Category: विशेषांक-समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श

May 23, 2023

84. समकालीन हिंदी कविता में चित्रित आदिवासियों का विस्थापन – सिम्ना.एन 

समकालीन हिंदी कविता में चित्रित आदिवासियों का विस्थापन                            सिम्ना.एन            आदिवासी इस धरती की मूल निवासी हैं| वे जल-जंगल-ज़मीन की अधिकारी होते हैं| प्रो.रामदयाल मुंडा के अनुसार “आदिवासी से हमारा तात्पर्य उन आर्येतर जनजातियों से है, जिन्हें संस्कृत साहित्य में असुर, निषाद, दस्यु, वानर, राक्षस आदि से संबोधित किया गया|”[1] है| विद्वानों ने आदिवासियों को अपनी सुविधा के अनुसार अलग […]

May 23, 2023

83. मुस्लिम समाज में व्याप्त रोज़गार की समस्या:हिंदी कहानियों के संदर्भ में – वैष्णवी बी

मुस्लिम समाज में व्याप्त रोज़गार की समस्या:हिंदी कहानियों के संदर्भ में  वैष्णवी बी भारत एक ऐसा देश है जहां अनेक संस्कृतियों का मिलन है।भारत में मुस्लिमों का आगमन इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।इस घटना से भारत के इतिहास में एक नया मोड़ आया।इस्लाम एक परिपूर्ण जीवन व्यवस्था है।इस्लाम में अर्थाजन सच्चाई तथा इंसाफ पर आश्रित है।मुस्लिमों की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी रही […]

May 23, 2023

82. डॉ० रामविलास शर्मा और प्रगति का विमर्श – डॉ. सुलेखा कुमारी

डॉ० रामविलास शर्मा और प्रगति का विमर्श डॉ. सुलेखा कुमारी शोध- सार– प्रगतिशील साहित्य जिस यथार्थवाद की भूमि पर आगे बढ़ रहा था उसमें समकालीनता के मूल्यों का विशेष महत्व था। इस कारण चिरंतन साहित्यिक मूल्य के प्रश्न को लेकर साहित्य मे प्रगति की चर्चा होती रही है। डॉ.  रामविलास शर्मा का मानना है कि समसामयिक और समकालीन परिस्थितियों से अलग होकर साहित्य प्रगति पथ […]

May 21, 2023

81. पचपन खंभे लाल दीवारें : पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी के बीच में फंसी स्त्री का दर्द – गीतिका सैकिया

पचपन खंभे लाल दीवारें : पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी के बीच में फंसी स्त्री का दर्द –   गीतिका सैकिया यह उपन्यास उषा प्रियम्वदा जी का प्रथम और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है । कहानियों में जैसे उनकी वापसी कहानी ने  एक रुतबा हासिल किया है उसी तरह उपन्यासों में पचपन खंभे लाल दीवारें उपन्यास का भी वैसा ही स्थान है। इस उपन्यास को तात्कालिक व्यापक […]

May 21, 2023

80. आरंभिक हिन्दी उपन्यासों में स्त्री का स्वरूप – सलमान

आरंभिक हिन्दी उपन्यासों में स्त्री का स्वरूप – सलमान शोध आलेख सार :               हिन्दी उपन्यास का आरंभ आधुनिक युग में होता है । आधुनिक युग का आरंभ नवजागरण से माना जाता है, स्त्री नवजागरण के केंद्र में रही है । नवजागरण की तमाम चिंताओं में स्त्री के सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार की चिंता सबसे अहम है । समाज-सुधारकों और चिंतकों का मानना था किसी […]

May 21, 2023

79. डॉ. देवेंद्र दीपक की चुनी हुई कविताओं में दलित चेतना – धन्या. एस

डॉ. देवेंद्र दीपक की चुनी हुई कविताओं में दलित चेतना धन्या. एस समाज में प्रचलित सभी प्रकार की असमानताओं का विरोधी है दलित विमर्श । दलित विमर्श एक सांस्कृतिक और सामाजिक आन्दोलन है।  हिंदी में दलित विमर्श का प्रारंभ ‘ सारिका ‘ के दो दलित विशेषांकों से माना जाता है और ‘ हंस’ पत्रिका में भी दलित विमर्श की चर्चा करते थे । दलित साहित्य […]

May 21, 2023

78. नारी-विमर्श : अनामिका की कविताएं – अनामिका शिल्पी

नारी-विमर्श : अनामिका की कविताएं       शोध-प्रज्ञा   :-  अनामिका शिल्पी (हिन्दी विभाग), पटना विश्वविद्यालय, पटना       शोध-निर्देशक :-  डॉ कुमारी विभा, एसोसिएट प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) हिन्दी विभाग,                             पटना कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय, पटना  शोध सार :           नारी-विमर्श एक आधुनिक विमर्श है, जिसका उद्येश्य समाज में उपस्थित स्त्री-पुरुष के मध्य सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक भेदभाव के बीच नारी – अस्मिता को स्थापित करना है। यह […]

May 21, 2023

77. समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श – श्रीमती आपी लंकाम     

                       समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श      श्रीमती आपी लंकाम     शोध सार :                                                                समकालीन साहित्य की प्रकृति पिछली साहित्य की प्रकृतियों  से बहुत कुछ भिन्न और विशिष्ट  है । यह साहित्य , आधुनिक हिंदी साहीतय  के विकास में वर्तमाण काव्यांदोलन है । इस […]

May 21, 2023

75. “समकालीन हिंदी कविता में पारिस्थितिकीय से जुडी समस्याएँ” – बीना.भद्रेशकुमार

“समकालीन हिंदी कविता में पारिस्थितिकीय से जुडी समस्याएँ” बीना.भद्रेशकुमार           प्रकृति माता हैं l प्रकृति के बिना मानवराशि का जीवन असंभव हैं. प्रकृति और पर्यावरण से भारतीय धर्म मुल रूप से जुड़ा हुआ हैं. भारतीय धर्मग्रंथो के अनुसार प्रकृति ईश्वर का पर्यायवाची शब्द हैं l ” ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।”          यह उपनिषद से लिया गया वाक्य […]

May 20, 2023

72. समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श – आदिवासी विमर्श – डॉ. एस. विजया       

Page No.: 515-526        समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श                            आदिवासी विमर्श – डॉ. एस. विजया                               आदिवासी विमर्श बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में शुरु हुआ अस्मितामूलक विमर्श है। इसके केंद्र में आदिवासियों के जल जंगल जमीन और जीवन की […]