May 5, 2023

6. हिन्दी उपन्यासों में अभिव्यक्त स्वास्थ्य समस्याओं पर विमर्श – अश्विनी कुमार

By Gina Journal

Page No.: 44-47

हिन्दी उपन्यासों में अभिव्यक्त स्वास्थ्य समस्याओं पर विमर्श

           स्वास्थ्य से तात्पर्य है, निरोग होने की अवस्था। स्वास्थ्य का तात्पर्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य न होकर मानसिक स्वास्थ्य भी है। स्वास्थ्य एक व्यक्ति के केवल शारीरिक बेहतरी को ही संदर्भित नहीं करता है, अपितु मानसिक बेहतरी को भी संदर्भित करता है। अधिकांश लोग यही समझते हैं कि हम शारीरिक रूप से स्वस्थ्य होकर ही पूर्ण जीवन का आनंद ले सकते हैं। लेकिन सत्य तो यह है कि पूर्ण जीवन का आनंद लेने के लिए हमें शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ्य होना आवश्यक है।

                  मनुष्य एक मनो-शारीरिक प्राणी है। उसका व्यवहार उसके शारीरिक तथा मानसिक दोनों कारणों पर निर्भर होता है। इसलिए स्वास्थ्य का तात्पर्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य न होकर मानसिक स्वास्थ्य से भी है।

हैडफील्ड के अनुसार-

                            “सामान्य भाषा में हम कह सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य

                                        सम्पूर्ण व्यक्तित्व से समन्वित क्रियाशीलता है।”

                  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों अलग-अलग नहीं है, बल्कि दोनों समानान्तर चलने वाली प्रक्रियाएं हैं। जैसे कि कोई भी बीमारी हो या महामारी जिसकी चपेट में व्यक्ति आता है तो वह न केवल शारीरिक रूप से अस्वस्थ होता है, अपितु मानसिक रूप से भी अस्वस्थ हो जाता है।

                  गौरतलब है कि पिछली चार सदियों में हर सौ साल पर अलग-अलग महामारियों ने दुनिया पर हमला किया और हर बार लाखों लोगों को बेमौत मार गईं। हमने इन महामारियों का इलाज ढूँढ़ने में इतनी देर कर दी कि बहुत देर हो गयी। पिछले चार सौ साल में हर सौ साल में एक ऐसी महामारी आती है जो पूरे दुनिया में तबाही मचा कर जाती है। ये महज एक संयोग है या इसके पीछे कोई रहस्य छिपा हुआ है। आज यह स्वास्थ्य समस्या जो लाखों लोगों को काल के मुंह में समा लेता है, विमर्श का मुद्दा बन चुका है।

                  सर्वप्रथम 1720 में ‘प्लेग’ जैसी महामारी पूरी दुनिया में फैल गया था। इसे ‘प्लेग ऑफ मर्सिले’ कहा जाता है। मार्सिले नाम इसलिए क्योंकि मार्सिले फ्रांस का एक शहर है, जहाँ इस प्लेग की वजह से 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी।

                  इसके ठीक 100 वर्ष बाद 1820 में ‘हैजा’ का प्रकोप ने महामारी का रूप ले लिया। इस महामारी ने जापान, अरब देशों, भारत, बैंकॉक, मनीला, जावा, चीन और मॉरिशस जैसे देशों में अपनी पकड़ में ले लिया। हैजा की वजह से सिर्फ जावा में 1 लाख लोगों की मौत हुई थी। जबकि सबसे ज्यादा मौतें थाईलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपींस में हुई थी।

                  पुनः 100 वर्ष बाद 1920 में धरती पर तबाही मचाने ‘स्पैनिश फ्लू’ आई। वैसे तो यह स्पैनिश फ्लू फैला तो था 1918 में ही लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर 1920 में देखने को मिला। कहा जाता है कि इस फ्लू की वजह से पूरी दुनिया में 2 से 5 करोड़ के बीच लोग मरे।

                  अभी सन् 2020 में फिर पूरे 100 साल बाद इंसान को खतरे में डालने वाला ‘कोरोना’ नामक वायरस कि शक्ल में एक और महामारी आयी। साल की शुरुआत में चीन से शुरू होकर ये महामारी भी लगभग पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। इस महामारी ने भी लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। मरने वालों की संख्या अनगिनत थी। गौरतलब है कि यह विमर्श का मुद्दा है कि क्यों हर 100 साल में महामारी तबाही मचाती है और करोड़ों लोगों को अपने चपेट में ले लेती है।

                  साहित्य समाज का दर्पण होता है इसलिए साहित्य भी स्वास्थ्य समस्याओं के विषय से अछूता नहीं रहा है। हिंदी साहित्य के तहत स्वास्थ्य समस्याओं को आधार बनाकर काफी  रचना हुई। साहित्य के उपन्यास विधा पर यदि हम गौर करें तो स्वास्थ्य संबंधी रचना प्रभूत मात्रा में मिलती है।

                  ‘अकाल’ विषय को केंद्र बनाकर लिखे गये उपन्यासों में जयशंकर प्रसाद का ‘कंकाल’, अमृतलाल नागर का ‘महाकाल’, रांगेय राघव का ‘विषादमठ’ आदि उपन्यासों की रचना इसलिए महत्पूर्ण हो जाती है कि इस अकाल ने भारी मात्रा में जन-धन की हानि की। बंगाल के अकाल के संबंध में कहा जाता है कि जब बंगाल में अकाल पड़ा तो लोगों ने कूड़े में पत्तलों पर से दाने चुन-चुन कर खाये थे। निराला द्वारा रचित संस्मरणात्मक उपन्यास ‘कुल्लीभाट’ का विषय प्लेग महामारी पर केंद्रित है। 1720 में फैली प्लेग महामारी ने लाखों लोगों की जीवनलीला समाप्त कर दी। 1820 में ‘हैजा’ का प्रकोप अपने चरम पर था, जिसको अपने उपन्यासों में व्यापक फलक पर उकेरने का प्रयास किया है, नरेश मेहता ने अपने उपन्यास ‘उत्तर कथा’ (भाग-1 और भाग-2) के द्वारा।

                  अन्य बीमारियों में ‘मलेरिया’, ‘कालाजार’ महत्वपूर्ण हैं, जिसे फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने उपन्यास ‘मैला आँचल’ में व्यापक तौर पर उजागर किया है। राही मासूम रजा का उपन्यास ‘आधा गाँव’ में ‘चेचक’ का प्रकोप वर्णित है।

                  अभी हाल में ही ‘कोरोनों’ जैसी महामारी का सामना हमें करना पड़ा, जिसमें करोड़ों लोग अपनी जान गंवा बैठे। काफी समय तक कोरोना की कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी। कोरोना की वैक्सीन काफी बाद में डाक्टरों ने ढूंढ़ने की सफलता पायी। कोरोना को आधार बनाकर हिंदी में नीरजा माधव का ‘कोरोना’ नाम से उपन्यास लिखा, जिसमें कोरोनो महामारी का भयावह वर्णन है।

                  इन सब महामारियों के अलावा और भी तमाम बीमारियाँ है, जिन्हें महामारी घोषित करने की माँग की जा रही है। वह बीमारी है ‘कैंसर’। कैंसर आज एक आम बीमारी बन चुकी है, जिससे काफी लोगों की मृत्यु हो रही है। इस कैंसर को साहित्य में भी स्थान दिया गया है। गीता गैरोला का उपन्यास ‘गूंजे अनहद नाद’ कैंसर पर ही केंद्रित उपन्यास है। अगला उपन्यास अलका सरावगी का ‘कलिकथा वाया बाईपास’ है जो ‘हृदय रोग’ पर केंद्रित है। हार्ट अटैक भी आज के समय में एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है, जिसमें बच्चों तक की मौत हार्ट अटैक से हो जा रही है।

                  गौरतलब है कि किसी भी देश का विकास उस देश में रहने वाले स्वस्थ व्यक्तियों पर ही निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी भी देश के विकास की कुंजी उस देश के स्वस्थ्य नागरिकों पर ही टिकी होती है। भारत सकल राष्ट्रीय आय की दृष्टि से विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन जब स्वास्थ्य की बात आती है तो भारत की स्थिति दयनीय साबित होती है। आखिरकार ऐसा क्यों है? आज यह स्वास्थ्य समस्या विमर्श का मुद्दा बन चुका है और स्वास्थ्य समस्याओं पर विमर्श होना बहुत ही आवश्यक है और होना भी चाहिए।

 

नाम- अश्विनी कुमार

शोधार्थी- हिन्दी विभाग (इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज)

विश्वविद्यालय- इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज

घर का पता- ग्राम- विठलापुर, पोस्ट- बसखारी  

जिला- अम्बेडकर नगर, (उ.प्र.) पिन- 224129