Category: विशेषांक-समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श

May 20, 2023

71. स्त्री विमर्श को गति देतीं लता अग्रवाल की लघुकथाएं* – डॉ सूर्य प्रताप

Page No.: 510-514 शीर्षक :- *स्त्री विमर्श को गति देतीं लता अग्रवाल की लघुकथाएं* डॉ सूर्य प्रताप आधुनिक काल में जो विमर्श हाशिये पर थे, उन्हें उत्तर आधुनिकतावाद ने केन्द्र में स्थापित कर दिया है। चाहे दलित विमर्श हो या स्त्री-विमर्श, दोनों ने ही न केवल अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है, अपितु अपनी प्रासंगिकता और अनिवार्यता भी सिद्ध की है। स्त्री अपने अधिकारों के […]

May 20, 2023

70.समकालीन हिंदी नाटकों में स्त्री-विमर्श – बी. वी. एन् उमा गायत्री

      Page No.: 503-509      समकालीन हिंदी नाटकों में स्त्री-विमर्श बी. वी. एन् उमा गायत्री शोध-सार-:           भारत में स्त्री को सदा से ही समाज में एक अनिवार्य स्थान प्राप्त है। यह दूसरी बात है कि वह सम्मान की पात्र रहीं कि नहीं। प्राचीन काल में स्त्री को मात्र एक शरीर के रूप में न देखकर उसे समाज में समान अधिकार व […]

May 20, 2023

68. आदिवासी जीवन और प्रकृति- ‘जहाँ बाँस फूलते है ‘उपन्यास के संदर्भ में – लक्ष्मी के. एस. 

Page No.: 487-493 आदिवासी जीवन और प्रकृति– ‘जहाँ बाँस फूलते है ‘उपन्यास के संदर्भ में I लक्ष्मी के. एस.  साहित्य उसे कहा जाता है, जिसमें युगबोध के साथ समाज जीवन का यथार्थ चित्रण होता है। यह साहित्य कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध आदि विधाओं से संपन्न है। उपन्यास वर्तमान युग की एक सशक्त विधा है। हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं की तुलना में उपन्यास सामाजिक यथार्थ, […]

May 20, 2023

66. साहित्य और जीवन मूल्य – वैशाली

Page No.: 473-479 साहित्य और जीवन मूल्य वैशाली  सारांश           मूल्य मानव जीवन में जन्मजात होते है। उनका स्वरूप प्रकट करना बड़ा ही दुलर्भ कार्य है। मूल्य शब्द का तात्पर्य है- जीवन मूल्य अर्थात् जीवन के मानदण्ड। मूल्य मानव समाज की सभ्यता एवं संस्कृति के परिचालक तत्व हैं। समाज की उन्नति मानवीय मूल्यों पर ही आधारित होती है। समाज में मूल्य मानवीय व्यवहार के मानक […]

May 20, 2023

65. दलित लेखिका का जीवन संघर्ष: ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ में – बिंदु आर

Page No.: 466-472 दलित लेखिका का जीवन संघर्ष: ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ में बिंदु आर सारांश   समकालीन यथार्थ का चित्रात्मक स्वरूप ही साहित्य है। साहित्य का समकालीन परिस्थितियों से गहरा संबंध है। साहित्य समाज का दर्पण है। किसी भी युग की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक समस्याओं का समग्र चित्रण ही समकालीन बोध है।“1 समकालीन हिंदी साहित्य में आज कई विमर्श उभर कर आई है […]

May 20, 2023

64. समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श  – ज्योत्सना आर्य सोनी

Page No.: 461-465 समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श    ज्योत्सना आर्य सोनी प्रस्तावना दलित साहित्य की अवधारणा को समझने से पहले’ दलित’ शब्द को समझना आवश्यक है। इस शब्द की उत्पत्ति ‘दल’ धातु से हुई है। ‘संक्षिप्त हिंदी शब्द सागर’ में संपादक रामचंद्र शर्मा ने ‘दलित’ शब्द का अर्थ विशिष्ट किया हुआ, मसला हुआ, मर्दित,दबाया हुआ आदि बताया है। कुसुमलता मेघवाल ने दलित की […]

May 20, 2023

62. किन्नर विमर्श : एक दृष्टि – रश्मि गुप्ता

Page No.: 446-451        किन्नर विमर्श : एक दृष्टि – रश्मि गुप्ता विमर्श का अर्थ होता है जीवंत बहस, जब हम समाज में किसी भी समस्या है स्थिति को एक ही दृष्टि से ना देखकर भिन्न-भिन्न दृष्टि से देखते हैं उन पर विचार करते हैं उनकी समस्या का समाधान करने का विचार करते हैं। वर्तमान दौर विमर्शो का दौर है जिसमें स्त्री दलित […]

May 20, 2023

61.समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श और ग्रामीण स्त्रियाँ – रुचि कुमारी 

Page No.:438-445       समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श और ग्रामीण स्त्रियाँ – रुचि कुमारी         आज विमर्शों का दौर है | जहाँ तमाम तरह के विमर्श – नारी विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, पुरुष विमर्श, किन्नर विमर्श आदि प्रचलन में है | विमर्श का सामान्य अर्थ होता है – समाज द्वारा उपेक्षित, शोषित, दमित व्यक्तियों और समाज को केंद्र में लाना | हालांकि स्त्री विमर्श या […]

May 20, 2023

57. कृष्णा अग्निहोत्री की चयनित  कहानियों में वृद्ध जीवन – सविता गोपीनाथन

Page No.: 403-409 कृष्णा अग्निहोत्री की चयनित  कहानियों में वृद्ध जीवन सविता गोपीनाथन वृद्धावस्था धीरे धीरे आनेवाली अवस्था है जो कि स्वाभाविक और प्राकृतिक घटना है। वृद्ध का शाब्दिक अर्थ है पका हुआ या परिपक्व। वृद्ध विमर्श का अर्थ है वृद्धावस्था की परिस्थितियों,घटनाओं आदि का चिंतन करना अर्थात वृद्धावस्था की समस्याओं को समझ कर उनके लिए उचित स माधान निकालना। जीवन भर मरते -खपते रहो, […]

May 20, 2023

56. प्रवासी साहित्यकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानियों में पुरुष-उत्पीड़न – सिमरन  

Page No.: 394-402 प्रवासी साहित्यकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानियों में पुरुष – उत्पीड़न  सिमरन   शोध सार:- प्रवासी साहित्य में पुरुष को केंद्र में रखकर कहानी लिखने की शुरुआत बहुत पहले से हो गई थी। पुरुष अपनी पत्नी, प्रेमिका से उत्पीड़ित होते हुए दिखलाई पड़ते है। संवेदनाएं इतनी गहरी है कि इनकी दशा को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। एक तो वे उत्पीड़ित है और दूसरा […]