Author: Gina Journal

May 23, 2023

89. समकालीन हिंदी साहित्य में नारी विमर्श – डॉ . संदीप कुमार

Page No.: 636-643 समकालीन हिंदी साहित्य में नारी विमर्श – डॉ . संदीप कुमार शोध सारांश :— समकालीन हिंदी साहित्य के गद्य और पद्य दोनों ही रूपों में नारी विमर्श की तीव्र अनुगूंज सुनाई पड़ रही है । नारी विमर्श, नारी शोषण के विरोध में पितृसत्ता के खिलाफ चलाया जा रहा एक आंदोलन है । नारी शोषण जिसका अंतहीन आरंभ नारी के जन्म से पूर्व […]

May 23, 2023

1.मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों  में आधुनिक सन्दर्भ – अफीफा फातिमा शेक

Page No: 5-12 मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों  में आधुनिक सन्दर्भ – अफीफा फातिमा शेक शोध सार : प्रस्तुत शोध पत्रिका का मुख्य उद्देश मनीषा कुलश्रेष्ठा की कहानियों में आधुनिक संदर्भ को रेखांकित करना है। आधुनिकता आज जीवन का अंग बन गई है। विचार एवं भावों में परिवर्तन होने से ही आधुनिकता आ जाती है, जिसका संबंध अतीत से नहीं वर्तमान से जुड़ा होता है। जो […]

May 23, 2023

88. अपराध, नियम और न्याय: कोर्ट मार्शल के विशेष संदर्भ में-अर्चना एस नायर

Page No.: 631-635 अपराध, नियम और न्याय: कोर्ट मार्शल के विशेष संदर्भ में।  -अर्चना एस नायर                    ग्लोरिया स्टैनेम नामक एक पत्रकार की एक कहावत है कि ‘नियम और न्याय हमेशा एक नही होता है’। यह ज़रूरी नहीं कि जो नियम है वह न्याय भी है। इनका संबन्ध अभेद्य है लेकिन इनमें भी भेद है। स्वदेश दीपक के प्रभावी नाटक ‘कोर्ट मार्शल’ की कहानी भी […]

May 23, 2023

87. सौन्दर्य का विमर्श और समकालीनता – डॉ. अरुण प्रसाद रजक

Page No.: 624-630 सौन्दर्य का विमर्श और समकालीनता डॉ. अरुण प्रसाद रजक शोध-सार- सौन्दर्य की अवधारणा को लेकर हमेशा विमर्श चलती रही है। भाववादी विचारक सौन्दर्य का सम्बन्ध मनुष्य की अंतश्चेतना से जोड़ते हैं, जबकि भौतिकवादी विचारकों की दृष्टि में सौन्दर्य का कोई अलौकिक आधार नहीं होता, वह वस्तु और व्यक्ति से अनिवार्य रूप से जुड़ा है। सुन्दरता वस्तु का गुण है और गुण को […]

May 23, 2023

86. वर्गीय असमानता में जूझनेवाले दिव्यांग मजदूर: ‘खोटे सिक्के’ के परिप्रेक्ष्य में – टिनु अलेक्स. के

Page No.: 619-623 वर्गीय असमानता में जूझनेवाले दिव्यांग मजदूर: ‘खोटे सिक्के’ के परिप्रेक्ष्य में टिनु अलेक्स. के सारांश – हिंदी साहित्य में शोषक और शोषित वर्ग को केंद्र में रखकर अनेक रचनाएं हुई है। पूंजीपति एवं उद्योगपति के षड्यंत्रों से जूझनेवाले अनेक मजदूर होते हैं, जिन्होंने आपनी जिंदगी ऐसे लोगों के हाथों में सौंपकर शोषण का शिकार बनते हैं। प्रस्तुत कहानी में दिव्यांग मजदूरों के […]

May 23, 2023

85. मूल्य क्षरण के दौर में हाशिए पर वृद्ध : समकालीन हिंदी उपन्यासों के संदर्भ में – राहिता.पी.आर

                                                          Page No.: 613-618 मूल्य क्षरण के दौर में हाशिए पर वृद्ध : समकालीन हिंदी उपन्यासों के संदर्भ में – राहिता.पी.आर          वृद्धावस्था जीवन की वह अवस्था है जहां पहुंचकर व्यक्ति मृत्यु की कामना करता है। वृद्धावस्था में मनुष्य अपने युवावस्था की स्मृतियों और पूरे जीवन में उनकी सफलता – असफलता के बारे में विचार करके बाकी का जीवन व्यतीत करता है। शारीरिक कमजोरी के […]

May 23, 2023

84. समकालीन हिंदी कविता में चित्रित आदिवासियों का विस्थापन – सिम्ना.एन 

समकालीन हिंदी कविता में चित्रित आदिवासियों का विस्थापन                            सिम्ना.एन            आदिवासी इस धरती की मूल निवासी हैं| वे जल-जंगल-ज़मीन की अधिकारी होते हैं| प्रो.रामदयाल मुंडा के अनुसार “आदिवासी से हमारा तात्पर्य उन आर्येतर जनजातियों से है, जिन्हें संस्कृत साहित्य में असुर, निषाद, दस्यु, वानर, राक्षस आदि से संबोधित किया गया|”[1] है| विद्वानों ने आदिवासियों को अपनी सुविधा के अनुसार अलग […]

May 23, 2023

83. मुस्लिम समाज में व्याप्त रोज़गार की समस्या:हिंदी कहानियों के संदर्भ में – वैष्णवी बी

मुस्लिम समाज में व्याप्त रोज़गार की समस्या:हिंदी कहानियों के संदर्भ में  वैष्णवी बी भारत एक ऐसा देश है जहां अनेक संस्कृतियों का मिलन है।भारत में मुस्लिमों का आगमन इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।इस घटना से भारत के इतिहास में एक नया मोड़ आया।इस्लाम एक परिपूर्ण जीवन व्यवस्था है।इस्लाम में अर्थाजन सच्चाई तथा इंसाफ पर आश्रित है।मुस्लिमों की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी रही […]

May 23, 2023

82. डॉ० रामविलास शर्मा और प्रगति का विमर्श – डॉ. सुलेखा कुमारी

डॉ० रामविलास शर्मा और प्रगति का विमर्श डॉ. सुलेखा कुमारी शोध- सार– प्रगतिशील साहित्य जिस यथार्थवाद की भूमि पर आगे बढ़ रहा था उसमें समकालीनता के मूल्यों का विशेष महत्व था। इस कारण चिरंतन साहित्यिक मूल्य के प्रश्न को लेकर साहित्य मे प्रगति की चर्चा होती रही है। डॉ.  रामविलास शर्मा का मानना है कि समसामयिक और समकालीन परिस्थितियों से अलग होकर साहित्य प्रगति पथ […]

May 21, 2023

81. पचपन खंभे लाल दीवारें : पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी के बीच में फंसी स्त्री का दर्द – गीतिका सैकिया

पचपन खंभे लाल दीवारें : पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी के बीच में फंसी स्त्री का दर्द –   गीतिका सैकिया यह उपन्यास उषा प्रियम्वदा जी का प्रथम और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है । कहानियों में जैसे उनकी वापसी कहानी ने  एक रुतबा हासिल किया है उसी तरह उपन्यासों में पचपन खंभे लाल दीवारें उपन्यास का भी वैसा ही स्थान है। इस उपन्यास को तात्कालिक व्यापक […]