67. शैलेश मटियानी कृत नगरीय परिवेश की कहानियों में चित्रित नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन डॉ रंजीत कौर
Page No.: 480-486
शैलेश मटियानी कृत नगरीय परिवेश की कहानियों में चित्रित
नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन
डॉ रंजीत कौर
भूमिकाः शैलेश मटियानी के साहित्य सृजन का प्रारंभिक काल मुंबई के महानगरीय परिवेश में बीता। जहां उन्हें मजदूरए श्रमिकए कुलीए उठाईगीरए उचक्कऐ और भिखारी समाज के बीच रहने का अवसर मिला। इस लिए उनके साहित्य में अनुभूतियों एवं संवेदनाओं के धरातल पर मानवता की सच्ची परख मिलती है। उनकी अधिकांश कहानियां उनके कहानी संग्रह ‘मेरी तैंतीस कहानियाँ तथा ‘बर्फ की चट्टानें में संकलित हैं। मटियानी जी की कहानियों में थोकदारनियां, ठाकुराइनें, पंडितानियों, गोराइनें आदि उच्च वर्ग की महिलाओं का चित्रण निरपेक्षता के साथ हुआ है। उनकी कहानियों में नारी पात्रों के विभिन्न रूप जैसे महतारियां, पत्नियां, बहनें, भौजियां ननदें, सासें, बहुऐं, सालियां, नौलियां सहपाठिनें आदि मिलते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मटियानी जी के नारी पात्रों के चित्रांकन में विविधता के दर्शन होते हैं।
मूल शब्द – सहानुभूति, दुर्गाकलंकनी, दाम्पत्य, कुसंस्कारोवश, कुसंगतिवश, परिकल्पना, अविस्मरणीय , मनोविश्लेषणात्मक
विषय प्रवेश – शैलेश मटियानी द्वारा लिखित नगरीय परिवेश की कहानियों की दो प्रमुख कोटियां मिलती हैं – अल्मोड़ा नैनीताल जैसे पहाड़ी नगरों के परिवेश पर केंद्रित कहानियां और मुंबई कोलकाता जैसे महानगरों के परिवेश पर केंद्रित कहानियां।
शैलेश मटियानी जी की ष्मेरी तैंतीस कहानियांष् तथा ष्बर्फ की चट्टानेंष् कहानी संग्रह में संकलित कहानियां दूसरे कहानी संग्रह में भी संकलित हैं। भैंसे और गडरिये, हाथी दांत की मीनार, शरणय की ओर, उत्सव के बाद, वापसी, हत्यारे, दुर्घटना, मोहभंग, हारा हुआ, छिददन पहलवान वाली गली, दीक्षा, शरीफों का मोहल्ला, सदाशयी बाबू, भाषा, जुलूस, विधु अंकल, नाच जमूरे नाच, घोड़े, ब्राह्मण, संस्कृति, सुख, नियति, सीखचों पर अटका अतीत, तीसरा सुख, सफर पर जाने से पहले, नाबालिग, संस्कार, शीशे के पार, एक बदलता हुआ परिदृश्य, निर्णय ले चुकने के बाद, पतझड़ के मौसम में, सहानुभूति, असुविधा, योद्धा, अंतिम तृष्णा, ऐसी प्रमुख कहानियां हैं जिसमें नारी व्यथा और नारी मनोविज्ञान की सहायता से नारी पात्रों की कल्पना की गई है। प्रायः देखा गया है कि पहाड़ों की स्त्रियां बड़ी मेहनती होती हैं। सवेर से देर रात तक काम में लगी रहती हैं। पुरुष देर से उठकर जल्दी सो जाते हैं। स्त्रियां जल्दी उठकर देर से सोेती हैं। खेती और परिवार का संचालन उनका प्रमुख कार्य है। पहाड़ी समाज की मानसिकता यह है कि खेतीबाड़ी और पशुपालन जैसे परंपरागत कामों को छोड़कर जो स्त्री नौकरी करती है वह कामकाजी महिला मानी जाती है। शिक्षिका, ग्राम सेविका, मिडवाइफ, नर्स, डॉक्टर जैसी नौकरी में लगी हुई स्त्रियों को ही कामकाजी माना जाता है। इनके अलावा जो भी काम वह करती हैं वह जीवन चर्या का हिस्सा होता है। नगरीय परिवेश की कहानियों में कामकाजी नारी पात्र आसानी से मिल जाते हैं। ग्रामीण प्रवेश में इस तरह के पात्र नहीं के बराबर हैं। वापसी कहानी में मास्टर धर्मवीर की पत्नी को लोग संतो मास्टरनी कहते हैं। यह संबोधन मास्टर धर्मवीर की पत्नी होने के कारण है। इसी कहानी में उल्लेख मिलता है कि संतो मास्टरनी मास्टर धर्मवीर के मुंबई चले जाने पर कुछ समय ग्राम सेविका का कार्य करती है। इसी अवधि में वी. डी. ओ. के साथ उसके शरीरिक संबंध स्थापित हो जाते हैं। ‘बित्ता भर सुख‘ मिले जुले परिवेश की कहानी है। शर्मा डॉक्टरनी और सुमित्रा मिडवाइफ का चरित्र चित्रण कहानीकार करता है उनका हेड क्वार्टर एक टाउननुमा छोटे से शहर में है। समाज कल्याण योजना के तहत उन्हें गांव के दौरे पर जाना होता है। गांव में जब किसी स्त्री को बच्चा होने वाला होता है तब जचगी के लिए डॉक्टरनी और मिडवाइफ को बुलाया जाता है। पहाड़ में ग्रामीण लोग मिडवाइफ को ही डॉक्टरनी जैसा सम्मान देते हैं।
दलित वर्ग की नारियांः कुमाऊं के ग्रामीण अंचलों को आधार बनाकर मटियानी जी ने बहुत कहानियां लिखी हैं। इन कहानियों में उच्च वर्ग के नारी पात्रों के साथ दलित वर्ग के नारी पात्र भी यथेष्ट रूप में आये हैं। ‘चिट्ठी के चार अक्षर‘ की दुर्गा बकरियाँ चराने जाती है, तो उसे गांव भर के लड़के चिढ़ाते हैं-
‘शहर बसंता जन रमे, धोबन भंगन दोय ।
आंव- गांव की डोमिनी, नाइन सब संग होय।।‘‘
दुर्गा पर छोटी जाति की होने का अभिशाप अंकुश की तरह लगा रहता है। वह छिछोरे, ग्वालों की अश्लील बातों का स्मरण करती है। एक बार गांव के ठाकुर का लड़का परताप ग्वालों को, दुर्गा का पक्ष लेते हुए पीट देता है। तब से दुर्गा मन ही मन परताप को पूजने लगती है। परताप भी दुर्गा को चाहने लगता है। दुर्गा से विवाह के लिए परताप अपने घर वालों और समाज वालों से संघर्ष करता है पर उसकी एक नहीं चलती है। दुर्गा का बाप शोबन सिंह पंचायत में नालिश ठोकने की तैयारी करता है तो दुर्गा अड़ जाती है।वह कहती है- ‘जो आदमी बिरादरी के आंतक से कसाई की गाय बना कर मुझे त्याग चुका है, उससे खरचा-वरचा वसूलने से अब क्या सुख मिलेगा? शोबन सिंह के जिद करने पर, दुर्गा आत्म हत्या कर लेने की धमकी देती है तो वह चुप हो जाता है। तब से दुर्गाकलंकनी का शाप भोगती चली आ रही है। दुर्गा को परताप ठाकुर की कायरता कचोटती रहती है। परताप फौज में भरती हो जाता है। इधर दुर्गा परताप के बच्चे मधुआ को जन्म देती है। फौज से कुछ दिनों बाद एकदिन दुर्गा के नाम परताप का मनीऑडर और पत्र आता है, जिसमें वह फौज से लौटने केबाद उसे स्वीकारने की बात लिखता है। दुर्गा दलित जाति की लड़की है परन्तु अपने तरीके से अपने जीवन के मूल्यों पर कायम रहती है। मेहनत-मजदूरी करती है, पर समाज से कोई समझौता नहीं करती।
‘रहमतुल्ला‘ की खुमली, ‘कपिला‘ की कपिला, ‘रुका हुआ रास्ता की गोमती,नदुली तथा गांगुली, ‘चुनाव‘ की कमला शिल्पकारनी, ‘प्रेतमुक्ति‘ की भवानी, ‘अहिंसा कीबिन्दा जैसी दलित नारियों का चित्रण यहाँ मिलता है। इस तरह हम देखते हैं कि शैलेशमटियानी जी की कहानी- साहित्य में, ग्रामीण परिवेश की कहानियों में नारी पात्रों में पर्याप्त वैविध्यता मिलती है। अपने शोषण के विरोध में खड़ी स्त्री का प्रामाणिक चित्रण इन कहानियों में मिलता है। शैलेश मटियानी द्वारा ग्रामीण परिवेश की कहानियों में फौजी पत्नियों के दुःख, दर्दतथा उनकी उमंग- उत्साह का मनोवैज्ञानिक चित्रण बहुतायात से किया जाता है। इन कहानियों में दाम्पत्य प्रेम का चित्रण खूब मिलता है। उनकी कहानियों में फौजी पत्नियोंकी भाँति फौजी माताओं का चित्रण भी प्रायः वीर प्रसूता नारियों के रूप में होता है।मटियानी जी की कहानियों में थोकदारनियाँ, ठकुराइनें, पधानियाँ, पंडितानियाँ,गौराइनें आदि उच्च वर्ग की महिलाओं का चित्रण निरपेक्षता के साथ हुआ है। उनकी कुछकहानियों में हमें नारी पात्रों के विभिन्न रूप मिलते है, जैसे- महतारियाँ, पत्नियाँ, बहनें, भौजियाँ, ननदें, सासें, बहुऐं, सालियाँ, नौलियाँ, सहपाठिनंे आदि । समाज में उपलब्ध सभी रूप इन कहानियों में मिलते हैं। शैलेश मटियानी की कहानियों में नारी शोषण के पर्याप्त उदाहरण मिलते हैं। साथ ही, कामकाजी महिलाओं का चित्रण उनके यहाँ नहीं मिलता है। दलित महिलाओं के चित्रण में लेखक ने जहाँ उनके, चारित्रिक तथा नैतिक शोषण को रेखांकित किया है, वहीं उनके आत्मभिमान, आत्म सम्मान एवं उनके परिश्रमी और प्रामाणिक जीवन को भी पर्याप्त महत्त्व देकर चित्रित किया है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मटियानी के नारी पात्रों के चरीत्रांकन में विविधता के दर्शन होते हैं। वह कहीं जीवन के लिए संघर्ष करती दिखाई देती है, तो कहीं शोषण के प्रति विरोध। कहीं उसमें सुसंस्कार दृष्टिगत होते, तो वह घृणित जगत में जाने के बजाय आत्म-सम्मान की रक्षा करती हुई दिखाई देती है। कुसंस्कारोवश तथाऽ कुसंगतिवश वह नरक में भी गिर जाती है, फिर भी उसमें वात्सल्य भाव प्रतिबिम्बित होता है। वह आदर्श माता है तो आदर्श पत्नी भी है। कहीं वह योग्या बन जाती है तो कहीं भोग्या। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शैलेश मटियानी के कहानी साहित्य में मनोवैज्ञानिक आधार पर नारी चरित्र की परिकल्पना की गई है।
शैलेश मटियानी की नगरीय परिवेश पर केंद्रित प्रमुख कहानियांः
छाकः पहाड़ में किसी की मृत्यु पर एक वक्त का खाना छोड़ना छाक कहलाता है। दूध, खून या बिरादरी का रिश्ता होने पर ही छाक छोड़ा जाता है। इस कहानी में नारियों की आदर्श मनोदशा और परस्पर सेवाभाव का उल्लेख मिलता है कहानी में उमा की बीमारी में गीता जी जान से उसकी सेवा करती है और उसे मौत के मुंह से बचा लेती है। बाद में गीता की मृत्यु हो जाती है। गीता की मृत्यु के पश्चात उमा उसके पति किशन मास्टर के द्वंद को समझकर उन्हें उभारती है।
दो दुःखों का एक सुख: यह मृदुला कहानी नामक एक भिखारिन की कहानी है। वे करमिया कोड़ी और सूरदास नामक दो भिखारियों के साथ रहती है। दोनों भिखारी विदुला कानी को चाहते हैं। तभी मृदुला को गर्भ ठहर जाता है यह बच्चा किसका है इस बात को लेकर सूरदास और कर्मियों में बहस होती है दोनों ही चाहते हैं कि बच्चा उनके जैसा हो। मृदुला कहती है कि बच्चा तो चोखा है तब दोनों हतप्रभ रह जाते हैं। दाई कहती है भगवान की मर्जी कौन जान सकता है। इस कहानी में मृदुला की समकालीन परिस्थितिजन्य मनोदशा का विश्लेषण दृष्टिगत होता है।
रहमतुल्लाहः इस कहानी में तीन महत्वपूर्ण नारी पात्र हैं – खिमुली, गुलशन बीबी, और उदय राम की घरवाली। नारी चरित्रों की विविधता के कारण यह कहानी पठनीय है। इस में नारी सोच का मनोविश्लेषण उल्लेखनीय है।
कीर्तन की धुनः लेखक घर – बार छोड़कर अपनी पत्नी नीला के साथ जोगेश्वरी गुफा के पास ज्ञानानंद ब्रह्मचारी की चाल में रहने लगते हैं यहां पिंजरे नुमा कमरों में तमाम लोग रहते हैं चाल में बच्चे भी खूब हैं। पास ही एक श्मशान है जहां मुर्दे आते ही रघुपति राघव राजा राम की धुन शुरू हो जाती है सावंत पुणेकर की बीवी आधी रात को कीर्तन करने लगती है नीला बताती है कि उस पर मायके की देवी आती है यह देवी तभी आती है जब सावंत आधी रात को शराब पीकर मिल से घर आता है सावंत की बीवी शांताबाई के बच्चा होते ही उसका कीर्तन भी बंद हो जाता है वास्तविक बात यह थी कि सावंत की बीवी शांताबाई पति से बचने के लिए यह नाटक रचा दी थी यहां नारी जीवन की करुण कथा को रेखांकित किया गया है कि कैसे-कैसे नर्क सांसों से उसका पाला पड़ता है और उनसे बचने के लिए ढोंग करने पड़ते हैं।
महाभोजः इस कहानी की नारी पात्र शिवरति एक संघर्षशील परिश्रमी और संवेदनशील नारी है। उसका पति चेतराम शराबी कबाबी है। गर्भवती होने के बावजूद वह पूरे परिवार का पालन पोषण करती है। साधनहीन होते हुए भी परंपरा का पालन और समर्थन करने वाली नारी के रूप में शिवरति का चित्रण उल्लेखनीय है।
अहिंसाः इस कहानी की बिंदा भी ‘महाभोज‘ कहानी की शिवरति की भांति अविस्मरणीय नारी पात्र है। वह टांगे में जुती घोड़ी की तरह दिन-रात गृहस्थी के कामों में लगी रहती है। मेहनत – मजदूरी करके बच्चों का पेट पालती है। गैंग्रीन रोग से ग्रस्त हो जाती हैै। डॉक्टरों की हड़ताल के कारण ऑपरेशन समय पर नहीं हो पाने के कारण बिंदा दम तोड़ देती है। डॉक्टर गोदौलिया चिकित्सा के पैसे हड़प जाता है। इन सभी कारणों से जगेसर अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है और वह डॉक्टर गोदौलिया के सिर पर वसूला मारकर अपनी पत्नी की मृत्यु का बदला चुकाता है।
निष्कर्षतः लेखक के पास एक मनोवैज्ञानिक दृष्टि है जो बिना किसी विवाद के घेरे में समाए मानवीय पीड़ा को संजोती है। उन्होंने अपने कहानी साहित्य में असहाय, दीन दुखी, न्याय वंचित, दलित पीड़ित, शोषित मानवता और पीड़ित नारी जगत का मनोविश्लेषणात्मक पक्ष लिया है। उनकी संवेदना और मानवतावादी दृष्टि और अन्याय के विरोध में लड़ती है। समाज में दलितों की भांति नारी भी अनेक कारणों से पीड़ित और पर प्रताड़ित रही रही है। मटियाणी जी की नगरीय परिवेश की कहानियों में नारी शोषण एवं नारी पीड़ा का व्यापक दर्शन होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शैलेश मटियानी के नगरीय परिवेश के कहानी साहित्य में मनोवैज्ञानिक आधार पर नारी चरित्र की परिकल्पना की गई है।
संदर्भ – ग्रंथ सूची:
1 बर्फ की चट्टानें: शैलेश मटियानी: भूमिका: पृ. 13
2 मेरी तैंतीस कहानियाँः शैलेश मटियानी भूमिका, पृ. 2
3 वह तू ही था: शैलेश मटियानी: पृ. 28
4 लीक: शैलेश मटियानी, पृ. 46-47
5 भंवरे की जात: शैलेश मटियानी, पृ. 57-58
6 लोकदेवता शैलेश मटियानी, पृ. 64
7 बर्फ की चट्टानें: शैलेश मटियानी पृ. 71
8 चिट्ठी के चार अक्षर: शैलेश मटियानी पृ. 77
9 उसने तो नहीं कहा था: शैलेश मटियानी पृ. 88
10 सीने में धंसी आवाज: शैलेश मटियानी, पृ. 98
11 दशरथ: शैलेश मटियानी, पृ. 128
12 सतजुगिया आदमी: शैलेश मटियानी, पृ. 137
13 घर-गृहस्थीः शैलेश मटियानी, पृ. 144-145
14 पुरोहितः शैलेश मटियानी पृ. 461
डॉ रंजीत कौर
हिंदी विभाग
एम एस एम कॉलेज बलसुआ (पंजाब)