May 20, 2023

71. स्त्री विमर्श को गति देतीं लता अग्रवाल की लघुकथाएं* – डॉ सूर्य प्रताप

By Gina Journal

Page No.: 510-514

शीर्षक :- *स्त्री विमर्श को गति देतीं लता अग्रवाल की लघुकथाएं*

डॉ सूर्य प्रताप

आधुनिक काल में जो विमर्श हाशिये पर थे, उन्हें उत्तर आधुनिकतावाद ने केन्द्र में स्थापित कर दिया है। चाहे दलित विमर्श हो या स्त्री-विमर्श, दोनों ने ही न केवल अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है, अपितु अपनी प्रासंगिकता और अनिवार्यता भी सिद्ध की है। स्त्री अपने अधिकारों के प्रति न केवल सचेत हुई है, बल्कि अपने अधिकारों के, अपनी अस्मिता की पहचान के लिए जो लड़ाई शुरू की है वह अब आंदोलन में परिवर्तित हो चुका है। आज स्त्री-विमर्श‍ के फलस्वरूप न केवल स्त्री की पहचान निर्मित हुई है बल्कि हर क्षेत्र में उसकी एक स्वतंत्र और स्वाभिमानी छवि भी निर्मित हुई है। लघुकथाकार लता अग्रवाल ने अपनी लघुकथाओं में इसी विमर्श को लेकर सशक्त उपस्थिति दर्ज की है।

अनुभवी साहित्यकार डॉ लता अग्रवाल द्वारा रचित ‘मूल्यहीनता का सन्त्रास’ उनका पहला लघुकथा संग्रह है।  इस संग्रह में सौ लघुकथाएँ समाहित हैं जो निम्न वर्गीय, मध्यम एवम उच्च वर्गीय तीनों ही समाज की नारी को केंद्र में रखकर लिखी गई लघुकथाएँ हैं। संवेदनशील लघुकथाकार ने परिवेशगत पुरानी मान्यताओं के दबावों के साथ-साथ नई पीढ़ी के बदलते तेवर को सफलता पूर्वक अभिव्यक्त किया है। दरअसल तेजी से बदलती परिस्थिति में नारी की भूमिका भी बदली है। समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने, समानता का हक पाने व अन्य अधिकारों के प्रति नारी सजग हुई है। अब वह प्रतिप्रश्न करती है, अपने खिलाफ हो रहे षडयंत्र एवम अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती है इतने पर भी बात न बने तो विद्रोह के स्वर तेज करती है। प्रस्तुत संग्रह में लता जी ने ऐसी बहुसंख्यक बढ़िया लघुकथाएँ दी हैं जिन्हें वास्तव में नारी चेतना की लघुकथाएँ कहा जा सकता है, यथा – ‘मोक्ष’, ‘एकलव्य’, ‘प्रतिमा’, ‘विसर्जन’, ‘सांझा दुख’, ‘आशीष’, ‘मैं ही कृष्ण हूँ’, ‘संशय का भूत’, ‘सुहागचिह्न’, ‘शोध’ आदि लघुकथाएँ इस श्रेणी की लघुकथाएँ हैं। काम वाली बाई को लेकर लिखी लघुकथा ‘ईमान’, ‘मर्दानगी’ पुरुष वर्चस्ववादी सोच के चलते शोषण व अन्याय को दर्शाती हैं। ‘ना का मतलब ना’ जैसी कथा अपनी देह की स्वतंत्रता को लेकर नारी की दृढ़ता है।

प्रस्तुत लघुकथा संग्रह में जहाँ एक ओर नारी के संदर्भ में मूल्यहीनता के संत्रास की लघुकथाएँ है वहीं दूसरी ओर डॉ लता अपने लेखकीय धर्म का निर्वाह करते हुए मानव कल्याणकारी व मानवीय मूल्यों से सम्बंधित लघुकथाओं का प्रणयन करना नहीं भूली हैं। ‘भले घर की बेटी’ में जिठानी का घर आई नई बहू के साथ छोटी बहन का सा व्यवहार, ‘सांझी बेटियाँ’ में प्रगतिशील व उदात्त भावना देखने को मिलती है। यदि सच में ऐसा हो जाये तो बेटियों के प्रति दृष्टिकोण बदलने में देर नहीं लगेगी साथ ही बालिकाओं व नारियों के प्रति हो रही दैहिक हिंसा पर भी विराम लगेगा। ‘माँ का प्रतिरूप’ में ससुराल में घबराई बहू आशा के विपरीत जब सास का सहारा पाती है तो उसके मन में सास को लेकर जो पूर्वाग्रह है वह दूर होता है और सास माँ सम लगने लगती है। इसी श्रेणी में रिश्तों की मधुरता दर्शाती, सच्चे अर्थों में दीपावली का सार्थक संदेश देती लघुकथा है ‘दीपावली’।

आज मूल्यहीनता के दौर में देख, सुन और भोग सभी रहे हैं मगर इन विषयों पर खुलकर कहने, विद्रोह करने और समाधान ढूंढने से परहेज करते हैं। इस पक्ष से लेखिका बधाई की पात्र है उन्होंने नारी के अंतर्मन की संवेदनाओं को झिंझोड़ने वाले यथार्थ को वाणी दी है। इस दृष्टि से ‘सुहागचिह्न’ उत्तम लघुकथा है जो तार्किक आधार पर बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा करती है साथ ही पुरातन मान्यताओं का विखंडन करती है। ‘बलात्कार’ लघुकथा में एक बार दैहिक दुष्कर्म की शिकार लड़की को जब बार-बार समाज के तानों, घूरती निगाहों, अपनों के उलाहनों व अदालतों में प्रश्नों का सामना करना पड़ता है तो वह उस कुछ पल की पीड़ा से कहीं अधिक तकलीफ देह होती है। लघुकथा का यह वाक्यांश, “तन से एक बार, मन से बार-बार पूरा समाज अपने तरीके से तान्या का बलात्कार कर रहा था।” लेखिका इस मर्म को स्थापित करने में सफल रही है।

समृद्ध बनाम गरीब लोगों की संवेदना के अंतर को दर्शाती लघुकथा है ‘अवतार’ गरीब रिक्शा चालक हृदयाघात पीड़ित व्यक्ति को अस्पताल ले जाकर उसकी जान बचाता है जबकि स्वार्थपरता के चलते अमीर अनदेखी कर देता है। लेखिका ने ऐसे लोगों पर तंज कसते हुए कहा है -‘किंतु, कार पर चढ़े काँच की तरह लोगों की भावनाओं पर भी काँच चढ़े थे।’ जीवन सन्ध्या की ओर अग्रसर बुजुर्गों की समस्याओं और विवशताओं का जीवंत चित्रण डॉ लता ने किया है। कहीं अकेलापन दूर करने के लिए ‘व्हाट्सएप’ लघुकथा में व्हाट्सएप का सहारा लेने की बात है तो वहीं ‘वादा’ लघुकथा में बच्चों की अवहेलना की पराकाष्ठा दर्द दे गई जब जीते जी बेटा माँ की उपेक्षा करते माँ को गंगा स्नान न करवा पाने की स्थिति में मरने के बाद माँ की पार्थिव देह को गंगा स्नान कर करा अपने वादे की इतिश्री करना चाहता है। प्रासंगिक तथ्य है यह जो डॉ लता ने कथा में पिरोया है। साहित्य समाज का आईना है इस कथा के आधार पर हम कह सकते हैं।

‘साँझ बेला’ में पति को पत्नी की मृत्यु के बाद उसके योगदान का एहसास होता है, ‘छूत का रोग’ लघुकथा में जन्म देने वाली माँ को कूड़ा करकट समझ वृद्धाश्रम छोड़ आना अपनी जन्नत को ठुकराना है। माँ का दर्द छू गया, “मेरे बेटे-बहू को भी घर की साफ-सफाई का रोग लग गया है” युवा पीढ़ी से प्रश्न करती कथा है। नई पीढ़ी द्वारा माता पिता के प्रति कुंद होती संवेदना प्रदर्शित करती एक और अच्छी लघुकथा है ‘31 जा महीना’ जो नए कलेवर में पीढ़ी के दर्द को अभिव्यक्त करती है।

समग्रतः डॉ लता का यह प्रथम लघुकथा संग्रह अपने आस पास के देखे सुने अनुभवों की आँच पर पके कथ्यों से सुसज्जित है। उन्हें लघुकथा के मानदंडों का भली भांति ज्ञान है, इससे लघुकथा की तकनीकी सम्बन्धी त्रुटियों के प्रति वे खासी सावधान रहीं हैं। यद्यपि कुछ लघुकथाओं में अभी भी सम्भावनाएँ नजर आती हैं। किन्तु सरल सहज भाषा के कारण ये लघुकथाएँ पाठकों पर अपना समुचित प्रभाव छोड़ती हैं। ‘अनसुनी आवाज’, ‘कही अनकही’ तथा ‘सास का मान’ जैसी लघुकथाओं ने पात्रानुकूल भाषा गढ़कर लघुकथा की अर्थवत्ता एवम विश्वसनीयता को बढ़ाया है।

एकलव्य’ के गुरु द्रोणाचार्य की पुनरावृति आज की बेटी अपनी घोषणा में स्पष्ट करती है। पति- पत्नी के बराबरी के हक को ‘साझेदारी’ स्पष्ट करती है ।आज भी बेटियाँ मां बाप को अपने- अपने दुःख से बचा कर आपस में  दुखों को’ रफू’ करने का काम गुपचुप तरीके से करती हैं।वक्त रहते नारी की अवहेलना और ‘साँझ ‘का दीपक कौन देखता है ।बेटियां सबकी साँझी होती हैं। सोने के अंडे देने वाली ‘मुर्गी’ लघुकथा हमारे सामने प्रश्नचिन्ह बन कर खड़ी होती है।’मुहावरा जीवन का’, ‘गुलामी की रोटी’, ‘पति की सत्ता’ लघुकथा में लेखिका ने सामाजिक कुरीति पर तीक्ष्ण प्रहार किया है। । ‘थिकम्मा ‘के नाम से मशहूर हो उसके आँगन में पुत्र प्राप्ति हेतु जमघट लगना एक सकारात्मक सोच को जन्म देती सार्थक जन्म देना सार्थक होता है। नारी महत्व को दर्शाती ‘वापसी’, ‘क्लेश’, ‘बंजर जमीन’ पाठक मन को द्रवित कर जाती है। नारी शक्ति को स्पष्ट करती ‘ना का मतलब ना’, ‘ऐसी मांग का उजड़ जाना ही बेहतर के माध्यम से नारी के अधिकार को लेखिका ने  और सबको  मार्गदर्शन भी दिया । ‘ नारी का पुरुष विरोधी सकारात्मक सोच को जाहिर करता है।’महत्वाकांक्षा’ , ‘संवेदना’ , ‘कानून का दायरा’ , ‘रबर स्टाम्प ‘, ‘इनाम’ व ‘मर्दानगी  नारी के दुःख को करीब से परिचित कराती सत्य की मोहर साबित होती है।  ‘देह’ , ‘शोध’ पर पत्नी का कटाक्ष देखते ही बनता है। हर गुस्सा उतारने के लिए भगवान ने पुरुष को औरत ही दी है चाहे वो स्वयं की ‘बेरोजगारी का गुस्सा’ ही क्यों न हो सही कहा है गिरे गधे से गुस्सा कुम्हारी पर ।

  मूल्यहीनता का संत्रास के लघुकथाएँ नारी जीवन के विभिन्न कोणों से ली गई हैं। वर्णनात्मक शैली का प्रयोग बहुत कम मिला है। अधिकतर लघुकथाएँ है संवादात्मक शैली में पाठकों के समक्ष अपनी बात स्पष्ट करती नजर आई हैं । भाषा पात्रा अनुकूल है। पात्रों की भीड़ नहीं दिखाई पड़ती । लघुकथाओं के पैमाने पर खरी उतरती है जैसा देश वैसा वेश के अंतर्गत पात्र की बोली भी उनके अनुरूप जान पड़ती है।

डॉ अग्रवाल ने अधिकांश लघुकथाओं में कथोपकथन शैली का प्रयोग किया है। जिसके कारण लघुकथाओं की सम्प्रेषणीयता तीव्र हुई है। कुछ लघुकथाओं यथा ‘अनसुनी आवाज’, ‘झांकी’, ‘थके कदम’, ‘प्रतिप्रश्न’, ‘अबूझ पहेली’, ‘मुहावरा जीवन का’, ‘मुखौटा’, ‘एकलव्य’ आदि के शीर्षक अर्थपूर्ण एवम सठीक हैं। व्यंगात्मक व व्यंजना शैली में प्रयुक्त वाक्य प्रशंसनीय है जिससे लघुकथा को कसावट मिली। जैसे- “मतलब यह कि जो पिछले छतीस बरसों में अपनी पत्नी के मन को न पढ़ सका अब उसने इन चन्द बरसों में ऐसा क्या तीर मार दिया? अब यह मेरे शोध का विषय है। “(शोध) “मेरी सम्वेदनाएँ ठहर नहीं रही थी (संवेदना)” “पति ने लम्बी साँस छोड़ते हुए कहा, हे भगवन! क्लेश के पौधे का कोई बीज नहीं होता। “(क्लेश) “यही कि मैं आपको द्रोणाचार्य बनकर पुनः इतिहास कलंकित करने का अवसर नहीं दूँगी” (एकलव्य)

इस तरह लता अग्रवाल ने स्त्री जीवन के समस्याओं की सामान्य सी भूमि को स्पर्श करते हुए उन्हें अपनी लघुकथाओं में उकेरा है। उन्होंने विभिन्न सन्दर्भों, विभिन्न पृष्ठभूमियों, विभिन्न परिवेशों और विभिन्न संस्कृतियों में नारी नियति का चित्रण किया है।इनकी स्त्री पात्राएँ प्रायः विद्रोह भाव से भरी रहती हैं। उनका लेखन स्त्री अस्मिता की पहचान की माँग करता हुआ सम्पूर्ण स्त्री-समूह को समर्पित है, जिससे भारतीय स्त्री विमर्श आंदोलन को एक नई दिशा एवं गति प्राप्त होती है।

डॉ सूर्य प्रताप

सहायक प्राचार्य

हिंदी विभाग

जी एम आर डी ,महाविद्यालय,

मोहनपुर, समस्तीपुर