May 5, 2023

26. मुंशी प्रेमचंद के समय अथवा समाज में वृद्ध जीवन ( कहानियों के सन्दर्भ में ) –  जाधव नीता बाबु

By Gina Journal

Page No.: 178-183

मुंशी प्रेमचंद के समय अथवा समाज में वृद्ध जीवन ( कहानियों के सन्दर्भ में ) –   जाधव नीता बाबु

       किसी व्यक्ति के नाम से एक युग को नाम देना यह घटना उस व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके कार्य को दर्शाती हैं| कथा साहित्य के विकास क्रम में मुख्यत: उपन्यास अथवा कहानी के संबंध में मुंशी प्रेमचंद का नाम दिया गया हैं| यह नाम उनके  साहित्य में किए गए योगदान को लेकर दिया गया हैं| यहाँ विशेषत: कहानी विधा पर बात की जाएगी | प्रेमचंद हिंदी साहित्य में ‘कथा सम्राट’के नाम से जाने जाते हैं | और आने वाले समय में भी जाने जायेंगे | एक अच्छे और ईमानदार साहित्यकार की यह निशानी होती हैं कि, उसे भूतकाल का ज्ञान, वर्तमान की समझ और भविष्य की चिंता होनी चाहिए | यह तीनों गुण प्रेमचंद के साहित्य में उपलब्ध हैं | हिंदी साहित्य में जो विमर्शों की भरमार दिखाई दे रहे हैं | जिसकी शुरुआत सामान्यत: नब्बें के दशक से मानी जाती | किन्तु प्रेमचंद ने आपने साहित्य के मार्फत इसका प्रारंभ बहुत पहले कर दिया था | उनसे कथा साहित्य में स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, अल्पसंख्यांक विमर्श, किसान विमर्श, वृद्ध विमर्श इत्यादि विमर्शों की शक्ल साफ-साफ़ दिखाई पड़ती हैं | किसी भी विमर्श का आरंभ दिखाने के लिए प्रेमचंद जी के ‘कथा-साहित्य’ का उदाहरण के तौर पर वर्णन करना जरुरी हो जाता हैं |

        प्रेमचंद एक ऐसा नाम हैं जो हिंदी साहित्य जगत में अमर हैं | पहले भारत को कृषि प्रधान देश माना जाता था | कोई भी साहित्यकार अपने समाज से ही लेखन की प्रेरणा लेता है | प्रेमचंद ने भारतीय समाज को बहुत ही नजदीक से देखा था | इसीलिए उनके साहित्य के मुख्य दो बिंदु  किसान और ग्राम दिखाई देते है | प्रेमचंद जी को भारतीय ग्रामीण जीवन के अप्रतिम कहानीकार माना जाता हैं| उन्होंने अपने कहानियों में ग्रामीण जीवन के यथार्थ को व्यापक फलक पर बहुत इमानदारी से रेखांकित किया हैं|उनकी कहानियां भारत के आम आदमी के जीवन को बखूबी से चित्रित करती हैं |  प्रेमचंद के साहित्य का समाज स्वतंत्रापूर्व का भारतीय समाज है जो लाचार है, पराजित और घोर संकट से घिरा हुआ दिखाई देता है| उस समाज की विवशता, लाचारी, पीड़ा एवं संघर्ष की ढेरों कहानियां प्रेमचंद जी की कलम से लिखी गई हैं|

    प्रेमचंद जी ने पूरी संवेदना के साथ बुजुर्गों के जीवन को देखा उनकी समस्याओं को जाना और पूरी ईमानदारी से हमारे सामने प्रस्तुत किया| प्रेमचंद के उपन्यास अथवा कहानी में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में वृद्ध पात्र उनकी समस्याएं दिखाई देती हैं |  मुख्यत: यहाँ कहानी में चित्रित वृद्ध और उनकी स्थिति को दर्शाया जाएगा| प्रेमचंद की तीन सौं कहानियों में से अधिकांश कहानियों में वयोवृद्ध पात्र दिखाई देते हैं, किन्तु यहाँ केवल वृद्ध पात्रों एवं उनके-जीवन पर केंद्रित कहानियों का विश्लेषण किया जायेगा | जैसे कि, विध्वंस, सुजन भगत, बेटोंवाली विधवा, पंचपरमेश्वर, बूढी-काकी आदि|

           विध्वंस का अर्थ होता है ‘विनाश’| प्रेमचंद जी को दलित एवं शोषित समाज के प्रति गहरी सहानुभूति अथवा यह कह सकते हैं कि, पक्षधरता रही है | उन्होंने ने इस कहानी के माध्यम से जमींदारी व्यवस्था में गरीब, दलित एवं शोषित समाज की एक संतानहीन विधवा वृद्धा स्त्री भुनगी के प्रताड़ना को विध्वंस कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है | वृद्धा भुनगी सामंती उत्पीडन का एक  सजीव उदहारण है | भुनगी के पास जीवन निर्वाह के लिए अपनी रोजी-रोटी के लिए उसका एकमात्र सहारा है उसका भाड़ है | भुनगी बनारस के एक छोटे से गाव बीरा में रहती थी | गावं के जमींदार पंडित उदयभान पांडे भुनगी वृद्धा को बहुत ही परेशान कर रखा था | उस से बेगारी तो करवाते थे किन्तु उसकी बेगारी को सही मोल नहीं दिया जाता था | उसे कई दफा भूखे पेट ही सोना पड़ता था | संक्रांति के त्यौहार पर जमींदार दो टोकरी अनाज भूनने के लिए भुनगी के पास भेज देते है | उसे डराया जाता है, धमकाया जाता है कि, संपूर्ण अनाज सूर्यास्त से पहले भुन जाना चाहिए | उसे समय कम दिया गया था और काम ज्यादा दिया गया था | उसे काम न संभव होने से जमींदार के आदमियों की गालियों या मारपीट का डर सता रहा था | इसी हड़बड़ी अथवा डर के कारण अनाज भूनते समय अनाज के कुछ दाने सेवडे में रह जाते है जिससे सत्तू नहीं बन पाता | दिए गए कालावधि में सत्तू न बनाने के कारण जमींदार के आदमी उस वृद्ध महिला का भाड खोद डालते है | वह जमींदार अथवा जमींदार के आदमी एक बार भी नहीं सोचते कि  वह अभागिन वृद्ध विधवा अपनी जीविका का निर्वाह कैसे करेगी |

             प्रेमचंद ने जो गरीब, शोषित, दलित वर्ग के पात्र गढ़े है वे अपनी अस्मिता के प्रति सतर्क दिखाई देते हैं | विध्वंस कहानी की भुनगी भी एक स्वावलंबी वृद्धा है | भुनगी को जब गाँव के लोग गाँव  छोड़  कर चले जाने की सलाह देते हैं तो वह इस प्रस्ताव को ठुकरा देती है; क्योंकि इस गाँव में अपने जीवन के पचास वर्ष काटे थे | जीवन के सुख-दुःख अच्छे बुरे पलों को काटकर जीवन के इस पड़ाव पर वह आ पहुंची थी | उसे इस गाँव से जमीन से यहाँ के लोगों से यहाँ की मिट्ठी से प्रेम था | इतनी आसानी से वह अपना गाँव नहीं छोड़ सकती थी | भुनगी एक आत्मनिर्भर बुजुर्ग स्त्री थी | जो अपने अधिकारों के प्रति सजग थी | वह निर्भय थी उसमें प्रतिरोध की भावना थी | यह विरोध की भावना दलित और स्त्री की जागरण की शक्तिशाली आवाज है |

      जमींदार के डर से गाँव न छोड़ना ही उसे सबकी नज़रों में ऊँचा उठा देता हैं | जमींदार के विरोध में नया भाड़ बनाने की वह कोशिश करती हैं किन्तु उसकी कोशिश विफल हो जाती हैं | जमींदार के मन में उसके लिए थोडा भी दया भाव नहीं है | वह उसके लिए बिलकुल नहीं सोचते | अगर यह भाड़ उजाड़ दिया जाएगा तो वह वृद्ध बेसहारा विधवा कैसे अपने जीवन की नैया पार लगाएगी | भुनगी भी शोषण सहन करने वालों में नहीं है | वह जमींदार को ललकारते हुए कहती है – “ महाराज, तुम्हें आदमी का दर नहीं है तो भगवन का दर तो होना चाहिए, मुझे इस तरह उजाड़कर क्या पाओगे? क्या इस चार अंगुल धरती में सोना निकल आयेगा ? दिन की हाय मत लो | मेरा रोआँ दुखी मत करो ”[1]  प्रेमचंद जी भुनगी के माध्यम से यह कथन इस लिए कहलवाते है कि , वह जमींदार के मन में भगवान का डर पैदा करना चाहते हैं | इस डर के कारण जमींदार अपनी भूल को सुधारकर भुनगी की जमीन उसे वापस लौटा देगा ऐसा उन्हें लगता है | परन्तु प्रेमचंद जी का यह प्रयास व्यर्थ साबित  होता है |

         किन्तु प्रेमचंद यहीं नहीं रुकते  वे भुनगी में जो प्रतिरोध की आग्नि जल रही थी उसे और तेज करते हुए लिखते है –“ क्यों छोड़कर निकल जाऊँ | बारह साल खेत जोतने से असामी काश्तकार हो जाता है | मैं तो इस झोपड़े में बूढी हो गयी | मेरे सास-ससुर और उनके बाप-दादे इसी झोपड़ी में रहे | अब इसे यमराज को छोड़कर और कोई मुझसे नहीं ले सकता |”[2] यहाँ पर प्रेमचंद एक अधिकार चेतना संपन्न बुढ़िया को प्रस्तुत करते है जो अपने हक़ के प्रति सजग है | यह सजगता प्रेमचंद की हर तीसरी कहानी में दिखाई देती है | इस कहानी के अंत में भुनगी आत्मत्याग कर देती है | जमींदार के लोगों के द्वारा लगाई गई आग में भुनगी खुद को उस अग्नि में झोंक देती और अपने जीवन का अंत कर लेती है | यह आग की लपटे गाँव के कई झोपड़ियों और जमींदार की हवेली को जलाकर भस्म कर देती है |  सांकेतिक रूप से प्रेमचंद यहाँ यह दिखाना चाहते है कि जमींदार के भवन का भस्म को जाना यह सामंतवाद की जड़ों को ख़त्म करने जैसा हैं |

              जमींदार के घर को आग के हवाले कर के प्रेमचंद जी ने जमींदारी व्यवस्था के प्रति गहरा आक्रोश प्रकट किया है | यह कहानी बुजुर्ग महिला का सामंती व्यवस्था किस तरह से शोषण करती है इसका चित्रण करती हैं | इस कहानी में वृद्ध का मानसिक द्वंद तो दिखाई नहीं देता है | न वृद्ध खुद को बेसहारा अपाहिज महसूस करती है | एक दृढ संकल्प वाली वृद्धा दिखाई देती है | जो अपने शोषण के खिलाफ आवाज भी उठाती है | यह कहानी बुजुर्ग केंद्रित अवश्य है किन्तु इस कहानी को रचने के पीछे प्रेमचंद समाज में फैली जमींदारी व्यवस्था का घिनौना रूप दिखाना चाहते थे |

‘सुजान भगत’ एक बूढ़े किसान की कहानी है | जो एक स्वाभिमानी बुजुर्ग है | जिसने  ताउम्र समाज में अपना कद, मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा बनाने में लगा दी | सुजान भगत ने अपने परिवार के लिए रात-दिन कष्ठ करके उनके लिए जमा-पूँजी बनाई | भगत का एक छोटा सा परिवार था | उनकी पत्नी बुलाकी और उनके दो सुपुत्र बड़ा बेटा भोला एवं छोटा बेटा शंकर | जब सुजान भगत आयु के अंतिम पड़ाव पर पहुँच जाते हैं तब उन्हें अपने बेटे से  मिलने वाली चुनौतियों और अपमानजक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है | इसी स्थिति को प्रेमचंद ने मनोवैज्ञानिक धरातल पर वास्तविकता के आधार पर उभारा है |

             प्रेमचंद की ओर एक कहानी वृद्ध पात्र केंद्रित है जिसका नाम है ‘पंचपरमेश्वर’| इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने मानवीय व्यवहारों को उजागर किया है | इस कहानी के प्रमुख पात्र दिखाई देते है – खालाजान जो वृद्धा है, जुम्मन जो खालाजान का भतीजा है और जुम्मन का बचपन का प्रिय मित्र अलगू चौधरी | इन चरित्रों को रेखांकित कर समाज में फैली बर्बर परिस्थितियों को दर्शाया हैं | एक बुजुर्ग लाचार वृद्धा की मजबूरियों को साहित्य में अंकित कर मानवीय अनुभूतियों को सन्देश देना चाहा है कि, किस प्रकार से व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन आ गया है | किसी की नजदीकियों का किसी के अपनेपन अथवा किसी की मैत्री का गलत फायदा उठाने में व्यक्ति हमेशा तत्पर रहता है | खालाजान जो जुम्मन की मौसी थी | खालाजान का कोई अपना नहीं था | जो उसकी देखभाल कर पता या उसकी जायजाद का वारिस कह लता | इस कारण से जुम्मन शेख़ की दृष्टि खालाजान की मिल्कियत पर थी | खालाजान का भरोसा पाने के लिए उस ने खालाजान से बड़े-बड़े वादे किए| उन्हें बड़ा मान-सम्मान से नवाज़ा | उनका आदर सत्कार किया | उन्हें पंचपकवान परोसा गया |    खालाजान उसकी बातों में आकर उसके नाम अपनी जमीन कर देती है | जमीन की रजिस्ट्री की मोहर लग ते ही जुम्मन और उसकी बेगम का खालाजान के प्रति व्यवहार बदल जाता है | खालाजान उन्हें बोझ लगने लगती है |

            ‘बूढी काकी’ एक ऐसी वृद्ध महिला की कहानी हैं जो अपने पति और बेटे की असमय मृत्यु हो जाने पर उस स्त्री का एकमेव सहारा उसका भतीजा बुद्धिराम और उसका परिवार था | लेकिन बुद्धिराम ने क्या किया इस मौके का फायदा उठा लिया | पंचपरमेश्वर में खाला के साथ जुम्मन ने किया था वहीँ बुद्धिराम काकी के साथ करता है | काकी की जमीन जायदाद बुद्धिराम के नाम पर होने तक काकी को अपनी सराखों पर बिठाया गया | जैसे ही काकी ने उनकी जायजाद बुद्धिराम के नाम कर दी | वैसे ही काकी का मान सम्मान और उनके प्रति जो प्यार उमड़ रहा था वह ख़त्म हो जाता है | बूढ़ी काकी की करुण अवस्था पर बार बार दया आने लगती है | उसे पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता |

      कहानी के अंत में जब रात में बुद्धिराम की पत्नी रूपा अपनी बेटी लाड़ली को अपने पास न पाकर नींद से उठकर जो दृश्य देखती है वह दृश्य देककर रूपा अपनी आँखों पर भरोसा नहीं कर पाती | उसका ह्रदय सन्न रह जाता हैं | उसके ह्रदय में मिलाजुला भाव उत्पन्न हो जाता है | एक तो करुणा दूसरा भय | उसे अपनी स्वार्थमयता अन्याय और निर्दयता का गहरा अहसास होता हैं | उसमे मन में भाव उत्पन्न होता हैं जिसकी बदौलत आज इतना मिल रहा हैं उसे भर पेट खाना भी नहीं दे  पा रहें हैं | उसे अपने किए गए अपराध पर घिन्न आती है | वह उसी समय थाली परोसती है और बूढी काकी के क्षमा मांगती हैं | इसी के साथ कहानी का अंत होता है |

              अंत में प्रेमचंद जी पात्रों के ह्रदय-परिवर्तन के प्रति हमेशा सचेत रहते है | वह कहानी का अंत सुख दायक करना चाहते है | इस कहानी के माध्यम तत्कालीन समाज में वृद्धों की स्थिति की ओर सबका ध्यान आकर्षित करते हैं |  रिश्तों में स्वार्थपरकता को भी दर्शाते हैं | प्रत्येक रिश्ता लालच की नीव पर खड़ा है| बूढ़ी काकी की सम्पति पाकर जहाँ बुद्धिराम और उसके परिवार को बूढ़ी काकी सेवा करनी चाहिए| वही बुद्धिराम और उसका परिवार उस वृद्ध के साथ बुरा बर्ताव करते हैं |  उसको चिड़ाते है, उसको मारते है, उसे भर पेट भोजन तक नहीं देते| इस कहानी में अनेक प्रसंग हैं जो बूढ़ी -काकी की दयनीय परीस्थिति को हमारे सामने उजाकर करती हैं| यह स्थिति आने के पीछे अपराधी कौन है उस समय का समाज या उस समय की परिस्थितियां यह बता पाना असंभव है |

शोधार्थी (हिंदी विभाग)

जाधव नीता बाबु

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्व विद्यालय

हैदराबाद ५००००७