Category: विशेषांक-समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श

May 24, 2023

67. शैलेश मटियानी कृत नगरीय परिवेश की कहानियों में चित्रित नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन डॉ रंजीत कौर

Page No.: 480-486 शैलेश मटियानी कृत नगरीय परिवेश की कहानियों में चित्रित नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन डॉ रंजीत कौर भूमिकाः शैलेश मटियानी के साहित्य सृजन का प्रारंभिक काल मुंबई के महानगरीय परिवेश में बीता। जहां उन्हें मजदूरए श्रमिकए कुलीए उठाईगीरए उचक्कऐ और भिखारी समाज के बीच रहने का अवसर मिला। इस लिए उनके साहित्य में अनुभूतियों एवं संवेदनाओं के धरातल पर मानवता की सच्ची […]

May 24, 2023

60. समकालीन साहित्य में आर्थिक विमर्श –  डॉ0 जगदीश चन्द्र जोशी

Page No.: 430-437 समकालीन साहित्य में आर्थिक विमर्श –  डॉ0 जगदीश चन्द्र जोशी सारांश: समकालीन साहित्य में अभावों से जूझ रहे सर्वहारा वर्ग का कवियों ने सटीक चित्रण किया है। नागार्जुन, धूमिल, केदारनाथ सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन, रामशेर बहादुर सिंह, दुष्यन्त कुमार, मुक्तिबोध, कैलाश वाजपेई, उदय प्रकाश दिनकर आदि ने रोटी, कपड़ा और मकान से वंचित वर्ग को ही अपनी कविता का […]

May 24, 2023

59. जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हिन्दी – डॉ. श्याम लाल

Page No.: 418-419 जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हिन्दी डॉ. श्याम लाल हिन्दी भाषा की पृष्ठभूमि मानव जीवन में भाषा का एक विशेष महत्त्व है। यह समाज एवं संस्कृति की संवाहिका है। किसी भी देश का प्रतिबिम्ब उस देश की संस्कृति एवं भाषा में समाहित होता है तथा हिन्दी तो कालान्तर से ही साधु-सन्तों, महापुरुषों, फकीरों, वेद-ग्रन्थों, आध्यात्मिक विद्वानों, पर्यटकों, धार्मिक गुरुओं, साधकों और जनसामान्य […]

May 23, 2023

58. वर्तमान भारत में किन्नर समाज: किन्नर विमर्श के विशेष सन्दर्भ में – सत्य प्रकाश नाग

Page No.:410-417 वर्तमान भारत में किन्नर समाज: किन्नर विमर्श के विशेष सन्दर्भ में – सत्य प्रकाश नाग जनगणना 2011 के अनुसार भारत में किन्नरों की कुल आबादी 4.88 लाख रही। देश में किन्नरों की इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी ये समाज की मुख्य धारा से कटे रहे। इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज का किन्नरों के प्रति धृणित दृष्टिकोण रहा है। किन्नरों को लगातार […]

May 23, 2023

89. समकालीन हिंदी साहित्य में नारी विमर्श – डॉ . संदीप कुमार

Page No.: 636-643 समकालीन हिंदी साहित्य में नारी विमर्श – डॉ . संदीप कुमार शोध सारांश :— समकालीन हिंदी साहित्य के गद्य और पद्य दोनों ही रूपों में नारी विमर्श की तीव्र अनुगूंज सुनाई पड़ रही है । नारी विमर्श, नारी शोषण के विरोध में पितृसत्ता के खिलाफ चलाया जा रहा एक आंदोलन है । नारी शोषण जिसका अंतहीन आरंभ नारी के जन्म से पूर्व […]

May 23, 2023

1.मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों  में आधुनिक सन्दर्भ – अफीफा फातिमा शेक

Page No: 5-12 मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों  में आधुनिक सन्दर्भ – अफीफा फातिमा शेक शोध सार : प्रस्तुत शोध पत्रिका का मुख्य उद्देश मनीषा कुलश्रेष्ठा की कहानियों में आधुनिक संदर्भ को रेखांकित करना है। आधुनिकता आज जीवन का अंग बन गई है। विचार एवं भावों में परिवर्तन होने से ही आधुनिकता आ जाती है, जिसका संबंध अतीत से नहीं वर्तमान से जुड़ा होता है। जो […]

May 23, 2023

88. अपराध, नियम और न्याय: कोर्ट मार्शल के विशेष संदर्भ में-अर्चना एस नायर

Page No.: 631-635 अपराध, नियम और न्याय: कोर्ट मार्शल के विशेष संदर्भ में।  -अर्चना एस नायर                    ग्लोरिया स्टैनेम नामक एक पत्रकार की एक कहावत है कि ‘नियम और न्याय हमेशा एक नही होता है’। यह ज़रूरी नहीं कि जो नियम है वह न्याय भी है। इनका संबन्ध अभेद्य है लेकिन इनमें भी भेद है। स्वदेश दीपक के प्रभावी नाटक ‘कोर्ट मार्शल’ की कहानी भी […]

May 23, 2023

87. सौन्दर्य का विमर्श और समकालीनता – डॉ. अरुण प्रसाद रजक

Page No.: 624-630 सौन्दर्य का विमर्श और समकालीनता डॉ. अरुण प्रसाद रजक शोध-सार- सौन्दर्य की अवधारणा को लेकर हमेशा विमर्श चलती रही है। भाववादी विचारक सौन्दर्य का सम्बन्ध मनुष्य की अंतश्चेतना से जोड़ते हैं, जबकि भौतिकवादी विचारकों की दृष्टि में सौन्दर्य का कोई अलौकिक आधार नहीं होता, वह वस्तु और व्यक्ति से अनिवार्य रूप से जुड़ा है। सुन्दरता वस्तु का गुण है और गुण को […]

May 23, 2023

86. वर्गीय असमानता में जूझनेवाले दिव्यांग मजदूर: ‘खोटे सिक्के’ के परिप्रेक्ष्य में – टिनु अलेक्स. के

Page No.: 619-623 वर्गीय असमानता में जूझनेवाले दिव्यांग मजदूर: ‘खोटे सिक्के’ के परिप्रेक्ष्य में टिनु अलेक्स. के सारांश – हिंदी साहित्य में शोषक और शोषित वर्ग को केंद्र में रखकर अनेक रचनाएं हुई है। पूंजीपति एवं उद्योगपति के षड्यंत्रों से जूझनेवाले अनेक मजदूर होते हैं, जिन्होंने आपनी जिंदगी ऐसे लोगों के हाथों में सौंपकर शोषण का शिकार बनते हैं। प्रस्तुत कहानी में दिव्यांग मजदूरों के […]

May 23, 2023

85. मूल्य क्षरण के दौर में हाशिए पर वृद्ध : समकालीन हिंदी उपन्यासों के संदर्भ में – राहिता.पी.आर

                                                          Page No.: 613-618 मूल्य क्षरण के दौर में हाशिए पर वृद्ध : समकालीन हिंदी उपन्यासों के संदर्भ में – राहिता.पी.आर          वृद्धावस्था जीवन की वह अवस्था है जहां पहुंचकर व्यक्ति मृत्यु की कामना करता है। वृद्धावस्था में मनुष्य अपने युवावस्था की स्मृतियों और पूरे जीवन में उनकी सफलता – असफलता के बारे में विचार करके बाकी का जीवन व्यतीत करता है। शारीरिक कमजोरी के […]