Author: Gina Journal

May 20, 2023

65. दलित लेखिका का जीवन संघर्ष: ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ में – बिंदु आर

Page No.: 466-472 दलित लेखिका का जीवन संघर्ष: ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ में बिंदु आर सारांश   समकालीन यथार्थ का चित्रात्मक स्वरूप ही साहित्य है। साहित्य का समकालीन परिस्थितियों से गहरा संबंध है। साहित्य समाज का दर्पण है। किसी भी युग की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक समस्याओं का समग्र चित्रण ही समकालीन बोध है।“1 समकालीन हिंदी साहित्य में आज कई विमर्श उभर कर आई है […]

May 20, 2023

64. समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श  – ज्योत्सना आर्य सोनी

Page No.: 461-465 समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श    ज्योत्सना आर्य सोनी प्रस्तावना दलित साहित्य की अवधारणा को समझने से पहले’ दलित’ शब्द को समझना आवश्यक है। इस शब्द की उत्पत्ति ‘दल’ धातु से हुई है। ‘संक्षिप्त हिंदी शब्द सागर’ में संपादक रामचंद्र शर्मा ने ‘दलित’ शब्द का अर्थ विशिष्ट किया हुआ, मसला हुआ, मर्दित,दबाया हुआ आदि बताया है। कुसुमलता मेघवाल ने दलित की […]

May 20, 2023

62. किन्नर विमर्श : एक दृष्टि – रश्मि गुप्ता

Page No.: 446-451        किन्नर विमर्श : एक दृष्टि – रश्मि गुप्ता विमर्श का अर्थ होता है जीवंत बहस, जब हम समाज में किसी भी समस्या है स्थिति को एक ही दृष्टि से ना देखकर भिन्न-भिन्न दृष्टि से देखते हैं उन पर विचार करते हैं उनकी समस्या का समाधान करने का विचार करते हैं। वर्तमान दौर विमर्शो का दौर है जिसमें स्त्री दलित […]

May 20, 2023

61.समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श और ग्रामीण स्त्रियाँ – रुचि कुमारी 

Page No.:438-445       समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श और ग्रामीण स्त्रियाँ – रुचि कुमारी         आज विमर्शों का दौर है | जहाँ तमाम तरह के विमर्श – नारी विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, पुरुष विमर्श, किन्नर विमर्श आदि प्रचलन में है | विमर्श का सामान्य अर्थ होता है – समाज द्वारा उपेक्षित, शोषित, दमित व्यक्तियों और समाज को केंद्र में लाना | हालांकि स्त्री विमर्श या […]

May 20, 2023

57. कृष्णा अग्निहोत्री की चयनित  कहानियों में वृद्ध जीवन – सविता गोपीनाथन

Page No.: 403-409 कृष्णा अग्निहोत्री की चयनित  कहानियों में वृद्ध जीवन सविता गोपीनाथन वृद्धावस्था धीरे धीरे आनेवाली अवस्था है जो कि स्वाभाविक और प्राकृतिक घटना है। वृद्ध का शाब्दिक अर्थ है पका हुआ या परिपक्व। वृद्ध विमर्श का अर्थ है वृद्धावस्था की परिस्थितियों,घटनाओं आदि का चिंतन करना अर्थात वृद्धावस्था की समस्याओं को समझ कर उनके लिए उचित स माधान निकालना। जीवन भर मरते -खपते रहो, […]

May 20, 2023

56. प्रवासी साहित्यकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानियों में पुरुष-उत्पीड़न – सिमरन  

Page No.: 394-402 प्रवासी साहित्यकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानियों में पुरुष – उत्पीड़न  सिमरन   शोध सार:- प्रवासी साहित्य में पुरुष को केंद्र में रखकर कहानी लिखने की शुरुआत बहुत पहले से हो गई थी। पुरुष अपनी पत्नी, प्रेमिका से उत्पीड़ित होते हुए दिखलाई पड़ते है। संवेदनाएं इतनी गहरी है कि इनकी दशा को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। एक तो वे उत्पीड़ित है और दूसरा […]

May 20, 2023

55. समकालीन साहित्यकार मेघ सिंह ‘बादल’ के उपन्यासों में दलित विमर्श  – सोनाली राजपूत                 

Page No.:388-393 समकालीन साहित्यकार मेघ सिंह ‘बादल’ के उपन्यासों में दलित विमर्श                                            सोनाली राजपूत                                                   शोध सारांश –       उपन्यास आधुनिक युग […]

May 20, 2023

A CORRELATIVE LOOK AMONG WATER MANAGEMENT, GLOBAL WARMING AND SUSTAINABLE DEVELOPMENT – Dr. Kuldeep Singh Suhag

A CORRELATIVE LOOK AMONG WATER MANAGEMENT, GLOBAL WARMING AND SUSTAINABLE DEVELOPMENT Dr. Kuldeep Singh Suhag Abstract: The pandemic threatens global human life and health, which will be further worsened by intensifying hunger and malnutrition from disrupting the food supply chain mainly in developing countries and it is escalating the challenges for global food security. The concept of reuse, recycle and reduction in resources and available […]

May 20, 2023

समकालीन दलित आत्मकथाओं में बालजीवन – BRINDA GOPI

समकालीन दलित आत्मकथाओं में बालजीवन – BRINDA GOPI         बालक एक पौधे की तरह होता है उसे जैसा घात पानी मिलेगा उसी प्रकार उसका विकास होता है | किन्तु भारतीय समाज के कुछ सवर्ण लोगों ने धर्म के नाम पर दलित समाज से पैदा होने वाले माज़ूम पौधों की जड़ों पूरी तरह से तोड़ने की प्रयास करती है | हमारे सुशिक्षित समाज में सालों से […]

May 19, 2023

27. हिंदी साहित्य में दलित चेतना का उद्भव- भारती

Page No.:184-193 हिंदी साहित्य में दलित चेतना का उद्भव भारती शोधार्थी हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय चेतना का संबंध चेतन मन से है। अर्थात् नींद से जागना।सुप्त अवस्था से जागृत अवस्था में प्रवेश करना ही चेतना है। चेतना जीवधारियों में रहनेवाला तत्व है, जो इन्हें निर्जीव पदार्थों से भिन्न बनाता है। दूसरे शब्दों में हम उसे मनुष्यों की जीवन क्रियाओं को चलाने वाला तत्व कह सकते हैं। […]