113. स्त्री विमर्श -मृदुला गर्ग के समकालीन उपन्यासों के परिप्रेक्ष्य में – वीणा सी वसन्त
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स्त्री विमर्श –मृदुला गर्ग के समकालीन उपन्यासों के परिप्रेक्ष्य में – वीणा सी वसन्त
सारांश
मेरे शोध पत्र का उद्देश्य मृदुला गर्ग के समकालीन उपन्यासों में स्त्री विमर्श को अभिव्यक्त करना है। मृदुला गर्ग बेहद बोल्ड व अंतर्मुखी व्यक्तित्व की लेखिका है। उनके उपन्यास कठगुलाब, चित्तकोबरा और उसके हिस्से की धूप आदि उनके सशक्त औपन्यासिक कृतियाँ है जहाँ नारी को उनके प्रति होनेवाली अत्याचारों का सामना करनेवाली, पुरुष के समान अतृप्त वासना रखनेवाली और नारी के आत्मसार्थकता की तलाश को दर्शाया गया है ।नारी के बहादुरी और शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण इसमें मिलता है।
वास्तविकता यह है कि स्त्री पैदा नहीं होती, उसे स्त्री बना दी जाती है।
प्रस्तावना
समकालीन शब्द असमंजस में डालनेवाले शब्द हैं। हर समय की रचना समकालीन होता है। इस दुनिया में जो घट चुकी है या लिख चुका है वह कभी भी पुराना नहीं है,बल्की समय की माँग है। भारत नदियों से सम्पन्न है। एक नदी धीमी गति से बहती है, कई जगहों पर तेज़ धारा में प्रवाहित भी होती है और कुछ स्थानों में वह अलग रास्ता भी बना लेती है। स्त्री और प्रकृति में बहुत सारी समानताएँ है। स्त्री स्वाभाविक होती है, कई हालातों में वह आपे से बाहर भी हो जाती है, और समय आने पर वह लीक से हटकर अपनी एक अलग अस्मिता की खोज में निकल पड़ती है। “कठगुलाब ”एक सशक्त औपन्यासिक कृति है, जहाँ नारी को आत्मविश्वास, मेहनतकश और आत्मनिर्भर बनने में सफल किया है। कठगुलाब में चित्रित स्मिता लगनशील, अध्ययनशील और मध्यवर्गीय शिक्षित नारी है। अपने जीजा द्वारा बलात्कार किया जाने पर भी वह निराश या हताश नहीं होती, वह अकेली रहकर बी.ए में प्रथम श्रेणी प्राप्त करती हैं, पढ़ने केलिए अमेरिका जाती है और आर्थिक रुप से स्वतंत्र भी बनती है। जिम जारविस से विवाह करने के बाद भी वह उसके शोषण का शिकार बनती है। वह अपने पति को छोड़कर ‘रा’ में जुड़ जाती है। वह खुद को स्वतंत्र पाती है। कठगुलाब में मारियान की बात करें तो वह अमरीकी है, भारतीय नारी के गुणों से युक्त है और बाहरी सौंदर्य से बढ़कर भीतरी सौन्दर्य को महत्व देती है। मारियान का पति है इर्विंग। इर्विंग के इच्छानुसार वह गर्भपात कराती है,उसके उपन्यास केलिए काम करती है। अंत में धोखा खाती है। धोखा खाने पर वह अपनी ज़िन्दगी के बारे में पुनर्विचार करती हैं और ‘रा ’ में जुडकर नारीवादी आन्दोलनों में भाग लेती है। वह ‘रा ’ की अन्य स्त्रीयों के समान यह बात मानने को तैयार नहीं कि ‘मर्द नाम का प्राणी खुदगर्ज और ज़ालिम होता ही होता है ’।वह अत्याचारी पुरुषों का विरोध करती है। उपन्यास का और एक पात्र नर्मदा निम्नवर्गीय भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व करती है। उसका अभागे बचपन और उसकी बहन की सहमति से बूढ़े जीजा से उसका ज़बरदस्ती विवाह कर दिया जाता है। एक बार जीजा के धमकी देने पर नर्मदा का आक्रोश इस प्रकार फूट पडता है -फिर कभी इस घर में आने की हिम्मत की तो टाँगे तोड के सड़क पर फेंक दूँगी। भहुए, अपनी बीवी के पल्लू में जा के सो। मैं तेरी रखैल न थी, तू मेरी रखैल था।”इस उपन्यास में सशक्त पात्र असीमा के जीवन का स्थायी उद्देश्य पुरुष विरोध है। कठगुलाब की अन्य पात्रों से हटकर एक पूर्णतः फेमिनिस्ट चरित्र है। वह पुरुषों जैसा वस्त्र पहनती है और उन्हीं की तरह बोलती भी है। वह अपने पिता और भाई को हरामी नंबर -१ ,हरामी नंबर -२ बुलाती है।वह कहती है कि ‘मर्दों की इस दुनिया में रहने केलिए होमसाईंस नहीं कराटें की ज़रुरत है। ’वह सभी बात साफ और सीधा बताने में दिलचस्पी रखती है। स्मिता से उसने साफ -साफ बताया था कि –‘देख स्मिता, सच कहेगी तो सच सुनेगी, वरना नहीं। सोच कर तय कर लो। मुझे यह औरत नुमा छल -प्रपंच पसंद नहीं है। दो टूक बात करने का साहस हो तो मुझसे दोस्ती कर वरना अपना रास्ता नाप। ’कठगुलाब उपन्यास में नीरजा नमिता की बीस वर्षीय पुत्री है। वह बेहद आत्मविश्वास रखती है। वह अपने से दुगुनी उम्र के पुरुषों के तरफ आकृष्ट होती है। और बिना विवाह किए संतान पैदा करने की सोच निश्चिंत रुप से क्रांतिकारी है। वह पुरुष को केवल स्पेम प्रोड्यूस करने का साधन मात्र मानती है। एक और मृदुला गर्ग ने पुरुषसत्ता का विरोध करनेवाली स्त्रीयों से आत्मनिर्भर बनने केलिए कहती है तो दूसरी और उसने पति -पत्नी संबंध में अतृप्त पत्नी का पर्दाफ़ाश भी किया है। उसकी एक ऐसी उपन्यास है ‘चित्तकोबरा’।महेश -मनु के संबंध में मनु एक आदर्श पत्नी की सभी मान्यताएँ निभाती है। लेकिन वह अपने पति महेश से कभी तृप्त नहीं है। उसका पति महेश अपनी पत्नी का प्यार केवल कर्तव्य मानता है। इसी बीच मनू अलग सोचती है। वह स्काटलैन्उ के पादरी रिचर्ड से आकर्षित होती है। जमशेदपूर में एक फ्रांसीसी नाटक में काम करने के दौरान दोनों का मुलाकात होता है। वे दोनों शारीरिक संबंध बनाते हैं। और यह मनू के मन में बरखरार रहती हैं। इसमें मृदुला गर्ग हमसे यह बताना चाहती है कि असल बात प्यार करना है, प्यार पाना नहीं।प्यार पुरुष और स्त्री के लिए समान होती है। समाज में पुरुष का अनेक स्त्रीयों के साथ संबंध बुरा नहीं माना जाता लेकिन एक स्त्री का दूसरे मर्द के साथ संबंध किसी को मंजूर नहीं है। मृदुला गर्ग ने रचना के माध्यम से समाज को अलग दिशा में सोचने के लिए बाध्य किया है। ‘उसके हिस्से की धूप ’मृदुला गर्ग के एक कालजयी रचना है। इस उपन्यास के मुख्य पात्र जितेन, मनीषा और मधुकर है। जितेन मनीषा से शादी करता है। जितेन अपने आप को स्वतंत्र मानता है। और अपनी पत्नी को आज़ादी देता है। लेकिन जितेन को पास न पाकर मनीषा अकेलेपन का अनुभव करती है। वह कहती है –‘जिस आदमी को उससे बात करने तक की फुर्सत नहीं है उससे कैसा लगाव? जो रिशता रात के अंधेरे में जन्म लेता है और चंद घंटे कायम रहकर दिन के उजाले के साथ खत्म हो जाता है उसे तोड़ने से कैसा संकोच? मनीषा बाद में कालेज में अद्यापकी करने लगती है। वहाँ उसका परिचय अर्थशास्त्र के प्राद्यापक मधुकर नागपाल से होता है। लेकिन उससे शादी करने पर भी वह खुश नहीं होती।वह समझ जाती है कि प्रेम से ज़िन्दगी का खालीपन नहीं मिटा सकती प्रेम जीवन का एक मूल्य ज़रुर है ,पर प्रेम ही जीवन का सर्वस्व नहीं है। अंत में मनीषा इस विषय पर पहँचती है कि जीवन का खालीपन भरने के लिए आत्मसार्थकता की तलाश करनी होगी। अंत में वह एक विख्यात लेखिका बन जाती है।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम कह सकते है कि कठगुलाब, चित्तकोबरा और उसके हिस्से की धूप स्त्री विमर्श के उत्तम पहलुएँ प्रस्तुत करते हैं। दुनिया बदल गया है, स्त्री अगर अब अपने बारे में नहीं सोचेगी तो कब सोचेगी? मृदुला गर्ग ने अपने उपन्यासों में की अस्तित्व और अस्मिता को उद्घाटित करके नारी शक्ति को परमोन्त सिद्ध किया है।
वीणा सी वसन्त
सरकारी आर्टस व साईंस कॉलेज
मीनचन्दा
कोषिक्कोड
केरला
भारत