59. जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हिन्दी – डॉ. श्याम लाल
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जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हिन्दी
डॉ. श्याम लाल
हिन्दी भाषा की पृष्ठभूमि
मानव जीवन में भाषा का एक विशेष महत्त्व है। यह समाज एवं संस्कृति की संवाहिका है। किसी भी देश का प्रतिबिम्ब उस देश की संस्कृति एवं भाषा में समाहित होता है तथा हिन्दी तो कालान्तर से ही साधु-सन्तों, महापुरुषों, फकीरों, वेद-ग्रन्थों, आध्यात्मिक विद्वानों, पर्यटकों, धार्मिक गुरुओं, साधकों और जनसामान्य के मध्य वैचारिक आदान-प्रदान की प्रमुख माध्यम रही है। हिन्दी भाषा विशाल शब्द संपदा के साथ-साथ असीमित साहित्य एवं विश्व के अनगिनत शब्दों को आत्मसात कर इसने जहाँ वैश्विक उदारता का परिचय दिया है, वहीं यह अपनी वैज्ञानिकता के लिए समूची भाषाओं में सर्वोपरि स्थान भी रखती है।
हिन्दी भारत की मातृ एवं राष्ट्र भाषा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि हिन्दी भारत की राजभाषा है। इस प्रकार 26 जनवरी, 1950 में हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया गया। भारत के बाहर श्रीलंका, म्यांमार, गुमाना, मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, कनाडा, रूस, बलगारिया, अमेरिका, जर्मनी, जापान आदि देशों में आज हिन्दी बोलने व पढ़ने वालों की संख्या बहुत अधिक है।
हिन्दी भारत की राष्ट्र तथा संवैधानिक रूप से राजभाषा होने से विदेशों में भी हिन्दी के प्रति गहन रुचि का विकास हुआ है। हिन्दी राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा तथा जनभाषा के सोपान को पार करके विश्व की शीर्ष भाषा बनने की ओर अग्रसर है। आज हिन्दी को जो विश्व दर्जा प्राप्त हुआ है, उसमें प्रवासी भारतवासियों का उल्लेखनीय योगदान है। भाषा विकास से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएं होंगी, उनमें हिन्दी भी एक प्रमुख भाषा होगी।
जनसंचार माध्यमों में हिन्दी
संचार माध्यमों का विकास मानवीय सभ्यता के विकास से जुड़ा हुआ है। यूरोप में जो औद्योगिक क्रांति हुई उसके परिणाम स्वरूप संचार माध्यमों की मांग में तेजी आयी है। इसी औद्योगिक क्रान्ति ने संचार माध्यमों के विकास का मार्ग खोल दिया। आज स्थिति यह है कि हमारे पास जनसंचार के अनेक साधन उपलब्ध हैं। समाचार-पत्र-पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, टेलीफोन, मोबाईल, फैक्स, इंटरनेट, व्हॉटसएप, इन्सटाग्राम, वेब आदि इस प्रकार के साधन हैं जो एक मिनट में सूचना को हजारों मील दूर तक पहंुंचा देते हैं और इसका उत्तर भी तुरन्त प्राप्त हो जाता है।
वस्तुतः भाषा स्वयं संचार का माध्यम है और साहित्य तथा पत्रकारिता की अभिव्यक्ति में तो भाषा की अनिवार्यता अधिक है। विश्व में हिन्दी की विकास यात्रा जनसंचार के सभी माध्यमों इन्टरनेट, पत्रकारिता, टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाईल फोन, रेडियो आदि के साथ-साथ चल रही है। विज्ञान, तकनीक, वाणिज्य तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिन्दी भाषा अपनी मजबूत स्थिति बनाती जा रही है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूचि में भारत की कुल 22 राष्ट्रीय भाषाओं का उल्लेख है। उन में से हिन्दी एक राष्ट्रीय भाषा है लेकिन अन्य भाषाओं की तुलना में हिन्दी इसलिए आगे निकल जाती है क्योंकि इसका आकार बहुत ही व्यापक है और इसे आंचलिकता या क्षेत्र विशेष की सीमा में नहीं बांधा जा सकता।
हिन्दी को वैश्वीकरण पहचान देने में जनसंचार की भूमिका अहम है। विश्व में संचार माध्यमों की भाषा के रूप में हिन्दी प्रगति देखने लायक है। हिन्दी समाचार पत्र एवं अन्य इलैक्ट्रोनिक समाचार माध्यम अब अंग्रेजी के समाचारों का अनुवाद नहीं करते। सूचना एवं प्रौद्योगिकी तकनीक के उपकरणों ने दुनिया की दूरियों को समाप्त कर दिया है। हिन्दी संवाद एजेंसियों – ‘भाषा’ और समाचार का दायरा भूमंडलीय हो गया है। हिन्दी दैनिकों का एक विशाल पाठक तैयार हुआ है। अतः विभिन्न समाचार माध्यमों की हिन्दी के प्रचार और प्रसार में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिसका वर्णन निम्न रूप से किया जा रहा है –
रेडियो प्रसारण में हिन्दी भाषा
जनसंचार के माध्यम में रेडियो की भूमिका हमेशा प्रमुख रही है। ‘बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय’ के आदर्श को समर्पित रेडियो ने अपनी विकास यात्रा के कई वर्ष पूरे कर लिए हैं। श्रव्य माध्यम के क्षेत्र में रेडियो एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, जिसमें हिन्दी भाषा का वर्चस्व हमेशा से रहा है। यह हिन्दी के लिए एक क्रान्तिकारी आविष्कार साबित हुआ है जिसके प्रभाव से दूर-दराज के जन समुदाय तक संदेश को पहुँचाया जा सकता है।
रेडियो प्रसारण ने हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से विश्व के कोने तक पहुँचा दिया है। सिर्फ ऑल इंडिया रेडियो एवं आकाशवाणी से हिन्दी भाषा में कार्यक्रम प्रस्तुत नहीं होते, बल्कि विश्व के अन्य देशों के रेडियो से भी हिन्दी प्रसारण होते हैं। उनमें प्रमुख ‘बी.बी.सी. हिन्दी’, ‘वायस ऑफ अमेरिका’, ‘जापान का एन.एच.’ (एन.एच.के.), ‘जर्मनी का ‘डॉयचे वेले’, रूस का ‘आरयूवीआर’, ईरान का ‘आईबी’ आदि प्रसारण संगठन भी हिन्दी भाषा में अपने रेडियो कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। जिससे हिन्दी का विश्वव्यापी सफर आसान हुआ है।
अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण पर हिन्दी भाषा को महत्त्व देने में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोेरेशन यानी बी.बी.सी. का नाम सबसे पहले आता है। इंग्लैंड का यह सुप्रसिद्ध संगठन हिन्दी, उर्दु, बंग्ला, नेपाली भाषाओं में रेडियो कार्यक्रम प्रसारित करता है। 11 मई, 1940 को बी.बी.सी. लन्दन ‘हिन्दी सेवा’ की ‘हिन्दुस्तानी’ सेवा ने अपना पहला प्रसारण किया। हिन्दी सेवा पिछले 65 वर्षों से मानवीय लोक के लिए ताजा समाचार और सामयिक विषयों पर कार्यक्रम प्रसारित करती आ रही है।
जर्मनी का प्रसारण संगठन ‘डायचे वेले’ की वेबसाईट से यह जानकारी प्राप्त होती है कि 15 अगस्त 1964 से हिन्दी में ‘डायचे वेले’ के रेडियो कार्यक्रमों का प्रसारण हो रहा है। हर दिन 45 मिनट के कार्यक्रम में हिन्दी श्रोताओं के लिए जर्मनी और यूरोप के अलावा भारत और विश्व के प्रमुख स्थानों में सामयिक और संतुलित रिपोटों का प्रसारण किया जाता रहा है।
‘एनएचके वर्ल्ड रेडियो’ जापान की हिन्दी सेवा 1 जून, 1940 को शुरु हुई थी। इसी बीच कुछ समय के व्यवधान के बाद 1 अक्तूबर, 1955 से यह फिर आरम्भ हुई और तब से लगातार जारी है। इस सेवा के अन्तर्गत अभी दो सभाओं में समाचार और अन्य कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल ‘सीआरआई’ से हिन्दी, उर्दू, बंग्ला, तमिल और नेपाली भाषा में प्रसारण होते हैं। पहले ‘रेडियो पेकिंग’ कहे जाने वाले इस संगठन ने 1959 में अपनी हिन्दी विभाग स्थापना की तैयारी आरम्भ कर दी थी। 15 मार्च, 1959 को यहाँ से हिन्दी में प्रसारण की औपचारिक शुरुआत हुई थी।
रूस की राजकीय रेडियो कंपनी ‘दि वायस ऑफ एशिया’ यानी रेडियो रूस की हिन्दी सेवा प्रसारण प्रतिदिन दो सभाओं कुछ डेढ़ घंटे की अवधि के हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित करती है। इसमें प्रमुख हैं – समाचार समीक्षा, हमारी डाक, रूस देश की झांकी, मित्रों का क्लब, पन्नों की समीक्षा, हमारे संवाददाता, टेलीफोन पर, बिजनेस क्लब, संगीत और रूसी भाषा का पाठ आदि।
ईरान की प्रसारण संस्था ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ब्राडकास्टिंग (आई आर आई बी)’ की रेडियो नाम से हिन्दी सेवा है। इसके अन्तर्गत नियमित रूस से हिन्दी कार्यक्रमों के प्रसारण होते हैं।
टेलीविजन चैनल पर हिन्दी की भूमिका
टेलीविजन पर प्रस्तुत विभिन्न कार्यक्रमों तथा विज्ञापनों के माध्यम से हिन्दी भाषा जन-जन तक पहुंच रही है। समाचार चैनलों की पृष्ठभूमि में हिन्दी को महत्व का किस्सा और भी अनोखा है। एक समय था जब हिन्दी चैनलों की पहुंच सम्पूर्ण भारत में नहीं थी, परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी के उपकरणों ने इनको आज विश्वव्यापी बना दिया है। टेलीविजन चैनल के समाचारों तथा मनोरंजन के विभिन्न कार्यक्रमों में हिन्दी भाषा एक अहम भूमिका निभा रही है। इसी भाषा के माध्यम से आज टेलीविजन उद्योग में अरबों रुपये का व्यवसाय चल रहा है। 9वें दशक के अन्तिम में जिस तरह टेलीविजन उद्योग में एक क्रान्ति आई उसी तरह भाषा की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण बनी। विशेषकर हिन्दी भाषा की एक नई पहचान बनी और हिन्दी लिखी, पढ़ने व समझी जाने वाली भाषा से बाहर निकलकर सुनने, बोलने तथा देखने वाली भाषा बनी। हिन्दी में 24 घण्टे समाचार प्रसारित करने हेतु कई समाचार टीवी चैनल अस्तित्व में आए, जिनमें डीडी न्यूज, जी न्यूज, स्टार न्यूज, आज तक, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज, एनडीटीवी इंडिया तथा व्यवसायिक समाचारों में जी बिजनेस, आवाज आदि प्रमुख हैं। इन समाचार चैनलों द्वारा आज हिन्दी भाषा के विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समाचार 24 घण्टे प्रसारित किए जा रहे हैं। इन चैनलों की पहुँच केवल भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के कई देशों में है। इससे हिन्दी को एक प्रभावशाली अस्तित्व प्राप्त हुआ है।
भारत में दूरदर्शन का प्रारम्भ समाज एवं शिक्षा के विकास हेतु हुआ था। आज दूरदर्शन के माध्यम से जीवन शैली ही बदल रही है। जिस तत्परता से देश में दूरदर्शन केन्द्रों का जाल बिछा है, उसी तत्परता से भारतीय संस्कृति भी परिवर्तित हुई है।
वर्तमान में निजी टेलीविजन चैनल भी हिन्दी की ओर आकर्षित हुए हैं, क्योंकि जिस तरह से हिन्दी जनभाषा तथा संस्कृतनिष्ठ एवं अपने प्रभावशाली अस्तित्व के लिए प्रसिद्ध है उसी तरह से इस भाषा की मजबूत पकड़ से अधिक धन भी कमाया जा सकता है। न्यूज टेलीविजन के अतिरिक्त कई निजी टीवी चैनल मनोरंजन के क्षेत्र में भी हिन्दी माध्यम से आगे आए हैं। आज के दौर में जिस तरह से स्टार टीवी, जीटीवी, सोनी टीवी, इमेजन इंडिया टीवी, कलर्स टीवी ने अपने चैनलों पर प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रम चलाए हैं। उससे उनको तो विश्व व्यापी पहचान मिली ही है, लेकिन इन टीवी पर चलाए गए कार्यक्रमों में भाग लेने तथा देखने के लिए युवाओं ने हिन्दी पढ़ने-लिखने, सुनने और बोलने हेतु विशेष प्रशिक्षण लिया है।
सोनी टीवी पर ‘इंडियन आइडियल’, जी टीवी पर ‘सारेगामापा’ ‘संगीत का विश्व युद्ध’, ‘सारेगामापा सुपर स्टार’, स्टार टीवी पर ‘अमूल वायस ऑफ इंडिया’, ‘अमूल छोटे उस्ताद’ आदि कार्यक्रम विश्वभर में प्रसिद्ध हुए हैं। देश और विदेश के बच्चे तथा युवा प्रतिभागी इसमें भाग लेने के लिए आगे आए हैं। विश्व के कई देशों से विभिन्न समुदायों के बच्चों से लेकर युवा वर्ग तथा वरिष्ठ वर्ग इस प्रतिस्पर्धा की ओर आकर्षित हुए हैं। भारतीय गीत और संगीत के इस कार्यक्रम की प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए हिन्दी सीखने के लिए विवश कर दिया है।
आस्था, संस्कार, श्रद्धा टेलीविजन पर प्रसारित धार्मिक कार्यक्रम भी विश्व प्रसिद्ध हुए हैं। विशेषकर स्वामी रामदेव का योगज्ञान भी विश्व विख्यात हो गया है, जिसका उच्चारण व प्रसारण हिन्दी में ही हो रहा है। इन धार्मिक कार्यक्रमों में जहाँ टीवी चैनलों का व्यवसाय खूब चल रहा है, वहीं हिन्दी की लोकप्रियता भी विश्व पटल पर नई पहचान बना रही है।
इंटरनेट पर हिन्दी
इंटरनेट के विश्वव्यापी बाज़ार में सबसे बड़े तीन देशों की भाषा अंग्रेजी नहीं है। गैर अंग्रेजी भाषा का दबदबा इस बात की ओर संकेत करता है कि इंटरनेट की दुनिया में हिन्दी का महत्त्व और अधिक बढ़ने जा रहा है। इंटरनेट बाजार में अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी में से अमेरिका में साईबर की भाषा अंग्रेजी है बाकी देशों का प्रभुत्त्व उनकी अपनी भाषा का है लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने लाभ के लिए हिन्दी को अपनाने में आगे आ रही हैं। उसमें गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, याहू, आई.बी.एम. जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ को हिन्दी भाषा से संभावित लाभ की अपार क्षमता है, क्योंकि ये कंपनियाँ यह जानती हैं कि करोड़ों की आबादी के लिए व्यापार के क्षेत्र में हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से भरपूर लाभ कमाया जा सकता है।
आधुनिक संचार माध्यम में इंटरनेट एक ऐसा नेटवर्क है, जो विष्व स्तर पर लाखों कंप्यूटरों को परस्पर जोड़ता है और व्यवसाय, शैक्षणिक संस्था, मनोरंजन जगत, साहित्यिक क्षेत्र, समाचार, ज्ञान-विज्ञान, विभिन्न प्रकार की जानकारी, घटना-दुर्घटना, आम जनसमुदाय, गैर सरकारी तथा सराकारी संगठनों का विश्व व्यापी संप्रेषण एवं संचार का मुख्य आधार भाषा है। इस समय इंटरनेट पर लाखों करोड़ों सर्वर कंप्यूटर हैं जो कि किसी न किसी प्रकार की सूचना या सेवा प्रदान कर रहे हैं। विश्व के फलक पर ‘वेब दुनिया’ के प्रवेश से देव नागरी लिपि भी रूपांतरित हो चुकी है। भारतीय भाषाओं को जो इससे उपलब्धि प्राप्त हुई वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस दृष्टि से हिन्दी के पहले पोर्टल का विकास ‘वेब दुनिया डाट कॉम’ (इंडिया) लि. ने किया था जो 23 दिसम्बर, 1999 को इंटरनेट पर उपलब्ध था। इस पोर्टल के जनक विनय छजलानी का कहना था कि एक हिन्दी भाषी परिवार की इंटरनेट पर देवनागरी लिपि की शक्ति और सम्भावनाएँ उजागर हो रही हैं। अल्प समय में ही यह साईट अत्यधिक लोकप्रिय हो गई है, जिसके माध्यम से ‘वेब दुनिया’ हिन्दी समाचार, संस्कृति, मनोरंजन, ई-व्यवसाय, खेल संचार, सामयिक घटनाएँ, ज्योतिष, विविध फोटो आदि अनेक क्षेत्रों की सूचनाओं का लाभ देश-विदेश में बसे करोड़ों हिन्दी भाषी ले रहे हैं। वर्ष 1997 में इंटरनेट पर पहले भारतीय भाषाई समाचार पत्र ‘नई दुनिया’ को लाने का श्रेय भी वेब दुनिया को ही जाता है। यह किसी भारतीय भाषा की पहली वेब साईट है। यूनिकोड, आई.एस.सी.आई.आई तथा इंस्क्रीप्ट जैसे मानक को आधार मानकर ‘वेब दुनिया’ ने अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। इस साईट में पाठकों की भागीदारी का ध्यान रखा गया है। इस प्रकार हिन्दी और देवनागरी लिपि को विश्व के मानचित्र पर इंटरनेट और वेबसाईट के माध्यम से स्थापित करने का श्रेय ‘नई दुनिया’ को है। इस प्रकार से कंप्यूटर, इंटरनेट और वेबसाईट में देवनागरी के प्रयोग से नई-नई सम्भावनाएँ उभर रही हैं। जापान की एक कम्पनी देवनागरी में तीव्रगति से मुद्रण प्रणाली को विकसित कर चुकी है। आज इंटरनेट व मोबाइल व ‘हिन्दी नेट’ पर हम हिन्दी भाषा में लिखित कहानी, कविता, गीत, निबन्ध, लेख-आलेख नवीनतम जानकारी को आसानी से हासिल कर सकते हैं। हिन्दी के शब्दकोश इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, जो अनुवाद के क्षेत्र में बहुत ही सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
वेब-पत्रकारिता
इंटरनेट पर वेब-पत्रकारिता साईट ने हिन्दी पत्रकारिता को भी विश्वव्यापी बना दिया है। सूचना क्रान्ति के इस युग ने वेब-पत्रकारिता का नवीनतम अध्याय खुल गया है। आज मुद्रित माध्यम की पत्रकारिता ने अपनी वेबसाईट आरम्भ कर दी है। वैश्वीकरण की इस दौड़ में वह भी शामिल हो गई है। आज वैश्वीकरण के युग में आम आदमी अखबार पढ़ने में कम समय खर्च करते हैं, जबकि देखने के लिए अधिक से अधिक सौ मिनट। लेकिन युवा पीढ़ी की बात की जाए तो वह अखबार पढ़ने में अधिक समय नहीं लगाते जबकि टेलीविजन देखने और इंटरनेट देखने में अधिक समय बिताना पसन्द करते हैं। कंप्यूटरों की बढ़ती संख्या और ब्राड बैंड के फैलाव से युवा पीढ़ी अब टेलीविजन समाचारों, मनोरंजन तथा विचारों एवं सूचनाओं के लिए अपनी-अपनी वेबसाईटों पर ही जाना पसन्द करते हैं। इसलिए मीडिया जगत ने भी विभिन्न भाषाओं के माध्यम से पाठकों तक अपने समाचार पत्रों को शीघ्रता से उन तक पहुँचाना आरम्भ कर दिया है। वेबसाईटों में समाचार पढ़ने और देखने के अलावा आडियो-वीडियो का भी बेहतर प्रयोग किया जा रहा है। जो रेडियो और टेलीविजन की कमी को भी दूर करता है। हिन्दी वेब-पत्रकारिता में इस समय जिन अखबारों की वेबसाईट है, उनमें ज्यादातर वही सामग्री उपलब्ध होती है जो उनके समाचार पत्रों में छपती है। चौबीस घंटों समाचारों, विचारों और सूचनाओं को अपडेट करने वालों की संख्या अधिक है। आज इंटरनेट में हिन्दी समाचार पत्र-पत्रिकाओं की विभिन्न साईट उपलब्ध हैं जो पूरे विश्व में हिन्दी भाषी लोगों तक नवीनतम जानकारी तथा सूचनाएँ भेजने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसमें प्रमुख हैं ‘वेब दुनिया’, ‘समाचार’, ‘नवभारत टाईम्स’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘जागरण’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘बी.बी.सी. हिन्दी’, ‘नई दुनिया’, ‘आई.बी.एल.खबर’, ‘इक्नोमिक टाईम्स’, ‘वायस ऑफ अमेरिका’, ‘वेब रेडियो हिन्दी’ ‘सेवा’ ‘सृजन गाथा’, ‘अभिव्यक्ति’, ‘साहित्य कुंज’, ‘भारत दर्शन’, ‘जनमानस’, ‘रचनाकार’ और ‘अनुरोध’ आदि इंटरनेट पर अपनी-अपनी वेबसाईटों के माध्यम से विभिन्न विषयों जैसे – विश्व समाचार, राष्ट्रीय समाचार, विज्ञान कारोबार, आविष्कार, मल्टी मीडिया, सामयिक घटनाएं, खेल जगत, मनोरंजन, धर्म संसार, कला और साहित्य तथा संस्कृति आदि क्षेत्रों से पूरी दुनिया को अवगत करवा रहे हैं। जिससे हिन्दी की पकड़ मजबूत बनती जा रही है और हिन्दी भाषा का प्रचार पूरे विश्व में फैल रहा है तथा सम्बन्धित कंपनी को इससे आर्थिक लाभ भी हो रहा है।
हिन्दी में ब्लॉग का वर्चस्व
इंटरनेट उपभोक्ताओं में करवाए गए सर्वेक्षण में यह बात उभर कर सामने आई है कि 44 प्रतिशत लोग हिन्दी में इंटरनेट का उपयोग करने की आकांक्षा रखते हैं। इन उपभोक्ताओं का मानना है कि अगर हिन्दी में भी इंटरनेट की समस्त सुविधाएँ उपलब्ध हों तो वे इंटरनेट पर भाषा के रूप में हिन्दी को ही प्राथमिकता देंगे। इंटरनेट पर हिन्दी के इस बढ़ते उपयोग में बहुत अधिक भूमिका ब्लॉग लेखन की भी है। हिन्दी में लेखकगण ब्लॉग के स्थान पर चिट्ठाकारी शब्द को प्रचलित करने में लगे हुए हैं। एक आंकड़े के अनुसार भारत में करीब अढाई करोड़ से भी अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिसमें करीब 86 प्रतिशत लोग नियमित तौर पर या तो ब्लॉग लिखते हैं या पढ़ते हैं। अतः ब्लॉगिंग के माध्यम से हिन्दी भाषा में एक खिड़की खुलनी आरम्भ हुई है। इसके परिणामस्वरूप हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में विषय, तकनीक और अनुभव से लेकर भाषा शैली तक अद्भुत वैविध्य देखने को मिल रहे है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके लेखकों में आम हिन्दी लेखकों और पत्रकारों की तुलना में कहीं ज्यादा अपना रास्ता खुद बनाने की लग्न मौजूद है, जिसका देर-सबेर हिन्दी भाषा पर निर्णायक असर पड़ना तय है।
हाल के वर्षों में ब्लॉग लेखन इंटरनेट पर अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। ब्लॉग लेखन के पीछे भी मीडिया की स्वतन्त्रता की अवधारणा काम करती है। मीडिया के परम्परागत माध्यमों में समाचार पत्र, टीवी, रेडियो आदि के बारे में कहा जाता है कि इनका पूरी तरह से कॉरपोरेटीकरण हो चुका है। ये कहने मात्र को जन माध्यम रह गए हैं। इन माध्यमों में जनता का पक्ष कम ही सामने आता है। वास्तव में विज्ञापनदाताओं का सच सामने आता है। ब्लॉग के बारे में यह माना जाता है कि इसके माध्यम से जनता के विचार अपने मूल रूप में सामने आते हैं, क्योंकि इंटरनेट पर इनको कोई माध्यम नियंत्रित नहीं कर रहा होता है और ब्लॉग के माध्यम से अभिव्यक्त विचार अधिक सत्य माना जाने लगा है। ब्लॉग लेखक की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर महीने हजारों नए ब्लॉग लेखक पैदा हो रहे हैं। हिन्दी समेत भारतीय भाषाओं के बारे में यह अनुमान लगाया जा रहा है। लाखों लोग भारतीय भाषाओं में ब्लॉग लेखन कर रहे हैं।
ब्लॉगिंग की शुरुआत स्व-कथन या डायरी मूलक लेखन से हुई थी और आगे भी यही व्यक्तिगत तेवर ब्लॉग की पहचान को बनाए रखेंगे। लेकिन दूसरी तरफ समसामयिक पत्रकारिता, साहित्य, फिल्म-कला समीक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, धर्म, दर्शन आदि से जुड़े पहलू भी हिन्दी ब्लॉग जगत में निखर कर सामने आ रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ब्लॉग तकनीकी तौर पर बहुत ज्यादा समृद्ध हैं। लेख के साथ-साथ इसमें ऑडियो-विजुअल क्लिपिंगस भेजे जा सकते हैं और इंटरनेट पर मौजूद हर तरह की सामग्री की कड़ियां (लिंक्स) भी इसके साथ जोड़ी जा सकती हैं।
हिन्दी में इंटरनेट की दुबारा वापसी के पीछे बहुत बड़ी भूमिका ब्लॉग की मानी जा रही है। इंटरनेट के दौर में ‘नेटजाल डॉट कॉम’ ‘लिटरेट वर्ल्ड डॉट कॉम’ जैसी वेबसाईट बड़ी देशी-विदेशी कंपनियों द्वारा लांच की गई थी। लेकिन जल्दी ही इनको अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा था। यह मान लिया गया है कि हिन्दी में अभी साक्षरता और समझ का स्तर इतना व्यापक नहीं हुआ कि उसके भाषा-भाषी इंटरनेट जैसे मीडिया के नए माध्यम से जुड़ सकें। लेकिन आज ‘प्रभासाक्षी डॉट कॉम’, ‘जागरण डॉट कॉम’, ‘वेबदुनिया डॉट कॉम’ जैसे वेबसाईट के उपयोगकर्ता की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि ये वेबसाईट मुनाफा कमाने लगी हैं। ब्लॉग ने हिन्दी में इंटरनेट को प्रासंगिक बना दिया है और हिन्दी ब्लॉग लेखकों का विस्तार हो रहा है।
निष्कर्ष
वैश्वीकरण के दौर में आज मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी विश्व भाषा बन गई है। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों ने हिन्दी को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दी है। आज हिन्दी धर्म, साहित्य, अध्यातम, मातृ भाषा ही नहीं रही, बल्कि शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, मनोरंजन, व्यवसाय, धनोपार्जन तथा रोजगार की भाषा भी बन चुकी है। जिस तरह से जनसंचार के विभिन्न माध्यमों ने हिन्दी को विश्व स्तर पर नई पहचान दिलवाई है, उसी तरह टेलीविजन पर प्रसारित कई कार्यक्रमों को हिन्दी ने विश्व व्यापी बनाकर उन्हें नए खिताब से भी नवाज़ा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हिन्दी की लोकप्रियता को देखकर उसे आर्थिक जगत की भाषा बनाकर और उससे लाभ कमाने की नीति को अमलिजामा पहनाया है। इस प्रकार संचार माध्यमों में प्रयुक्त हिन्दी ने समयानुसार अपने रूप को बदल कर जहाँ अपनी जिजिविषा को वाणी दी, वहीं अपने व्यवहारिक रूप से अधिकाधिक लोगों को अपना श्रोता, दर्शक, पाठक बनाकर अंततः उन्हें हिन्दी भाषी बना दिया है।
आज हिन्दी का समाज तथा व्यवसाय पूरे विश्व में फैला हुआ है। संसार के एक कोने से दूसरे कोने तक हिन्दी के प्रचार और प्रसार में जनसंचार माध्यमों की अहम भूमिका है। इस समय संचार का ऐसा कोई माध्यम नहीं है जिस पर हिन्दी का प्रभाव न हो। निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि संचार के सभी माध्यमों में हिन्दी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। ये संचार के माध्यम अपने भाव, विचार, अवधारणा मत और मान्यता जनसमुदाय तक पहुँचाने के लिए जिस भाषा को माध्यम बना रहे हैं, वह हिन्दी भाषा ही है। जनसंचार माध्यम में आज के दौर में हिन्दी का व्यापक प्रयोग हो रहा है। भले ही यह हिन्दी शुद्ध न हो, लेकिन हिन्दी की एक नई शैली विकसित हो रही है जो शायद आज के वैश्वीकरण के दौर में हमारी जरूरत बन गई है। लेकिन हमें इस बात से भी सचेत होने की आवश्यकता है कि संचार माध्यमों के अति उदारता के चलते हम हिन्दी के वास्तविक स्वरूप को न खो दें, क्योंकि विभिन्न संचार माध्यमों में हिन्दी के अलग-अलग रूप प्रयुक्त होते हैं। रेडियो श्रव्य माध्यम है। अतः इसकी भाषा केवल सुनी जा सकती है। इसलिए यह अन्य माध्यम विशेषकर दृश्य माध्यम से भिन्न है। विज्ञापन माध्यम जबकि अधिक से अधिक बेचने तथा लाभ कमाने के लिए भाषा को तरोड़-मरोड़कर आकर्षक बनाते हैं। उसमें अंग्रेजी और हिन्दी शब्दों का प्रयोग संयुक्त रूप से हो रहा है। समाचार पत्र और पत्रिकाओं की भाषा काफी हद तक परिष्कृत होती है। विशेषकर टेलीविजन चैनलों के विभिन्न कार्यक्रमों तथा फिल्मों में हिन्दी भाषा के साथ अधिक छेड़छाड़ हुई है और आगे निरन्तर हो रही है जो कि हिन्दी के लिए शुभ संकेत नहीं है। समय के साथ-साथ परिवर्तन भी होता रहता है। लेकिन हिन्दी भाषा के साथ इतना परिवर्तन भी न हो कि इसका स्वरूप ही बिगड़ जाए। परिणाम स्वरूप वैश्वीकरण के प्रभाव ने संसार की सीमा को तोड़ दिया है। इसको तोड़ने में संचार के प्रमुख माध्यम तथा जनसंचार क्रान्ति के औजार कंप्यूटर, इंटरनेट, रेडियो, टेलीविजन, वेबसाईट, टेलीफोन, मोबाईल फोन, ई-मेल आदि ने प्रमुख भूमिका निभाई है। हालांकि आरम्भ में इन पर अंग्रेजी भाषा का ही अधिकार था। लेकिन धीरे-धीरे हिन्दी ने इसका अधिकार समाप्त कर दिया है और आज हिन्दी भाषा का प्रयोग विभिन्न संचार माध्यमों में हो रहा है तथा इससे ही हिन्दी भाषा विश्व की शीर्ष भाषा बनने की ओर अग्रसर है।
सहायक पुस्तकें –
1. मीनाक्षी सिंह, जनसम्पर्क प्रबन्धन, आमेगा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली।
2. डॉ. योगेश कुमार पाण्डेय, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और बाल विकास, सत्यम पब्लिशिंग हाऊस दिल्ली।
3. डॉ. वसुधा गाडगिल, मीडिया की भाषा, अध्यन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली।
4. हरिबाबू कंसल, विश्व में हिन्दी, सन्धाशु प्रकाशन, नई दिल्ली।
5. डॉ. अशोक कुमार शर्मा, संचार क्रान्ति और हिन्दी पत्रकारिता, विश्वविद्यालय प्रकाशन वाराणसी।
6. प्रो. हरिमोहन, आधुनिक संचार और हिन्दी, तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली।
7. राम शरण जोशी, मीडिया और बाजारवाद, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली।
सहायक पत्रिकाएं –
1. आजकल, सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय, नई दिल्ली, 2009.
2. गगना॰चल, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद, नई दिल्ली, 2009.
3. विदूर, भारतीय मुद्रण संस्थान नई दिल्ली, 2008-09.
4. बया, अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
5. भाषा, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, 2008-09.
सहायक इंटरनेट पत्रिकाएं –
1. अभिव्यक्ति www.abhviyakti-hindi.org
2. सृजनगाथा www.srijangatha.com
3. साहित्य कुंज www.sahityakunj.net
4. अनुरोध www.anurodh.net
5. जनमानस www.janmans.com
6. वेबदुनिया www.webdunia.com
डॉ. श्याम लाल
सहायक आचार्य,
राजकीय स्नात्कोत्तर महाविद्यालय,
बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय