May 8, 2023

11. ‘छोटा किसान’ : किसान जीवन यथार्थ के दस्तावेज़ – अंजू 

By Gina Journal

Page No.: 77-82   

 ‘छोटा किसान: किसान जीवन यथार्थ के दस्तावेज़ – अंजू 

समकालीन हिंदी कहानी का आविर्भाव आधुनिक काल में ही हुआ था तब तक कहानी अपनी शैशवावस्था में थी उसे प्रौढावस्था तक ले जाने का कार्य भारतेंदु हरिश्चंद्र, राधाचरण गोस्वामी, रामचंद्र शुक्ल आदि ने की । यह आम जनता की कहानी है इसमें व्यक्ति वैचित्र्य का अंकन  की अपेक्षा जनसामान्य की परिवेश,वातावरण एवं उनकी समस्याओं को उभारने की विशेष कोशिश की गई हैं । विविध विमर्श, विविध प्रश्न, विविध समस्याएं, विविध विषय समकालीन कहानी के केन्द्र में आ गई हैं , इनमें कुछ नया एवं गतिशील विषय है किसान का। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल आधार है किसान। किसान को अलग अलग शब्दों में परिभाषित किया गया है – किसान वह व्यक्ति है जो कृषि या खेती करता है।,  वह खेती बारी का काम करता है। , खेतों को जोतने, उनमें बीज बोने, होने वाली फसल आदि का काम करते है। इस तरह देखे तो समकालीन कहानी में मुख्य रूप से किसान जीवन की अनुभूति दिखाई पड़ता है क्योंकि आज के समय की सबसे बडी त्रासदी किसान लोग ही झेल रहे हैं।

भारतीय संस्कृति का पहचान है कृषि, जो हमारे आर्थिक,सामाजिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम रही है। जब से मानव अपने जीवनयापन के लिए खेती का आरंभ किया तब से किसान लोग अपने खाद्य क्षेत्र का प्रमुख आधार बन गया । इसलिए महात्मा गांधी ने किसानों को ‘भारत की आत्मा’ माना था ।लेकिन 1990 के बाद देखें तो पता चलता है कि भूमंडलीकरण का प्रभाव किसान एवं कृषि का ढांचा बदल दिया। परंपरागत कृषि रीति बदलने से कृषि का नियंत्रण किसान नहीं किसी अन्य लोगों ने कर रहे हैं। साथ ही बीज,कीटनाशक,खाद आदि की मूल्य बढ़ने से किसान धीरे-धीरे अपनी जमीन से बेदखल कर दिया गया और उसकी हालत और भी बिगड़ने लगी। अपनी ओर होनेवाले अन्याय एवं अत्याचार को किसान को आज भी विरोध नहीं कर पा रहे हैं।

अन्न किसानों की बड़ी तपस्या एवं परिश्रम का फल है जिसके प्रत्येक कण में उसके शक्ति और स्वेद बूँदें समाहित रहती है। लेकिन किसानों को जितना महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पा रहा है। इनको हमेशा बीज के लिए, उर्वरक के लिए, जुताई के लिए , बिक्री के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। इस तरह के किसान जीवन यथार्थ को आधार बनाकर लिखने वाले साहित्यकार हैं जयनंदन । जिन्होंने भारतीय संस्कृति को अच्छी तरह तरह  पहचान लिया है अस्तु उनके रचनाओं में भारतीय जनजीवन का समग्र चित्रण मिलता है । जयनंदन द्वारा लिखित कहानी है जो ‘छोटा किसान’ (13 सितंबर 2000) जो छोटा किसान कहानी संग्रह में संकलित हैं। इस  कहानी का मूल पात्र है दाहू महतो जो अपनी गांव में खेती करके जीवनयापन करते हैं । अपनी मिट्टी एवं खेत से उसे इतना लगाव है जितना गांव में किसी अन्य किसानों को नहीं । रचनाकार ने यहां दाहू महतो को छोटा किसान की रूप में चित्रित किया है क्योंकि सामाजिक व्यवस्था के अनुसार हमें किसानों का तीन  रुप मिलता  है -धनिक किसान, मध्यम किसान, और छोटा किसान । छोटा किसान वह है जिसके पास कम भूमि होता, छोटी उपकरणों से तन तोड मेहनत करता है, खेती उसका मुख्य आय होता है और उनके खेतों में उत्पादित उत्पन्न भी कम होती है। यहाँ छोटा किसान के रूप में चित्रित दाहू भी भावात्मक रूप से खेती से जुड़े हुए हैं और इसमें उसका अत्यधिक ध्यान होता है।

भारत में कृषि संबंधित अनेक सुविधाएं हैं लेकिन कृषि उत्पादन बढ़ाना सिर्फ एक भ्रम है, इससे सिर्फ बडे जोत वाले किसान को ही लाभ मिलता है। कम भूमि वाला किसान भूमि  का उत्पादन बढ़ाने पर भी उसे अधिक आय नहीं मिलता  और परिवार का भरण-पोषण  भी अधूरा हो जाते हैं। इसलिए कृषि कार्य के साथ किसी अन्य काम करने के लिए वे मजबूर हो जाते हैं । आज के किसान अपने मूल खेती, किसानी, कृषक धर्मों को छोड़कर पलायन करने में विवश हैं । कठिन श्रम करने पर उसे अपने परिवार वालों के उदर पूर्ति भी सही ढंग से नहीं कर पाते। प्रस्तुत कहानी में दाहू के बेटे ने उससे कहता  है कि ” अब खेती-बाड़ी में हम छोटे किसानों के लिए कुछ नहीं रखा है बाऊ….. घर-खेत बेचकर हमें शहर जाना ही होगा । सोचने-विचारने में हम बहुत टाइम बर्बाद कर दिया।”

आधुनिक युग टेक्नोलॉजी या विकास का युग है इसलिए मनुष्य यंत्रों के बीच रहकर यंत्र सा जीवन बिता रहे हैं। संबंधों में संवेदन शून्यता भर गई हैं  यह संवेदन शून्यता कृषक परिवार में भी देखा जा सकता है। कहानी में आने वाले अन्य पात्र हैं दाहू का बड़ा भाई लाछो महतो जो गांजा-भांग और ताड़ी के लत के पीछे पडे है। उन्होंने अबोध अवस्था में अपने भाई बेला बाबू को सारी खेत भेजते हैं और बेला अपनी जमीन को बड़ा करके चले जाते हैं। लाछो  अपने भाईयों की परवरिश के लिए खुद व्याह  तक नहीं किया था  उसे यह विश्वास था कि बेला बाबू पढ़ लिखकर काबिल आदमी बन जाए तो उसे सहायता मिलेगी। लेकिन बेला अपनी शादी के बाद कमाई अपनी ही बाल बच्चों तक सीमित करना चाहते है। आधुनिक युग का स्वार्थ मनोभाव उसमें देख सकता है।अपनी खेत में ट्यूबवेल होते हुए भी भाई दाहू के खेतों के लिए पानी देने में वह तैयार नहीं होते।जब लाछो नशे में अबोध होकर रास्ते में पड़ा था तब बेला घृणा की दृष्टि से उसे देखकर चले जाते हैं। यहां अपनों को भी नज़रंदाज़ करके  स्वार्थ जीवन बिताने वाले को देख सकते है।

नई तकनीक कृषि विकास के लिए अनेक सुविधाएं उपलब्ध कराती है लेकिन इसकी सुविधा सिर्फ बडे बडे किसानों  को ही मिलते हैं छोटे किसान तक कोई सुविधाएं पहूंचता भी नहीं और उसकी खेती में कोई सुधार भी नहीं है । इसमें पहले आते हैं सिंचाई की समस्या। प्राकृतिक रूप से सिंचाई करने के लिए कुएं, तालाब आदि है और पानी के लिए उसे वर्षा पर भी निर्भर करना पड़ता हैं।लेकिन अब सभी ओर ट्यूबवेल दिखाई पडता हैं वह सिर्फ बड़े जोत वाले किसानों के खेतों में ही दिखाई पड़ता हैं । लेकिन वे लोग इससे दूसरों को सहायता पहूचाने नहीं चाहते, उसे दूसरों के प्रति ही नहीं अपनों के प्रति भी कोई संवेदना नहीं है। कहानी का एक अंश है जहां दाहू बताते हैं कि ” गांव में सात किसान है पंपवाले, जिन्हें वर्षा होने ही कोई खास परवाह नहीं इनकी पास ट्यूबवेल का पानी है, परंतु आंखों में पानी नहीं हैं।”

आजादी के बाद लगभग सभी सरकारों ने औपनिवेशिक कानून का लाभ लेते हुए बांध,फैक्ट्री, इमारतें आदि के नामों पर किसानों से अपनी जमीन है हड़प लेते हैं। किसानों को गरीबी और भूखमरी में जीने के लिए मजबूर कर दिया है। भूमंडलीकरण किसानों की जीवन में नकारात्मक एवं असंतुलित परिवर्तन ले आते हैं और धीरे-धीरे उनके अस्तित्व को समाप्त करना चाहते हैं इसके विरोध में दाहू कहते हैं कि ” जब पैदावार नहीं होगी तो एश-मौज क्या लोग खाक करेंगे। अन्न  बदले क्या सिमेंट,लोहे,कपडे और प्लास्टिक खाएंगे ? “भारतीय किसान आर्थिक संकट में जूझ रहे हैं अपने गांव को छोड़कर दूसरी देश में जाने के लिए वह तैयार हो जाते है ।

 किसानों के दुर्दशा के प्रमुख कारण है बढ़ता कर्ज।सदियों से हम देखते आ रहे है कि किसान पर यह कर्ज हमेशा बोझ सा बना हुआ है। एक बार इसमें फंँस जाता  तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है । प्रेमचंद के पूर्व की कहानियों से लेकर आज तक यह स्थिति हमारे आँखों के सामने ही मौजूद  है। इसलिए हम कह सकते हैं कि एक किसान का जन्म कर्ज में ही होता है वह कर्ज पर ही जीता है और कर्ज  में उसका अंत भी हो जाता है यह चक्र के भांति चलता रहता है।  छोटा किसान कहानी में भी देख सकते है कि किसान अपनी ज़मीन को रोहन करके पूंजीपतियों से कर्ज़ लेते हैं। किसानों के लिए ज़मीन उसके आत्मा है, अन्न है, आश्रय है वह कभी भी उसे खोना नहीं चाहते हैं। इसलिए रोहन करने का मतलब यह निकलता है कि अपनी मिट्टी के साथ वह भी खत्म हो रहा है। कई अवसर ऐसे आ जाता है कि उसके पास बेचने के लिए कुछ भी नहीं है  उस वक्त निस्सहायता से वह खेत को भेजते हैं। कहानी के अंत तक आने से हम देख सकते हैं कि लाछो अपनी मिट्टी बेचकर पैसा लेते है क्योंकि उसे दाहू को थाने से छुड़वाना था।

 कृषि भारतीय संस्कृति का आधार बिंदु है और किसान भारत का रीड की हड्डी । जिसे दूसरा ईश्वर या दूसरा जीवन दाता कहा जा सकता है। जो अपनी कठोर परिश्रम से अन्न की उत्पादन करते हैं और पूरी मानवता को खिलाते हैं। उसी किसान को अब विस्थापन का शिकार होना पड़ता हैं। परिस्थिति वश वे विस्थापित हो जाते हैं। छोटा किसान कहानी में दाहू भी विस्थापन का शिकार बना है। उनकी हालत देखकर गाँववाले कहते हैं कि ” जिस आदमी को एक दूर ज़मीन बेचने में भी खून सूखने लगता था, आज वह अपनी पूरी घर-ज़मीन बेचने का ऐलान कर रहे हैं।”

इस प्रकार प्रस्तुत कहानी के माध्यम से कहानीकार किसान जीवन के यथार्थ को हमारे सामने  प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। स्व. लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान ‘ नारा दिया यह एकदम सार्थक है क्योंकि जवान लोग सीमा पर रहते हुए हमारी रक्षा करते हैं और किसान खेत पर मेहनत करके हमारी भूख मिटाते हैं। सीमा पर जवान है तो सीवान पर किसान । किसानों को इतना महानता होते हुए भी उनकी हालत बद से बदतर हुए हैं। हमें पता है कि भोजन के बिना जीवित रखना हमारे लिए असंभव सी नहीं नामुमकिन है लेकिन छोटा किसान कहानी से हमें यह जानकारी मिलता है कि किसान लोग अपनी मजबूरी के कारण गांव छोड़ कर चले जाते हैं। उसके जाने से भी खेती भी समाप्त हो जाता है और खाने की सामग्री भी । बिना किसान वाला देश हमारी भोजन व्यवस्था में व्यवधान उत्पन करने में का कारण बन जाता है। इसलिए किसानों के बारे में सोचना अनिवार्य है।

 

संदर्भ ग्रंथ सूची

जयनंदन – छोटा किसान

डॉ ब्रह्मदेव – कृषि का व्यापारीकरण एवं ग्रामीण विकास

नीलमणि शर्मा – भारतीय किसान दशा और दिशा

सं. नरेंद्र मोहन – समकालीन हिंदी कहानियां

सच्चिदानंद सिन्हा – भूमंडलीकरण की चुनौतियाँ

https://www.rachanakar.org/2016/06/2016-2_22.html?m=1

https://www.hindijournal.com/archives/2023/vol9/issue1/9003

अंजू सी

शोध छात्रा

श्रीशंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय

 कालडी, एर्नाकुलम,केरल