Author: Gina Journal

May 21, 2023

80. आरंभिक हिन्दी उपन्यासों में स्त्री का स्वरूप – सलमान

आरंभिक हिन्दी उपन्यासों में स्त्री का स्वरूप – सलमान शोध आलेख सार :               हिन्दी उपन्यास का आरंभ आधुनिक युग में होता है । आधुनिक युग का आरंभ नवजागरण से माना जाता है, स्त्री नवजागरण के केंद्र में रही है । नवजागरण की तमाम चिंताओं में स्त्री के सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार की चिंता सबसे अहम है । समाज-सुधारकों और चिंतकों का मानना था किसी […]

May 21, 2023

79. डॉ. देवेंद्र दीपक की चुनी हुई कविताओं में दलित चेतना – धन्या. एस

डॉ. देवेंद्र दीपक की चुनी हुई कविताओं में दलित चेतना धन्या. एस समाज में प्रचलित सभी प्रकार की असमानताओं का विरोधी है दलित विमर्श । दलित विमर्श एक सांस्कृतिक और सामाजिक आन्दोलन है।  हिंदी में दलित विमर्श का प्रारंभ ‘ सारिका ‘ के दो दलित विशेषांकों से माना जाता है और ‘ हंस’ पत्रिका में भी दलित विमर्श की चर्चा करते थे । दलित साहित्य […]

May 21, 2023

78. नारी-विमर्श : अनामिका की कविताएं – अनामिका शिल्पी

नारी-विमर्श : अनामिका की कविताएं       शोध-प्रज्ञा   :-  अनामिका शिल्पी (हिन्दी विभाग), पटना विश्वविद्यालय, पटना       शोध-निर्देशक :-  डॉ कुमारी विभा, एसोसिएट प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) हिन्दी विभाग,                             पटना कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय, पटना  शोध सार :           नारी-विमर्श एक आधुनिक विमर्श है, जिसका उद्येश्य समाज में उपस्थित स्त्री-पुरुष के मध्य सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक भेदभाव के बीच नारी – अस्मिता को स्थापित करना है। यह […]

May 21, 2023

77. समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श – श्रीमती आपी लंकाम     

                       समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श      श्रीमती आपी लंकाम     शोध सार :                                                                समकालीन साहित्य की प्रकृति पिछली साहित्य की प्रकृतियों  से बहुत कुछ भिन्न और विशिष्ट  है । यह साहित्य , आधुनिक हिंदी साहीतय  के विकास में वर्तमाण काव्यांदोलन है । इस […]

May 21, 2023

75. “समकालीन हिंदी कविता में पारिस्थितिकीय से जुडी समस्याएँ” – बीना.भद्रेशकुमार

“समकालीन हिंदी कविता में पारिस्थितिकीय से जुडी समस्याएँ” बीना.भद्रेशकुमार           प्रकृति माता हैं l प्रकृति के बिना मानवराशि का जीवन असंभव हैं. प्रकृति और पर्यावरण से भारतीय धर्म मुल रूप से जुड़ा हुआ हैं. भारतीय धर्मग्रंथो के अनुसार प्रकृति ईश्वर का पर्यायवाची शब्द हैं l ” ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।”          यह उपनिषद से लिया गया वाक्य […]

May 20, 2023

72. समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श – आदिवासी विमर्श – डॉ. एस. विजया       

Page No.: 515-526        समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श                            आदिवासी विमर्श – डॉ. एस. विजया                               आदिवासी विमर्श बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में शुरु हुआ अस्मितामूलक विमर्श है। इसके केंद्र में आदिवासियों के जल जंगल जमीन और जीवन की […]

May 20, 2023

71. स्त्री विमर्श को गति देतीं लता अग्रवाल की लघुकथाएं* – डॉ सूर्य प्रताप

Page No.: 510-514 शीर्षक :- *स्त्री विमर्श को गति देतीं लता अग्रवाल की लघुकथाएं* डॉ सूर्य प्रताप आधुनिक काल में जो विमर्श हाशिये पर थे, उन्हें उत्तर आधुनिकतावाद ने केन्द्र में स्थापित कर दिया है। चाहे दलित विमर्श हो या स्त्री-विमर्श, दोनों ने ही न केवल अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है, अपितु अपनी प्रासंगिकता और अनिवार्यता भी सिद्ध की है। स्त्री अपने अधिकारों के […]

May 20, 2023

70.समकालीन हिंदी नाटकों में स्त्री-विमर्श – बी. वी. एन् उमा गायत्री

      Page No.: 503-509      समकालीन हिंदी नाटकों में स्त्री-विमर्श बी. वी. एन् उमा गायत्री शोध-सार-:           भारत में स्त्री को सदा से ही समाज में एक अनिवार्य स्थान प्राप्त है। यह दूसरी बात है कि वह सम्मान की पात्र रहीं कि नहीं। प्राचीन काल में स्त्री को मात्र एक शरीर के रूप में न देखकर उसे समाज में समान अधिकार व […]

May 20, 2023

68. आदिवासी जीवन और प्रकृति- ‘जहाँ बाँस फूलते है ‘उपन्यास के संदर्भ में – लक्ष्मी के. एस. 

Page No.: 487-493 आदिवासी जीवन और प्रकृति– ‘जहाँ बाँस फूलते है ‘उपन्यास के संदर्भ में I लक्ष्मी के. एस.  साहित्य उसे कहा जाता है, जिसमें युगबोध के साथ समाज जीवन का यथार्थ चित्रण होता है। यह साहित्य कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध आदि विधाओं से संपन्न है। उपन्यास वर्तमान युग की एक सशक्त विधा है। हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं की तुलना में उपन्यास सामाजिक यथार्थ, […]

May 20, 2023

66. साहित्य और जीवन मूल्य – वैशाली

Page No.: 473-479 साहित्य और जीवन मूल्य वैशाली  सारांश           मूल्य मानव जीवन में जन्मजात होते है। उनका स्वरूप प्रकट करना बड़ा ही दुलर्भ कार्य है। मूल्य शब्द का तात्पर्य है- जीवन मूल्य अर्थात् जीवन के मानदण्ड। मूल्य मानव समाज की सभ्यता एवं संस्कृति के परिचालक तत्व हैं। समाज की उन्नति मानवीय मूल्यों पर ही आधारित होती है। समाज में मूल्य मानवीय व्यवहार के मानक […]