Category: विशेषांक-समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श

May 5, 2023

28. चित्रा मुद्गल के उपन्यास ‘एक ज़मीन अपनी’ में स्त्री-पात्रों का संघर्ष – नियति अग्रवाल

चित्रा मुद्गल के उपन्यास ‘एक ज़मीन अपनी’ में स्त्री-पात्रों का संघर्ष – नियति अग्रवाल सारांश- ‘एक ज़मीन अपनी’ चित्रा मुद्गल का पहला उपन्यास है। विज्ञापनों की दिखावटी और भ्रष्ट दुनिया में अपनी स्वाधीनता और आधुनिकता खोजती मध्यवर्गीय स्त्री के अंतर्विरोधी संघर्षों को लेखिका ने संतुलित और सधेपन से इस उपन्यास में उठाया है। स्त्री चाहे जहाँ भी हो, वह शोषण का शिकार बनती है। कुछ […]

May 5, 2023

26. मुंशी प्रेमचंद के समय अथवा समाज में वृद्ध जीवन ( कहानियों के सन्दर्भ में ) –  जाधव नीता बाबु

Page No.: 178-183 मुंशी प्रेमचंद के समय अथवा समाज में वृद्ध जीवन ( कहानियों के सन्दर्भ में ) –   जाधव नीता बाबु        किसी व्यक्ति के नाम से एक युग को नाम देना यह घटना उस व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके कार्य को दर्शाती हैं| कथा साहित्य के विकास क्रम में मुख्यत: उपन्यास अथवा कहानी के संबंध में मुंशी प्रेमचंद का नाम दिया गया […]

May 5, 2023

25. समकालीन साहित्यकार माता प्रसाद के नाटकों में दलित विमर्श – आशीष कुमार पटेल  

Page No.:170-177 समकालीन साहित्यकार माता प्रसाद के नाटकों में दलित विमर्श – आशीष कुमार पटेल   प्रस्तावना- प्रकृति की निगाह में सभी मनुष्य बराबर होते हैं। सभी मनुष्य पृथ्वी पर जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस जन्म और मृत्यु के बीच की दूरी का नाम जीवन है। इस जीवन को जीने के क्रम में कुछ मनुष्य जन्म से प्राप्त विशेषाधिकार के […]

May 5, 2023

2. समकालीन उपन्यासकारों में स्त्री विमर्श: विभिन्न परिदृश्य-डाॅ. रश्मी मालगी

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May 5, 2023

113. स्त्री विमर्श -मृदुला गर्ग के समकालीन उपन्यासों के परिप्रेक्ष्य में – वीणा सी वसन्त

Page No.:793-796 स्त्री विमर्श –मृदुला गर्ग के समकालीन उपन्यासों के परिप्रेक्ष्य में – वीणा सी वसन्त सारांश मेरे शोध पत्र का उद्देश्य मृदुला गर्ग के समकालीन उपन्यासों में स्त्री विमर्श को अभिव्यक्त करना है। मृदुला गर्ग बेहद बोल्ड व अंतर्मुखी व्यक्तित्व की लेखिका है। उनके उपन्यास कठगुलाब, चित्तकोबरा और उसके हिस्से की धूप आदि उनके सशक्त औपन्यासिक कृतियाँ है जहाँ नारी को उनके प्रति होनेवाली […]

May 5, 2023

21. समकालीन साहित्य में नारी विमर्श – रेखा गुप्ता

Page No.: 141-150 समकालीन साहित्य में नारी विमर्श – रेखा गुप्ता सारांश – समाज के दो पहलू स्त्री-पुरूष एक दूसरे के पूरक है। किसी एक के अभाव में दूसरे का अस्तित्व नहीं है। उसके बाद भी पुरूष समाज ने महिला समाज को अपने बराबर के समानता से वंचित रखा। यही पक्षपात दृष्टि ने शिक्षित नारियों को आंदोलन करने को मजबूर किया जो आज ज्वलंत मुद्दा […]

May 5, 2023

20. चित्रा मुद्गल के उपन्यास में नारी विमर्श – डॉ. लिट्टी योहन्नान

Page No.: 132-140  चित्रा मुद्गल के उपन्यास में नारी विमर्श – डॉ. लिट्टी योहन्नान चित्रा मुद्गल का जन्म 10 दिसम्बर, 1944 को सामंती परिवेश के गाँव निहाली खेडा, जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश के एक सम्पन्न ठाकूर परिवार में हुआ। चित्राजी पिताजी के साथ अनेक स्थानो पर रहने के कारण जीवन का उनका अनुभव बढ़ता गया और उन्हें देश के अलग हिस्सों के लोगों की जिन्दगी […]

May 5, 2023

17. समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श – रंजना गुप्ता 

Page No.: 118-121 समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श – रंजना गुप्ता  उप विषय – नारी विमर्श नारी विमर्श उस साहित्यिक आन्दोलन को कहा जाता है, जिसमे नारी अस्मिता को केन्द्र में रखकर संगठित रूप से स्त्री साहित्य की रचना की गई। हिन्दी साहित्य में नारी विमर्श अन्य अस्मिता मूलक विमर्शो के भाँति ही मुख्य विमर्श रहा है। नारी विमर्श भारतीय स्थितियो मे और हिन्दी साहित्य […]

May 5, 2023

15. समकालीन साहित्य में किन्नर विमर्श – क्षत्रिय दीपिका जितेन्द्र

Page No.: 105-112 समकालीन साहित्य में किन्नर विमर्श – क्षत्रिय दीपिका जितेन्द्र                       हिन्दी कथा साहित्य में निचले पायदान पर उपस्थित उपेक्षित वर्गों को केन्द्र में रखकर चिंतन किया जा रहा है जिसमें नारी विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, किसान विमर्श, किन्नर विमर्श आदि प्रमुख है।यह विमर्श उपेक्षित वर्गों को अपने प्रति होनेवाले अत्याचारों एवं अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए थे किन्तु इनमें […]

May 5, 2023

14. मीरा कांत व विभा रानी के नाटकों में स्त्री यौन शोषण की समस्या – सिमरन कुमारी

Page No.: 97-104 मीरा कांत व विभा रानी के नाटकों में स्त्री यौन शोषण की समस्या – सिमरन कुमारी सारांश मीरा कांत व विभा रानी 21वीं सदी की प्रमुख  महिला नाटककार हैं। इन्होंने कई विधाओं में साहित्य का सृजन किया हैं। परन्तु नाटककार के रूप में अधिक जानी जाती है। नाटकों में स्त्री के विविध स्वरूपों और पुरुष के कुत्सित मानसिकता को उजागर करने का […]