May 30, 2023

90. मीडिया विमर्श के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक -सांस्कृतिक बदलाव -लिबिल जैकब

By Gina Journal

Page No.: 644-649

मीडिया विमर्श के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक -सांस्कृतिक बदलाव -लिबिल जैकब

सारांश

आज हम जी रहे हैं इक्कीसवीं सदी में। इस नए दौर में समूचे विश्व परिवर्तन के पथ पर है। परिवर्तन के इस प्रक्रिया में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। मीडिया,लोकतंत्र के अन्य तीन स्तंभों को अपने उत्तरदायित्व का बोध दिलाकर लोकतंत्र के जड़ों को और मज़बूत बनाते हैं। विश्व के कोने-कोने में घटित घटनाओं एवं समस्याओं की सत्यता को मीडिया ही लोगों तक पहूँचाती है साथ ही साथ मीडिया के प्रभाव के कारण ही समाज में राजनैतिक,सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहे हैं। मीडिया के प्रभाव के कारण होनेवाले परिवर्तन का अध्ययन प्रस्तुत शोध आलेख में किया जाएगा।

मूल शब्द : सामाजिक परिवर्तन,लोकतंत्र,मीडिया,जनसंचार-स्रोत,

परिवर्तन एक चिरस्थायी सत्य है। हमारे आसपास जो कुछ भी है,वह परिवर्तित होते रहते हैं यहाँ तक हम भी परिवर्तनशील है। अगर जो भी अपरिवर्तनीय है तो वह सिर्फ ‘परिवर्तन’ है।

वर्तमान युग में पश्चिमी सभ्यता की आगमन,आधुनिकता का उदय,वैश्वीकरण एवं आर्थिक उदारीकरण प्रक्रिया ने समूचे विश्व को एक ‘विश्वग्राम’में परिवर्तित किया गया है। इस परिवर्तन में मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है।आजकल मीडिया सिर्फ संचार माध्यम नहीं इन परिवर्तनों का मूलाधार भी है। यह कहना गलत नहीं होगा की मीडिया,परिवर्तन का ब्रह्मास्त्र है।

आज जनसंचार के कई रूप हमारे सामने है। आधुनिक प्रौद्योगिकी एवं तकनीक के  सहायता से देश भर की सांस्कृतिक सीमाऐं मिट गई।जनसंचार अब सिर्फ व्यक्ति तक सीमित नहीं रहा,बल्कि मनोरंजन,शिक्षा,चिकित्सा,कृषि,उद्योग,विज्ञान आदि क्षेत्र में जनसंचार माध्यम एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा है। जनसंचार क अभाव में इन क्षेत्रों की अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

यदि किसी व्यक्ति अपने विचारों या सूचना को दूसरे व्यक्ति तक प्रेषित किया जाय तो उसे संचार या संप्रेषण कहते है। जब एक ही स्थान से बहुत से लोगों को एक साथ संबोधित किया जाय तो उसे जनसंचार कहते है। इस प्रकार की संचार व्यवस्था के लिए जो साधन प्रयुक्त किये जाते है उन्हें ‘मीडिया’ कहा जाते है।

प्रसिद्ध दार्शनिक मार्शल मैकलुहान ने मीडिया की व्याख्या करते हुए लिखा है कि ”मीडिया का अर्थ मध्यस्थता करनेवाला होता है जो दो बिंदुओं को आपस में जोड़ने का कार्य करता है व्यावहारिक दृष्टि से जनसंचार एक ऐसा सेतु है जो विभिन्न समूह के श्रोताओं को विचारधारा में जोड़ता है “।1 मीडिया के कई रूप होते है जैसे कि पाठ्य,दृश्य और श्रव्य। समाचार पत्र,रेडियो,टेलीविज़न आदि मीडिया के प्रमुख रूप होते है।मानव और अख़बारों का रिश्ता पुराना है। हमारे आसपास की खबरों से लेकर पूरे विश्व की घटनाओं की जानकारी तक हमें समाचार पत्रों से मिलती है। समाचार पत्र जहाँ पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित थे,वहाँ रेडियो के खोज ने सभी स्तर के लोगों को मनोरंजित किया। टेलीविज़न के खोज जनसंचार के क्षेत्र में एक आंदोलन था।

पिछले दस साल में सोशल मीडिया की लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी है कि,बहुत कम ही ऐसे लोग होंगे जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल न कर रहे हो। सोशल मीडिया के ज़रिये समस्त विश्व हमारे सामने प्रकट होती है। कोरोना के समय में सोशल मीडिया वरदान साबित हुए। जब कोरोना के कब्ज़े में आकर पूरी दुनिया ‘बंद’ हुआ तब सोशल मीडिया मददगार रहा।

आदिम मनुष्य अपने विचारों एवं संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीकों एवं संकेतों का सहारा लिया। तब संचार साधन सीमित थे। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ,समाज में रहकर ही वह अपना विकास करता है। क्रमशः वह भाषा तथा वर्णमाला का विकास किया ताकि अपने लोगों के बीच विचार विनिमय संभव हो। भाषा ने जनसंचार को एक नए धरातल पर ले लिया। आज सिनेमा,रेडियो,टेलीविज़न,इंटरनेट जैसे माध्यमों से जनसंचार का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत हुआ।

मीडिया के बिना किसी भी समाज का विकास असंभव है। प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान डेनियल लर्नर के अनुसार ”आधुनिकता की व्यवस्था ने मीडिया के माध्यम से लोगों के बीच प्रभावी तरीके से मानसिक गतिशीलता को विस्तार दिया है। अतः ये कहा जा सकता कि कोई भी आधुनिक समाज मीडिया के विकास के बिना प्रभावशाली ढंग से काम नहीं कर पाता”I2 समाज के हर क्षेत्र में मीडिया का प्रभाव दृष्टिगोचर है।

लोकतंत्र से तात्पर्य है,लोगों के लिए लोगों द्वारा शासन। लोगों को अपने अधिकारों के प्रति अवगत कराने तथा राजनैतिक मूल्यों की रक्षा आदि ज़िम्मेदारियों को मीडिया अपने कंधे पर लेते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विधायिका,कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के कर्त्तव्य पालन को सुगम बनाने में मीडिया का महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए एडमंड बर्क ने इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा है। शासन के सभी गतिविधियां मीडिया के ज़रिये जनता तक पहुँचते है तथा जनता के इच्छा-आकांक्षाओं तथा उनके मत मीडिया के ज़रिये अधिकारीयों तथा नेताओं तक पहूँचते है। मीडिया शासन की ख़ामियों को दिखाते रहती है। जिससे सामाजिक परिवर्तन होते रहते है।

मीडिया द्वारा संप्रेषित सूचना निष्पक्ष होना चाहिए। लेकिन,आजकल प्रत्येक राजनीतिक दल के अपने-अपने अखबार,टेलीविज़न चैनल,फेसबुक एवं इंस्टाग्राम पेज आदि होते हैं। इसमें आनेवाले खबर निष्पक्ष नहीं होते हैं। इन पक्षधर मीडियावालों ने खबरों की सच्चाई की जगह अमुक राजनीतिक दल की विचारों को पाठक तक प्रसारित करते है। खबर सच्चाई से दूर होते है तथा लोगों के मन में घृणा,स्पर्धा आदि जागृत होते है।

लोकतंत्र के साथ-साथ जनमत निर्माण में मीडिया एवं सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान समय में किसी भी प्रकार की सामाजिक समस्या तथा मुद्दों को मीडिया तथा सोशल मीडिया के ज़रिये अभिव्यक्त करता है तो लोग खुलकर अपने विचारों को व्यक्त करते है। इस तरह जनमत का निर्माण होता है।

देश की आर्थिक,सामाजिक,राजनैतिक,एवं सांस्कृतिक असंतुलन को संतुलित करने का उपाय लोगों को शिक्षित करना है। भारत के कोने-कोने में शिक्षा के महत्व एवं शिक्षा सम्बन्धी योजनाओं का प्रचार मीडिया द्वारा किया जा रहा है। कोरोना महामारी के समय जब विश्व के पूरे विद्यालय एवं महाविद्यालय ‘बंद’ पड़ा रहा तब सभी शिक्षा संस्थाओं ने ऑनलाइन पढ़ाई को अपनाया गया। ऐसी स्थिति में मीडिया वरदान साबित होते है।इसके आलावा स्यास्थ्य,विज्ञान,मनोरंजन आदि सभी क्षेत्र में मीडिया के प्रभाव कायम है।

मानव संस्कृति का निर्माता है। साथ ही साथ संस्कृति मानव को मानव बनाती है।”संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र स्वरुप का नाम है,जो उस समाज के सोचने,विचारने,कार्य करने के स्वरुप में अंतर्निहित होता है। मनुष्य संभवतः प्रगतिशील प्राणी है।”3

संस्कृति के कई सीढ़ियाँ चढ़कर हम ‘मीडिया संस्कृति’ में जी रहे है, विशेष रूप से ‘सोशल मीडिया संस्कृति’। नींद से आँख खुलने से लेकर रात को सोते वक़्त तक हम मीडिया के इर्द-गिर्द घूमते रहते है।

हमारे खान-पान,रहन-सहन,सोच-विचार आदि से लेकर पहनावे तक मीडिया का प्रभाव स्पष्ट है। एक ओर मीडिया के ज़रिये हमें ‘नए ट्रेंड’ के बारे में जानकारी मिलते है तो दूसरी ओर मीडिया कई गलत अवधारणाओं का प्रचार करता है;विशेष रूप से सौंदर्य संबंधी अवधारणाएँ। मीडिया के ज़रिये यह अवधारणा प्रसारित होते है कि,गोरा एवं पतला दिखना ही सौंदर्य की परिभाषा है। इससे प्रभावित कुछ लोग, लोगों के बाह्यरूप के आलोचना करते है। जब यह बॉडीशेमिंग अपने सीमा पार करते है तो लोगों की मानसिक स्थिति को ठेस पहुँचते है।

सोशल मीडिया के आगमन से हमें खुलकर अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर मिला। इसके लिए सिर्फ एक ई-मेल आई.डी की ज़रुरत है। कई लोग इस सुविधा के दुरुपयोग करते है। कई लोग अश्लील,स्पर्धा एवं नफरत फैलानेवाले कमेंट(comment )सोशल मीडिया में छपवाते है। औरतों के कपड़ों की लम्बाई से उनकी संस्कृति के निर्णय करनेवाले लोग खुद अपनी संस्कृति भूल जाते है।

वैश्वीकरण के दौर में भारत में पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण अत्यधिक तेज़ हुआ। इस प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। मीडिया मनोरंजन के साथ-साथ वैश्विक बाजार की स्थापना भी करता है। दर्शक उपभोग की वस्तु देखते है, तत्पश्चात जनरुचि का समरूपण होता है और विज्ञापनों के माध्यम से वह उपभोक्ताओं के पास जाता है। ”भूमंडलीकरण तथा बाज़ारीकरण में मीडिया के अर्थ बदल गए है। आज मीडिया के इस बदलाव में उपभोक्तावादी संस्कृति तथा बाज़ार प्रमुख तत्त्व है जिनके सहारे प्रसारण तथा संचार माध्यम अपनी साख का एक स्रोत देख सकते है इस तरह के बदल रहे सामाजिक परिदृश्य से आनेवाले दिनों में अनेक सामाजिक परिवर्तनों की उम्मीद की जा सकती है ”।4

मीडिया सांस्कृतिक एवं मानव चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है।

निष्कर्ष

मीडिया तथा सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के बीच गहरा सम्बन्ध है। मीडिया के वजह से न केवल लोगों के सोच में परिवर्तन हुआ है बल्कि उसकी जीवनशैली को भी प्रभावित किया है। आज मीडिया का प्रभाव इतना व्यापक हो गया है की उसकी उपेक्षा करना नामुमकिन है। वर्तमान समाज की संरचना मीडिया के आईने में दिखाई देती है। जब भी मीडिया का नाम लेती है तो उसे समाज में जागरूकता पैदा करनेवाले साधन के रूप में देखा जा सकता है। समाज को सच्चाई का दर्पण दिखाना ही मीडिया का कर्त्तव्य है। मीडिया को अपनी नैतिक ज़िम्मेदारियों का बोध होना चाहिए।

सन्दर्भ सूची :

1.McLuhan,Marshall,(1964)Understanding Media:The Extension Of Man,Mc Graw Hill,Critical Edition,Gingko Press

2.Singh,Jitendra(2008)Media And Society,Summit Enterprises,New Delhi

3.https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF#:~:text=%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%88,%27%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%27%20%E0%A4%B9%E0%A5%8B%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A5%A4     

4.शर्मा,कुमुद(2003)भूमंडलीकरण और मीडिया,ग्रन्थ अकादमी,नई दिल्ली

5.वर्मा,डॉ.सुजाता (2019 )मीडिया -साहित्य और संस्कृति,विकास प्रकाशन,कानपुर

6.जोशी,रामशरण(2008)मीडिया विमर्श,सामायिक प्रकाशन,नई दिल्ली

7.प्रवीर,राकेश (2020)मीडिया का वर्तमान परिदृश्य ,ज्ञान गंगा प्रकाशन,नई दिल्ली