Category: विशेषांक-समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श

June 3, 2023

95. हिंदी साहित्य में दलित चेतना का उद्भव-भारती

Page No.: 667-675 हिंदी साहित्य में दलित चेतना का उद्भव भारती पीएचडी शोधार्थी हिंदी विभाग,दिल्ली विश्वविद्यालय   चेतना का संबंध चेतन मन से है। अर्थात् नींद से जागना। सुप्त अवस्था से जागृत अवस्था में प्रवेश करना ही चेतना है। चेतना जीवधारियों में रहनेवाला तत्व है, जो इन्हें निर्जीव पदार्थों से भिन्न बनाता है। दूसरे शब्दों में हम उसे मनुष्यों की जीवन क्रियाओं को चलाने वाला […]

June 3, 2023

94. स्त्री विमर्श: कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न-पूनम सिंह

  Page No.: 664-666 L=h foe’kZ % dqN egÙoiw.kZ iz’u iwue flag vflLVsaV izksQslj ¼fgUnh foHkkx½ djker gqlSu eqfLye xYlZ ih0th0 dkWyst lkjka’k L=h eqfDr ls tqM+h nsg eqfDr dh /kkj.kk us vkt Hkkjrh; lekt esa gypy epk j[kh gSA ifjokj] fookg] U;k; rFkk /keZ tSlh laLFkk,¡ iq#”k ds futh fgrksa dh j{kk djus ds lkFk gh L=h dks ghu lkfcr djrh vkbZ gSaA iq#”k […]

June 2, 2023

93. समकालीन दलित उपन्यासों में चित्रित विषय वैविध्य- Alka Prakash

Page No.: 659-663 समकालीन दलित उपन्यासों में चित्रित विषय वैविध्य             समकालीन हिंदी साहित्य में दलित साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है  । दलित साहित्य दलितों की अस्मिता और अस्तित्व की पहचान कराती हैं । भारतीय समाज में मुख्य रूप से हिंदू समाज में छुआछूत की भावना हमेशा से सजीव रहा है।दलित साहित्य ने समाज के इन्हीं खोखलेपन को व्यक्त करते हुए मानव अधिकारों से वंचित, […]

June 2, 2023

92. समकालीन साहित्य  में आर्थिक-विमर्श-मो0 जिमी 

Page No.: 655-658 समकालीन साहित्य  में आर्थिक-विमर्श आपका नाम – मो0 जिमी आपका पद   -मास्टर्स ऑफ़ आर्ट्स (उर्दू ) आपके संस्थान का नाम- आर डी एंड डी जे कॉलेज, मुंगेर  महाविद्यालय. – तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय ,भागलपुर 811207 पढ़ना आसान कार्य है पर लिखना आयास का। पढ़नेवाले सब लिख नहीं सकते। वही लिखते हैं जो कुछ नया कहना चाहते हैं। जब तक नया कुछ कहना […]

June 2, 2023

69. वृध्दावस्था विमर्श -डॉ. सुनीता राठौर

Page No.: 494-502 शोध – आलेख- वृध्दावस्था विमर्श डाॅ. सुनीता राठौर सहायक प्राध्यापक हिन्दी शासकीय एम.एम.आर. स्नातकोत्तर महाविद्यालय चाम्पा             वृध्द विमर्श का अर्थ है, वृध्दावस्था की परिस्थितियों, घटनाओं आदि का चिन्तन करना अर्थात् वृध्दावस्था की समस्याओं को समझकर उनके लिए उचित समाधान करना। आज के युग में वृध्द विमर्श अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि आज हम इतने व्यस्त हो गए है कि हमारे पास […]

May 31, 2023

91. समकालीन साहित्य में नारी-विमर्श -डॉ. हरमंदर सिंह

Page No.: 650-654 समकालीन साहित्य में नारी-विमर्श डॉ. हरमंदर सिंह प्राचार्य माता मोहन देवी बेदी कन्या महाविद्यालय अनुपगढ़, जि. श्री गंगानगर, राजस्थान   प्रस्तावना         सदियों से पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था ने नारी को सीमाओं के बंधन में बांध रखा है। नारी स्वतंत्र अस्तित्व की कामना करती रही किंतु उसे हमेशा सामाजिक मर्यादा तथा नैतिकता के मुद्दे से जोड़ दिया गया। परिणाम स्वरूप नारी पीढ़ियों से […]

May 30, 2023

90. मीडिया विमर्श के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक -सांस्कृतिक बदलाव -लिबिल जैकब

Page No.: 644-649 मीडिया विमर्श के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक -सांस्कृतिक बदलाव -लिबिल जैकब सारांश आज हम जी रहे हैं इक्कीसवीं सदी में। इस नए दौर में समूचे विश्व परिवर्तन के पथ पर है। परिवर्तन के इस प्रक्रिया में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। मीडिया,लोकतंत्र के अन्य तीन स्तंभों को अपने उत्तरदायित्व का बोध दिलाकर लोकतंत्र के […]

May 25, 2023

76. स्त्री विमर्श: कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न – पूनम सिंह

स्त्री विमर्श: कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूनम सिंह सारांश स्त्री मुक्ति से जुड़ी देह मुक्ति की धारणा ने आज भारतीय समाज में हलचल मचा रखी है। परिवार, विवाह, न्याय तथा धर्म जैसी संस्थाएँ पुरुष के निजी हितों की रक्षा करने के साथ ही स्त्री को हीन साबित करती आई हैं। पुरुष सत्ता द्वारा मातृत्व को स्त्री की दुर्बलता, योनि को कलंक एवं यौन उन्मुक्तता को अनैतिक […]

May 24, 2023

74. समकालीन कथा साहित्य में किन्नरों का उत्थान और पहचान एक संघर्ष – नीतू कुमारी

समकालीन कथा साहित्य में किन्नरों का उत्थान और पहचान एक संघर्ष नीतू कुमारी साहित्य आलोचना का एक सशक्त माध्यम है। इसलिए समय के साथ चलने वाले साहित्य अपने अतीत वर्तमान तथा भविष्य को रेखांकित करते हुए उनके खूबियों और खामियों को पाठक के समक्ष रखने वालों का मूल्यांकन करने में सक्षम होता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो समकालीन साहित्य का केंद्रीय प्रमुख मुद्दा […]

May 24, 2023

73. साहित्य और पर्यावरण का अंतरसंबंध – राधा देवी

साहित्य और पर्यावरण का अंतरसंबंध राधा देवी भूमिका भारतीय दर्शन एवं साहित्य प्रारम्भ से ही प्रकृति प्रधान एवं प्रकृति संरक्षणवादी रहा हैं। हमारे प्राचीन धर्म ग्रन्थों से लेकर लौकिक साहित्य तक ने जल, वायु, अग्नि, वृक्ष, जीव, भूमि की पूजा पर जोर दिया गया है। हिन्दी साहित्य में उल्लिखित प्रकृति, शब्द यह विचार सामने रखता है कि वह किसी में समाहित नहीं है। परिवार को […]