May 20, 2023

56. प्रवासी साहित्यकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानियों में पुरुष-उत्पीड़न – सिमरन  

By Gina Journal

Page No.: 394-402

प्रवासी साहित्यकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानियों में पुरुष – उत्पीड़न 

सिमरन  

शोध सार:-

प्रवासी साहित्य में पुरुष को केंद्र में रखकर कहानी लिखने की शुरुआत बहुत पहले से हो गई थी। पुरुष अपनी पत्नी, प्रेमिका से उत्पीड़ित होते हुए दिखलाई पड़ते है। संवेदनाएं इतनी गहरी है कि इनकी दशा को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। एक तो वे उत्पीड़ित है और दूसरा अपने घर-परिवार अपनी मिट्टी से दूर विदेश में रहकर जो भोगते है न तो वह विदेश में कुछ कर या कह पाता है न अपने भारत में। मौन रहकर वह चुपचाप सहता रहता है। वह मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक रूप में प्रताड़ना सहता है। वह कुछ नहीं कह पाता न कुछ कर पाता है, न तो वह भारत वापस आ सकता है न उस देश को छोड़ कर कहीं और जा सकता है, केवल उसी विदेशी दुनियां में घुट-घुटकर अपना जीवन बिताता रहता है। वह मानसिक पीड़ा और यातना से ग्रस्त एक चलता-फिरता ज़िंदा लाश बन अपमान के घूंट पीकर रह जाता है। वह अपने संस्कारों, भारतीय सभ्यता और विदेश में रहने के लिए वीज़े के कारण विरोध नहीं कर पाता। पुरुष जबरन स्त्रियों के हाथों की कठपुतलियाँ बन जाते है। फिर वे उन पर सारे अधिकार रखती है, यहाँ तक कि धर्म परिवर्तन तक करवाती है। पुरुष दोहरी वेदना झेलते है। इसलिए प्रस्तुत शोध आलेख में सुदर्शन प्रियदर्शनी की कहानी सेंध और आचारसंहिता को चयन कर कहानियों में पुरुष की दशा और प्रताड़ना का चित्रण प्रस्तुत किया जाएगा।

बीज शब्द:- प्रवासी साहित्य, कहानी, पुरुष, उत्पीड़न, शोषण, पीड़ा

प्रस्तावना:-

प्राचीन काल से ही देवताओं के युग से ही स्त्री और पुरुष को प्रकृति और पुरुष को एक दूसरे के पूरक माना है। दोनों को एक दूसरे के लिए अनिवार्य माना है। समकालीन समय में स्त्री पढ़-लिखकर पुरुष के आधिपत्य को तथा मानसिकता और असमानता का विरोध करते नजर आई, जिसका परिणाम स्त्री विमर्श के रूप में दृष्टिगोचर होता है। प्रकृति स्वयं को स्थापित करते-करते तथा समानता का अधिकार मांगते-मांगते खलनायिका का रूप धारण करती जा रही है जिसका उदाहरण हमें प्रवासी साहित्य के अंदर दिखाई देता है। पुरुष विमर्श पर प्रवासी साहित्य पर बहुत सी कहानी लिखी गई है। अमेरिका हो या डेनमार्क, ब्रिटेन हो या कोई भी देश इन पीड़ित पुरुषों पर महिलाओं तथा पुरुष लेखकों ने अपने लेखनी के माध्यम से प्रवास में रह रहे पुरुषों का हाल बयां किया तथा उनकी विड़बना का चित्रण किया है। जहाँ स्त्री नायिका बन बेचारी, बेसहारा, पुरुष की दया का पात्र नजर आती है वही स्त्री खलनायिका बनते हुए अपने प्रेमी और पति पर अत्याचार करती हुई नज़र आती है।

आमुख:-

सुदर्शन प्रियदर्शिनी अमेरिका की प्रसिद्ध लेखिका है। इनकी कहानी सेंध में माँ अपने बेटे का दर्द समझती है। माँ और बेटा दोनों ही टीना से शोषित है। ऋषभ टीना से विवाह से पहले माँ के साथ एक मजबूत रिश्ते में बँधा होता है। माँ का एक आज्ञाकारी बेटा था यहाँ तक कि वह एक लड़की को पसंद करता है और उसे विवाह करने से पूर्व अपनी माँ की सहमति मांगता है। माँ बेटे का रिश्ता इतना मजबूत होता है कि उसकी माँ उसे धर्म और भगवान, जाति, जन्म, रंग-रूप सोच, डील-डौल पर उसे समझाती है। उस लड़की की शादी से पहले यही एक प्रत्यक्ष रुप में शर्त थी कि बच्चे क्रिश्चियन बनकर बड़े होंगे। माँ के खुले विचारों की होने के कारण ऋषभ प्रेम विवाह करता है। विवाह के बाद टीना बदल जाती है और अपना रंग दिखाना शुरू कर देती है। बाद में माँ इस पर पछताती है कि वह अपने बेटे को क्यों नहीं समझा सकी।

 ऋषभ अपनी पत्नी टीना से मानसिक रूप से शोषित था। टीना विवाह के पश्चात ऋषभ को जबरन खींच-खींच के चर्च ले जाने लगी थी वह उसको क्रिश्चियन बनाना चाहती थी। टीना उसे धर्म की मीमांसा कर झगड़ा करती थी। विवाह के बाद एक दिन जब उसका बेटा राजू पैदा हुआ तो माँ-बेटा उसका भारतीय नाम राजू रखना चाहते थे किंतु टीना ने उसका नाम निकोलुस रखा। ऋषभ का मन एक छोटा सा आयोजन करने का था कि भारतीय मान्यतानुसार राजू का नाम संस्कार हो और नहीं तो मुंडन संस्कार तो अवश्य होना चाहिए। इसलिए वह अपनी माँ से फ़ोन करके इसकी विधि और समयावधि पूछता। माँ ने सारा आयोजन कर मेहमानों को आमंत्रित करने का निमंत्रण पत्र का अंतिम ड्राफ्ट बनाकर ऋषभ को भेजा। दो दिन तक ऋषभ के फ़ोन के कोई जवाब न देने पर माँ ने स्वयं उसको फ़ोन किया तो वह डूबी सी आवाज में कहता है “कि माँ मेरे विचार से तो रहने देते हैं यह सारा ताम-झाम। मुझे सब कुछ बड़ा आडम्बरी लगता है। माँ को इसका एहसास हो जाता है कि “ऋषभ अंदर की किसी टीस को दबा रहा है पर होठों से सी नहीं निकालना चाहता। उसने ऋषभ से पूछा “टीना ने कुछ कहा क्या?” क्योंकि वह समझ चुकी थी कि उसका बेटा किसी तकलीफ में है।  वह कहता है कि “आप छोड़ो, वह क्या कहेगी और क्या नहीं कहेगी” टीना उसे संस्कार करने से रोक देती है।

राजू के जन्मदिन के बाद ऋषभ का फ़ोन आता है। उसके बेपटिस्म करवाने के लिए वह माँ को 3 दिसंबर को अपने पास आने के लिए अमेरिका आमंत्रित करता है और कहता है कि “आप यहाँ अवश्य हो किंतु सर्किल में इस बात की जिक्र न करना”। माँ जान गई थी कि “कहीं अंदर तक आहत है और बंधी हुई छटपटाहट छिपा रहा है। ऋषभ को भी कहीं यह मंजूर नहीं था”  समझ गई थी कि “उसके बेटे को टीना ने इस बार गहरी सेंध लगाई थी” टीना इतनी गहरी सेंध लगाती है कि वह इससे निकल ही नहीं पाता। मजबूरन वह अपने बेटे को ईसाई बनाने पर मजबूर हो जाता है वह इतना लाचार हो जाता है कि टीना की हरेक बात उसको माननी पड़ती है। उसके पास इतना भी अधिकार नहीं होता कि वे अपने बेटे का अपने धर्मानुसार रख सके या संस्कार कर सकें। जबरन न चाहते हुए भी वह अपना धर्म परिवर्तन तक करने को मजबूर हो जाता है। टीना इसमें जिद्दी और अड़ियल है। अपने पति से झगड़ती है और उसका शोषण करती है। उसकी दुखती रग का उसको पता था। वह उसी पर सेंध लगाती थी। हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों को छोड़कर जबरन पति की इच्छा के विरुद्ध बच्चों को बैपटिस्ट करवाती है। न जाने कौनसी ऐसी मजबूरी थी जिसमें ऋषभ बंधा था और अपने ऊपर हुए अदृश्य अत्याचार को सह रहा था। माँ से समाज में रिश्तेदारों और सर्किल में इस बात को सामने न रखने को कहता है “आप सर्किल में इस बात का जिक्र न करें” पुरुष की विडंबना भी तो इतनी गहरी है कि एक और तो वह अपने गृहस्थ जीवन को बचाने के लिए पत्नी की बातें मानकर अपने बेटे का धर्म परिवर्तन करवाने के लिए तैयार होता है वहीं दूसरी ओर वह इसका सर्कल में पता नहीं चलने के लिए माँ से आशा रखता है। टीना ऋषभ को उसकी माँ से भी दूर कर देती है। बेटा केवल बीवी का बन के रह जाता है। माँ के साथ उसके सारे भावात्मक रिश्ते-संबंध खोखले पड़ जाते है।

वहीं उनकी दूसरी कहानी आचार संहिता में नाहर नामक युवक कैथी के प्रेम जाल और डॉलर के लालच में फंस जाता है। नाहर एक ऐसी आचार संहिता पर हस्ताक्षर कर चुका है जो केवल मौखिक है, अलिखित है क्योंकि लिखित आचार संहिता होती तो कैथी पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती थी। इसलिए इसे केवल मौखिक रखा गया। किन्तु वह जानता है कि वह उस देश में अकेला नहीं था। उसके जैसे बहुत से सिर फिरे है जो उसी की तरह मायावी-गौरी चमड़ी के तहत अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ग्रीन कार्ड के लिए उपनिषद रचते रहते है। वह स्वयं को सिरफिरा मानता है और अपने जैसे दूसरे लोगों को भी सिरफिरा समझता है। उसके सामने दो आचार सहिंता पेश की जाती है-

  1. विवाह से पूर्व
  2. विवाह के उपरांत

विवाह से पूर्व की आचार संहिता इस प्रकार की थी कि…

  1. हमारा परिवार एक न्युक्लिस (एकल) परिवार होगा।
  2. नाहर के माँ-बाप या उसका कोई भी संबंधी उनके घर में नहीं रहेगा। मिलने आ सकते है, अगर उनको रहना होगा तो वह लोग बाहर होटल में रहेंगे।
  3. कैथी ने यह कहा कि “तुम्हारे हिन्दुस्तानी दाव-पेंच, नियम-संस्कार, भाषा, किवदंतिया या घरेलू रीति-रिवाजों के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है”।
  4. बच्चे क्रित्यियन बन कर बड़े होंगे और पलेंगे।
  5. तुम हिनदुस्तान नहीं जाओगे और वहां की बीमारिया लाकर अपने बच्चों को नही दोगे।
  6. परिनुप्चुल एग्रीमेंट के तहत हमारी कोई भी समस्या हो तो घर तुम छोड़ोगे-मैं नही। बच्चों का लालन-पालन तुम पर और उनकी देख-रेख आधी-आधी।
  7. सगाई की अंगूठी की कीमत कम से कम तुम्हारी वार्षिक आय का दसवां भाग होगा और उस पर बाद में तुम्हारा कोई अधिकार नहीं होगा।

विवाहोत्तर की आचार संहिता इस प्रकार की थी कि…

  1. बर्तन नाहर को साफ करने होंगे।
  2. नहलाने से टहलाने तक की कुत्ते की देखभाल नाहर को करनी होगी।
  3. कैथी को हिन्दुस्तानी खाना पसंद था। वह उसे चाट-चाट कर खाती है किन्तु नाहर को नीचा दिखाने के लिए बुराई करती है कि मुझे खाना बनाना नहीं आता और हिन्दुस्तानी तो कदाचित नहीं। जब कभी तुम हिन्दुस्तानी खाना बनायो तो उस की स्मेल्ल का इलाज तुम्हें ही करना होगा।
  4. वह नाहर पर पूरी निगरानी रखेगी उस पर बंधन एवं अंकुश लगा कर रखेगी किन्तु अपने लिए सम्पूर्ण स्वतंत्रता चाहती है। नाहर को उसे वर्ष में दो बार छुट्टीयों में बाहर ले जाना होगा। वह अपने दोस्तों के साथ क्लब या घुमने जाए तो कोई रोक-टोक नहीं होगी।
  5. हिन्दुस्तानी पतियों की टांग-अड़ाने की और संस्कारी रोक-टोक को यह लोग खूब अच्छी तरह से जानती हैं। इसलिए यह रोक-टोक नही चाहती।
  6. ब्लडी इंडियन के हाथों में अपने बच्चे नहीं सोंप सकती।
  7. हिन्दुस्तानी माँए बच्चों को संभालती कम और बिगाड़ती ज्यादा है।
  8. कभी-कभार तुम मंदिर-मस्जिद जायो तो जायो- बच्चे साथ नही जायेंगे। धर्म के मामले में उन्हें हम कन्फ्यूज़ नहीं कर सकते।

पुरुष की कशमकश भी तो इतनी है कि वह विदेशों में कानून का सहारा भी नहीं ले पाता। वह अपने दोस्त पुरुषोत्तम को याद करते हुए सोचता है कि पिछले सप्ताह तो एनी ने हद ही कर दी अपने कपड़े फाड़ कर दो-चार खरोंचें अपने बाजुओं पर हेयर पिन से खींच कर पुलिस बुला ली और पुलिस पुरुषोत्तम को पकड़ कर ले गई। नारी स्वयं तो शोषण करती है किंतु यदि उसे कानून के सहारे शोषित करवाना हो तो वह अपने पति पर घरेलू हिंसा या शोषण के झूठे आरोप लगा उसे पुलिस से पकड़वा भी देती है।

नाहर स्वयं को नाहर (सिंह/शेर) मानने वाला व्यक्ति स्वयं को मकड़ी के जाल में फंसा पाता है। विवाह से पहले वह कैथी को कुछ और समझता था और विवाह के बाद वह कुछ और निकलती है।” उसको कैथी पर तनिक भी विश्वास नही था फिर भी उसे ये उम्मीद थी कि कैथी पढ़ी-लिखी होने के बावजूद इतनी ओछी और संवेदनशील हो सकती है और हरकतें भी कर सकती है। नाहर के भीतर कैथी की छवि कुछ और ही बनी हुई थी। अब वह पछताता है कि क्यों वह कैथी की गोरी चमड़ी पर मर गया। माँ, चाचा-ताऊ सब समझाते है, कहते है कि तू हमारी छोड़ तेरी अपनी ज़िंदगी भी खराब हो जायेगी बर्बाद हो जायेगी नर्क बन जायेगी। संस्कार और शर्म नाम की चीज इन लोगों में नहीं होती। तू अमेरिका में पैदा हुआ होता तब भी शायद यह सब हजम न कर पाता तू। उस पर तू तो यहाँ पैदा हुआ है। तेरे चारों और तो संस्कार भरे है कैसे निकलेगा। आज हालत यह है कि वह आइने में खुद को देखके अपने नाम पर भी शरमाता है कि नाम नाहर है और दुबक के बैठा रहता है भीगी-बिल्ली बनके और एक आठवी क्लास का बच्चा कक्षा के पीछे बेंच पर दुबक बैठा हो।

उसकी शादी को दस साल हुए थे। उसकी दो बेटियाँ मोना और इरा थी। इन दस सालों में उसका परिवार से दुराव आ जाता है। माँ और बहन सविता के साथ संबंध फीके पड़ जाते है। कैथी के कारण वह उनसे दूर हो गया था। वह अपने त्योहारों को मना नहीं पाता है। सविता की भेजी गई राखी पर कैथी नाक-मुहँ सिकोड़ती और उसे तुम्हारे ब्लडी रिवाज और ढकोसलें कहती। दिवाली दशहरे पर लक्ष्मी और शिव की छोटी-छोटी माँ से मिली मूर्तियों को वह रसोई के एक शेल्फ में अपने बने छोटे से मंदिर में उन्हें छुपा के रखता है। नायिकाएं न तो अपने पतियों को भारत वापस आने देती है, न उनके माँ-बाप से उन्हें फोन पर बात करवाती है न करने देती है। उन्हें उनके घर परिवार की कोई खबर ही नहीं लेने देती वह तलाक भी नहीं दे सकते थे क्योंकि एग्रीमेन्ट के तहत उनको अपना सबकुछ छोड़ना पड़ता। घर का सारा काम पुरुषों को ही करना होता था। अपने पतियों पर संदेह भी उन्हे पूरा होता था। इसलिए उनपर निगरानी रखा करती थी। पिछले दस सालों से कैथी उसे उसके परिवार से दूर करने की साजिश करती रहती है। कैथी उसे मां और बहन से बात तक नहीं करने देती थी उसका मोबाइल बच्चों के खिलौनों में छुपा देती थी। उसकी माँ चार दिन तक अस्पताल में भर्ती रहती है और सविता नाहर को फोन करती है कैथी नाहर के फोन को छुपा देती है और नाहर को माँ के अस्पताल के विषय में चौथे दिन पता चलता है कि माँ बीमार थी।

नाहर यह सब छोड़कर जा भी नहीं सकता था क्योंकि अमेरिका आने के बाद अमेरिका की बेलगाम स्वच्छंदता का स्वाद, डॉलर की महत्ता और हिंदुस्तान में पचास-गुना करके बताने का फरेबी दंभ आदमी को कहीं का नहीं छोड़ता। नरक भरी ज़िदगी जीने को मजबूर कर देता है। उसकी माँ और सविता उनके घर पर रहने आती है। नाहर एक दिन के लिए बाहार जाता है। कैथी नाहर के पीछे उसकी माँ और सविता को कड़ाके की चलती शीत लहर और झकझोर देने वाली बर्फीली हवाओं में रात में घर से जाने देती है। नाहर को वापस आकर पता चलता है कि माँ चली गई है। वह कैथी से पूछने जाता है उसको पहली बार ऐसा लगता है कि वह नाहर है वह कैथी से इस बारे में बात करेगा किन्तु बेडरूम तक पहुचने से पहले वह भीगी-बिल्ली बन जाता है क्योंकि कैथी ने उसे चेतावनी दी थी कि “जब भी कुछ कहोगे-मैं बच्चों को लेकर चली जाऊँगी। फिर कभी उनका मुँह नहीं देख पाओगे।वह क्रोधित होता है अंदर ही अंदर घुटता है मगर कैथी से कुछ कह नहीं पाता किन्तु अपनी माँ के चले जाने के बाद वह सो नहीं पाया था। वह बहुत रोता है शावर से बाहर आकर उसकी आँखें सूज जाती है। रसोई में जाकर कैथी के लिए कॉफी और बच्चों के लिए पास्ता उबलने के लिए पानी रखता है। सिंक में पड़े हुए बर्तन ठिकाने लगा देता है। ऊपर से सामान्य दिखता है लेकिन वह सामान्य नही था। अंत में वह हिम्मत दिखा घर छोड़ के जाने का फ़ैसला कर लेता है। आधी रात को वह अपनी बेटियों को उठाकर अलिखित आचार संहिता को ठोकर मारता हुआ पीटर (कुत्ता) के गले में जंजीर डाल पिछली खिड़की से वापस कभी न लौट के आने के लिए निकल जाता है।

निष्कर्ष:-

अतः इन कहानियों के अध्ययन के माध्यम से यह निष्कर्ष निकलता है कि पुरुष वर्ग भी प्रताड़ित होता है। स्त्री कि प्रताड़ना घर, परिवार, समाज सबके सामने प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देती है। जबकि पुरुष किसी से कुछ कह नहीं पता। वह मौन रह कर सहता रहता है। दोनों कहानियों में पुरुष की मानसिक, शारीरिक, भावात्मक पीड़ा को चित्रित किया है। दोनों नायक ही प्रेम जाल में फँसने के बाद प्रेमी का सफर पार कर पति बन गृहस्थ जीवन में अपनी पत्नी से प्रताड़ित, आहात तथा शोषण का शिकार होते है। नाहर हो या ऋषभ दोनों की परिस्तिथियाँ लगभग एक समान ही है। दोनों ही विदेशी नायिकाओं से शोषित है तथा ईसाई धर्म की नायिकाओं से प्रताड़ित है। पुरुष की विडंबना और वेदना इतनी गहरी है कि वह अपने धर्म परिवर्तन तक के लिए मजबूरन तैयार होते है। घर परिवार से दूर हो जाता है। समाज मे अपमान के कारण वह कुछ कह नहीं पाता। वह शोषित होकर रह जाता है।

शोध ग्रंथ सूची:-

  1. सेंध- सुदर्शन प्रियदर्शिनी

http://www.abhivyakti-hindi.org/kahaniyan/vatan_se_door/2014/sendh.htm

  1. आचार संहिता – सुदर्शन प्रियदर्शिनी

http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%86%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80

  1. डॉ. मधू संधु, नायक प्रधान कहानियां/पुरुष उत्पीड़न, वैश्विक संवेदन-संसार और प्रवासी महिला कहानीकार एक अध्ययन, कानपुर: अमन प्रकाशन-2019
  2. सं.:मधु अरोड़ा, कासे कहूं पीर अपने जिया की?, एक सच यह भी पुरुष विमर्श की कहानियां, नई दिल्ली: प्रकाशक कल्याणी शिक्षा परिषद-2016

शोधार्थी:

सिमरन  

हिन्दी विभाग,

कर्नाटक केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कलबुरगी, कर्नाटक

हिन्दी विभाग, कर्नाटक केन्द्रीय विश्वविद्यालय,

कलबुरगी, कर्नाटक-585367