May 23, 2023

1.मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों  में आधुनिक सन्दर्भ – अफीफा फातिमा शेक

By Gina Journal

Page No: 5-12

नीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों  में आधुनिक सन्दर्भ – अफीफा फातिमा शेक

शोध सार : प्रस्तुत शोध पत्रिका का मुख्य उद्देश मनीषा कुलश्रेष्ठा की कहानियों में आधुनिक संदर्भ को रेखांकित करना है। आधुनिकता आज जीवन का अंग बन गई है। विचार एवं भावों में परिवर्तन होने से ही आधुनिकता आ जाती है, जिसका संबंध अतीत से नहीं वर्तमान से जुड़ा होता है। जो जीवन हमें जीना है वह बेहतर तरीके से कैसे जिया जाना चाहिए? उसमें जो नवीनता है वह बिना किसी का आत्मसम्मान खोये समृद्ध बन सकता है? यह है आधुनिकता। इसमें विचार स्वतंत्र तो होता ही है। आधुनिकता में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर विशेष जोर दिया जाता है। आधुनिकता की उपज ही पूंजीवादी सभ्यता, व्यक्तिगत चेतना पर ज्यादा जोर रहता है। फलस्वरूप सिफारिश एवं रिश्वत, बदलता शिक्षा स्तर, अकेलापन, पाश्चात्य प्रभाव, बाहरी दिखावा, बदलते परिपेक्ष्य आदि विकृतियां पनपी। यह सारी आधुनिक भाव-बोध की ही उपज है, जिसे मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहानियों के माध्यम से वर्णित करने का प्रयास किया है।

       आधुनिकता एक प्रक्रिया है, प्रवृत्ति मूल्य है जो रूढ़ियों तथा सनातन धर्म परंपराओं से विद्रोह करते हुए उनको नकारने का स्वर बुलंद करती है और साथ में नवीनता एवं प्रयोग धर्मिता के प्रति आग्रह भी प्रकट करती है। आज की अर्थात् वर्तमान की स्थिति का यथार्थ परिज्ञान ही आधुनिकता बोध का मूल आधार है और वर्तमान का प्रभावी सत्य है। एक ऐसी बौद्धिक तथा मानसिक स्थिति है, समस्त परिवेश और समाज की जटिल एवं गहनतम समस्याओं के फलस्वरूप उद्भुत होकर अपने समकालीन जीवन को संस्कार प्रदान करती है। वस्तुतः आधुनिकता वर्तमान के युगीन यथार्थ को सजग रूप में भोगने और उस भोग से जीवन और जगत् के नए संदर्भ देखने तथा जीने की क्षमता है। यह एक मनोवृति है जो विभिन्न स्थिथियों में प्रतिफलित होती रहती है। लेखिका ने आधुनिकता को साहित्य में स्थान दिया है। समाज में बदल रही परिस्थितियों एवं व्यक्ति की सोच में आए परिवर्तन, नारी की बदलती स्वतंत्र सोच को जगजाहिर करने के दृश्य को अंकित किया है। आधुनिक साहित्य वास्तविक जीवन का यथार्थ चित्रण करता है।

मुख्य शब्द :  आधुनिक साहित्य,  बाहरी दिखावा, क्षण का महत्व, सिफारिश एवं रिश्वत, असुरक्षित जीवन, पाश्चात्य प्रभाव, बदलते  परिपेक्ष्य

 परिचयमनीषा कुलश्रेष्ठ ने आधुनिकता को साहित्य में स्थान दिया है। समाज में बदल रही परिस्थितियों एवं व्यक्ति की सोच में आए परिवर्तन, नारी की बदलती स्वतंत्र सोच को जगजाहिर करने के दृश्य को अंकित किया है। आधुनिक साहित्य वास्तविक जीवन का यथार्थ चित्रण करता है। आधुनिक साहित्य मे बाहरी दिखावा करने की प्रवृत्ति तीव्रता से                                                                                    बढ़ रही है । उस प्रवृत्ति ने आत्मीय रिश्तो को खोखला बना दिया है। रिश्तो की कद्र करना एवं स्वयं को दिखावे की प्रवृत्ति ढाल लेना ही व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य बनकर रह गया है। पाश्चात्य जगत की क्षणिक चकाचौंध से आकर्षित होकर युवा वर्ग उस और दौड़ रहे हैं। वह वहां की संस्कृति को, वहां के फैशन को अपनाकर जो व्यवहार एवं दिखावा करते हैं। वह उनमें इस कदर जड़े जमाए बैठा है कि वह दिखावा करने की प्रवृत्ति से स्वयं की औकात से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। आज समाज में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं की औकात से कहीं अधिक दिखावा करना बेहतर समझता है। समाज में प्रत्येक रिश्तो में भी जो एक दिखावटीपन है वह दिखाई देता है। प्राचीन समय में जहां पति-पत्नी का रिश्ता सबसे पवित्र माना जाता था, आज वह भी मात्र दिखावा बनकर रह गया है। ‘क्या यही वैराग्य’ कहानी में सुमेधा के ससुराल वालों में दिखावा करना बेहद सामान्य बात हो गई है जिसे स्वयं पुखराज की मां व्यक्त करती है “संपन्नता तो जैसे टपकी पड़ती है इस परिवार में। अभी तो देखना जब काका सा और बुआ सा के घर की बेटियां-बिंदणियाँ आएगी चेहरा भले ही आधा घुंघट से ढका होगा मगर सोने के कामवाली पोशाकें और हीरे-मोती-जड़े लकदक जेवर। वह यही सोच कर मुस्कुरा दी।”1 तभी समारोह के दौरान सुमेधा की सास, बहू को जेवर और भारी साड़ी पहनने को कहती है ताकि समाज में उनकी मान-मर्यादा का पता लोगों को, उनकी बिरादरी वालों को भी पता चले। “उसे आदेश था कि बस बहू की तरह तैयार हो जाए, जेवर कपड़े भी उन्होंने तय कर दिए थे और उसकी अलमारी में रख दिए थे। उन्हें पता जो था कि उनकी डॉक्टर बहू हल्की साड़ी और पतली सोने की चेन पहन कर खड़ी हो जाएगी सो आज उसकी नहीं चलेगी। घर में इतना बड़ा आयोजन जो है, पूरे खानदान की औरतें आऐंगी तो क्या सोचेगी। पुश्तैनी जेवर तो पहनने ही है।”2 अतएव लेखिका ने संपन्न परिवार वालों की बाहरी दिखावे को उस प्रवृत्ति को चित्रित किया है।

     जीवन में समय की महत्ता किसी से छिपी नहीं है। समय को लेकर लोगों का यह बहाना अक्सर सुनने को मिलता है कि क्या करें समय ही नहीं मिलता। दरअसल समय की गति को रोका नहीं जा सकता। जो लोग समय के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पाते वे सदा के लिए पिछड़ जाते हैं। दिक्कत यह है कि पहले लोग मूल्यवान समय को व्यर्थ के कामों में बर्बाद कर देते हैं और समय की कमी का रोना रोते रहते हैं। यह कहावत सच ही है कि बीता हुआ समय और बोले हुए शब्द कभी वापस नहीं आते। इसलिए किसी भी काम को कल पर नहीं टालना चाहिए। समय पर चाणक्य ने भी समय की महत्ता को स्वयं के शब्दों में कुछ इस तरह कहा है कि “जो व्यक्ति जीवन में समय का ध्यान नहीं रखता उसके हाथ असफलता और पछतावा ही लगता है।”3 कहने का तात्पर्य है कि हर महान शख्सियत में यह गुण जरूर मिलता है और वह समय का सदुपयोग किसी ने सही ही कहा है कि जो लोग समय की कद्र नहीं करते समय भी उनकी कद्र नहीं करता।  ‘प्रेतकामना’ के प्रोफेसर जो स्वयं के अकेलेपन से तंग आ चुके थे स्वयं के अकेलेपन को दूर करने के लिए वह स्वयं की छात्रा आणिमा के साथ ना चाहते हुए भी संबंध स्थापित करते हैं। जब वह आणिमा के साथ होते हैं, आणिमा स्मरण करते हुए सोचती हैं “ कितना वक्त बीत चला था… इस कामना को दफन करके, भूल गई थी वह यह कामना एक स्वरूप सबल कामना थी, जिसे चुपचाप गला घोंटकर दफना दिया था। उसने बरसों पहले आज वही प्रेत कामना अवचेतन को विस्तृत गलियारों में भटक-भटककर चेतन की राह पा गई थी” और लपक कर इस एक पल में समा गई थी।”4 कहानी म क्षण की महत्ता को वर्णित किया गया है पात्रों के माध्यम से। उन पलों को अभिव्यक्त किया है जो उन्होंने बिताए हैं चाहे वह खुशी का क्षण हो या दुख का मन की गहराइयों को प्रस्तुत कर समस्त महत्वपूर्ण क्षणों का चित्रण सफलतापूर्वक किया है।

     आज का युग भ्रष्टाचार का युग है। समाज में प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है। सिफारिश एवं रिश्वत जैसी समस्याएँ आज समाज में विकराल रूप धारण करती जा रही है। इनके द्वारा कोई भी कार्य करवा सकते हैं। ऐसी विचारधारा समाज में सर्वत्र व्याप्त है। आज यह समस्या आधुनिक समाज में तो अभिशाप बन गई है जिससे कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र नहीं है। वह स्वयं भ्रष्टाचार के जाल में स्वयं को निरंतर डूबता जा रहा है। लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहानियों में इसी समस्या को आधुनिकता के संदर्भ में व्यक्त कर समाज में फैली इस बुराई को समाप्त करने का प्रयास एवं समाज में एक नवीन सोच के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है। ‘मास्टरनी’ कहानी में अल्पना जो स्वयं के तबादले के लिए सिफारिश लगाती है तो वह रिश्वत देने के लिए तैयार हो जाती है “जी… इतने पैसों का इंतजाम करने में सप्ताह तो लगेगा ही।”5 स्पष्टतः समाज में व्याप्त स्वयं का काम करवाने के लिए रिश्वत देने से भी हिचकिचाता नहीं है। समाज में यह समस्या आज बढ़ती जा रही है। लोग कोई भी कार्य को करवाने में रिश्वत का सहारा लेते हुए उन्हें पूर्ण करते हैं चाहे उसके लिए उन्हें मजबूरन पैसों का इंतजाम करना पड़े। “उसके मन में जरा भी उम्मीद नहीं थी कि अचानक वह तीस हजार कहां से इकट्ठा कर लेगी या पहले से ही दस तरह के लोन्स चुकाते वह और उसके पति एक और लोन का भार उठा पाएंगे।”6 स्पष्टता वह किसी भी तरह पैसा उठाकर रिश्वत देने के लिए तैयार हो जाती है। सिफारिश एवं रिश्वत के पद पर मंत्री भी सम्मिलित है। वह कार्य को करने के लिए पैसा मांगते हैं यही दृश्य यहां भी अंकित है। जब नायिका सुषमा स्वयं के तबादले के लिए मंत्री के खास आदमी से मिलती है तो वह कहता है “मैडम मंत्री के खास आदमी मेहता जी तो मिल जाएंगे, दोपहर एक बजे तक यही पहुंच जाएंगे। थोड़े स्पष्टवादी है, कह रहे थे काम तो हो जाएगा पर रीवार्ड चाहिए। यानी पैसा।”7 अतः लेखिका ने समाज में फैली भ्रष्टाचार या रिश्वत जैसी समस्याओं को जगजाहिर किया है।

     पुरातन समय से लेकर वर्तमान समय तक व्यक्ति जीवन असुरक्षित घेरे में गिरा रहा है। निर्बल ही असुरक्षित होते हैं क्योंकि आत्म बल की शक्ति ही सबल की सुरक्षा का आश्वासन, ऐसे में, अगर समाज को वैचारिक रूप से निर्बल बना दिया जाए तो वह स्वतः ही असुरक्षित महसूस करने लगेगी। बच्चे एवं नारी समाज का सबसे असुरक्षित हिस्सा है वे निर्भर है। यह यौन उत्पीड़न किसी भी प्रकार के शारीरिक मानसिक रूप से शिकार होते हैं। समाज में स्त्री पुरातन समय से ही असुरक्षित जीवन व्यतीत करने को विवश है और आज भी कहीं ना कहीं इससे जूझ रही है। आधुनिकता के इस दौर में जहां व्यक्ति की सोच में परिवर्तन हुआ वही साथ ही उसकी शारीरिक जरूरतें भी बढ़ती चली गई और वह स्वयं की शारीरिक भूख को मिटाने के लिए स्वयं की संतान के साथ ही कुकर्म करने से नहीं हिचकिचाता हैं। इसी कारण आज नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है। जिसे लेखिका ने पात्रों के माध्यम से समाज के अन्य वर्ग व पाठक वर्ग को इससे अवगत करवा कर नवीन चेतना को जागृत करने का प्रयास किया है।‘ रक्स की घाटी : शबे फितना’ कहानी में नारी जीवन के सुरक्षित जीवन ना जी सकने के दृश्य को अंकित किया है। प्राचीन समय से वर्तमान समय तक नारी असुरक्षित है। किंतु मनीषा जी के पात्र नवीन सोच को लिए है जिसे नायिका गजाला व्यक्त करती हुई कहती है “फिर भी मुझे थोड़ी उम्मीद है क्या तुम्हें हैं? कि एक दिन ये कान सुनेंगे और आंखे देखेंगी। जबानों की उमेंठनें खुल जाएगी।”8 स्पस्टतः गजाला मन में कहीं ना कहीं उम्मीद को संजोए हुए है कि नारी संसार में सुरक्षित होगी। लेखिका ने गजाला के माध्यम से नारी जीवन को जो सुरक्षित होने की भावना ह्रदय में संजोए हुए है वह एक न एक दिन अवश्य दूर होगा। नारी को स्वयं के भीतर एक नई नारी को पैदा करना होगा अर्थात उसे सोच को विकसित कर जगत में नई उड़ान एवं विचारों के साथ उड़ान भरनी होगी। तभी वह सुरक्षित जीवन की चाह को पूर्ण कर सकेगी और असुरक्षित होने की जो भावना ह्रदय में रखे हुए हैं उसे जड़ से समाप्त करना होगा। एक नवीन चेतना को विकसित करना होगा।

     आज के बदलते परिवेश में समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव अधिक परिलक्षित होता है। जिससे साहित्यकार भी अछूते नहीं रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है। समाज दिशाहीन हो रहा है। युवाओं को अतीत के प्रति कोई सम्मान नहीं है। पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय जनमानस को विशेष रूप से युवाओं को गिरफ्त में ले लिया है। आज समस्त विश्व पाश्चात्य संस्कृति का अनुपालन कर रहा है। भारत में भी पाश्चात्य सभ्यता, संस्कृति का अनुगमन व अनुपालन धड़ल्ले से किया जा रहा है। मनीषा कुलश्रेष्ठ नें अपनी कहानियों में पाश्चात्य प्रभाव को अंकित किया है। पात्रों के माध्यम से उन्होंने आधुनिकता के संदर्भ में पाश्चात्य प्रभाव के रंग में रंगे लोगों के व्यवहार एवं उनकी सोच को व्यक्त किया है। मनीषा के पात्र आधुनिकता में तो रंगे हैं, किंतु साथ ही स्वयं के संस्कारों को भी अपनाए हुए हैं जिसे उन्होंने कहानियों में चित्रित किया है। ‘बिगाड़ेल बच्चे’ कहानी में ट्रेन में सफर कर रहे यंगस्टर्स को देखकर  एक महिला यात्री उनके फैशन एवं व्यवहार कें बारे में अपने पति से कहती है “देख रही है ना कितनी बेशर्मी से गंदी-गंदी किताबें देख रहे हैं, बड़े-बूढों का लिहाज ही नहीं है।”9 लेखिका ने पुरानी पीढ़ी के उन लोगों की सोच को भी व्यक्त किया है जो नई पीढ़ी के युवाओं को गलत समझ लेते हैं। उनके पहनावे एवं उनकी स्वतंत्र सोच पर  पाश्चात्य प्रभावों का जामा ओढ़े जाने को गलत समझ लेते हैं।

     बदलते परिपेक्ष में आधुनिक होना चाहते हैं और आधुनिकता का तात्पर्य सिर्फ दिखावा भर होता है। इन सब की जड़ में कहीं न कहीं सामाजिक व्यवस्थाएं हैं। बदलते परिपेक्ष में लोगों की सोच के साथ-साथ उनके रहन-सहन में भी काफी बदलाव आया है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है। परिवर्तन निरंतर होते रहते हैं वर्तमान युग में व्यक्ति जीवन मूल्यों से संघर्ष कर रहा है। जिसके कारण जीवन मूल्यों में परिवर्तन हो रहा है। पुरानी मान्यताओं के विरोध, शिक्षा के विस्तार तथा पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से समाज में नए मूल्यों का जन्म होता है और समाज में स्वीकृत नैतिक मूल्यों के प्रति व्यक्ति का मोह कम होता जाता है। आज प्रत्येक व्यक्ति के मन में नए पुराने सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर संघर्ष चल रहा है। व्यक्ति ने हमेशा ही नये मूल्यों को अपनाया है जिसके कारण प्राचीन मूल्य महत्वहीन हो रहे हैं। ‘फांस’ कहानी में अंतिमा जो पिता की मृत्यु होने पर उनका अंतिम संस्कार करती है। समाज में यह प्रथा है कि अंतिम संस्कार केवल पुत्र के हाथों होता है। किंतु लड़की यह प्रथा बदलती है और पिता का अंतिम संस्कार करने को तैयार रहती है। तभी उसके जीजा कहते हैं “अंतिम क्रिया करम वाले तो वही है इनके भतीजे।”10 समाज में पुरुष ही मृत्यु की यह प्रथा पूर्ण करता है। किंतु यह सब सुन अंतिमा कहती है “इनका क्रिया-करम तो मैं ही करूंगी जीजा सा।”11 स्पष्टतः अंतिमा जो पिता का संस्कार करना चाहती है वह इस प्रथा को बदलना चाहती है कि पुत्र न होने पर पुत्री भी पिता का अंतिम संस्कार कर सकती है।

निष्कर्ष : उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि लेखिका के कहानियों में आधुनिक संदर्भ को व्यक्त किया है। आधुनिक संदर्भ में या परिवेश में सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश बहुत ही तीव्रता से अंतर्विरोधी भावों से ग्रस्त होता जा रहा है। निजी स्वार्थ एवं भौतिकता वादी रोड में व्यक्ति स्वयं की यात्राओं का शिकार हो रहा है। लेखिका ने कहानियों में मानव मन की मनःस्थितियों को, उसके मानसिक संघर्ष को एवं नवीन विचार धारा को निरूपित किया है। साथ ही साथ मानव मूल्यों के कारण व्यक्ति और उसके परिवेश के प्रति जागरूकता आई हैं और जीवन मूल्यों में भी परिवर्तन आया है और उसकी जीवन प्रणाली में कृत्रिमता भी आई है। लेखिका के पात्र नवीन विचार, नवीन विचारधाराओं को लिए दिखाई देते हैं। वह आधुनिक समय में भी स्वयं के भीतर संस्कारों को जीवित रखे हुए हैं।

सन्दर्भ सूची :

  1. 1. मनीषा कुलश्रेष्ठ, ‘क्या यही वैराग्य (रंग-रूप, रस-गंध-1)’, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2022, पृ.21
  2. वही पृ.22
  3. www.wikipedia.com
  4. मनीषा कुलश्रेष्ठ, ‘प्रेतकामना (रंग-रूप, रस-गंध-1)’, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2022, पृ.58
  5. 5. मनीषा कुलश्रेष्ठ, ‘मास्टरनी (रंग-रूप, रस-गंध-1)’, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2022, पृ.236
  6. वही पृ.237
  7. वही पृ.237
  8. मनीषा कुलश्रेष्ठ, ‘रक्स की घाटी : शबे फितना (रंग-रूप, रस-गंध-2)’, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2022, पृ.236
  9. मनीषा कुलश्रेष्ठ, ‘बिगाड़ेल बच्चे (रंग-रूप, रस-गंध-1)’, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2022, पृ.118
  10. मनीषा कुलश्रेष्ठ, ‘फांस (रंग-रूप, रस-गंध-1)’, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2022, पृ.341
  11. वही पृ.342

फीफा फातिमा शेक (शोधार्थी)

वेल्स इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी एडवांस स्टडीज (विस्टास ),

पल्लवरम, चेन्नई, भारत

डॉ. पूर्णिमा श्रीनिवासन

असिस्टेंट प्रोफेसर एंड हेड

वेल्स इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी एडवांस स्टडीज (विस्टास )

पल्लवरम, चेन्नई, भारत