्ञानिक तथा समाजशास्त्रीय बहस से वृक्ष होने लगी है आज नारी अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए परंपरागत मूल्यों से लड़ रही है। नारी समान को केन्द्र बिंदू है। समाज को नारी द्वारा प्रेम प्रेरणा और शक्ति मिलती है।

मधु भंडारी ने अपनी कहानियों में नारी के विविध रूपों का चित्रण बड़ी सूक्ष्मता से चित्रण किया है। मी, पत्नी, बहू, बेटी, विधवा परिव्यक्ता दादी, भाभी, सहेली आदि रूपों का चित्रण मिलता है। अकेली कहानी में सामा बुआ के माध्यम से नारी । पिडा का चित्रण किया है। सोमा बुआ बुढी हे उद्यार है और व्यावहारिक भी है। जीवन के एकाकी पणने उन्हें और भी मिलनसार बना दिया है। जवान बेटे के मरने के गम की वो पड़ोसियों के घरोंमें अपने आत्मीय को काम में लगाती है वो कामकान में कुशल है। मिठाइयों और पकवान बनाने में पारंगत है। प्रसंग के अनुसार गाने बजाने में भी वे कुशल है। अपने इन गुणों के कारण वह अपने आसपास के समान में प्रिय है। सभी अनका सम्मान करते हैं और उनकी राय लेते है। अपने सन्यासी पती से सोमा बुआ की नहीं हृदय की पटती । घरमें पति के रहनेपर वो खिन्न रहती है बुढो होकर भी सोमा बुआ व्यावहारीक मामलों में वो कभी पिछे नही रहती। बो अपनत्व की भूखी है। जहाँ स्नेह मिलता है वहाँ उनका मन रमता है, परन्तु अपनी उपेक्षा होते देखकर उन्हें बड़ी चोट लगती है।

‘रानी मी का चबूतरा’ कहानी में गुलाबी नामक एक विधवा स्त्री का संघर्ष चित्र प्रस्तुत किया है। गुलाबो इमानदार स्वाभिमानी कर्तव्यपरयन तथा स्वसमर्थ आदी गुणों से भरी एक विधवा स्त्री है। वह अभावात्मक जीवन का संघर्ष करती है। पास पडोसी औरते गुलाबी के इस रवैये से नाराज है। लेकिन किसी का सुनती नहीं है। बच्चों पर कभी कभी गुस्सा करती “हम क्या भीख माँगे है, जो किसी का दिया पहने थे है उनपर बड़े आये है दया दिखानेवाले” गाँव में शिशु सुरक्षा केंद्र खुलता है पाँच रुपये शुल्क में बच्चों को देखभाल की जाती है। उसी गली के काका गुलाबी बच्चों का नाम दर्ज करने के लिए कहते है। गुलाबी उलटा सिधा कहकर उन्हें वापस भेजती है। रातदिन काम करके वह अपना और अपने बच्चों का पेट पालना चाहती है। लेकिन गली के लोग उनका

इसतरह से रात रात बाहर रहने का अर्थ अलग लते है। स्वाभिमानी गुलाबी को इस बात की जानकारी जरूर थी पर बेचारी आखिर किस किसको असलियत बताती? सब कुछ सहते हुये जीवन जीति है। एक दिन गली के लोफ देखते को दो आदमी गुलाबी का अचेत शरीर को उठाकर ला रहे है। सब जानते की भूख के मारे उसकी यह अवस्था हुआ है। मरना रात स्थिति तक पहुँची गुलाबी हार नहीं मानती स्वाभिमानी गुलाबी में श्रम, साहस कर्म और संघर्ष का अपूर्व संगम अंकित किया है।

‘चष्मे’ कहानी में पति-पत्नी का परस्पर स्वभाव वैचित्र के कारण ददय स्थिती निर्माण हुआ है। मिस्टर वर्मा अधवुढे होने के कारण चश्मा पहने बिना पढ़ नहीं सकते। ये हमेशा अपनी फाइलों में उलझे रहते है। उनकी पत्नी मिसेज वर्मा एक भावूक और रंगीनियों में खोयी रहनेवाली स्त्री है। एक बार उन्होंने अपने पति को एक प्रेम कहानी सुनाबाई तब उस फहानी में चित्रीत निर्मल और शैल, निर्मल जिस प्रकार शैल से बुरी महसूस करता है। उसी प्रकार मिस्टर वर्मा निर्मल के व्यक्तित्व के साथ खुद का व्यक्तित्व जोड देते है। मिस्टर वर्मा यह समझते है कि, अपनी पत्नी को कोमल भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। प्रेम कहानी में से काल्पनीक जगतमें और सपनों की दुनियामें खो जाते है। लेकिन चष्मा न होने के कारण कहानी का आस्वाद से नहीं पाते। इसलिए वो अपनी पत्नी से कहते की मेरा चष्मा दो। मिसेज वर्मा को पता है कि चष्मा पति की कमजोरी है, इसलिए वह उसका चष्मा छिपाकर रखती है। इस कहानी में पति और पत्नि का परस्पर स्वभाव वैचित्र्य चष्मे कहानी में चित्रित किया है। मन्त्र भंडारी ने “पारिवारिक जीवन का विविध समस्याओं और नर-नारी संबंधों के विविध आयामों को लिया है और कहीं कहीं तो समाजिक जीवन को भी गहरे प्रश्नों को प्रामाणिकता के साथ रूपायित किया है और दूसरे प्रायः इनकी कहानियों का स्तर एक सा ऊँचा है। ‘क्ष’ इस कहानी का प्रमुख पात्र कुन्ती है। वह एक मध्यम वर्गीय क्षयग्रस्त पिता की पहली संतान है। वह जीवन में सपने सुनने के दिनों में नोकरी करके अपना छोटा भाई और पिता का दैनंदिन खर्चा चलाती है। अपने क्षय वस्तु पिता का इलाज कराती है। इस द्रष्टीसे ‘क्षय’ एक मध्यमवर्गीय परिवार के जीवन को संघर्षता का प्राणिक चित्रण है। कुन्ती अपनी सारी उम्र जीवन के कठोर यथार्थ से लड़ते झगडतें बीताती है। अन्तमें अपने पिता की तरह क्षय का शिकार हो जाती है। आजकल मध्यमवगीय युवापिढी के सामने अनेक समस्याएँ है। युवावस्था में परिवार की अनेक जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। कुन्ती भी एक ऐसे परिवार को युवती है कि उसे अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ रही है। हसने खेलने की उम्र में खुशी और उल्हास की अपेक्षा परिवार का बोझ संभलना उसके तकदीर में आया है। ऐसी युवा पिढी के खुशी का क्षय हो गया। कुन्ती के पिताजी का क्षय कुन्तं आनंद का क्षय कर देता है।

“यही सच है’ इस कहानी में आधुनिक युवती का चित्रण है आधुनिक मनुष्य चाहे वह पुरुष हो या स्त्री के बंधन विरहित जीवन जीना चाहते है। आज हर एक शिक्षित युवती अपना जीवन साथी अपने आप चुनना चाहती है किन्तु कई दिनों तक उन्हें यह फैसला करना कठीण होता है जो किया यहि सच है या गलत चयन किया रास्ता उसे किस दिशा को ले जाता है। ‘यहाँ सच है की दीपा के शिक्षा सम्पन्न एक आधुनिक युवती है। दीपा के सामने दो पुरुषों का प्रेम है। एक है निशिय जिसके उसने युवावस्था में प्रेम किया था। किन्तु उसने दीपा को ठुकराया। उसके ठुकराने का कुछ भी कारण नहीं बताया था। उसी काल दोपा के जीवन में दुसरा पुरुष संजय आ जाता है। वह रजनीगंधा के फूल दीपा के टेबल पर सजा देता है। चार दिनों तक उस फूल की सुगंध कमरें में भरी रहती है। उस समय दीपा को संजय के सहवास का अहसास होता है। रजनी गंधा के फूल उसे संजय की आँखो जैसे लगते है। एक जगह इन्टर के लिए दीपा जाती है तब यहाँ निशिष मिलता है। निशिथ दीपा की साहायता करता है उसे एक होटल में पार्टी देता है। दीपा को लगता है यह प्यार की कुछ बाते करें किन्तु निशिव नौकरी के शिवा कुछ बोलता नहीं दीपा को बड़ा अचरण लगता है। क्या निशिय के मन में उसके बारे में अभी भी प्यार सच्चा है कि संजय का? वह कुछ भी तय नहीं कर पाती संजय के प्यार की ही वह सच समझती है यह स्पर्श यह सुख वह क्षण हो सत्य है “मनु भंडारी ने पुराने प्रेम त्रिकोण को नई दृष्टि से उठाया है।”

‘बंद दराजों का साथ’ मन्त्र भंडारी जी नई दिशा देनेवाली कहानियाँ लिखती है। जीवन को सीधा सरल रूप देनेवाली कहानियाँ लिखी। इस कहानी में एक मध्यम वर्गीय परिवार को लेकर चित्रण किया है। इस कहानी में पति और पत्नी के बीच के तनावों एवं संघ का चित्रण किया है। पति बिपिन और पत्नी मंजरी इन दोनों के बीच एक विभाजन की रेखा खिच दि गयी थी। मंजरी और बिपिन रोज की तरह घर से बाहर निकले लेकिन एक पीरियड के बाद मंजरी घर वापस आयी उसने अपने अपने कागजात ढूंढने लगी। सब और ढूंढे लेकिन नहीं मिले।

मंजरी ने पहली दराज खोली उसमें भी नहीं से बीच भी दराज खोली उसमें की उसके कागजात नहीं मिले। उसने तीसरा दराज खोलने का प्रयास किया वह नहीं खुला क्योंकि उसे ताला लगा हुआ था। सारा घर छान मारा लेकिन चाबी कहीं नहीं मिली। तबसे वह विपीन को अधूरा समझने लगी। “औरत की नजर यों ही बड़ी पेनी होती है, फिर उसपर सन्देह की सान चढ़ जाये तो आकाश पाताल चोरने में भी उसे देर नहीं लगती।” दुसरे दिन उसने बन्द दराज को खुली देखा उसमें कुछ डायरियाँ एक महिला और बच्ची की तस्वीरे और पत्र देखें। यह सब देखकर उसके मन में क्रोध निर्माण हुआ। मन खौज उठा। कुछ दिनों के बाद मजरी फैसला कर लेती है कि वह तुरंत बिपीन का साथ छोड़ देंगी। विपीन को जब वह छोड़ती है तब उसे अकेलेपन महसूस होता है उसे जीवन निरस लगने लगता है। वह अकेलेपन के साथ लड़ती है। अपने बेटे के सहार अकेलेपन के साथ लढती है। उसे लगता है अपना जीवन किसी के बीना अधूरा है।

मन्नु भंडारी की कहानियों परिवार नारी मनोविज्ञान जैसे अनेक विषयोंपर होती है। जीवन के यथार्थ का चित्रण उनको कहानियों की आत्मा है। आधुनिक जीवन की व्यापक समस्याओं को समेटना चाहती है। उनकी समझ महरी होने के कारण उनकी काहनियों में बहुआयामी संदर्भ विकसित हुए है।

1) हिंदी कथा साहित्य के विकास में महिलाओं का योगदान डॉ. उर्मिला गुप्ता 2) साठोत्तरी हिंदी कहानियों में पुरुष चरित्र डॉ दीपा ला

3) ————————- वही —————-

४) अकेली

5) रानी माँ का चबुतरा

६) चष्मे

7) क्षय

8) यही सच है

9) बंद दराजों का साथ

     डॉ.- प्रा. भिमराव माने

 शि.म.गु.शिंदे महाविद्यालय, परंडा

   ता. परंडा जि. उस्मानाबाद, 413502