55. समकालीन साहित्यकार मेघ सिंह ‘बादल’ के उपन्यासों में दलित विमर्श – सोनाली राजपूत
Page No.:388-393 समकालीन साहित्यकार मेघ सिंह ‘बादल’ के उपन्यासों में दलित विमर्श सोनाली राजपूत शोध सारांश – उपन्यास आधुनिक युग […]
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समकालीन दलित आत्मकथाओं में बालजीवन – BRINDA GOPI बालक एक पौधे की तरह होता है उसे जैसा घात पानी मिलेगा उसी प्रकार उसका विकास होता है | किन्तु भारतीय समाज के कुछ सवर्ण लोगों ने धर्म के नाम पर दलित समाज से पैदा होने वाले माज़ूम पौधों की जड़ों पूरी तरह से तोड़ने की प्रयास करती है | हमारे सुशिक्षित समाज में सालों से […]
Page No.:184-193 हिंदी साहित्य में दलित चेतना का उद्भव भारती शोधार्थी हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय चेतना का संबंध चेतन मन से है। अर्थात् नींद से जागना।सुप्त अवस्था से जागृत अवस्था में प्रवेश करना ही चेतना है। चेतना जीवधारियों में रहनेवाला तत्व है, जो इन्हें निर्जीव पदार्थों से भिन्न बनाता है। दूसरे शब्दों में हम उसे मनुष्यों की जीवन क्रियाओं को चलाने वाला तत्व कह सकते हैं। […]
Page No 452-460 पद्मा शर्मा के साहित्य में स्त्री विमर्श शोधार्थी कृष्ण कुमार थापक रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल म.प्र. ई-मेल आई डी – krishnathapak1988@gmail.com शोध निर्देशक डॉ संगीता पाठक प्रोफेसर मानविकी एवं उदार कला संकाय रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल म.प्र. शोध–सार : पद्मा शर्मा एक विख्यात साहित्यकार हैं जिन्होंने स्त्री विमर्श और स्त्री के उत्थान के विषय में लेखन किया हैं। उनके साहित्य में स्त्री […]
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Page No.:276-284 समकालीन हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श – सोमबीर शोध आलेख सार दलित साहित्य आज एक ऐसा विषय बन चुका जिसका अध्ययन किये बिना सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य को समझना अनुचित हैं। इस दिशा में अधिक मात्रा में लेखन होना दर्शाता है. कि यहाँ पर भी चेतना कम नही है। दलित साहित्य का मुख्य उदेश्य समाज मंे दलित जीवन की आधारभूत समस्याओं ंके बारे में […]
Page No.:251-257 समकालीन साहित्य में नारी विमर्श – अनीता कुमारी समय-समय पर स्त्री-पुरूष सम्बधों और उनकी सामाजिक भूमिकाओं में परिवर्तन आता रहा है। मध्यकाल की नारी के अधिकार विहीन जीवन में ब्रिटिश राज्य के प्रभाव के साथ व्यापक स्तर पर तेजी से परिवर्तन का सिलसिला शुरू हुआ था और आधुनिक काल या नवजागरण में नर-नारी के संबंधों और भूमिकाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन की सूचनाएँ मिलने […]
Page No.: 377-387 समकालीन हिन्दी कविता में किन्नर विमर्श Dr. Seena Kurian समकालीन हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत विस्तृत है। उपेक्षित जनसमुदायों को वाणी देना समकालीन साहित्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। पिछले कुछ वर्षों में स्त्री, दलित, आदिवासी, प्रवासी ,वृद्ध, विकलांग, किसान,किन्नर जैसे अल्पसंख्यकों पर साहित्यकारों का ध्यान आकृष्ट हुआ है। अल्पसंख्यक वर्ग की मनोदशा, असुरक्षा की भावना, उसकी राष्ट्रीयता पर संदेह , […]
Page No.:369-376 समकालीन हिंदी साहित्य और रूपांतरित परिदृश्य में वनिता विमर्श – ड़ॉ0 मीनू शर्मा सारांश अपने समय की उत्कृष्ट चुनौतियों के साथ उतना ही समकालीन हिंदी साहित्य का गुण है. साहित्यकार का अविच्छिन्न संपर्क वर्तमान वेदना के साथ होता है और वह उस वेदना व्यथा को साहित्य माध्यम से स्पष्ट भाषी रूप में कह देने का पक्षधर है, यह कला कौशल समकालीन साहित्यकारों में […]
Click Here to Download Your Paper हिंदी उपन्यासों में किसान विमर्श – गरिमा आर जोशी