May 5, 2023

8. किन्नर समाज के संघर्ष को चित्रित करता उपन्यास दर्द न जाने कोई- कृतिका चौधरी

By Gina Journal

Page No.: 53-59

किन्नर समाज के संघर्ष को चित्रित करता उपन्यास दर्द न जाने कोई – कृतिका चौधरी

सृष्टि संचालन की दृष्टि से दो वर्गों को महत्व दिया जाता है नर एवं नारी परंतु इंसान हमेशा यह भूल जाता है कि नर और नारी के अतिरिक्त भी एक तीसरा वर्ग है ]जो ना तो पूरी तरह से नर है ना पूरी तरह से नारी है जिसे हम उभयलिंगी कहते हैं। इस वर्ग के लिए हिजड़ा ख्वाजसरा तृतीयपंथी  कोथी आदि कई शब्द प्रचलित है। इनके अस्तित्व की बात करें तो इनका अस्तित्व तभी से है जब से मानव का अस्तित्व है। वेद पुराण उपनिषद से लेकर गीता तक में भी इनका वर्णन मिलता है कहीं इन्हें के लिए क्लिब तो कहीं इन्हें किंपुरुष कहा गया है। यह केवल मानव की ही समस्या नहीं है पशु पक्षियों में भी यह वर्ग पाया जाता है।‘ डॉ पुनीत बिसारिया के अनुसार **हिंदी में इन्हें 4 वर्गों में विभाजित किया गया है।**1 जिसमें बुचरा मनसा हनसा नीलिमा प्रमुख है बुचरा जो जन्मजात उभयलिंगी होते है बुचरा या यू कहे न तो पूरी तरह नर होते हैं न नारी होते हैं ।मनसा जिनका शरीर और मन में दव्ंद चलता रहता है उदाहरण के लिए यदि शरीर पुरुष का हो तो भाव स्त्री के होते हैं और यदि शरीर स्त्री का हो तो भाव पुरुष के होते हैं हनसा वर्ग में वह लोग आते हैं जो शारीरिक रूप से अक्षम और योन विकलांग होती है। नीलिमा वह होते हैं जो किसी कारण इस समुदाय में शामिल होते हैं वे कारण कई तरह के हो सकते हैं उदाहरण के लिए राजनीतिक, सामाजिक,आर्थिक आदि। अबुआ जो लोग नकली उभयलिंगी होने का स्वांग रखते हैं और लोगों को लूटते हैं यह लोग असली उभयलिंगी के हक को भी छीन रहे हैं अतः ऐसे व्यक्तियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

दर्द न जाने कोई’ उपन्यास का शीर्षक बेहद सार्थक प्रतीत होता है क्योंकि उभयलिंगी समुदाय जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल और केवल दर्द ही सहन करता है।इनके दर्द को बांटने वाला न तो परिवार होता है, न समाज। परिवार से तो यह पैदा होते ही बेदखल कर दिए जाते हैं या मार दिए जाते हैं और समाज जो सदियों से लेकर आज तक इन्हें तिरस्कृत और अपमानित ही करता आया है इसलिए यह समाज से भी कट जाते हैं यह केवल संविधान के पन्नों में ही सिमट कर रह गए हैं।असल जिंदगी में यह शारीरिक, मानसिक सामाजिक कई संघर्षों का सामना करते हैं और न ही कोई इनके बारे में या इनके दर्द के बारे में जानने में रुचि लेता ह। सब लोग केवल पैसे देकर अपने कर्तव्य को इतिश्री समझते है कोई इनके साथ चाय कॉफी पीना या किसी भी तरह का मेल मिलाप पसंद नहीं करता ह। इस उपन्यास की कहानी भी इनके संघर्षों को बयां करने वाली कहानी है। यह उपन्यास किन्नर समुदाय के शारीरिक सामाजिक आर्थिक एवं मानसिक संघर्षों की गाथा है कि नेताओं में सामान्य मनुष्य की अपेक्षा अधिक मानसिक शारीरिक सामाजिक संघर्षों का सामना करते क्योंकि ना तो उन्हें परिवार वाले अपनाते हैं ना तो समाज परंतु इस उपन्यास के पात्र दिव्या को परिवार वाले अपने साथ ही रखते हैं शिक्षा भी देते हैं परंतु जब उन्हें यह ज्ञात होता है कि देवेंद्र भीतर से दिव्या है तो वे थोड़े असहज हो जाते हैं देवेंद्र अपनी मानसिक परेशानी से बाहर आने के लिए कई प्रयत्न करता है वह कभी नृत्य का सहारा लेता है कभी दोस्तों का अंततोगत्वा उसे शिक्षा रूपी हथियार मिल जाता है जो देवेंद्र की जिंदगी को परिवर्तित कर देती है देवेंद्र के संघर्ष केवल यही विराम नहीं लेते हैं उसे हमेशा अभद्र शब्द सुनने के लिए मिलते हैं समाज का असंवेदनशील व्यवहार उसे हमेशा मायूस कर देता है जो बहुत बार देवेंद्र को परेशान करते हैं परंतु देवेंद्र इन सब की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता रहता है तथा अंत में वह अपने सपनों को सच भी कर दिखाता है तथा समाज के सामने यह उदाहरण प्रस्तुत करता है कि इस समुदाय के पास किसी भी तरीके से प्रतिभा की कमी नहीं है तथा वे सब कुछ कर सकता है जो एक सामान्य मनुष्य कर सकता है।

देवेंद्र जो इस उपन्यास का मुख्य पात्र है। वह बेहद होनहार नृत्य कला में प्रवीण और साहसी बच्चा है जो हर समस्या का सामना बहुत बहादुरी से करता है। बचपन में ही उसकी कई ख्वाहिश है कि मैं सब के दिलों पर राज करना चाहता है या आधुनिक भाषा में यूं कहे तो पॉपुलर होना चाहता है नृत्य में भी उसकी विशेष रूचि है तथा जब भी देवेंद्र नृत्य करता है तो तालियां तथा सीटियां थमने का नाम नहीं लेती है परंतु देवेंद्र के बड़े भैया राजेंद्र प्रताप को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं है इसीलिए उसको बेहद पीटा भी जाता है **लौडिया बनकर नाच रहा है तुझे कितनी बार कहा है कि ठहर तू ऐसे नहीं मानेगा कहते हुए राजेंद्र ने उसे थप्पड़ मारे और हाथ पकड़कर घसीटते हुए बाहर आंगन में ले जाकर धक्का दिया इतनी देर में राजेंद्र नेअपनी कमर से निकाल ली और उस पर बरसानी शुरु कर दी** 2 यहां से देवेंद्र की शारीरिक संघर्ष शुरू हो गए थे उसे केवल घर में ही नहीं बाहर स्कूल में भी कई बार पीटा गया।

देवेंद्र शरीर से तो एक लड़का था परंतु देवेंद्र भीतर से पूरी तरह स्त्री था और उसके भीतर की स्त्री उसे चीख–चीख कर कहती थी कि तुम मुझे कैद कर नहीं रख सकते हो वह हमेशा बाहर आने के लिए आतुर रहती थी उसे घर के काम करना, रसोई बनाना, घर की सफाई करना बेहद पसंद था तथा वह अक्सर अपने दीदी के साथ घर के कामों में उनकी सहायता करता था यह भी उसके भाइयों को पसंद नहीं था तथा इन सब कामों के लिए भी कई बार उसे पीट चुके थे। अब देवेंद्र का मन नृत्य से भी उठ चुका था क्योंकि उसके लिए उसे कई बार सम्मान की अपेक्षा अपमानित ज्यादा होना पड़ा था परंतु देवेंद्र हार मानने वालों में से बिल्कुल नहीं था उसमें कुछ कर दिखाने का जज्बा हमेशा सही था अब देवेंद्र ने अपना मन पढ़ाई में लगा लिया था और उसे ही अपना सहारा बना दिया था उसे लगने लगा था कि पढ़ाई करने से ही उसे सम्मान मिल सकता है ‘**यदि उसे समाज में इज्जत और अपनापन चाहिए तो केवल और केवल पढ़ाई करके ही उसे मिल सकता है**3 शिक्षा की अहमियत देवेंद्र को समझ आ चुकी थी तथा वह कल्पना भी करने लगा था कि शायद पढ़ लिखकर में मनचाहा जीवन जी सकता है तथा अपने जीवन को बेहतर बना सकता है उसे लोग हिजड़ा कहकर नहीं चढ़ाएंगे कोई उसका मजाक नहीं उड़ाएगा ]कोई घर वाला उसे नहीं पिटेगा ।यह सब सोचकर ही उसने पढ़ने में अपना मन लगा लिया था। देवेंद्र आगे चलकर एक संस्था साथी सर्वोत्तम संस्था से जुड़ता है ,जहां वह अपने जैसे कई लोगों से मिलता है उसे कुछ दायित्व ही दिए जाते हैं जिनका निर्वहन भी वह बखूबी करता है वह अपने समुदाय के लोगों को जागृत करता है तथा शिक्षा को सबसे बड़ा हथियार बताता है।वह चाहता है कि इस समुदाय के लोग अपने हक के लिए आवाज उठाएं और अपने समुदाय को पैरों पर खड़ा हो और इसके लिए उनका शिक्षित होना बहुत जरूरी है ।वह सभा को संबोधित करते हुए कहता है कि‘** जब तक कोई भी पिछड़ा दवा कुचला अपेक्षित समाज अपनी स्थिति को स्वयं सुधारने की कोशिश नहीं करेगा तब तक उसकी मदद कोई नहीं कर सकता सदियों से हाशिए पर पड़े किन्नर समाज को भी अपनी आवाज उठाने से पहले अपने अंदर तब्दीलियां लानी होगी उन तक दुनिया में सबसे बड़ी है एजुकेशन यानी शिक्षा** 4 शिक्षा से ही इस बार को मुख्यधारा में लाया जा सकता है तथा परंपरागत नृत्य गान की परिधि से बाहर आकर आजीविका के लिए नए पैमाने खोजे जा सकते हैं

देवेंद्र का यह वक्तव्य यहां सार्थक सिद्ध होता है‘ कि **वह भी होटल में वेटर अस्पतालों में नर्स कंपाउंडर या बड़ी-बड़ी दुकानों के मैनेजर या सम्मेलन किताबों की छपाई टैक्सी ड्राइवर से काम कर सकते हैं** 5 आखिर वह कब तक में के नाम पर भीख मांगते रहेंगे उनके लिए भी कई अन्य विकल्प होने चाहिए ताकि वह अपनी इच्छा अनुसार काम कर सके तथा अपनी आजीविका उपार्जन कर सके किसी अन्य पर निर्भर होकर नहीं अपनी कमाई पर अपना भी भविष्य सुरक्षित रख सकें। उन्हें मदद के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत ना पड़े वह स्वावलंबी बनकर अपने निर्णय खुद ले सके तथा अपने और अपने समाज का कल्याण करने के लिए तत्पर हैं उन्हें अपने भीतर की प्रतिभा को पहचाना होगा तभी वह अपने समाज का कल्याण कर सकेंगे अब देवेंद्र का एकमात्र उद्देश्य यही था कि वह अपने समाज के लोगों के लिए और उनके कल्याण के लिए बेहतर से बेहतर बदलाव करना चाहता है ताकि उन्हें श्रेष्ठ जीवन मिल सके।

लैंगिकता के प्रश्न को भी उपन्यास में तल्खी से उठाया गया है उन्हें ताउम्र उस अपराध की सजा मिलती है जो इन्होंने किया ही नहीं पहले परिवार से बेरुखी फिर समाज में इन्हें हंसी का पात्र बनाया जाता है,इसका एक ही कारण है योन विकलांगता।शारीरिक विकलांग बच्चे का पालन पोषण ठीक वैसे ही किया जाता है जैसे सामान्य बच्चों का अपितु इन्हें सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक प्रेम तथा लाड़ दुलार मिलता है परंतु उभयलिंगी समाज को केवल घृणा की दृष्टि से देखा जाता है । कई बार जन्म लेते ही उन्हें मार दिया जाता है, या फिर किन्नर समुदाय को समर्पित कर अपने कर्तव्य को इतिश्री समझा जाता है । उनके प्रति परिवार तथा समाज अपनी आंखें बंद कर लेता है तथा उन्हें दरबदर भटकने के लिए छोड़ देता है। देवेंद्र से दिव्या बनी और दिव्या से एक संस्था के कार्यकर्ता भरी सभा में यह प्रश्न उठाती है कि **‘हमें अपने जेंडर चुनने का अधिकार मिलना चाहिए हममें जो महिला बनकर रहना चाहे वह महिला बन कर रहे जो पुरुष बन कर रहना चाहे पुरुष बन कर रहे हमें जेंडर चुनने की आजादी मिलनी चाहिए।**6

देवेंद्र इस प्रश्न के साथ-साथ लोगों को भी जागरूक करना चाहता है कि वह भी नहीं चाहते हैं कि शरीर के विपरीत व्यवहार करें लेकिन भीतर का मन उनके शरीर से वही चीजें करवाता है जो उसे पसंद होती है मन और शरीर के इस द्वंद में व्यक्ति को न जाने कितने दर्द देने पड़ते हैं इस दर्द और द्वंद में उलझा रहता है ।इसी के तहत वह अपने जीवन से ही घृणा करने लग जाता है तथा कई बार तो मानसिक तौर पर इतना परेशान होता है कि आत्महत्या तक कर लेता है ] कभी फंदा लगाकर तो कभी किसी गाड़ी के नीचे आकर अपनी लीला समाप्त करने में भी नहीं चूकता है क्योंकि जिस दर्द और जिल्लत भरी जिंदगी को वह जीता है उसे तंग आकर वह कई बार यह निर्णय ले लेता है और घृणा में इतनी बढ़ जाती है कि जीने की इच्छा ही देते हैं।वह केवल प्रेम और सम्मान चाहते हैं जो इन्हें सदियों से नहीं मिला है। परिवार समाज की लघु इकाई होता है परंतु देवेंद्र और उनके समुदाय के लोगों को सबसे पहले परिवार द्वारा ही अपमानित होना पड़ता है देवेंद्र को लड़की की तरह रहना था परंतु परिवार वाले हमेशा देवेंद्र को लड़कों की तरह रहने के लिए दबाव बनाते थे क्योंकि देवेंद्र शारीरिक रूप से लड़का ही था परंतु मन से पूर्ण रूप से स्त्री था इसी स्थिति को परिवारवाले नहीं समझ सके तथा देवेंद्र अंदर ही अंदर घुटता रहा। परिवार को परेशान कर मैं कैसे खुश रह सकता था इसलिए उसने हालातों से समझौता कर लिया थ। वह अब यही कोशिश करता था कि वह लड़कों जैसा ही व्यवहार करें ताकि उसे पीटा न जाए तथा समाज में उसे हिजड़ा] जैसे शब्द सुनकर अपमानित न होना पड़े। परिवार को याद करते हुए सुनीता आंटी का वक्तव्य बेहद मार्मिक है।**हिजड़ो का कोई घर नहीं होता देवेंद्र और ना ही घर वाले होते हैं सबसे पहले घर वाले ही उन्हें दुत्कार कर घर से बाहर फेंक देते हैं और पलट कर ही जाने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि उसका क्या हुआ कभी सुध भी नहीं लेते कि उस घर में जन्म लेने वाला कहां पड़ा है जिंदा भी है या मर गया।**7

भाषा किसी भी कृति को पाठक से जोड़ने मैं निर्णायक भूमिका अदा करती है भाषा ही बस आदमी जिसके द्वारा लेखक अपने विचारों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है लेखक का यह कर्तव्य होता है कि वह अपनी भाषा शैली द्वारा पाठकों को प्रीति से जुड़े रखें इस उपन्यास की भाषा शैली की चर्चा करें तो भाषा बेहद सरल सहज और सार्थक है जो अंत तक कहानी से पाठकों को जोड़े रखती है जहां चाह वहां राह अंधा क्या चाहे दो आंखें ]खाली पुलाव जैसी कहावतों का प्रयोग कर लेखक ने भाषा को और रोचक बनाने का प्रयास किया है साथ ही साथ अंग्रेजों की शब्दों का भी प्रयोग किया गया उदाहरण के लिए रजिस्ट्री डॉक्टर सर्जरी मैडम आदि कई शब्दों का प्रयोग कर कहानी को सार्थक बनाया गया है।

उपन्यास का अंत बेहद सार्थक एवं सकारात्मक है देवेंद्र शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक संघर्षों का सामना करते हुए अंत में शल्य चिकित्सा द्वारा स्वयं को पूर्ण रूप से स्त्री में परिवर्तित कर सुकून की जिंदगी जीता है।दिव्या का चरित्र हमें बताता है कि चाहे जीवन में कितने भी संघर्ष क्यों ना आए हमें हिम्मत कभी नहीं आनी चाहिए हमें हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए वह कहावत है ना कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती दिव्या ने यह सोचकर दिखाई है यदि उनके समुदाय को भी शिक्षा मिल जाए तो वह भी कामयाबी की बुलंदियां छू सकते हैं वह भी अपनी स्वतंत्रता से कोई भी व्यवसाय चुन सकते हैं इस समुदाय के लोग भी सामान्य मनुष्य की तरह जीवन यापन कर सकते हैं अपने सपनों को सच कर सकते हैं दिव्या ने कई चुनौतियों का सामना किया परंतु कभी हार नहीं मानी वह केवल अपने ही संघर्ष नहीं करती है अपितु अपने समुदाय के लिए कई कल्याणकारी निर्णय लेती है इस समुदाय को घर का सामान मिल जाए तो और भी आसान हो जाएंगे क्योंकि इंसान खाने की बिना भी कुछ दिन रह सकता हैयोग के बिना भी जी सकता है परंतु प्रेम के बिना इंसान नहीं रह सकता है। प्रेम ही जीवन का आधार है। दिव्या का यही आग्रह समाज से भी है कि ऐसे बच्चों को प्रेम तथा शिक्षित कर उनके जीवन को एक नई दिशा दें न कि उनका त्याग कर उन्हें भटकने छोड़ दें जैसा बेटा या बेटी परिवार का नाम रोशन करते हैं ठीक वैसे ही यह भी कर सकते हैं उन्हें भी वैसे ही प्रेम और सम्मान मिलना चाहिए जैसे सामान्य मनुष्य को मिलता है ताकि वे भी अपने सपनों को पूरा कर सकें। अब वक्त आ गया है कि समाज को भी इनके प्रति अपना रवैया बदलना होगा उन्हें अपने पूर्वाग्रह से बाहर निकलना होगा क्योंकि आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं जहां एक बटन दबाने से ही बहुत सारे काम हो जाते हैं तो कब तक इन दकियानूसी विचारों को ढोते रहेंगे। यह केवल प्रेम और सम्मान चाहते हैं ।समाज को भी इनके प्रति प्रेम और सम्मान का रवैया रखना चाहिए ना कि इन्हें घृणा की दृष्टि से देखना चाहिए।

संदर्भ

1 डागा शीला] किन्नर गाथा] वाणी प्रकाशन 2020,पृष्ठ 21

2 दतत् लवलेश] ट्रांसजेंडर वूमेन की संघर्ष गाथा दर्द ना जाने कोई विकास प्रकाशन 2021 पृष्ठ 27

3..वही पृष्ठ 58

  1. वही पृष्ठ 204

6 वही पृष्ठ 204

  1. वही पृष्ठ 209
  2. वहीं पृष्ठ 141

कृतिका चौधरी

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला