May 10, 2023

39. साहित्य अकादमी द्वारा अनुदित कहानियों में बाल विमर्श – पूनम

By Gina Journal

Page No.: 263-275

साहित्य अकादमी द्वारा अनुदित कहानियों में बाल विमर्श – पूनम

आधुनिक युग में बच्चों को यथार्थ का अनुभव कराना बहुत आवश्यक है। इसी यथार्थ का आभास कराता हुआ उनकी रुचियों के अनुसार, मनोरंजक, ज्ञानवर्धक साहित्य ही बल साहित्य है। बाल साहित्य उनके लिए ज्ञानवर्धक, उपदेशात्मक हो लेकिन साहित्य उबाने वाला न हो। भाषा अत्यंत सरल एवं उनके स्तर के अनुसार हो। बच्चे उसे उत्साह के साथ स्वीकार करें व उसे रुचि के साथ पढ़े। बाल साहित्य उनके लिए रुचिकर होने के साथ-साथ उनके ज्ञान को बढ़ाने वाला सदकार्य व सदगुणों से भरा होना चाहिए ताकि वह बालकों को मनोरंजन प्रदान करने के साथ-साथ उनका बहुमुखी विकास भी कर सकें और वे जीवन में सदकार्य करते हुए एक अच्छे इंसान बन सके एवं एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकें। साहित्य अकादमी द्वारा अनुदित कहानियां इन सभी विशेषताओं से परिपूर्ण है ये कहानियां बच्चों के लिए उपदेशात्मक, ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ रुचिपूर्ण व मनोरंजक है।

बीज शब्द

बाल साहित्य, बाल कहानी, अनुदित कहानी, बाल विमर्श

विषय विश्लेषण

बालक राष्ट्र के भविष्य हैं। उनका हृदय आकाश की तरह विशाल और निर्मल एवं फूलों की तरह कोमल होता है। बालक बाल साहित्य के माध्यम से संस्कारों को ग्रहण करता है । बाल साहित्य बालको की जिज्ञासाओं को शांत करता है। बाल साहित्य विश्व कल्याण, विश्व बंधुत्व, मानव को मानव बनाने के साथ आदर्श समाज की स्थापना करता है। जो साहित्य बालकों की समझ के अनुसार, मन की गहराइयों को छूने वाला हो, भाषा बच्चों की समझ के अनुरूप हो और जिसे पढ़कर बच्चों का सर्वांगीण व बहुमुखी विकास हो सके बाल साहित्य कहलाता है।

हरिकृष्ण देवसरे अपनी पुस्तक हिंदी बाल साहित्य रचना और समीक्षा में बाल साहित्य को परिभाषित करते हुए कहते हैं: “जो साहित्य बच्चों की रुचि के अनुकूल सरल भाषा में लिखा गया हो और जो बच्चों की ज्ञान सीमा को विस्तारित करते हुए उनकी ज्ञान पिपासा को शांत करता हो वह बाल साहित्य कहलाता है।” (8)

जयप्रकाश भारती अपनी पुस्तक भारतीय बाल साहित्य का इतिहास में कहते हैं: “बालक की समस्याओं पर लिखना या किसी कथा में बालक-बालिका को पात्र बना लेने से बाल साहित्य नहीं लिखा जाता। बालक की मानसिकता को ध्यान में रखकर उसके पढ़ने के लिए, उसके मनोरंजन एवं विकास के लिए जो लिखा जाता है वही बाल साहित्य होता है।” (29)

बाल कहानी

बच्चों का दादी-नानी से कहानी सुनना प्राचीन काल से ही चला आ रहा है, और ये कहानियां बच्चों के व्यक्तित्व पर बातों-बातों में, खेल-खेल में गहरा असर करती हैं। बच्चे के आसपास जैसा वातावरण, जैसे लोग या जैसी कहानियां उन्हें सुनाई जाती है, उनके व्यवहार पर इन सब का गहरा असर होता है। जिन कथा कहानियों की दुनिया के बीच उनका जीवन गुजरता है, वह अपने जीवन में आगे चलकर उसी तरह के मनुष्य बनते हैं।

नगेंद्र अपनी पुस्तक हिंदी साहित्य का वृहत इतिहास भाग-16 कहते हैं:

लोकमानस ज्ञान को कहानी के रूप में स्वीकार करता है। जो ज्ञान कहानी के रूप में सरल नहीं वह लोकमानस में नहीं पचता। मानव जाति बुद्धि का कितना ही विकास कर ले, वह प्रत्येक नई पीढ़ी में बाल भाव से ही जीवन चक्र का आरंभ करते हैं। बाल भाव की शिक्षा-दीक्षा रुचि और विचार का एकमात्र आशय कहानी ही है। (21)

गांव में मनोरंजन के अन्य साधन व साहित्य मौखिक रूप में होने के कारण कहानी को लिखित रूप में प्रकाशित करने की आवश्यकता हुई, और वही कहानी उन्हें प्रेरित करने वाली थी। यदि कहानी बालकों की रूचि और आवश्यकता के अनुसार ना हो तो वह उन्हें ग्राह्य नहीं होती अथवा वे उसे स्वीकार ही नहीं करते। इसलिए कहानियां बालकों की रुचि व उनके मनोविज्ञान पर आधारित होनी आवश्यक है। इस प्रकार बाल कहानी की नींव दादी नानी के द्वारा ही रखी गई। ग्रीम बंधुओं ने कथा साहित्य पर काफी काम किया और विभिन्न लोक कथाओं का संग्रह किया। उन्होंने प्रकाश मनु द्वारा रचित पुस्तक हिंदी बाल साहित्य का इतिहास में कहा है:

एक बूढ़ी स्त्री जिसे कि काफी कहानियां याद थीं, के पास वे कुछ छोटे-छोटे बच्चों को बिठा दिया करते थे, जो उनसे कहानियां सुनाने का आग्रह करते थे। खुद ग्रीम बंधु दरवाजे के पीछे ओट में बैठ जाते थे और कहानियां सुनते और लिखते जाते थे। (141)

हिंदी साहित्य में बाल कहनियों की भी एक लंबी श्रृंखला रही है, जिसमें अत्यंत महत्वपूर्ण एवं समाज को प्रभावित करने वाली कहानियां लिखी गई। ये कहानियां बाल पाठकों के लिए पथ प्रदर्शक भी रही है, जिससे बालक समाज में अपनी स्वयं की भूमिका के साथ-साथ  समाज की अन्य इकाइयों को भी समझ सका। हिन्दी साहित्य में बहुत से बाल कथाकारों ने भिन्न-भिन्न विषयों पर और बालकों की रुचि व उनकी आवश्यकता के अनुरूप कहानियां लिखी हैं।

अनुदित कहानियाँ

प्राचीन काल में भारतीय साहित्य में न तो अनुदित साहित्य था और न ही अनुवाद विधा। उस समय की जो भी रचनाएं मिलती हैं वो अपने मौलिक स्वरुप में ही मिलती हैं।

भोलानाथ तिवारी अपनी पुस्तक अनुवाद विज्ञान में इस बात का समर्थन करते हुए कहते हैं:

उस काल में साहित्य तथा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत सबसे आगे था। भारतीय साहित्यकारों ने जो कुछ बाहर से सीखा समझा उसे आत्मसात करके अपने शब्दों में अपने ढंग से व्यक्त किया जिसे अनुवाद नहीं कह सकते। हो सकता है कि कुछ अनुवाद हुए हों लेकिन कालचक्र ने उन्हें ढ़ोना अनावश्यक समझा। (203)

हिन्दी में अनुदित बाल कहानियों की संख्या काफी ज्यादा है। इस दिशा में साहित्य अकादमी की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इस संस्था ने अनेक लेखकों की सहायता से विभिन्न भाषाओं की कहानियों को हिन्दी में अनुदित करके उन्हें संपादित करने का कार्य किया है।

साहित्य अकादमी के द्वारा विश्व के लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में लिखित कहानियों को हिंदी भाषा में अनूदित कर इस भाषा के पाठकों को वैश्विक, पौराणिक से लेकर आधुनिक काल तक परंपराओं, आचार-विचार से पाठकों को परिचित होने का अवसर प्रदान किया है। ये अनुदित कहानियां वैश्विक समाज के सभी पहलुओं को संजोए हुए हैं। परंतु इस शोधपत्र में हम इन अनुदित कहानियों में बाल विमर्श का अध्ययन करेंगे। बाल विमर्श से तात्पर्य यह है कि कहानियों में लिखित बाल किरदार किस तरह से समाज की प्रथा और परंपराओं से परिचित होते हैं उनके महत्व को समझते हैं और किस तरह से वही बाल किरदार असामाजिक तत्वों के माध्यम से समाज के पतन में कब अपने आपको सहभागी बना लेते हैं वे किरदार स्वयं भी नहीं समझ पाते। बाल विमर्श में हम बालकों के द्वारा इन सामाजिक बुराइयों के ग्रहण करने से लेकर उनको अपने आचरण में उतारकर, अपना जीवन जीने के तरीकों पर विचार करेंगे।साहित्य अकादमी द्वारा हिन्दी मे अनुदित पुस्तकों में रेखा व्यास द्वारा संस्कृत भाषा से अनुदित लघु कथा संग्रह भाग- 1 एवम् भाग- 2, वेबस्टार डेविस जीरवा की खासी में रचित सूरज और मोर की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद आल्मा सुहल्या ने, हरिकृष्ण देवसरे ने हैंस एण्डरसन की कहानियाँ (दो भागों में) तथा मिश्र बंधुओं की कहानियाँ (दो भागों में) का हिन्दी में अनुवाद किया है। हरिश नारंग ने तालिमा शिन्जी की अंग्रेजी कहानी पुस्तक अचरज ग्रह की दंत कथा का हिन्दी अनुवाद, ओरासियो किरोगा की स्पेनिश भाषा में रचित जंगल कथा का हिन्दी अनुवाद प्रीतिपंत द्वारा, जसबीर भुल्लर की पंजाबी में रचित जंगल टापू का हिन्दी में अनुवाद शांता ग्रोवर द्वारा, नेपाली भाषा से नेपाली लोक कथाएँ भाग – 1, भाग-2 को हिन्दी में अनुदित प्रकाश प्रसाद उपाध्याय द्वारा,भारतीय बाल कहानियां भाग 1, 2, 3, 4 विभिन्न लेखकों द्वारा हिंदी में अनुदित कहानियों का संकलन हरिकृष्ण देवसरे द्वारा, बांग्ला भाषा में सुकुमार राय चुनिंदा कहानियों का हिंदी अनुवाद अमर गोस्वामी द्वारा सम्मलित हैं।

बाल विमर्श

बालकों द्वारा लिखित साहित्य का चिंतन, दशा और संभावनाओं पर आधारित विमर्श, बाल विमर्श कहलाता है। बाल विमर्श के तहत बाल साहित्य को अनेक श्रेणियों में विभाजित करके विमर्श का विषय बनाया गया है-1 प्रतिष्ठित साहित्यकारों द्वारा लिखा गया बाल साहित्य 2 स्वयं बालको द्वारा लिखा गया साहित्य, जिसमें बच्चे हैं केंद्र में हो तथा 3 अन्य विषयों को केंद्र में रखकर बच्चों द्वारा लिखित रचनाएं। कुछ विचारकों का मानना है कि स्वानुभूति के आधार पर बालकों के द्वारा लिखित रचनाऍं ही बाल विमर्श के अंतर्गत आती हैं लेकिन आलोचक रमेश दिविक अपने एक साक्षात्कार में इस विचार का विरोध करते हुए कहते हैं: “बाल कविता और बालक के द्वारा लिखी गई कविता में अंतर होता है। बाल कविता बाल मन के निकट की, बालक के लिए रचना होती है, जबकि बालक के द्वारा रचित रचना बड़ों के लिए भी हो सकती है और प्राय होती है।”

 

अनुदित कहानियों में बाल विमर्श

21वीं सदी तक भारत के विभिन्न भाषाओं के बाल साहित्य का हिंदी में अनुवाद खास उत्साह वर्धक नहीं है। लेकिन फिर भी साहित्य अकादमी ने इस दिशा में अति सराहनीय कार्य किया है। साहित्य अकादमी ने इस दिशा में विभिन्न भाषाओं से हिंदी भाषा में अनूदित पुस्तकों का प्रकाशन करके एक बहुत बड़ा कदम उठाया है।

सुकुमार राय चुनिंदा कहानियां अमर गोस्वामी द्वारा बांग्ला से हिंदी में अनुदित कहानियाँ हैं जो कि बाल मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इस पुस्तक में संकलित नंदलाल का दुर्भाग्य कहानी में नंदलाल के मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व व अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने की प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है। इस कहानी में एक बालक नंदलाल जो कि इतिहास पढ़ने में काफी तेज था लेकिन इस बार संस्कृत विषय में उसने अच्छे से तैयारी की थी ताकि उसे पुरस्कार मिल सके लेकिन जब परीक्षा के परिणाम आए तो हेडमास्टर ने बताया कि इस बार संस्कृत में प्रथम आने पर नहीं बल्कि दूसरों विषयों में पुरस्कार दिए जाएंगे तब नंदलाल उसे अपना दुर्भाग्य समझ कर उदास हो गया।

नन्द का चेहरा उस वक़्त देखने लायक़ था । उसका मन कर रहा था कि वह दौड़कर खुदीराम को दो-चार घूँसे जड़ दे। यह किसे पता था कि इस बार इतिहास के लिए पुरस्कार दिया जाएगा, मगर संस्कृत के लिए नहीं । इतिहास में मेडल तो उसे अनायास ही मिल सकता था। मगर उसकी इस तकलीफ़ को किसी ने नहीं समझा-सभी कहने लगे, “बिल्ली के भाग्य में छींका टूटा है। बिना पढ़े ही नन्दलाल को नम्बर मिल गये ।” नन्द ने गहरी साँस लेकर कहा, “मेरा दुर्भाग्य!” (12)

 यतिन की चप्पल कहानी में यतिन की लापरवाही का, सर्वज्ञ व यज्ञदास के मामा कहानी में झूठ बोलने की प्रवृति का, डिटेक्टिव एवम् पगला दासू कहानियों में अनावश्यक कोतूहल और लोभ के दुष्परिणामों को रोचक ढंग से दिखाया गया है। हरिकृष्ण देवसरे द्वारा संपादित विभिन्न लेखकों द्वारा अनुदित कहानी संग्रह भारतीय बाल कहनियाँ भाग 1 में संकलित विजय कहानी में मार के डर से भी प्रभात का अपनी सच्चाई व ईमानदारी पर टिके रहने की प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है:

तेरी बात से मुझे बड़ी खुशी हुई। इतना मारने-पीटने के बावजूद, मार के डर से तूने सच को झूठ नहीं माना और झूठ कहा भी नहीं। तेरी इस बात से मुझे बड़ी शांति मिली है। मेरी कामना यही है कि मेरा हर छात्र तेरे जैसा बने। सत्य के लिए अपने जीवन को भी जो तुच्छ माने, वही छात्र देश का गौरव होता है। (20)

 अनिमा की नन्हीं बिल्ली कहानी में अनिमा का अपनी नन्हीं बिल्ली के प्रति प्रेम का, सहेली कहानी में प्रेरणा का अपनी खूबसूरती पर अहंकार का तथा उसका अहसास होने पर उस अहंकार के त्याग का, राजम और मणि कहानी में स्कूली जीवन में राजम व मणि के बीच होने वाले झगड़ों व सुलह का, गली का दादा कहानी में रज्जू का लड़कों के बीच अपनी ताकत और प्रभाव के प्रदर्शन की भावना का बहुत ही सुंदर शब्दों में चित्रण किया गया है। भारतीय बाल कहानियाँ भाग 2 में संकलित कहानी अगले दिन में सुला और मखना की पढ़ाई के प्रति उदासीनता को, दोस्ती कहानी में मित्रता निभाने के आदर्श को प्रस्तुत किया गया है वहीं इसी कहानी संग्रह में संकलित कहानी क्रोसरोडस में चेतना व चिंतन दोनों भाई बहनों के संघर्ष के साथ-साथ देश के लिए कुछ नया करने की प्रवृत्ति को दर्शाया गया है।

“हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारा देश हमारे लिए क्या कर सकता है, पर हमें तो यह सोचना चाहिए कि हम अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं?”

“सिर्फ सोचता ही रहेगा?”

“नहीं दीदी । टॉर्च जलाऊँगा, मशाल जलाऊँगा……. आज की बहुरंगी दुनिया के रास्तों पर चलकर अपना चौराहा मैं खुद तलाश करूँगा । इतना तो कर ही सकता हूँ।” और चिन्तन मुस्करा दिया। (97)

भारतीय बाल कहानियाँ भाग 4 में संकलित कहानी रूपा में पंजाबी सभ्यता और पंजाबी मेलों का बहुत ही सुंदर वर्णन करने के साथ-साथ रूपा की मनोदशा, उसके बाल मन की कोमलता एवं निश्छलता का सुंदर चित्रण किया गया है। इसी कहानी संग्रह में संकलित कहानी मेरा कथानायक में एक ईमानदार और साहसी बालक की एक छोटी लड़की की सहायता से बच्चों को सदाचारी और अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा देती है:

सम्मान पानेवाला बाल साहित्यकार मैं तो केवल तमाशबीन बनकर ही रह गया, मगर लड़की का दुःख दूर करने का रास्ता नहीं निकाल पाया।

बिना मेरी कहानियाँ पढ़े ही, संस्कारी और सदाचारी बननेवाले ऐसे अनगिनत बालक अवश्य होते ही हैं। यह देखिए! तुरंत ही बारह रुपए वसूलकर रोती हुई उस लड़की का दुःख दूर करनेवाला वह लड़की उनमें से ही एक तो है। (67)

इसी कहानी संग्रह में संकलित दरोगा अंकल एवं बछड़ा कहानियों में बालकों का जानवरों के प्रति प्रेम को दर्शाया गया है। सुनहरे गुलाब का फूल कहानी में बाल मन की कोमलता एवं निश्छलता के साथ-साथ लालच की प्रवृत्ति एवं उसके दुष्परिणामों का वर्णन किया गया है। इस कहानी में कल्पना का सहारा लिया गया है। एक अन्य कहानी अनोखी परीक्षा में शिक्षक द्वारा पढ़ाए जा रहे पाठ की भूल की और उनके छात्र की साहस, ईमानदारी और सच्चाई की कहानी है। जंगल टापू कहानी संग्रह में एक बालक के जीवन से संबंधित कहानियाँ है जो एक हवाई जहाज से जंगल में गिर जाता है, उसका पालन पोषण जंगलमें ही होता है। जंगल के जानवरों के साथ रहकर रब्बू भी उनके जैसा ही हो जाता है  वैसे वह वहाँ बहुत खुश रहता है लेकिन फिर भी एक दिन वह अपने जैसे इंसानों के पास जाने की इच्छा जाहिर करता है।

रब्बू के दिन इसी तरह हँसते-खेलते गुज़र रहे थे। लेकिन कभी-कभी रब्बू उदास हो जाता था। वह जंगल के सभी जानवरों से अलग था । उसका मन करता था कि जंगल टापू में उस-जैसे कुछ दूसरे जानवर भी होते। वह भी सब मिलकर रहते, जैसे ख़रगोश रहते हैं या बन्दर रहते हैं।

एक दिन वह सुबह-सवेरे बाहर निकल गया और सारा दिन जंगल में घूमता रहा। उसने जंगल टापू के सारे कोने छान डाले, लेकिन जंगल टापू में कहीं भी उसे अपने जैसा कोई जानवर नहीं मिला। (52)

बच्चों को परी कथाएं तथा जादू से परिपूर्ण कथाएं बहुत पसंद होती है। ग्रिम बंधुओं की कहानियां भाग 1 में संकलित सिंड्रेला, बोतल में आत्मा, राक्षस और दर्जी, जंगल में एक घर और बौने आदि लगभग सभी कहानियां बच्चों को यथार्थ की दुनिया से दूर किसी कल्पना लोक में विचरण करवाती हैं। वहीं ग्रीम बंधुओं की कहानियां भाग 2 में संकलित कहानियों में भाई बहन के प्यार, भाई के लिए बहन का कष्ट सहना, परिवार के सदस्यों का प्यार, गौरैया और उसके चार बच्चे कहानी के माध्यम से मां के द्वारा बच्चों को इस दुनिया और समाज के प्रति सचेत करना आदि गुणों को दर्शाया गया है। एक बच्चे के जीवन में इन कहानियों का एक विशेष स्थान है।

हरिकृष्ण देवसरे इस विचार का समर्थन करते हुए अपनी पुस्तक ग्रीम बंधुओं की कहानियाँ भाग 2 की भूमिका में कहते हैं:

हैंस पीटर ब्लू एल ने अपनी ‘जर्मनी के ‘ शीर्षक रिपोर्ट में लिखा है कि आधुनिक छोटे परिवारों में दादी का अभाव हो गया है  उनका स्थान टी.वी. और वी.सी.आर. में ले लिया है। अब तो रात को सोने से पहले थका हुआ पिता या थकी हुई माँ ही बच्चों को बहलाने के लिए कभी-कभार कोई कहानी सुना देती है।”(10)

हरिकृष्ण देवसरे द्वारा अनुदित हैंस एंडरसन की कहानियां भाग 1, भाग 2 में संकलित कहानियों में कल्पना का सहारा लिया गया है। इन कहानियों में कुछ निष्प्राण वस्तुएं प्राण वान होकर कहानियों में एक नई जान दे डाल देती हैं। ये कहानियाँ काल्पनिक होते हुए भी यथार्थ का आभास कराती हैं और वे पाठक को अपनी ओर खींचती हुई महसूस होती है। हैंस एंडरसन की कहानियाँ भाग 1 में संकलित कहानी बहादुर टीम का सिपाही में टीन के एक निष्प्राण सिपाही की कहानी, डेजी कहानी में एक फूल की कहानी, शर्ट का कलर में शर्ट के कॉलर की कहानी आदि कहानियाँ काल्पनिक होते हुए भी बच्चों को सहज ही अपनी और आकर्षित करती है।

रेखा व्यास द्वारा अनुदित कहानी संग्रह लघुकथा संग्रह भाग 1 में संकलित कहानियाँ पंचतंत्र की कथाएं, ब्राह्मण , बेताल पच्चीसी की कथाएं एवं हितोपदेश की कथाएं आदि सभी कथाएं पौराणिक कथाओं के साथ-साथ उपदेशात्मक एवं नीतिपरक कथाएँ हैं। ये कथाएँ बच्चों में नैतिक गुणों का विकास करती हैं। इसी तरह से लघु कथा संग्रह भाग –2 में संकलित कहानियाँ भी पौराणिक, ऐतिहासिक एवं नीतिपरक है।

स्वप्ना दत्त द्वारा अनुदित कहानी संग्रह बुलबुल की किताब में संकलित कहानियाँ पशु पक्षियों पर आधारित कहानियाँ हैं। इन कहानियों को बालकों के लिए रोचक एवं मनोरंजक बनाने के लिए कविता की लाइनों का प्रयोग किया गया है, जो बालकों को अपनी ओर लुभाती हैं। उन कहानियों के पठन से खेल खेल में बच्चों में संघर्ष की भावना एवं सहयोग की भावना का विकास होता है। हरीश नारंग द्वारा अनुदित कहानी संग्रह अचरज ग्रह की दंतकथा की कहानियों में बताया गया है कि हमें अपने जीवन को सुंदर बनाने में आने वाले विकारों पर विजय प्राप्त करनी होगी और संघर्ष के साथ-साथ अपना वचन निभाने की पूरी तैयारी करनी होगी। यह पुस्तक उन बच्चों और बड़ों को समर्पित है जिनके जीवन में अविश्वास एवं कठिनाइयों के बावजूद वे नई सदी के प्रति आशा एवं दृढ़ता से उन्मुख हैं। प्रकाश प्रसाद उपाध्याय द्वारा अनुदित कहानी संग्रह नेपाली लोक कथाएं भाग 1 में संकलित पशु पक्षियों की कहानियों के माध्यम से बच्चों में नैतिकता के गुणों का विकास किया गया है। प्रकाश प्रसाद उपाध्याय द्वारा अनूदित कहानी संग्रह नेपाली लोक कथाएं भाग 1 में भी इस विचार का समर्थन किया गया है:

सृष्टि के प्रारंभ से लोक कथाएँ विभिन्न रूप में सामने आती रही हैं। विभिन्न विद्वानों ने इनका वर्गीकरण भी भिन्न-भिन्न रूपों में किया है। हमारी लोक कथाएँ सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, उपदेशात्मक, प्रेम-प्रधान और अप्सराओं की दया-कृपा तथा पशु-पक्षियों के चमत्कारपूर्ण कार्यों से भरी हुई है। (5)

इस तरह की कहानियाँ बच्चे अपनी दादी नानी से युगों-युगों से सुनते आ रहे हैं। ये कहानियाँ उनको अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित करती हैं वही बुरे या गलत कार्य करने के लिए रोकती भी हैं।

प्रकाश प्रसाद उपाध्याय अपनी पुस्तक नेपाली लोक कथाएं भाग 2 में कहते हैं:

प्रस्तुत लोक कथा संग्रह भी इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसके साथ यह भी आशा की गई है कि सुनने और सुनाने की परंपरा के साथ-साथ लोक-कथाऍं पढ़ने और पढ़ाने की परंपरा भी कायम रहे। प्रस्तुत संकलन यदि समाज के सभी वर्गों, विशेषकर बच्चों के लिए विशेष उपयोगी और प्रेरणादायी बनते हुए एक अच्छा मित्र बन सके तो पुस्तक प्रस्तुत करने का लक्ष्य सार्थक होगा। (6)

प्रीति पंत द्वारा अनूदित कहानी संग्रह जंगल कथा में संकलित कहानी विशाल कछुआ में परोपकार की भावना के दर्शन होते हैं। जिसमें एक मनुष्य कछुआ की जान बचाता है, बाद में वही कछुआ उस मनुष्य को अपनी पीठ पर बांधकर उसके गांव तक लाता है और उसकी जान बचाता है: “जब शिकारी ने यह जाना कि किस तरह कछुए ने उसे बचाया था और किस तरह उसने तीन सौ मील की यात्रा तय की थी, ताकि उसका इलाज हो सके, तब उसने कछुए से कभी भी अलग न होने का फैसला कर लिया। (15)

इसी कहानी संग्रह में संकलित एक अन्य कहानी घड़ीयालो की लड़ाई, अंधी हिरनी एवं कहानी दो कोआती के बच्चों और दो आदमी के बच्चों की कहानी में परोपकार व जरूरत के समय एक दूसरे की सहायता को दर्शाया गया है।

निष्कर्ष

निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि साहित्य अकादमी का विभिन्न भाषाओं की कहानियों को हिंदी में अनुदित करने का कार्य अत्यंत सराहनीय रहा है। ये कहानियाँ बाल मनोविज्ञान एवं बालकों से संबंधित हैं जो पाठकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं। पशु पक्षियों की कहानियां बच्चों के दिल के बहुत करीब होती हैं और इन अनुदित कहानियों में इनकी प्रधानता है। कुछ कहानियों के पात्र बाल पात्र की अपेक्षा बड़े या फिर पशु-पक्षी हैं लेकिन फिर भी ये बालकों के लिए रोचक और मनोरंजक होने के साथ-साथ नीतिपरक एवम् उपदेशात्मक हैं।

संदर्भ सूची

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शिन्जी, ताजीमा. नारंग, हरीश. अचरज ग्रह की दंतकथा. साहित्य अकादेमी, 2018.

शोधार्थी का नाम: पूनम (POONAM)

निर्देशक का नाम:  DR. VINOD KUMAR

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