June 2, 2023

69. वृध्दावस्था विमर्श -डॉ. सुनीता राठौर

By Gina Journal

Page No.: 494-502

शोध – आलेख- वृध्दावस्था विमर्श

डाॅ. सुनीता राठौर

सहायक प्राध्यापक हिन्दी

शासकीय एम.एम.आर. स्नातकोत्तर

महाविद्यालय चाम्पा

            वृध्द विमर्श का अर्थ है, वृध्दावस्था की परिस्थितियों, घटनाओं आदि का चिन्तन करना अर्थात् वृध्दावस्था की समस्याओं को समझकर उनके लिए उचित समाधान करना। आज के युग में वृध्द विमर्श अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि आज हम इतने व्यस्त हो गए है कि हमारे पास बुजुर्गो को समझने का समय ही नहीं है। इसका मुख्य कारण संयुक्त परिवारों का टूटना है। इसी कारण हम बुजुर्गो की तरफ ध्यान नहीं दे पा रहे है। और न ही उनके अनुभव व ज्ञान का लाभ उठा पा रहे है। वृध्दावस्था बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापे तक के अनुभवों तथा गुणों का पुंज होता है। आज का समाज वृध्दावस्था को समस्या की दृष्टि से देखता है और उन्हें बोझ समझता है। समाज में उचित सम्मान न मिलने के कारण वृध्द व्यक्तियों का जीवन निराशा की तरफ जा रहा है।

      वृध्दावस्था पर एक कवि ने कहा है –

            तरू हवैरहयो करार कौ, अब करि कहा करार।

            उर धरि नंद कुमार कौ, चरण-कमल सुकुमार।

अर्थात् हे वृध्द मनुष्यों अब तुम नदी किनारे के वृक्ष हो गए हो। तुम अब लोगो के साथ और कितनी नई-नई प्रतिज्ञाए करते रहोगे कि हम यह करेंगे और वह करेगें। अब तुम्हें चाहिए कि तुम संसारी धंधो को छोड़कर श्री कृृष्ण के सुकोमल चरणों का अपने हृदय में ध्यान करो।

            वृध्द या बूढ़ा कहने पर हमको ऐसे लगता है किसी का सफेद बाल, झड़े हुए दांत, आँख कमजोर, झुर्रीदार चेहरा (किसी की तस्वीर) हमारे सामने दिखाई देने लगता है। हमारे हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि केशवदास का यह कहा खूब प्रचलित है – ‘केशव केशन अस करी जस अरिहु न कराय। चंद्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि-कहि जाय’। इसका मतलब यही हुआ न कि चंद्रवदन मृगलोचनी वनिताओं को आकृष्ट करने की सामर्थ्य से चूक जाने का नाम बुढ़ापा हैं फ्रांसीसी लेखक अनातोले फ्रांस का यह कथन है – काश! बुढ़ापे के बाद जवानी आती!

            प्राच्य और पाश्यात्य दोनो परंपराओं में वृध्द या वृध्दा वस्था के प्रति सम्मानजनक भाव रहा है। इतिहास और साहित्य दोनो ही इस तथ्य के साथी है कि बूढ़े बुजुर्गो के अनुभवो-परामर्शो से लाभ उठाने वाली युवा पीढ़ी ही नव निर्माण कर पाती है जबकि इसके विपरीत मार्ग पर चलने वाली युवा शक्ति विध्वंस की वीरानगी छोड़ जाती है। इसके प्रमाणस्वरूप हम महाभारत और रामायण की कथाओं को देख सकते है। देखिए महाभारत का एक प्रसंग महाभारत में एक तरफ भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, विदुर जैसे महान अनुभव सिध्द ज्ञानी, तो दूसरी तरफ जवानी की जोश दिखाते दुर्योधन, दुःशासन, कर्ण आदि जैसे युवक। कौरवो को बहुत समझाया गया, कि पांडवों से युध्द करने में अहित ही अहित है, परंतु कौरव नहीं माने, परिणाम क्या हुआ, महाविनाश, न वृध्द बचे, न जवान बचे, सिर्फ पांच भाई पांडव बचे। भीष्म पितामह का महत्व तब दिखाई देता है, जब वे शर-शय्या पर पड़े हुए अपने अनुभवों के आधार पर युध्दिष्ठिर को नीति, शांति, अहिंसा, राजधर्म आदि के संबंध में उपदेश देते है, जिन्हे युध्दिष्ठिर सारी बातों को समझकर राज धर्म का निर्वाह करते है।

            अब हम रामायण में एक, दो बातें जानने का प्रयास करते है, कि राम जी ने अपने वृध्द पिता की किस प्रकार से आज्ञा का सम्मान करते हुए वनवास स्वीकार किया। वनवास स्वीकार कर राम जी ने अपने परिवार को कलह और विघटन से बचाया, तो दूसरी ओर अत्याचारियों का दमन कर सार्वजनिक हित के कार्य सम्पन्न किया। इसी राम कथा का एक पात्र श्रवण कुमार अपने अपने वृध्द माता-पिता की सेवा करके आदर्श पुत्र का गवाह उपस्थित किया।

            यदि हम वृध्द और युवा जिसे पुराना और नया भी कह सकते है, के बीच जो संबंध रहा है, वह परस्पर संवाद का रहा है। वृध्दावस्था को परंपरा और युवावस्था को प्रगति माने तो परंपरा द्वारा समाज आगे बढ़ सकता है, इसके संबंध में आचार्य नरेन्द्र देव का एक निबंध है, ‘युवको का समाज में स्थान’ इस निबंध में आचार्य नरेन्द्रदेव ने यह बताने का प्रयास किया है, कि भरतीय समाज में वृध्दों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होने कहा है ‘‘सामान्यतः उन समाजो में जहां स्थिरता आ गई है और जहाॅ विकास की गति अत्यंत मन्द है, वृध्दों की सबसे, अधिक प्रतिष्ठा होती है। ऐसे समाज में वृध्दों का ही नेतृत्व होता है और उनका अनुभव ही समाज का मुख्य आधार होता है। चीन और भारत के समाज इसके उदाहरण है। हमारे पूर्वजों का कहना है, कि वह सभा ही नहीं है, जहाॅ वृध्द नहीं है।’’ इससे हमको पता चलता है, कि समाज में वृध्दों का कितना अस्तित्व है।

प्रेमचंन्द की बूढ़ी काकी कहानी में काकी की दयनीय दशा पर विमर्श किया गया है। जब तक सम्पत्ति काकी के नाम रहती है तब तक बुधिराम और रूपा काकी का सम्मान करते है। जैसे ही काकी अपनी पूर्ण सम्पत्ति उन्हे उपहार में देती है वह उसके साथ बुरा व्यवहार करने लगते है। केवल एक छोटी लड़की ही उससे दयालुता पूर्ण व्यवहार करती है, जैसा कि हम जानते है कि ‘‘बुढ़ापा बचपन का पुनरागमन होता है।’’ जिस प्रकार बचपन में बालक का मन चंचल होता है, उसी प्रकार वृध्दावस्था में भी खाने की चीजो के लिए मन तरसता जाता है। ऐसे भावपूर्ण दृश्य प्रेमचन्द की ‘बूढ़ी काकी कहानी में देखेजा सकते है। बुध्दिराम और रूपा बूढ़ी काकी को पेटभर भोजन भी नहीं देते थे और दुत्कारते रहते है। बुध्दिराम के बेटे के तिलक कार्यक्रम के बाद बूढ़ी काकी स्वादिष्ट भोजन के लिए झूठे भोजन को खाने लगती है। रूपा का दिल पसीज जाता है, और अपने किए गए व्यवहार पर पछतावा होता है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मानवता के व्यवहार को जगाने का प्रयास किया है। लेखक ने इस कहानी में बूढ़ी काकी को माध्यम बनाकर समाज के वृध्दों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार की तरफ ध्यान आकर्षित करवाया है। बूढ़ी काकी समाज में व्याप्त वृध्द समस्याओं का यथार्थ चित्रण है। इस प्रकार साहित्यकारों ने अपने लेखन को माध्यम बनाकर वृध्दों के जीवन में फैले अंधकार और निराशा पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है।

            वृध्दावस्था की समस्या पर प्रकाश डालते हुए उषा प्रियवंदा ने भी ‘वापसी’ कहानी में गजाधर बाबू को माध्यम बनाकर सेवानिवृत्ति के बाद व्यक्ति के कटु अनुभवों को चित्रित करने का प्रयास किया है। इस कहानी में गजाधर बाबू बड़े उत्साह के साथ नौकरी से सेवानिवृत्ति होकर अपने घर परिवार में लौटते है। परन्तु परिवार में उनकी वापसी आधुनिक युग में टूटते सम्बन्धों के साथ एक वृध्द की लाचारी को व्यक्त करती है।

            गजाधर बाबू परिवार के साथ सम्मान तथा स्नेह से समय बिताना चाहते है। परन्तु कुछ समय के बाद घर में उनकी उपस्थिति खटकने लगती है। गजाधर बाबू अपने ही घर में परायापन सहन नहीं कर पाते। नयी नौकरी पर जाने का फैसला करते है। इसी कहानी के माध्यम से वर्तमान युग में बिखरते परिवार तथा मूल्यों के विघटन की समस्या को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। इन्होने अपने लेखन कार्य से वृध्दो की समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया है। समाज में वृध्द विमर्श को समाज की महत्वपूर्ण कड़ी का रूप देने का पूरा प्रयत्न  साहित्य मे किया है। अनेक कहानियों तथा उपन्यासों में वृध्दो की समस्याओं को उठाया गया है और पूर्ण रूप से समाज में वृध्दोें को स्थान दिलाने का प्रयास किया गया है।

‘वापसी’ कहानी में गजाधर बाबू जब नौकरी से सेवानिवृत्ति होकर घर आते है, तो यह सोचकर आते है, कि मै अभी तक अकेला था, पर अब मै अपने परिवार के साथ रहूॅगा, उसका नौकर गनेशी बेसन का लड्डू उसके बैग मे रख देता है। घर आने पर गजाधर बाबू किसी बात पर अपनी बेटी बसंती, और अपने बेटे को किसी बात पर रोक टोक करते है, ये बाते उनके बेटी बेटा को पसंद नहीं आता गजाधर बाबू अपने परिवार में घुल मिलकर रहना चाहते थे, परंतु परिवार वाले उनके समक्ष चुप हो जाते है, ये सारी बाते गजाधर बाबू को खटकने लगी। तब गजाधर बाबू फिर नौकरी के लिए प्रयास किये और उन्हे नौकरी लग गई फिर गजाधर बाबू ने कहा कि – ‘‘मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गई है। खाली बैठे रहने से चार पैसे हाथ में आये वही अच्छा है। उन्होने तो पहले ही कहा था मैने मना कर दिया था।’’ और उसके साथ उसकी पत्नी जाने से मना कर देती है। इस प्रकार वापसी कहानी में वृध्द गजाधर बाबू परिवार के साथ रहने के बजाय नौकरी में आ जाते है यहाॅ पर एक वृध्द की दुर्दनीय अवस्था का चित्रण किया गया है। उषा प्रियवंदा ने ‘वापसी’ कहानी के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है, कि हमें अपने बुजुर्गो का पूरा ध्यान देना चाहिए, तथा आज के युवा पीढ़ियों को जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए।

भीष्म साहनी की ‘चीफ की दावत’ कहानी वृध्दा, शामनाथ की माॅ है शामनाथ अपनी तरक्की के लिए माॅ को जरिया बनाता है, माॅ वृध्द है, बाल बिखरे है, आखों से धुधला दिखाई देता है, कानो से सुनाई नहीं देता, रात दिन माला जपती रहती है और प्रभु के नाम का रटन करती है। तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छुक माॅ मन की अभिलाषा व्यक्त नहीं कर पाती, बेटे की तरक्की के लिए लोकगीत गाकर चीफ को खुश करती है, आँखों से कम दिखाई देने पर भी बेटे की तरक्की के लिए चीफ को फुलकारी बना देने के लिए तैयार हो जाती है, आज मनुष्य बहुत स्वार्थी हो गया है समर्थ होने पर भी बुढ़े माॅ-बाप उसे बोझ लगते है, पाश्चात्य सभ्यता की अंधी दौड़ में वह अपने कर्तव्य और संस्कारों को भूलता जा रहा है,जो माॅ शामनाथ को हीन, तुच्छ और हॅसी का पात्र प्रतीत होती थी, जिसको आधुनिकता का ज्ञान नहीं था, वहीं माॅ अंत में ‘चीफ की दावत’ में अपने बेटे का भला कर देती है और उसकी फुलकारी ही उसके बेटे की पदोन्नति का रास्ता बन जाती है।

शामनाथ ने चीफ को पंजाब की किसी चीज का सेट (फुलकारी) भेंट करने का वचन दिया। तभी उसी समय माॅ ने हरिद्वार जाने का जिक्र किया, तो शामनाथ भड़क उठा और बोला- ‘‘तुम मुझे बदनाम करने पर तुली हुई हो।’ मैने साहब को तुम्हारे हाथ की फुलकारी भेंट करने का वचन दिया है। उस वचन का क्या होगा ?’’ और कहता है, माॅ मै फुलकारी दूॅगा तो चीफ मुझे तरक्की देंगे। माॅ इस बात को सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। बोली, ‘‘यदि ऐसा है, तो मै जैसा होगा, फुलकारी बना दूगी।’’

इस प्रकार ‘चीफ की दावत’ भीष्म साहनी द्वारा रचित कहानी है। इसमें बेटे द्वारा माॅ की भावनाओं को रौंदकर अपनी पदोन्नति पाने की स्वार्थपरता पर मार्मिक व्यंग्य किया गया है।

प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ कहानी बहुत ही सर्वोत्कृष्ट है, इस कहानी में एक बालक के बाल मनोविज्ञान के बारे में बताया गया है। बालक का नाम हामिद है, और दादी माॅ का नाम अमीना है। इसमें यह बताया जा रहा है कि बालक का प्यार दादी माॅ के प्रति और दादी माॅ का प्यार अपने पोते के प्रति किस प्रकार है। यदि ऐसे पोते और दादी का रिश्ता रह जाए तो हमारे समाज में वृध्दावस्था की कोई समस्या ही नहीं रहेगी। ‘ईदगाह’ कहानी के बारे में हम थोड़ा सा देखने का प्रयास कर रहे है।

कहानी का कथानक माता पिता विहीन बालक हामिद के इर्द-गिर्द घूमता है, जो अपनी दादी माॅ अमीना के साथ रहता है। दोनो अत्यंत निर्धनता में जीवन जी रहे है। ईद का त्यौहार आ गया है। अन्य बच्चों की भाॅति हामिद भी रोमांचित है। उसे ईदगाह जाने और मेला देखने की उत्सुकता है। लेकिन अमीना चिंतित है, क्योंकि उसके पास हामिद को देने के लिए पैसे नहीं है। हामिद के पहनने के लिए न अच्छे कपड़े है और न उसके पैर में जूते है। फिर भी अमीना उसे तीन पैसे देती है। हामिद अपने साथियों के साथ मेला देखने जाता है। उसके साथियों के पास काफी पैसे है। वह मेले मे झूला झूलते है मिठाईयाॅ खाते है और अपने लिए खिलौने खरीदते है, लेकिन हामिद दूर खड़ा उनकी तरफ देखता रहता है। वह उन चीजों पर अपने तीन पैसे खर्च नहीं करना चाहता। अंत में हामिद लोहे का एक चिमटा खरीदता है। उसे लगता है, कि यह चिमटा उसकी दादी के काम आएगा और रसोई में रोटिया सेंकते हुए उसकी उंगलियां नहीं जलेगी।

घर पहुॅचकर हामिद ने दादी को बताया कि उसने मेले में चिमटा लिया है। ‘‘अमीना ने छाती पीट ली, यह कैसा बेसमझ लड़का है, कि बिना कुछ खाये-पिये मेले से चिमटा खरीदकर लाया है।’’ हामिद ने अपराधी भाव से कहा – तुम्हारी अंगुलियाॅ तवे से जल जाती है इसीलिए मैने इसे लिया। इसके बाद दादी का गुस्सा ठंडा हो गया और रोने लगी और हामिद को दुआएॅ देने लगी। इस प्रकार ‘ईदगाह’ कहानी में दादी माॅ और पोते के प्यार के बारे में बताया गया है। आज के हमारे इस परिवेश में दादी माॅ और पोते इस प्रकार रहें तो वृध्दावस्था की समस्या नहीं रहेगी।

इस प्रकार चार पांच साल के एक छोटे बच्चे ने अपनी इच्छाओं को जब्त करके अपनी दादी माॅ के प्रति जिस स्नेह, सद्भाव व विवेक का परिचय दिया, वह पाठकों के हृदय को द्रवित कर देता है।

दादी माॅ अमीना है जो अपने पुत्र तथा पुत्रवधू की मृत्यु के बाद अपने पोते हामिद का पालन पाषण कर रही है। वह लोगो के कपड़े सिलकर तथा दूसरे छोटे-मोटे काम करके अपना और अपने पोते का गुजारा कर रही है। अपने पोते को सभी सुख -साधन न दे पाने की उसकी लाचारी पाठकों के हृदय को द्रवित कर देती है।

‘सूखी-डाली’ एकांकी में उपेन्द्रनाथ अश्क ने संयुक्त परिवार के बारे में बताया है। परिवार का मुखिया दादा मूलराज ने अपने परिवार को अत्यंत सूझबूझ एवं बुध्दिमानी से एक वट वृक्ष की भांति एकता के सूत्र में बांध रखा है। दादाजी के इस संगठित परिवार में छोटी बहू बेला के आ जाने से अशांति का वातावरण उपस्थित होने लगता है। परंतु दादाजी की सूझबूझ एवं व्यवहार कुशलता ने पूरे परिवार को एकता के सूत्र में बांधे रखा। सबकी मानसिकता में बदलाव और कोई भी डाली न तो सूखी और न ही टूटकर अलग हुई। यदि परिवार का मुखिया दादा मूलराज जैसे दूरदर्शी, बुध्दिमान तथा व्यवहार कुशल हो तो भी परिवार के सदस्यों के विचारों एवं स्वभाव ने भिन्नता होते हुए भी वे सब एकता की डोर से बंधे रहते है।

छोटी बहू बेला बाद में समझदार हो जाती है, और कहती है-‘‘दादाजी आप पेड़ के किसी डाली का टूटकर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप यह चाहेगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाल सूखकर मुरझा जाए ?’’ यह कहकर वह सिसकने लगती है। उसका कहने का आशय है कि, जिस प्रकार पेड़ की डाल पेड़ से अलग होकर सूख जाती है, उसी प्रकार परिवार से अलग होकर वह भी ‘सूखी-डाली’ की तरह मुरझा सकती है। अतः वह ‘सूखी-डाली’ नहीं बनना चाहती। इस प्रकार परिवार एक सूत्र में बंध जाता है। यह एकांकी वर्तमान पीढ़ी के लिये आज भी प्रासंगिकता है।

निष्कर्ष – वृध्द विमर्श आज के युग की आवश्यकता है, क्यों कि आज वृध्दों को बोझ मानकर वृध्दाश्रमों में छोड़ दिया जाता है। इसी कारण युवावर्ग वृध्दों के अनुभवों व गुणों का लाभ नहीं उठा पा रहा है और पतन के पथ पर बढ़ जाता है। साहित्य के क्षेत्र में वृध्द और युवा आमने-सामने की अपेक्षा सह-अस्तित्व का परिदृश्य होता है। साहित्यकार नया रचने में पुराने रचनाकारों के अनुभवो का सृजन करते है। वृध्द विमर्श को आधार बनाकर हम समाज में व्याप्त वृध्दों की समस्याओं की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकते है। वृध्द व्यक्ति को जीवन की निराशा में न धकेलकर उन्हें, जीवन को उत्साह से जीने का अधिकार दिया जा सकता है। वृध्दों के अनुभवों व संस्कारों से युवावर्ग के जीवन मूल्यों में हो रहे विघटन को रोका जा सकता है। आज मूल्यों के विघटन के कारण युवावर्ग अलग होता जा रहा है। यदि वृध्द विमर्श पर हम अच्छे से ध्यान दे तो वृध्दों की समस्याओं को उजागर करके लोगों के खोया हुआ सम्मान तथा उनके प्रति प्रेम फिर से आ जाए, इससे लुप्त हुए मानव मूल्य समाज में फिर से लौट आएं।

आज का समाज जाने-अनजाने विनाश की ओर अग्रसर होता जा रहा है। इसका मूल कारण नैतिक पतन है, मूल्यों की अवहेलना है। वह मूल्य वह नैतिकता जिसका पाठ हमारे बड़े बुजुर्ग पढ़ाते थे, आज हम उनकी अवमानना करते है, अवहेलना करते है जो उचित नहीं है। हमें समझने की आवश्यकता है, उनकी अहमियत को यही हमारे शोध का उद्देश्य है। हमारा यह प्रयास है, कि दिशाहीन होती जा रही आज की युवा पीढ़ी अपने बड़े-बुजुर्गो का सम्मान करें और उनके द्वारा दिया गया अनुभव से संचित ज्ञान को पाकर अपने जीवन को सरल ही नहीं, सार्थक भी बना सकें।

संदर्भ-ग्रंथ सूची

विमर्शः साहित्य में वृध्द विमर्श – नेट से

  • हिन्दीं के श्रेष्ठ निबंध एवं प्रयोगगत व्याकरण – प्रधान संपादक – डाॅ. सत्यभामा आड़िल, सम्पादक- डाॅ. नलिनी श्रीवास्तव, पृ.सं. 7 विकल्प प्रकाशन रायपुर (छ.ग.)
  • बूढ़ी काकी-मुशी प्रेमचंद्र
  • आधुनिक हिन्दी कहानी-सम्पादक धनंजय वर्मा, वापसी कहानी पृ. सं. 110 मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर मार्ग, भोपाल- 462-003 द्वारा प्रकाशित
  • नवबोध- परीक्षा सार, हिन्दी साहित्य, बी.ए. प्रथम वर्ष, द्वितीय प्रश्नपत्र नवबोध शिक्षा समिति द्वारा सम्पादित, पृ.सं.- 93, नवबोध प्रकाशन 7, समता काॅलोनी, रायपुर (छ.ग.)
  • नवबोध- परीक्षा सार, आधार पाठ्यक्रम (हिन्दी भाषा), बी.ए. प्रथम वर्ष, पृ.सं. 50 नवबोध शिक्षा समिति द्वारा सम्पादित, नवबोध प्रकाशन 7, समता काॅलोनी, रायपुर (छ.ग.)
  • बी.ए., बी.काम., बी.एस-सी. एवं बी-एच-एस-सी. तृतीय वर्ष 2023 परीक्षा हेतु, (आधार पाठ्यक्रम) हिन्दी भाषा (प्रथम प्रश्न पत्र) पृ.सं. 16 प्रकाशक- अजय प्रकाशन, रायपुर (छ.ग.)

 

डाॅ. सुनीता राठौर

सहायक प्राध्यापक हिन्दी

शासकीय एम.एम.आर. स्नातकोत्तर

महाविद्यालय चाम्पा

मो. नं. – 99079़87060