Author: Gina Journal

May 10, 2023

53. समकालीन हिंदी साहित्य और रूपांतरित परिदृश्य में वनिता विमर्श – ड़ॉ0 मीनू शर्मा

Page No.:369-376 समकालीन हिंदी साहित्य और रूपांतरित परिदृश्य में वनिता विमर्श – ड़ॉ0 मीनू शर्मा सारांश अपने समय की उत्कृष्ट चुनौतियों के साथ उतना ही समकालीन हिंदी साहित्य का गुण है. साहित्यकार का अविच्छिन्न संपर्क वर्तमान वेदना के साथ होता है और वह उस वेदना व्यथा को साहित्य माध्यम से स्पष्ट भाषी रूप में कह देने का पक्षधर है, यह कला कौशल समकालीन साहित्यकारों में […]

May 10, 2023

51. दलित साहित्यः संवेदना

  Page No.:355-361 दलित साहित्यः संवेदना भारतवर्ष विविधताओं का देश है जहां धर्म, जाति, संस्कृति, शिक्षा, साहित्य व कला के प्रत्येक क्षेत्र में विविधता देखने को मिलती है। इन विविधताओं के बावजूद भी ‘अनेकता में एकता’ , ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ तथा ‘वसुंधैव कुटुंबकम’ का मूल मंत्र लेकर भारतीय संस्कृति सभी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने का अमूल्य कार्य करते हुए विश्वभर में विश्व […]

May 10, 2023

50.विपिन बिहारी की कहानीयों में दलित जीवन का यथार्थ

Page No.:350-354 विपिन बिहारी की कहानीयों में दलित जीवन का यथार्थ    आज का साहित्य ऐसा मोड पर पहुंच गया है जहाँ विमर्श अधिक है। लगभग १९६० के आसपास सबसे पहले मराठी में दलित साहित्य का जन्म हुआ और जल्द ही दलित साहित्य अपनी पहचान बना ली। दलित आंदोलन के दौरान दलित जातियों से आए अनेक साहित्यकार इस क्षेत्र को आगे बढ़ाया दलित कहानी ने […]

May 10, 2023

49. नादिरा जहीर बब्बर की नाटक जी जैसी आप की मर्जी में स्त्री

Page No.:345-349 नादिरा जहीर बब्बर की नाटक जी जैसी आप की मर्जी में स्त्री भारतीय साहित्य में स्त्री चिंतन की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। हिन्दी साहित्य में नारी चितंन की एक लंबी परंपरा है। आज़ादी के समय से लेकर आज तक स्त्री विमर्श की एक सुदीर्घ परंपरा है। स्त्री विमर्श से तात्पर्य स्त्री के विषय में गंभीर चिंतन। इन चिंतन को […]

May 10, 2023

48. समकालीन हिंदी उपन्यास में आदिवासी चेतना एवं आधुनिकता का द्वंद्व – विजय ज्योति

Page No.:336-344 समकालीन हिंदी उपन्यास में आदिवासी चेतना एवं आधुनिकता का द्वंद्व – विजय ज्योति   समकालीन साहित्य अस्मितामूलक विमर्शों का  साहित्य  है | समाज के वे  सभी वर्ग जो प्राचीन काल से  सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक  रूप से शोषण और दमन के शिकार  थे, वह स्वतंत्र भारत में अपने अधिकार एवं अपनी अस्मिता के प्रति सजग हो रहे हैं | ऐसे में वह  सभी वर्ग […]

May 10, 2023

शुभकामना सन्देश…..-डॉ. आंचल कुमारी

शुभकामना सन्देश….. –  डॉ. आंचल कुमारी (हिन्दी विभाग ) समाज के उत्थान में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है साहित्य और समाज एक दूसरे के बिना अधूरे होते हैं वर्तमान समय में साहित्य में विमर्श नए नए कलेवर में सामने आ रहा है lसाहित्य ही है जो समाज को शिक्षा देता है वह जागरुक कर समाज में फैली कुरीतियों को कम करने के ,नए मार्ग […]

May 10, 2023

47. रामदरश मिश्र के उपन्यासों में स्त्री प्रतिरोध के स्वर – शिवांकत्रिपाठी

Page No.:328-335 रामदरश मिश्र के उपन्यासों में स्त्री प्रतिरोध के स्वर – शिवांकत्रिपाठी शोध सारांश –    वर्तमान समय में हिंदी के वरिष्ठतम साहित्यकारों में से एक रामदरश मिश्र ने  साहित्य की लगभग सभी विधाओं को अपनी लेखनी से संवृद्ध किया है | वे कवि और कहानीकार के रूप में विशेष रूप से चर्चित रहे हैं | मिश्र जी अपनी रचनाओं के माध्यम से पाठक […]

May 10, 2023

46. समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श – डॉ. नंदिनी चौबे

Page No.:321-327 समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श – डॉ. नंदिनी चौबे   सार – “समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श” आलेख में बतलाने की कोशीश की गई है कि समकालीन दौर की लेखिकाओं ने स्त्री की अस्मिता, स्वतंत्रता और समानता के प्रश्न को प्रभावशाली ढंग से साहित्य में प्रस्तुत किया है । इस आलेख में यह भी बतलाया गया है कि साहित्य में स्त्री विमर्श का […]

May 10, 2023

45. दलित विमर्श की अवधारणा और हिंदी साहित्य – शैलेन्द्र कुमार

Page No.:313-320 दलित विमर्श की अवधारणा और हिंदी साहित्य – शैलेन्द्र कुमार     दलित शब्द का शाब्दिक अर्थ है जिसका दलन और दमन हुआ है, दबाया गया है, शोषित, उत्पीड़ित, सताया हुआ, उपेक्षित, घृणित, हतोत्साहित आदि। आधुनिक हिंदी साहित्य में विभिन्न नवीन विमर्शों ने अपना आकार ग्रहण किया है, उनमें दलित विमर्श सर्वप्रमुख है। दलित विमर्श जाति आधारित अस्मिता मूलक विमर्श है। इसके केंद्र में […]