सागर: साझा परिवार – डॉ. आरती ‘लोकेश’
सागर: साझा परिवार मैं हूँ एक साझा परिवार! रचना मेरी सागर अपार। साथ जोड़ के ऐसे रखता, रसभरे दाने मध्य अनार। मैं हूँ एक … … जो जाता है जाने देता, लौट के आए आने देता। टकरा लौटी लहरों को फिर, चूम सहलाता बारंबार। मैं हूँ एक … … रत्न निधि सहेज के रखता, मेहनत करने वाले को देता। बैठ किनारे देखने वाले, पा जाते […]