शोध पत्र |
पेज नंबर |
1.मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों में आधुनिक सन्दर्भ – अफीफा फातिमा शेक |
5-12 |
2. समकालीन उपन्यासकारों में स्त्री विमर्श: विभिन्न परिदृश्य-डॉ. रश्मी मालगी |
13-21 |
3.भाषा आधारित शिक्षा पद्धति और एन.ई.पी.2020 – डॉ.परमानन्द त्रिपाठी |
22-29 |
4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के विशेष परिप्रेक्ष्य में “प्रौढ़ शिक्षा और जीवनपर्यन्त सीखना“ – डॉ. नरेश कुमार |
30-36 |
5.अर्चना पैन्यूली की कहानियों में नारी विमर्श-किरण कटोच |
37-43 |
6. हिन्दी उपन्यासों में अभिव्यक्त स्वास्थ्य समस्याओं पर विमर्श – अश्विनी कुमार |
44-47 |
7. समकालीन साहित्य में आर्थिक विमर्श-डॉ0 जगदीश चन्द्र जोशी |
48-52 |
9. दोहरा अभिशाप :दलित स्त्री चेतना का सशक्त हस्ताक्षर – हिना |
53-59 |
8. किन्नर समाज के संघर्ष को चित्रित करता उपन्यास दर्द न जाने कोई- कृतिका चौधरी |
60-67 |
10. पर्यावरणीय चेतना एवं जागरूकता से ओत-प्रोत हमारा समकालीन हिन्दी साहित्य – रीतिका पाण्डेय (पी-एच.डी.शोधार्थी) |
68-76 |
11. ‘छोटा किसान’ : किसान जीवन यथार्थ के दस्तावेज़ – अंजू |
77-82 |
12. समकालिन साहित्य में स्त्री विमर्श – राजलक्ष्मी जायसवाल |
83-88 |
13. स्त्री विमर्श के आईने में गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘माई’ : एक अध्ययन – अमला थॉमस |
89-96 |
14. मीरा कांत व विभा रानी के नाटकों में स्त्री यौन शोषण की समस्या – सिमरन कुमारी |
97-104 |
15. समकालीन साहित्य में किन्नर विमर्श – क्षत्रिय दीपिका जितेन्द्र |
105-112 |
16. चित्रा मुद्गल के उपन्यास ‘आवां’ में नमिता का संघर्ष – (प्रो.) डॉ. अनुसुइया अग्रवाल डी. लिट्. |
113-117 |
17. समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श – रंजना गुप्ता |
118-121 |
18. वर्तमान भारत में किन्नर समाज: किन्नर विमर्श के विशेष सन्दर्भ में – सत्य प्रकाश नाग |
122-126 |
19.हिन्दी साहित्य के प्रमुख उपन्यासों में किन्नर समाज – डॉ. आंचल कुमारी |
127-131 |
20. चित्रा मुद्गल के उपन्यास में नारी विमर्श – डॉ. लिट्टी योहन्नान |
132-140 |
21. समकालीन साहित्य में नारी विमर्श – रेखा गुप्ता |
141-150 |
22. हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श – डॉ. रंजीता बैद |
151-155 |
23.शैलेश मटियानी कृत नगरीय परिवेश की कहानियों में चित्रित नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन -डॉ रंजीत कौर |
156-159 |
24. विद्यालयों में प्रचलित लैंगिक असमानताओं की रूपरेखा का अध्ययन – अनिल कुमार |
160-169 |
25. समकालीन साहित्यकार माता प्रसाद के नाटकों में दलित विमर्श – आशीष कुमार पटेल |
170-177 |
26. मुंशी प्रेमचंद के समय अथवा समाज में वृद्ध जीवन ( कहानियों के सन्दर्भ में ) – जाधव नीता बाबु |
178-183 |
27. हिंदी साहित्य में दलित चेतना का उद्भव- भारती |
184-193 |
28. चित्रा मुद्गल के उपन्यास ‘एक ज़मीन अपनी’ में स्त्री-पात्रों का संघर्ष – नियति अग्रवाल |
194-201 |
29.समकालिन कहानियों में नारी विमर्श – डॉ.- प्रा. भिमराव माने |
202-207 |
30. सामाजिक यथार्थ के संदर्भ में: दलित स्त्री की आत्मकथा एक अध्ययन – प्रियंका सारम्म फिलिप्प |
208-213 |
31. मालती जोशी की कहानियों में व्यक्त पुरुष आश्रयहिन स्त्री की स्थिति – नेहा |
214-216 |
32. दंड-विधान: जातिगत स्त्री शोषण का जीवंत दस्तावेज- मनीषा देवी |
217-222 |
33. सुखबीर सिंह की कविताओं में दलित चेतना – आंचल यादव |
223-230 |
34. किशोर जीवन व समस्याओं का जीवतं दस्तावेज रजनी गुप्त का उपन्यास: ‘कुल जमा बीस’ – मदन लाल |
231-236 |
35. समकालीन हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श – डॉ. पूनम कुमारी (सहायक प्रोफेसर) |
237-239 |
36. समकालीन दौर : प्रकृति विमर्श – कुमार मंगलम |
240-250 |
37. समकालीन साहित्य में नारी विमर्श – अनीता कुमारी |
251-257 |
38. गीतांजलि श्री की “माई ” उपन्यास में चित्रित नारी – गोपिका |
258-262 |
39. साहित्य अकादमी द्वारा अनुदित कहानियों में बाल विमर्श – पूनम |
263-275 |
40. समकालीन हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श – सोमबीर |
276-284 |
41. गिलिगडु उपन्यास में वृद्धों की समस्या – मनुजा |
285-288 |
42. इक्कीसवीं सदी के हिंदी उपन्यासों में किसान विमर्श – रघुवीर दान चारण |
289-295 |
43. नारी-विमर्श : अनामिका की कविताएं – अनामिका शिल्पी |
296-307 |
44.समकालीन हिन्दी आत्मकथा लेखिकाओं के आत्मकथा-साहित्य में आर्थिक चेतना (विमर्श) – डॉ. प्रीति दुबे |
308-312 |
45. दलित विमर्श की अवधारणा और हिंदी साहित्य – शैलेन्द्र कुमार |
313-320 |
46. समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श – डॉ. नंदिनी चौबे |
321-327 |
47. रामदरश मिश्र के उपन्यासों में स्त्री प्रतिरोध के स्वर – शिवांकत्रिपाठी |
328-335 |
48. समकालीन हिंदी उपन्यास में आदिवासी चेतना एवं आधुनिकता का द्वंद्व – विजय ज्योति |
336-344 |
49. नादिरा जहीर बब्बर की नाटक जी जैसी आप की मर्जी में स्त्री |
345-349 |
50.विपिन बिहारी की कहानीयों में दलित जीवन का यथार्थ |
350-354 |
51. दलित साहित्यः संवेदना |
355-361 |
52. हिंदी उपन्यासों में किसान विमर्श – गरिमा आर जोशी |
362-368 |
53. समकालीन हिंदी साहित्य और रूपांतरित परिदृश्य में वनिता विमर्श – ड़ॉ0 मीनू शर्मा |
369-376 |
54. समकालीन हिन्दी कविता में किन्नर विमर्श – Dr. Seena Kurian |
377-387 |
55. समकालीन साहित्यकार मेघ सिंह ‘बादल’ के उपन्यासों में दलित विमर्श – सोनाली राजपूत |
388-393 |
56. प्रवासी साहित्यकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानियों में पुरुष-उत्पीड़न – सिमरन |
394-402 |
57. कृष्णा अग्निहोत्री की चयनित कहानियों में वृद्ध जीवन – सविता गोपीनाथन |
403-409 |
58. वर्तमान भारत में किन्नर समाज: किन्नर विमर्श के विशेष सन्दर्भ में – सत्य प्रकाश नाग |
410-417 |
59. जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हिन्दी – डॉ. श्याम लाल |
418-429 |
60. समकालीन साहित्य में आर्थिक विमर्श – डॉ0 जगदीश चन्द्र जोशी |
430-437 |
61.समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श और ग्रामीण स्त्रियाँ – रुचि कुमारी |
438-445 |
62. किन्नर विमर्श : एक दृष्टि – रश्मि गुप्ता |
446-451 |
63.पद्मा शर्मा के साहित्य में स्त्री विमर्श-कृष्ण कुमार थापक |
452-460 |
64. समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श – ज्योत्सना आर्य सोनी |
461-465 |
65. दलित लेखिका का जीवन संघर्ष: ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ में – बिंदु आर |
466-472 |
66. साहित्य और जीवन मूल्य – वैशाली |
473-479 |
67. शैलेश मटियानी कृत नगरीय परिवेश की कहानियों में चित्रित नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन डॉ रंजीत कौर |
480-486 |
68. आदिवासी जीवन और प्रकृति- ‘जहाँ बाँस फूलते है ‘उपन्यास के संदर्भ में – लक्ष्मी के. एस. |
487-493 |
69. वृध्दावस्था विमर्श -डॉ. सुनीता राठौर |
494-502 |
70.समकालीन हिंदी नाटकों में स्त्री-विमर्श – बी. वी. एन् उमा गायत्री |
503-509 |
71. स्त्री विमर्श को गति देतीं लता अग्रवाल की लघुकथाएं* – डॉ सूर्य प्रताप |
510-514 |
72. समकालीन हिन्दी साहित्य और विमर्श – आदिवासी विमर्श – डॉ. एस. विजया |
515-526 |
73. साहित्य और पर्यावरण का अंतरसंबंध – राधा देवी |
527-535 |
74. समकालीन कथा साहित्य में किन्नरों का उत्थान और पहचान एक संघर्ष – नीतू कुमारी |
536-542 |
75. “समकालीन हिंदी कविता में पारिस्थितिकीय से जुडी समस्याएँ” – बीना.भद्रेशकुमार |
543-551 |
76. स्त्री विमर्श: कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न – पूनम सिंह |
552-557 |
77. समकालीन हिंदी साहित्य में दलित विमर्श – श्रीमती आपी लंकाम |
558-564 |
78. नारी-विमर्श : अनामिका की कविताएं – अनामिका शिल्पी |
565-575 |
79. डॉ. देवेंद्र दीपक की चुनी हुई कविताओं में दलित चेतना – धन्या. एस |
576-582 |
80. आरंभिक हिन्दी उपन्यासों में स्त्री का स्वरूप – सलमान |
583-591 |
81. पचपन खंभे लाल दीवारें : पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी के बीच में फंसी स्त्री का दर्द – गीतिका सैकिया |
592-596 |
82. डॉ० रामविलास शर्मा और प्रगति का विमर्श – डॉ. सुलेखा कुमारी |
597-602 |
83. मुस्लिम समाज में व्याप्त रोज़गार की समस्या:हिंदी कहानियों के संदर्भ में – वैष्णवी बी |
603-606 |
84. समकालीन हिंदी कविता में चित्रित आदिवासियों का विस्थापन – सिम्ना.एन |
607-612 |
85. मूल्य क्षरण के दौर में हाशिए पर वृद्ध : समकालीन हिंदी उपन्यासों के संदर्भ में – राहिता.पी.आर |
613-618 |
86. वर्गीय असमानता में जूझनेवाले दिव्यांग मजदूर: ‘खोटे सिक्के’ के परिप्रेक्ष्य में – टिनु अलेक्स. के |
619-623 |
87. सौन्दर्य का विमर्श और समकालीनता – डॉ. अरुण प्रसाद रजक |
624-630 |
88. अपराध, नियम और न्याय: कोर्ट मार्शल के विशेष संदर्भ में-अर्चना एस नायर |
631-635 |
89. समकालीन हिंदी साहित्य में नारी विमर्श – डॉ . संदीप कुमार |
636-643 |
90. मीडिया विमर्श के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक -सांस्कृतिक बदलाव -लिबिल जैकब |
644-649 |
91. समकालीन साहित्य में नारी-विमर्श -डॉ. हरमंदर सिंह |
650-654 |
92. समकालीन साहित्य में आर्थिक-विमर्श-मो0 जिमी |
655-658 |
93. समकालीन दलित उपन्यासों में चित्रित विषय वैविध्य- Alka Prakash |
659-663 |
94. स्त्री विमर्श: कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न-पूनम सिंह |
664-666 |
95. हिंदी साहित्य में दलित चेतना का उद्भव-भारती |
667-675 |
96. समकालीन साहित्य में सांस्कृतिक विमर्श- डॉ. राजेश वर्मा और अपर्णा द्विवेदी |
676-685 |
97. समकालीन साहित्य में नारी विमर्श- नीरजा द्विवेदी |
686-692 |
98. पीटर पॉल एक्का के कहानियों में आदिवासी स्त्रियों का जीवन संघर्ष-पूजा पॉल |
693-701 |
99. ‘ग्रामसेविका’ उपन्यास में अभिव्यक्त ग्रामीण नारी जीवन-अनीषा.एन |
702-706 |
100. पत्रकारिता विमर्श-एस. राजलक्ष्मी |
707-711 |
101.हिंदी कहानियों में चित्रित वृद्धावस्थाजनित एकाकीपन-उज्ज्वल सिंह |
712-720 |
102. उत्तर आधुनिकता एवं दलित विमर्श- डॉ. प्रिया सिंह |
721-724 |
103. हिंदी साहित्य में समकालीन आधुनिक विमर्श -डॉ. पायल लिल्हारे |
725-734 |
104. समकालीन हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श-डॉ.सी.बालकृष्ण |
735-740 |
105. महिला आत्मकथा साहित्य में स्त्री विमर्श-विधा देवी पटेल |
741-744 |
106. “आदिवासी विमर्श” – श्रीमती रश्मि विश्वकर्मा, |
745-751 |
107. आज़ादी के पूर्व साहित्य में देशभक्ति की भावना -डॉ. खुशबू राठी |
752-761 |
108. विपिन बिहारी की कहानीयों में दलित जीवन का यथार्थ- सुबिता. के.एस |
762-766 |
109. समकालीन दलित उपन्यासों में चित्रित विषय वैविध्य-अल्का के पि |
767-771 |
110.स्त्री विमर्श के परिप्रेक्ष्य में ‘झूलानट’ : एक अध्ययन-षानुप्रिया |
772-778 |
111. डॉ. ताराषंकर शर्मा ‘पाण्डेय’ की कृतियों में नारी विमर्ष -प्रियंका शर्मा |
779-783 |
112. शंकर शेष के ‘बाढ़ का पानी’ नाटक में निहित दलित विमर्श डॉ. अंशु बत्रा |
784-792 |
113. स्त्री विमर्श -मृदुला गर्ग के समकालीन उपन्यासों के परिप्रेक्ष्य में – वीणा सी वसन्त |
793-796 |
114. डॉ शंकर शेष के नाटकों में मुखरित स्त्री स्वर – डॉं नादिया सी राज |
797-807 |