May 20, 2023

66. साहित्य और जीवन मूल्य – वैशाली

By Gina Journal

Page No.: 473-479

ाहित्य और जीवन मूल्य

वैशाली 

सारांश

          मूल्य मानव जीवन में जन्मजात होते है। उनका स्वरूप प्रकट करना बड़ा ही दुलर्भ कार्य है। मूल्य शब्द का तात्पर्य है- जीवन मूल्य अर्थात् जीवन के मानदण्ड। मूल्य मानव समाज की सभ्यता एवं संस्कृति के परिचालक तत्व हैं। समाज की उन्नति मानवीय मूल्यों पर ही आधारित होती है। समाज में मूल्य मानवीय व्यवहार के मानक को स्वीकार करते है तथा मानवीय जीवन को किन्हीं महत् उद्देश्यों से जोड़ने की प्रेरणा से ही मूल्यों का उदय हुआ है। मूल्य के दो प्रकार है- एक शाश्वत मूल्य दूसरा बदलते मूल्य शाश्वत मूल्य में सौंदर्यात्मक और नैतिकता की व्याख्या की जाती है। दूसरा बदलते मूल्य में सामाजिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक मूल्य आते हैं। सौंदर्यात्मक जिससे सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् है और नैतिक मूल्य में त्याग, समर्पण, अहिंसा, करुणा, उदारमा तथा सेवा आदि शाश्वत मूल्यों का समावेश होता है। नैतिकता शब्द आचरण से संबंधित है। वैसे यह नीति से बना है। समाज द्वारा बनाये गये नियमों के अनुकूल चलना ही नीति है। और मनुष्य में यह मूल्य आंतरिक रूप में होते हैं। मनुष्य का आचरण ही मूल्यों को अभिव्यक्त करता है। मूल्य अच्छाई, भलाई, सच्चाई तथा जनसेवा के लिए ही होते हैं। मूल्यों का निर्माण एकपक्षीय नहीं होता। इसमें मानव का होना आवश्यक है। मूल्यों की सृष्टि अभाव में ही होती है। प्रबुद्ध व्यक्ति के कारण ही जीवन मूल्य का विकास होता है।

मूल बिंदु- साहित्य, जीवन-मूल्य, नैतिकता, मानवता, शाश्वत मूल्य।

परिभाषा

          मूल्यों की पहचान देना वैसे तो असंभव है परंतु कुछ विद्वानों के अनुसार मूल्य की परिभाषाएँ इस प्रकार है-

  1. मूल्य वे मान्यताएँ हैं, जिन्हें मार्ग दर्शक ज्योति मानकर सभ्यता चलती है और जिनकी उपेक्षा करने वालों को परंपरा अनैतिक, अच्छ्ंखल या बागी कहती हैं, किंतु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पुराने मूल्यों की प्रतिष्ठा करने वाले व्यक्ति भगवान बन जाते हैं। अतएवं साहित्य में मूल्यों का विवेचन असल में नैतिक और परंपरागत विवेचन बन जाता है।1 दिनकर
  2. वे व्यक्तिमूलक की प्रधान हैं जो समाज मूल्य के विरोधी न होकर उसके पोषक हों, वे ही सच्चे मानवीय मूल्य हैं2 डॉ. धीरेन्द्र वर्मा,
  3. समस्त मध्यकाल में इस निखिल सृष्टि और इतिहास क्रम का नियंता किसी मानवोपरी लौकिक सत्ता को माना जाता था। समस्त मूल्यों का स्रोत वही था, और मनुष्य की एकमात्र सार्थकता यह थी कि वह अधिक से अधिक उस सत्ता से तादात्म्य करने की चेष्टा करे।3 धर्मवीर भारती

प्रस्तावना

          साहित्य के माध्यम से ही व्यक्ति अपने जीवन में उचित मूल्य को स्थापित करने अपने जीवन को सार्थक दिशा की ओर ले जाता है। मनुष्य अपने जीवन में अनुभव के माध्यम से ही ज्ञान को अर्जित करता है। अपने जीवन में आदर्श मूल्यों की स्थापना करता है। साहित्य में निर्हित जीवन-मूल्यों से समाज को व्यापक रूप से प्रेरणा मिलती है। समाज में घटित होने वाली घटनाओं का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञान साहित्य के माध्यम से ही प्राप्त होता है। मनुष्य के जीवन में आदर्श मूल्य को स्थापित करने से जीवन सुलभ हो जाता है। भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से ही जीवन मूल्यों को महत्त्व दिया गया है। भारतीय विद्वानों ने मूल्यों की विवेचना मुख्यत: धर्म के संदर्भ में की है। जिन गुणों को धर्मानुकुल पाया गया है, उन्हें ही जीवन-मूल्यों के अनुकूल बताया गया है। मनुष्य के अनुसार धर्म के दस लक्षण हैं-

        धृति क्षमा दमो स्तेंय जौचमिन्द्रिय निग्रह:।

        धीविद्यासत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षण्म्।।

          धैर्य, क्षमा, दया, अस्तेय, इन्द्रिय-निग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध ये धर्म के दस लक्षण हैं। और मानवीय गुण मनुष्य को श्रेष्ठ मनुष्य बनाने में पूरक हैं। यही मानवीय गुण मनुष्य के नैतिक जीवन मूल्य हैं।मनुष्य विकासशील प्राणी है विशाल सृष्टि का अंश भी है। मनुष्य की स्वभाविक चिंतन शक्ति और बौद्धिक क्षमता से कुछ ऐसे जीवन के नैतिक मूल्य विकसित हुए है जो सारे विश्व में मान्य है। आदर्श मानव विश्व में राष्ट्र, जाति तथा धर्म का विचार किए बिना समस्त मानव जाति की आर्थिक सांस्कृतिक नैतिक तथा भौतिक समृद्धि एवं स्वतंत्रता और प्रति के प्रति प्रबल निष्ठा रखता है। वह सार्वभौतिक, समृद्धि, स्वतंत्रता, प्रजातंत्र और शांति की स्थापना पर विश्वास रखता है। जीवन मूल्य समय (आर्थिक युग) के महत्त्व का आकलन किया जाता है। मूल्य की स्थिति किसी वस्तु में न होकर मानव में है। मूल्य मानव की इच्छाओं की पूर्ति करता है। जीवन का रक्षण और विकास में सहायता करता है। यह मनुष्य को आत्मसाक्षात्कार एवं आर्थिक विकास की ओर उन्मुख करता है। भौतिक जगत में मूल्य का संबंध उपयोगिता से है। जीवन मूल्य एक धारणा है जिसका संबंध मानव से है। जीवन-मूल्यों को ही मानव व्यवहार एवं समाज कल्याण की कसौटी माना जाता है। जीवन मूल्य स्वतंत्रता एवं समानता का प्रतिपादन करते है तथा एकता, समन्वय, सामंजस्य और संतुलन को बनाए रखते है। मनुष्य की प्रतिष्ठा का आकलन उसके जीवन-मूल्यों से किया जाता है। जो मनुष्य समाज में मूल्यहीन जीवन जीते है उसको समाज में व्यर्थ माना जाता है। सिद्धांत और मूल्य जीवन को ऊर्जा देते है। परिवार का संचालन हो या समाज का कुछ आदर्श और सिद्धांत अवश्य होने चाहिए जिससे जीवन का संचालन सही ढंग से हो सकेगा यदि जीवन में इनका अभाव हो जाए तो समाज का ढांचा ही गड़बड़ाने लगेगा। जीवन का संचालन कुछ आदर्श और नियमों पर होता है। इन्हीं के द्वारा जीवन मूल्य को स्थापित किया जाता है। मनुष्य के जीवन का होता है स्व प्रत्यक्षीकरण को प्राप्त करें। जब मनुष्य विश्लेषण और गुण-दोष का विवेचन करता है तो तभी उसको अपने जीवन मूल्य की तलाश करता है। यह मूल्य जर्जर या नम् नहीं होते क्योंकि यह दृश्य नहीं होते मनुष्य के भीतर ही होते हैं तथा इनका संबंध मनुष्य जीवन से है। इनका निर्माण मानव जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है। जिसमें सामाजिक नियमों की अवहेलना भी न हो क्योंकि मूल्य परंपरागत है। मानव के नैतिक आदर्शों से मूल्यों को पहचानकर विचारशील मानव की शारीरिक आवश्यकताओं पर नियंत्रण कर मानसिक वृत्तियों को जगाया है। यही मूल्य है। मनुष्य जिस नियमों, मर्यादाओं और सिद्धांतों को अपनाकर निर्देशन में चल रहा है। यह जीवन ही मानव जीवन है। मानव सृष्टि के यह सिद्धांत और मर्यादा ही जीवन-मूल्य कहलाते हैं।

२१वी सदी में भारतीय समाज में जीवन मूल्य

          21वीं सदी में भौतिकवादी विचारधारा ने लोगों को उपभोक्ता बना दिया है। व्यक्ति एक वस्तु बनकर रह गया है।भूमंडलीकरण, वैश्वीकरण और बाजारवाद के प्रभाव से जीवन-मूल्यों में बदलाव आ रहा है। मूल्य और संबंधों को भी नफा नुकसान के पैमाने पर परखा जा रहा है। जिससे व्यक्ति एक वस्तु के रूप में कार्य कर रहा है। वर्तमान समय में भौतिकवादी विचारधारा ने लोगों को उपभोक्ता बना दिया है। भारतीय संस्कृति की पारिवारिक भावनाओं को पाश्चात्य संस्कृति ने प्रभावित किया है। जिससे सामाजिक रिश्तों में भी बदलाव आया तथा प्रभावित हुये है। इसी कारण समाज में अनेक प्रकार के अंर्तद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई है। वर्तमान समय में पारिवारिक बिखराव की स्थिति का आरंभ हुआ जिससे व्यक्ति विघटन की समस्या उठ खड़ी हुई है। पति-पत्नी के मार्धुय और प्रेम संबंध के बीच टकराहव की स्थिति उत्पन्न होती गई। जब परिवार को जोड़ कर रखने वालों में ही एकता, मधुरता और प्रेम समाप्त बालों में ही एकता, मधुरता और प्रेम समाप्त होता जाएगा तो बच्चों पर उसका प्रभाव भी पड़ेगा जिससे पारिवारिक रिश्तों में कड़वाहट देखी जा सकती है। आज के समय में प्रेम के मायने ही बदल गये है। प्रेम के नाम पर घृणा उत्पन्न हो रही है। रिश्ते लेन-देन तक ही सीमित रह गये है। प्रेम की भावना आज के समय में कम होती जा रही है और एक-दूसरे को समझने की बजाय तिरस्कार करने लगे है। मूल्य हीनता का आलम ऐसा है कि एक-दूसरे से कतराने लगे। वैश्वीकरण के दौर में मनुष्य आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है इसलिए दूसरों को महत्व देना उसका जरूरी नहीं लगता।

          समकालीन समय पर अनेक लेखक और लेखिकाओं ने स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों को देखा और उन पर अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक ऐसे प्रतिबंधन जो उन पर लगाये जा रहे थे उनको साहित्य के माध्यम से अभिव्यक्ति किया। समसामयिक सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत स्त्रियों को घर की दहलीज लांघने की इजाजत नहीं दी जाती थी नारी को नौकरी करने का अधिकार प्राप्त नहीं था। अनेकानेक कथाकारों ने स्त्री की इस पीडा, घुटन को महसूस किया और उन्हें पुरुष के वर्चस्व, पुरुष द्वारा बनाये गये इस एकाधिकार को समाप्त करने की पूरी स्वतंत्रता प्रदान की। रचनाकारों ने देखा कि मनुष्य ने बहुत कुछ हासिल तो कर लिया है पर उसके लिए संवेदना की भावना नहीं रही है। अपने कर्त्तव्य से मुख मोड़ कर विपरीत कार्य करने लगे है स्वार्थ की भावना में इतना धुंध हो गये है कि अपने पराए को ख्याल नहीं रहा है। व्यवहारिक में जिंदादिली का दिखावा है आंतरिक मन में चाहे मतभेद की भावना हो। किसी दूसरे को चोट पहुँचाने का अफसोस नहीं, मनुष्य इंसान नहीं पाखंड बन गया है।

          21वीं सदी के दौर में परिस्थितियों में बदलाव आया है वैश्वीकरण के दौर में मनुष्य को वस्तु मात्र बना दिया है। मनुष्य हर क्षेत्र और हर कार्य को नफा नुकसान मात्र की दृष्टि से ही देखता है। किसी भी कार्य को करने से पहले चिंतित हो जाता है कि लाभ कितना होगा और हानि कितनी होगी। वर्तमान युग में राजनीति स्वार्थ केन्द्रित हो गई है। सत्ता हासिल करने के लिए नेता लोग किसी भी हद तक चले जाते है झूठ का सहारा लेते है। जनता की भावनाओं का मजाक बनते है। सेवा के नाम पर घोटाले करते हैं। आधुनिक समय में प्रेम में संवेदना नहीं व्यापार ही नज़र आता है। पति-पत्नी के रिश्ते भी शर्तों और अनुबंधों पर चल रहे है। रिश्तों में बदलाव के कारण मूल्यों का विघटन भी हो रहा है। मनुष्य के जीवन में घुटन और कुंठा ने घर कर लिया है। 21वीं सदी में हर व्यक्ति आंतरिक दबाव के द्वन्द्व में ही अपना जीवनयापन कर रहा है। धर्म का रक्षा का विषय राजनीति में प्रचलित हो गया है। भूमंडलीकरण के दौर में विज्ञान के नए आविष्कारों के कारण संपूर्ण विश्व आपस में एक जरूर हो गया है परंतु इससे विकास के साथ व्यक्ति के मानसिक स्तर पर भी प्रभाव पड़ा है जिससे संकीर्णता ने उसे विखंडितकर और खूखार बना दिया है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं को जो अवसर और सुविधा मिल रही है। उनका वह गलत फायदा उठा रही है। आज संपूर्ण विश्व संकीर्ण विचारधारा की प्रवाह में बढ़ता जा रहा है। वैश्वीकरण के दौर ने मनुष्य को सुविधाएँ तो उपलब्ध करवाई परंतु मनुष्य उन सबका लाभ सीमित दायरे के अंतर्गत न करके लालची प्रवृत्ति की ओर बढ़ता गया जिससे समाज के साथ-साथ मूल्यों की भी क्षति हुई है।

निष्कर्ष

          आज के इस दौर में बदलाव के साथ हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के बढ़ने के कारण लगातार जीवन-मूल्यों का ह्रास हो रहा है। विश्व शांति स्थापित होने की जगह एक देश, दूसरे देश से आक्रमण की तैयारी कर रहा है। एक ही परिवार में रहते हुये मनुष्य भाई-भाई का दुश्मन बन जाता है। ज़मीन-जायदाद के लिये, भाई-भाई की हत्या करने को तैयार है। हर मनुष्य दूसरे की आलोचना करता रहता है। ऐसे वर्तमान समय में मानव मूल्यों, जीवन-मूल्यों को स्थापित, पारिवारिक संबंधों को स्थापित, लोगों को प्रेरणा देने और उनका मार्गदर्शन करने में ऐसे साहित्य की आवश्यकता है जो मानव में सोए हुए जीवन मूल्यों को जगा सके।

संदर्भ सूची

  1. उसका घर, मेहरुन्निसा परवेज़, नेशनल पब्लिशिं हाउस, दरियागंज, दिल्ली, सं. 1977
  2. आधुनिकता के आईने में दलित, अभय कुमार दुबे, वाणी प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली, सं. 2005
  3. समकालीन हिंदी कथा साहित्य में जन चेतना, अरुणा लोखण्डे, विकास प्रकाशन, कानपुर, सं. 1996
  4. https://www.hindikunj.com/2020/06/bhartiya-jevan-mulya.html8/12/2020
  5. https://www.livehindustan.com/news//article1-story-23510.html10/12/2020
  6. http://www.jansatta.com/duniya-mere-aage/price-of-life-school-ncert-books/49913/10/12/2020

वैशाली शोधार्थी

हिंदी विभाग

केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश