83. मुस्लिम समाज में व्याप्त रोज़गार की समस्या:हिंदी कहानियों के संदर्भ में – वैष्णवी बी
मुस्लिम समाज में व्याप्त रोज़गार की समस्या:हिंदी कहानियों के संदर्भ में
वैष्णवी बी
भारत एक ऐसा देश है जहां अनेक संस्कृतियों का मिलन है।भारत में मुस्लिमों का आगमन इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।इस घटना से भारत के इतिहास में एक नया मोड़ आया।इस्लाम एक परिपूर्ण जीवन व्यवस्था है।इस्लाम में अर्थाजन सच्चाई तथा इंसाफ पर आश्रित है।मुस्लिमों की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी रही है।जिसका मुख्य कारण शिक्षा,जातीयता और राजनैतिक दबाव की वजह से आज मुस्लिम युवक बेरोजगार बनते चले जा रहे हैं।
निम्नवर्गीय मुस्लिम समाज वर्तमान समय में आर्थिक अभाव के कारण सामान्य जीवन जी रहा है।आर्थिक अभाव के कारण उनके रहन सहन कौर खान पान पर भी प्रभाव पड़ता है।अनेक आरिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।साथ ही युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी के कारण परिवार में चिड़चिड़ापन आरंभ हो जाता है और परिवार पर कई संकट आ जाते है।निम्न तरीके से हिंदी कहानियों में रोजगार समस्या का चित्रण किया गया है।
नासिरा शर्मा की ‘परिंदे’ कहानी में विदेश में रोजगार की तलाश में उत्पन्न होनेवाली कटु परिस्थितियों का चित्रण किया है।इसमें विजय वह अपने स्वदेश में बिछूड़कर विदेश में अकेला रह जाता है।उसे परिवार की मधुर स्मृतियां सताती रहती हैं।वह विदेश से वापस आना चाहता है।लेकिन उसे अपने घर की आर्थिक परिस्थितियां याद आती है तो वह अपनी वर्तमान परिस्थितियों से समझौता कर लेता है।इस कहानी का नायक अपने मित्र से इस प्रकार कहता है कि “मैं यानि विजय कुमार, वल्द श्याम कुमार इस सरजमीन से इतनी आसानी से पांच साल का संबंध तोड़ किसी वैश्या की तरह अपनी कमाई का बोझ उठाए,नए ग्राहक की तलाश में जा रहा हूं।“ इसमें रोजगार की तलाश करनेवालों की मानसिक अंतर्द्वंद्व एवं संघर्ष का चित्रण हुआ है।
नासिरा शर्मा का ही ‘चांद तारों की शतरंज’ में एक परिवार की आर्थिक अवस्था का चित्रण किया है।इस कहानी में शरफू अपने दोनों बेटों फारुख और शेखू की सहायता से पतंगे बनाने का व्यवसाय करता है।पिताजी अपने दोनों बेटों को हिम्मत देता है कि बेटे दोनों लगन से काम करें।प्रस्तुत कहानी में समाज में प्रचलित धोखा धडी और परस्पर ईर्ष्या की और सूचित करता है।यही समस्या इमाम साहब और उसका बेटा कहानी में भी देख सकते है।
मेहरूनिस्सा परवेज की कहानी ‘सीढ़ियों का ठेका’ में विधवा बेसहारा स्त्रियों की आर्थिक परिस्थिति और परिवार में उनकी दुर्दशा का मार्मिक चित्रण मिलता है। इस कहानी में करीमन और फातिमा जकात और खैरात पर जीवन बिताती है।दोनों में मस्जिद के सीढ़ियों पर बैठकर भीख मांगने की होड़ रहती है। अंत में करीमन की मृत्यु हो जाती है और उसी जगह पर कुबड़ी फातिमा भीख मांगने केलिए बैठती है।जहां पर हर जुमे को करीमन बैठती है।सारे नमाज़ी करीमन के जनाजे के साथ कब्रिस्तान जाने लगे है।तो कुबडी फातिमा को लगा जैसे करीमन आज फिर अंगूठा दिखा गई।“इस तरह कुबडी फातिमा के माध्यम से मुस्लिम निम्न वर्ग समाज आर्थिक परिस्थिति का दयनीय परिचय देता है।
मंजूर एहतेशाम की ‘लड़ाई’ कहानी में मैं पात्र अपने आत्म सम्मान को बचाए रखता है।वह कहीं भी नौकरी करे,वह कुछ दिन के बाद उस नौकरी को छोड़ देता है “दरअसल मैं बेरोजगार था और रोजगार छूटे भी यह दूसरा दिन था।वैसे यह कोई विशेषता नई स्थिति नहीं थी।क्योंकि। न चाहते हुए भी मैं अभी तक कितनी ही नौकरियां कर और छोड़ चुका था।काम करवाने वालों के अपने के अपने अंदाज और फरमाइशें होती हैं,मेरा अपना सोचने और करने का ढंग है।जब जब इन दोनों में टकराव पैदा हुआ है, मैं ने खुद को बेरोजगार पाया है।“शानी के ‘नंगे’ कहानी में मुस्लिम समाज में व्याप्त आर्थिक संकटों से उत्पन्न परिवेश का चित्रण हुआ है।
रोजगार सबको एक समान नहीं होता है।उच्च वर्ग,मध्य वर्ग,निम्न वर्ग के लोगों को अलग अलग प्रकार से होता है।निम्न वर्ग के लोगों को खाने के लिए भर पेट तक की उनको रोजगार का पैसा नहीं मिलता है।इसका सही चित्रण अब्दुल बिस्मिल्लाह की ‘भूत’ कहानी में निम्न वर्ग लोगों का रोजगार का चित्रण हुआ है वह सुबह छह बजे से रात दस बजे तक बदरू से घन चलवाता और बदले में उसे सिर्फ इतना ही देता कि मुश्किल से उसका पेट भर सके।
मुस्लिम समाज में युवाओं की बढ़ती बेरोजगारी भी उनके पिछड़ेपन का एक सशक्त कारण है।मुस्लिम समाज में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।मुस्लिम युवा शिक्षा हासिल करने के बाद भी बेरोजगार घर पर बैठे रहते हैं।इसलिए वे जो काम मिलता है वह कर लेते हैं।साथ ही अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रयत्न करते है।वे पढ़ लिखकर बेकार बैठने के बजाय छोटी मोटी नौकरी करते रहते हैं।
मो.आरिफ की ‘मौसम’ कहानी में शिक्षित बेरोजगारी का चित्रण किया गया है।इस कहानी में नायक कहता है कि “इस घर में दो दो पोस्ट ग्रेजुएट हैं…!”मेरी बात बीच में काटते हुए,रशीदा ने जोड़ दिया,”दोनों में एक फर्स्ट क्लास फर्स्ट और दूसरा सेकंड क्लास सेकंड। “मैंने बिना हँसे अपनी बात पूरी की…”और दो दो ग्रेजुएट हैं और एक इंटरमीडिएट…कुल पांच…पर सबके बीच में एक भी नौकरी नहीं है।“इस तरह मुस्लिम समाज में शिक्षित वर्ग की बेकरी बढ़ती जा रही।यही नहीं धार्मिक भेदभाव को भी मुस्लिम युवा को सहना पड़ता है।
मुस्लिम समाज के युवा बेकार मोहल्ले के नुक्कड़ पर बैठे रहते हैं।न घर का काम करते है,न बाहर का।सिर्फ बातों में वक्त गुजार देते हैं।इसका यथार्थ चित्रण हसन जमाल की अलादीन ‘बेचिराग’ कहानी के जरिए देखने को मिलता है।इसका पुष्टि करते हुए इकराम साहब कहते हैं कि “अक्सर अलादिन और इस किस्म के निठल्ले लोगों को फजूल बैठे देखा करते थे।देखा ही नहीं करते,कुढ़ते भी,यह कैसे लोग है जो अपने ही हाथों अपनी जिंदगी को तबाह व बर्बाद किए जा रहे हैं और मुल्क और काम पर बोझ बने बैठे हैं।“
इस तरह निठल्ले बेरोजगार युवक समाज के गली गलियों में मिल जाते हैं।बेरोजगार के कारण हर चेहरे पर,दुकानों के सामने बैठे मतरगस्ती करते रहते हैं और आने जानेवाले लोगों को ताकते झांकते रहते हैं।यह वर्तमान समय की समाज के हर बेरोजगार युवकों की वास्तविकता है।
संक्षेप में इन कारणों से मुस्लिम समाज में प्रचलित बेरोजगारी को स्पष्ट कर सकते है।हिंदी के मुस्लिम लेखकों ने कहानियों में अपनी आर्थिक स्थिति को किस तरह व्यक्त किया है,वह देखने को मिलता है।इसमें कहानियों के माध्यम से मुस्लिमों की रोजगार की स्थिति एवं किन किन वजह से उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है,उसको विस्तार से चर्चा किया है।आर्थिक स्थिति का सुदृढ न होना एक मुख्य समस्या है।इसलिए मुस्लिम समाज में शिक्षा का अभाव महत्वपूर्ण कारण है तथा सरकार का सही सहयोग न मिलना भी इसके प्रमुख कारणों में से एक हैं।
संदर्भ ग्रंथ सूची
1.परिंदे(शामी कागज़) नासिरा शर्मा, पृ.77
2.सीढ़ियों का ठेका(आदम और हव्वा) मेहरूनिस्सा परवेज पृ.23
3.स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी का समाज सापेक्ष अध्ययन,कीर्ति केसर, पृ.160
4.लड़ाई (सम्पूर्ण कहानियां) ,मंजूर एहतेशाम, पृ.123-124
5.फूलों का बाड़ा, मो. आरिफ, पृ. 46
6.तीस बरस के बाद मैं,हसन जमाल पृ.7
वैष्णवी बी
शोधार्थी
राजकीय महिला महाविद्यालय
तिरुवनंतपुरम